अरे निर्दयी नेताओ ! तुम कभी ये क्यों नहीं सोचते कि जब तुम्हारा गुजारा हजारों लाखों में नहीं हो पा
रहा है तो देश की गरीब जनता कैसे जी रही होगी इस महँगाई में जिसके पास
हजारों की आमदनी भी निश्चित नहीं है !
क्या उसे भूख नहीं लगती होगी बीमारी
आरामी का सामना तो उसे भी करना पड़ता होगा उन्हें भी अपने बच्चों के काम काज
करने होते हैं उन्हें भी तिथि त्योहारों का सामना करना पड़ता है उनके बच्चे
भी मेला जाने के लिए मचलते हैं उनकी भी महिलाएँ बढ़ी बढ़ी बाजारों मालों में
खरीदारी कर चाहती हैं उनके बच्चे भी सब सुख सुविधा सम्पन्न प्राइवेट
स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं उनका भी मन होता है अच्छी अच्छी चीजें खाने
पहनने का आखिर कहाँ तक गरीब लोग अपना एवं अपने बच्चों का मन मारते रहें
!देश को मिली आजादी
में उन ग़रीबों के पूर्वजों का क्या कोई योगदान नहीं है ऐसा तुम लोगों ने
मान लिया है और यदि यही सही है तो देश के आम आदमी के लिए तुम्हारे और
अंग्रेजों के शासन में क्या अंतर है !
ऐ सरकारों में सम्मिलित लोगो ! तुम विधायकों सांसदों सरकारी कर्मचारियों
की सैलरी इसलिए बढ़ा रहे हो कि वो तुम्हारे अपने हैं किंतु आम जनता का
अपराध क्या है कि वो भी तुम्हें ही अपना मंत्री मुख्यमंत्री प्रधान मंत्री
आदि मानती है आखिर तुम यदि केवल अपनी और अपनों की चिंता करते रहोगे तो आम
जनता की चिंता कौन करे !
अरे नेताओ ! तुम देश की जनता को जीवन नहीं दे सकते तो जहर ही दे दो किंतु इतना जलील तो न करो !
आम आदमी की कसमें खाने वाले निर्लज्ज नेताओ !तुम भूल गए आम आदमियों को !
सैलरी विधायकों सांसदों सरकारी कर्मचारियों की बढ़े जिनकी पचास हजार है
उनकी लाख हो जाए जिनकी लाख है उनकी दो लाख हो जाए इसी प्रकार और भी बढ़े
किंतु जिस जनता को दस पाँच हजार की भी निश्चित आय का सहारा न हो वो कहाँ मर
जाएँ उन्हें जहर ही दे देते यदि जीवन नहीं दे सकते हो ! जितने बेतन आयोग
बनते हैं या सरकारी योजनाएँ किंतु इनमें सम्मिलित लोग तो सारे सरकारी होते
हैं क्या तुम्हारे हाथ में अपनी बागडोर जनता इसलिए देती है कि तुम लूटो खाओ
अपने कर्मचारियों को खिलाओ और जनता को मुख चिढ़ाओ !
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