हिंदुओं को भटकने वाले लोग इधर उधर से नोच घसोट करके परोस रहे हैं अप्रमाणित आधा अधूरा इतिहास !ऐसे लोगों की सृष्टि विषयक कल्पना भी आधार हीन है !
हमारे हर धर्मग्रन्थ में शुद्ध खानपान की बात कही गई है और जीवों पर दया करने की बात समझाई गई है साथ ही अहिंसा को ही परम धर्म बताया गया है । गायों की रक्षा के लिए भगवान अवतार लिया करते थे ऐसे दया धर्म का पालन करने वाला सनातनी हिंदू समाज गोमांस खाता होगा ऐसा कहने वाले सौ प्रतिशत झूठ बोल रहे हैं !ये पांच छै हजार वर्ष पहले से ही सृष्टि मानने वालों की अज्ञान जन्य सोच है जबकि सनातनी हिन्दू समाज के पास लाखों वर्ष पुरानी सृष्टि होने के सुपुष्ट प्रमाण हैं !
आयुर्वेद में जरूर अन्य जीवों के मांस के गुणों का वर्णन करते समय गोमांस के गुणों का वर्णन भी मिलता है किंतु गोमांस खाने का वर्ण कहीं नहीं मिलता !देश की परतंत्रता के समय कुछ ग्रंथों में कुछ श्लोक घुसाने की कोशिश की गई है जैसे गोमांस खाने सम्बन्धी बात ही है किंतु इन्हें पूर्वापर प्रमाणों से समझना चाहिए !जो सनातनीहिंदू समाज लहसुन प्याज जैसी चीजों से भी धर्म एवं पुण्यकृत्यों में परहेज करता रहा हो वो गोमांस कैसे खा लेगा !हमारे धर्म ग्रंथों में शुद्ध खान पान की हमेंशा प्रशंसा की गई है फिर यदि गोमांस ही खाना था तो शुद्धता किस बात की !!
बंधुओ !यदि ऋषि मुनि गोमांस खाते होते तो परम्परया वो पृथा आज तक चल
रही होती !दूसरी बात वो हमें गोपालन ,गो रक्षा ,गो सेवा जैसे पवित्र आचार
व्यवहार सिखाकर क्यों गए होते !आखिर उनकी मजबूरी क्या थी ? दूसरी
बात गायों की रक्षा के लिए भगवान अवतार लिया करते हैं ये बात वो हमें
सिखाकर क्यों गए होते ! तीसरी बात 'सभी जीवों पर दया करो' ये उद्घोष क्यों
किया गया होता 'अहिंसा परमो धर्मः 'उन्हीं का तो संदेश है ऐसे ऋषि वाक्यों
को हिन्दू आज तक छाती से लगाए बैठा है ! आखिर गोमाँस खाना और जीवों पर दया
करना दोनों काम साथ साथ कैसे किए जा सकते थे गोमांस पेड़ों में तो नहीं
फलता था !
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