Sunday 24 May 2015

RTIII


    सरकारी  संस्कृत विश्व विद्यालयों में सामान्य विषयों की तरह ही ज्योतिष का भी पाठ्यक्रम निश्चित है नियमानुशार वहाँ भी ज्योतिष से B.A.,M.A. की पढ़ाई परीक्षाएँ एवं डिग्रियाँ शास्त्री एवं आचार्य नाम से प्रदान की जाती हैं इसके बाद ज्योतिष से Ph.D. भी करवाई जाती है जिसमें ज्योतिष छात्रों के दस से बारह वर्ष लग जाते हैं तब वो ज्योतिष शास्त्री या ज्योतिषाचार्य आदि बन पाते हैं ।
    सरकार के द्वारा निर्धारित शिक्षा नीतियों का सम्मान करते हुए अपने जीवन के बहुमूल्य दस से बारह वर्ष लगाकर परिश्रम पूर्वक ज्योतिष विषय की डिग्रियाँ प्राप्त करने वाले ज्योतिष छात्रों विद्वानों की ज्योतिष डिग्रियों का क्या महत्त्व रह जाता है है जब बिना ज्योतिष पढ़े लिखे लोग भी अपने नाम के साथ वे डिग्रियाँ लगाने लगते हैं जो कि आजकल खूब प्रचलन में है टैलीविजन चैनलों पर विज्ञापन देते समय भी ये लोग अपने को ज्योतिषाचार्य कहते हैं एंकर भी इन्हें विश्व  के जाने माने ज्योतिषाचार्य कहते हैं

यहाँ तक कि ऐसे फर्जी ज्योतिषी लोग न केवल ज्योतिष सम्बन्धी प्रेक्टिस कर रहे हैं
       महोदय,
टी.वी.चैनलों में या अखवारों में ज्योतिष शास्त्र से भविष्य बताने और लिखने वाले लोगों  की चयन प्रक्रिया क्या है ? या फिर ज्योतिषियों के द्वारा दिए गए स्वतंत्र विज्ञापन  होते हैं जो कोई भी चाहे वो दे सकता है वो ज्योतिष पढ़ा हो या न पढ़ा हो ?यदि ज्योतिष बिना पढ़े भी अपने नाम का ज्योतिष संबंधी विज्ञापन दिया जा सकता है और कोई ज्योतिष की दृष्टि से अशिक्षित व्यक्ति  ज्योतिष संबंधी भविष्य बताने के बड़े बड़े दावे कर सकता है व्यक्ति को











मौसम विज्ञान -
मानसून यदि 88 प्रतिशत रहने का अनुमान है तो ये अनुमान कितने प्रतिशत सच होने का अनुमान है और ऐसा अनुमान कितने प्रतिशत कि आपके इस अनुमान के बिलकुल विरुद्ध मानसून चला जाए तो ऐसे अनुमान को सही माना जाएगा या गलत माना जाएगा ! उसे अनुमान लगाने में कोई चूक मानी जाएगी या मानसून के अनुमान में इतनी अधिक सच्चाई की आशा नहीं की जानी चाहिए ! किस वर्ष का मानसून कितने प्रतिशत रहेगा इसका यथा संभव सही अनुमान मानसून आने के अधिकतम कितने समय पहले लगाया जा सकता है !




भूकंप विज्ञान विभाग 
 
      भविष्य में आने वाले भूकंपों का पता लगाने के लिए किए जा रहे आधुनिक विज्ञान संबंधी अध्ययन में जमीन  के अंदर संचित ऊर्जा गैसों का अध्ययन ,जमीन के अंदर की प्लेटों का अध्ययन एवं और भी बहुत कुछ किया जाता होगा किंतु भावी भूकंप का पता लगाने के लिए क्या प्राचीनकाल के अत्यंत समृद्ध भारतीय शास्त्र  विज्ञान विज्ञान की दृष्टि से भी पशु पक्षियों की चेष्टाओं एवं वृक्षों बनस्पतियों का अध्ययन ,प्राकृतिक परिवर्तनों का अध्ययन एवं खगोलीय घटनाओं ग्रहनक्षत्रों के संचरण अादि के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाता है ? यदि नहीं तो हमारा  संस्थान इन्हीं विषयों पर काम कर रहा है जिससे भूकंप संबंधी अध्ययनों के लगाए गए कुछ पूर्वानुमान कुछ प्रकरणों में प्रमाण सहित सच्चाई की दिशा में आगे तक अच्छे संकेत मिलते  दिख रहे हैं किंतु इसके लिए जितने विराट स्तर पर शास्त्र प्रतिपादित प्राकृतिक आदि लक्षणों के अध्ययन की आवश्यकता है उन संसाधनों के लिए हमें सरकार के सहयोग की आवश्यकता है ।
        क्या सरकार भूकंप सम्बंधी आधुनिक विज्ञान के अध्ययन के साथ साथ भारत के प्राचीन  शास्त्रीय विज्ञान के विषय में हमारे संस्थान के द्वारा चलाए जा रहे अध्ययन में भी सहयोग करेगी क्या  ? यदि हाँ तो उसकी प्रक्रिया क्या है ?


   कृषि मंत्रालय !     
       भारत कृषि प्रधान देश है कृषि विकास के लिए वर्षा का पूर्वानुमान बहुत आवश्यक होता है क्योंकि फसलें उसी हिसाब से उगाई और संरक्षित की जा सकती हैं । मार्च अप्रैल में रवि की फसल काट कर किसान लोग अपनी  जरूरत भर के लिए आनाज एवं पशुओं का चारा रख लेते हैं बाक़ी रख रखाव की समस्या एवं धन की आवश्यकता के कारण बेच लेते हैं उन्हें सहारा होता है कि अगस्त सितम्बर में खरीफ की फसल आ जाएगी बाक़ी जरूरतें उससे पूरी होंगी !किंतु यदि जुलाई अगस्त में सूखा  हो जाता है या अधिक वर्षा हो जाती है तो उससे फसलें बर्बाद हो जाएँगी जिससे किसान का परेशान होना स्वाविक है । ऐसी परिस्थिति में किसान को मार्च अप्रैल में ही यदि  पता लग गया होता तो किसान आनाज एवं चारे के लिए रवि की फसल को बचा कर रख सकता था साथ ही खेतों में उस प्रकार की फसलें बो सकता था जो आगामी जुलाई अगस्त में अनुमानित वर्षा की संभावना के अनुकूल हों !जबकि जून जुलाई तक किसान अपना आनाज और पशु चारा तो बेच चुके होते हैं इसलिए तब वर्षा के पूर्वानुमान का किसानों को उतना लाभ नहीं हो पाता है । 
     ऐसी परिस्थिति में मौसम सम्बन्धी अनुमान ज्योतिष के द्वारा महीनों पहले और कुछ मामलों में तो वर्षों पहले लगाया जा सकता है प्राचीन काल में उसी मौसम विज्ञान के सहारे कृषि कार्यों का निर्वाह सुगमता पूर्वक किया जाता था ! यदि वर्तमान समय में भी हमारा  संस्थान  उसी प्राचीन पद्धति के हिसाब से शास्त्र विधि द्वारा मौसम का पूर्वानुमान लगाकर कृषि कार्यों में सहायक होना चाहता है जिसमें सरकारी मदद की आवश्यकता है क्या ऐसे विषयों में मदद करने का कोई प्रावधान है और यदि हाँ तो प्रक्रिया क्या है ?                                                      
   दूर संचार मंत्रालय -वर्तमान समय में विभिन्नटीवी चैनलों पर अलग अलग समय में ज्योतिष के द्वारा लोगों का भविष्य बताने वाले कितने ज्योतिषियोंने किन विश्व विद्यालयों से किस किस सन में ज्योतिषाचार्य(M.A.)की डिग्रियाँलीहैं ?   

जो ज्योतिषी बिना ज्योतिषाचार्य(A.M.)की डिग्री लिए हुए भी टेलीवीजन चैनलों पर या अखवारों में ज्योतिषाचार्य(M.A.)के रूप में अपना प्रचार प्रसार करवाते हैं ये कानूनी तौर पर सही है या गलत ?यदि गलत है तो ऐसा करने की अनुमति क्यों दी जा रही है ? क्या ऐसे लोगों और मीडिया माध्यमों पर अंकुश लगाने का कोई प्रावधान है और यदि हाँ तो क्या और कब तक ?

     प्रतिदिन अखवारों में लिखे  जाने वाले  या टीवी चैनलों पर बताए जाने वाले  राशिफल का ज्योतिष में कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता है फिर मीडिया और  इन तथाकथित ज्योतिष कर्मियों की साँठ गाँठ से खेले जाने वाले इस मनगढंत राशिफल के शास्त्रीय प्रमाण कहाँ हैं वो दिए जाएँ और यदि नहीं हैं तो इन्हें प्रसारित करने की अनुमति देने सम्बन्धी सरकार की मजबूरी क्या है ?
  
    विज्ञापन के सिद्धांतों के अनुशार विज्ञापनों में जो चीज जैसी बताई जाए वो कम से कम 80 प्रतिशत वैसी निकले किंतु टीवी चैनलों पर यंत्रों कवचों आदि के विषय में अप्रमाणित कल्पित एवं सौ प्रतिशत झूठ बोला जा रहा है ऐसे ऐसे यंत्रों और कवचों के नाम बताए जा रहे हैं जिनका शास्त्रों में कहीं कोई प्रमाण ही नहीं मिलता है और न ही उनका कोई प्रभाव है ऐसी परिस्थिति में यंत्रों कवचों आदि के झूठे विज्ञापनों पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जा रहा है अन्यथा इसके प्रमाण क्या हैं ?
     निर्मल दरवार का सब दुःख दूर करने सम्बंधित समागम हो या निराधार रूप से भाग्य बदल देने संबंधी दावे करने वाले अन्य कल्पित ज्योतिषियों के द्वारा किए जा रहे बड़े बड़े दावों के विषय में सरकार ने कोई जाँच करवाई होती है क्या ? यदि हाँ तो क्या और यदि नहीं तो क्यों ?  ऐसे विषयों में विज्ञापन के नाम पर कोई कितना भी झूठ बोलकर समाज को अपने षड्यंत्रों में फँसाता रहे क्या सरकार को ऐसे लोगों के दावों का परीक्षण किए बिना विज्ञापन की अनुमति देना ठीक है क्या ? यदि नहीं तो किस प्रक्रिया का पालन किया जाता है ?
      चूँकि सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष को सच मानकर ही पढ़ाया जा रहा है M.A.Ph.D. पर्यन्त पढ़ाई होती है किंतु वर्तमान समय में ज्योतिष के नाम से जो लोग प्रचारित हो रहे हैं उनकी बातों का ज्योतिष शास्त्र से  कोई सम्बन्ध नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में विभिन्न विषयों पर ज्योतिष के सही और शास्त्रीय पक्ष को रखने या प्रचार प्रसार करने के लिए मीडिया हमारा किस प्रकार से सहयोग कर सकता है उसकी प्रक्रिया क्या है साथ ही मुझे संपर्क किससे करना चाहिए ?




       
 












                                      

आरक्षण क्यों ?
     महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु ने जाति संरचना करते समय विद्याप्रधान लोगों को ब्राह्मण,शक्ति प्रधान लोगों को क्षत्रिय ,धन और व्यापार प्रधान लोगों को वैश्य कहा किंतु जिनमें इन तीनों बातों का आभाव दिखा उन्हें कमजोर मान कर चतुर्थवर्ण में प्रतिष्ठित किया जिन्हें अब दलित कहा जाने लगा है !मनु ने लाखों वर्ष पूर्व जिस वर्ग को कमजोर माना था सरकारें आज भी उस वर्ग को कमजोर क्यों मान रही हैं ?

     यदि सरकारों की इच्छा वास्तव में जातिवाद मिटाने की होती तो आरक्षण समेत सारी सरकारी सुख सुविधाओं के सहयोग के लिए चयन करते समय गरीबों,ग्रामीणों,कृषकों आदि का चयन कर सकते थे किंतु उन्होंने  महर्षि  मनु के जातिवाद को ही आरक्षण के चयन का आधार बनाया आखिर क्यों ?आखिर महर्षि मनु के मत का समर्थन करने के अलावा सरकार आरक्षण जैसी नीतियाँ लागू करने का कोई अन्य आधार विकसित क्यों नहीं कर सकी ?

यदि महर्षि मनु  ने कमजोर मानकर जिन  दलितों को चतुर्थ श्रेणी में डाल दिया था तो जातिवाद मिटाने की इच्छा रखने वाली सरकारों को महर्षि मनु के मत से अलग हटकर  'सबका साथ सबका विकास' की भावना से सामूहिक विकास करना था ,जब सबके साथ साथ दलितों में भी प्रतिभा का विकास होता उससे तरक्की करने वाले दलितों में भी सवर्णों की तरह जो आत्मगौरव का भाव जगता वो जातिगत  आरक्षण से संभव नहीं है सरकार ने दलितों के दालित्य को सुरक्षित रखते हुए भोजन दिया आरक्षण के द्वारा नौकरी दी प्रमोशन दिया किंतु दलितों में प्रतिभा का विकास के लिए क्या किया जिससे उन्हें आरक्षण की आवश्यकता ही न पड़ती ?

आरक्षण की अस्थाई लीपापोती से अच्छा है दलितों में प्रतिभा का विकास हो किंतु ऐसा करने में कठिनाई क्या है महर्षि मनु ने उन्हें कमजोर क्यों माना ! क्या लाखों वर्षों पूर्व की कमजोरी अभी तक दलितों में चली आ रही थी ?वो कमजोरी किस प्रकार की थी !उसे पता लगाने का अभी तक क्या प्रयास किया गया और उसे दूर करने के लिए जातिगत आरक्षण को सबसे अधिक उपयुक्त कैसे मान लिया गया !स्वाभावगत उस कमजोरी को दूर करना आरक्षण से कैसे संभव है ?

     जब आदिकाल में ही महर्षि मनु ने दलितों को कमजोर समझकर ही चौथे वर्ण के रूप में स्थापित किया था फिर दलितों की दुर्बलता के लिए सवर्णों के द्वारा किए गए शोषण को जिम्मेदार ठहराना कहाँ तक न्यायोचित है अल्प संख्यक सवर्णों के शोषण को बहुसंख्यक दलित सहते क्यों ?और यदि सवर्णों के शोषण से दलितों में गरीबत आई होती तो पिछले साठ वर्षों से सरकार के आरक्षणी पोषण से सुधर जाना चाहिए था किंतु ऐसा क्यों नहीं हुआ ?

 सरकारी आरक्षण नीति में महर्षि मनु के मत को महत्त्व देते हुए उन्हीं के द्वारा बताई गई कमजोर जातियों को आरक्षण देने का मतलब मनुप्रणीत जातिव्यवस्था को स्वीकार करना है जैसे घी से भरे हुए कितने भी घड़े डालकर प्रदीप्त आग की ज्वाला को मिटाया नहीं जा सकता ठीक उसी प्रकार से आरक्षण का आधार जातियों को मानते हुए जातिवाद को कैसे समाप्त किया जा सकता है ? गरीब सवर्ण यदि संघर्ष पूर्वक अपने बल पर तरक्की कर सकते हैं तो दलितों को तरक्की करने के लिए आरक्षण क्यों चाहिए ?और यदि चाहिए तो बराबरी की भावना कैसे आ पाएगी ?


























   ज्योतिष  अंधविश्वास है या नहीं ?(शिक्षा मंत्रालय)
  • सरकार की दृष्टि में अंध विश्वास क्या है और धर्म के किस किस आचार व्यवहार को अंधविश्वास की श्रेणी में रखा गया है ?किसको नहीं ! 
  • सरकार की दृष्टि में ज्योतिष  अंधविश्वास है या विज्ञान ? 
  • सरकार के द्वारा संचालित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे विश्व  विद्यालयों में ज्योतिष शास्त्र के निर्धारित पाठ्यक्रम को न केवल पढ़ाया जाता है अपितु उसकी डिग्रियाँ भी दी जाती हैं जो सामान्य पाठ्यक्रमों के समकक्ष हैं फिर भी ज्योतिष को अंधविश्वास कहा जाना ज्योतिष विषय की सरकार प्रदत्त डिग्रियों का सरासर अपमान है ।ऐसी परिस्थिति में ज्योतिष को सब्जेक्ट के रूप में स्थापित करने के लिए सरकार की ओर क्या कुछ प्रयास किए जाने की जरूरत है और क्या कुछ उठाए जाएँगे ? 
  •  विज्ञान की तरह ही ज्योतिष के द्वारा भी चिकित्सा विज्ञान ,मनोरोगनिदान ,मौसम विज्ञान आदि विषयों से संबंधित  यदि किसी विषय पर रिसर्च पूर्वक कोई सफल अनुसंधान किया जाता है तो उसे सरकार के सामने प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत करने की क्या कुछ प्रक्रिया है ? 
  • सरकार द्वारा प्रमाणित विश्वविद्यालयों में ज्योतिष सब्जेक्ट की ज्योतिषाचार्य(M.A  in jyotish) जैसी बड़ी डिग्रियों को लिए बिना भी एक बहुत बड़ा वर्ग अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य डिग्री का उपयोग करता है क्या ये ठीक है ? यदि हाँ तो जो लोग विश्वविद्यालयों से ज्योतिष का पाठ्यक्रम पढ़कर डिग्रियाँ लेते हैं उसका औचित्य क्या है ? साथ ही संस्कृत विश्वविद्यालयों का महत्त्व क्या बचता जब उनकी डिग्रियों का कोई आस्तित्व ही न हो ? 
  •  जो लोग ज्योतिषाचार्य(M.A. in jyotish) जैसी बड़ी डिग्री  को किसी विश्वविद्यालय से लिए बिना भी अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य डिग्री का उपयोग करते हैं वो गलत है या नहीं?यदि नहीं है तो क्यों और यदि गलत है तो इसे रोकने के लिए क्या कुछ प्रावधान है साथ ही सरकार की और से भी कोई प्रयास किए जाएँगे क्या ?
  •  जो न्यूज चैनल किसी ज्योतिषी का विज्ञापन करते समय यह जाने बिना भी कि इसने ज्योतिषाचार्य की पढ़ाई की भी है या नहीं साथ ही ज्योतिषाचार्य की डिग्री किसी विश्वविद्यालय से ली भी है या नहीं फिर भी उसे ज्योतिषाचार्य कहकर प्रचारित करते हैं इसे गलत माना जाना चाहिए या नहीं और यदि हाँ तो ऐसे चैनलों पर क्या कुछ कार्यवाही की जा सकती है और क्या कुछ कार्यवाही सरकार की ओर से किए जाए की संभावना है ?
कानून मंत्रालय - 
  •  जो न्यूज चैनल किसी ज्योतिषी का विज्ञापन करते समय यह जाने बिना भी कि इसने ज्योतिषाचार्य की पढ़ाई की भी है या नहीं साथ ही ज्योतिषाचार्य की डिग्री किसी विश्वविद्यालय से ली भी है या नहीं फिर भी उसे ज्योतिषाचार्य कहकर प्रचारित करते हैं इसे गलत माना जाना चाहिए या नहीं और यदि हाँ तो ऐसे चैनलों पर क्या कुछ कार्यवाही की जा सकती है और क्या कुछ कार्यवाही सरकार की ओर से किए जाए की संभावना है ? 
  • जो लोग ज्योतिषाचार्य(M.A.in jyotish) जैसी बड़ी डिग्री  को किसी विश्वविद्यालय से लिए बिना भी अपने नाम के साथ ज्योतिषाचार्य डिग्री का उपयोग करते हैं वो गलत है या नहीं?यदि नहीं है तो क्यों और यदि गलत है तो इसे रोकने के लिए क्या कुछ प्रावधान है साथ ही सरकार की और से भी कोई प्रयास किए जाएँगे क्या ?
  • जिन नग नगीनों  यंत्र तंत्र ताबीजों कवच मणियों  आदि के विषय में किसी शास्त्र में कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं फिर भी लोगों की जरूरतों या मनोकामनाओं को पूरा करने या  भाग्य बदलने के नाम पर  तरह तरह की ऐसी चीजें बनाई बेची जाती हैं उनके विषय में टीवी चैनलों पर बड़े बड़े दावे किए जाते या विज्ञापन दिए जाते हैं क्या सरकार ने अपने स्तर से इनके दावों का कोई परीक्षण करवाया होता है यदि हाँ तो क्या और यदि नहीं तो क्यों ?जनहित में ऐसे अशास्त्रीय पाखंडों को प्रतिबंधित करने का क्या कुछ प्रावधान है ? 
 संचार मंत्रालय -
  •      जो न्यूज चैनल किसी ज्योतिषी का विज्ञापन करते समय यह जाने बिना भी कि इसने ज्योतिषाचार्य की पढ़ाई की भी है या नहीं साथ ही ज्योतिषाचार्य की डिग्री किसी विश्वविद्यालय से ली भी है या नहीं फिर भी उसे ज्योतिषाचार्य कहकर प्रचारित करते हैं इसे गलत माना जाना चाहिए या नहीं और यदि हाँ तो ऐसे चैनलों पर क्या कुछ कार्यवाही सरकार की ओर से किए जाए की संभावना है ? 
  • जिन नग नगीनों  यंत्र तंत्र ताबीजों कवच मणियों  आदि के विषय में किसी शास्त्र में कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं फिर भी कुछ लोगों के द्वारा लोगों की जरूरतों या मनोकामनाओं को पूरा करने या  भाग्य बदलने के नाम पर  तरह तरह की ऐसी चीजें बनाई बेची जाती हैं उनके विषय में टीवी चैनलों पर बड़े बड़े दावे किए जाते या विज्ञापन दिए जाते हैं क्या सरकार ने अपने स्तर से इनके दावों का कोई परीक्षण करवाया होता है यदि हाँ तो क्या और यदि नहीं तो क्यों ?ऐसे अशास्त्रीय पाखंडों के विज्ञापन टीवी चैनलों पर चलाए जाने का औचित्य आखिर क्या है ?और इन्हें प्रतिबंधित करने का क्या कुछ प्रावधान है ? 
 कार्मिक मंत्रालय -
  •  सरकारीप्राइमरी  स्कूलों के शिक्षक ट्रेंड होते हैं और प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा उनकी सैलरी भी अधिक होती है सरकारी शिक्षा सुचारू रूप से चले इस क़ाम में सरकारी अधिकारी कर्मचारी सरकारों के जिम्मेदार लोग सभी लगाए जाते हैं बच्चों को किताबें पैसे कपड़े दवाइयाँ आदि और भी बहुत कुछ दिया जा रहा होता है फिर भी सरकारी शिक्षा समाज को आकर्षित नहीं कर पा रही है आखिर क्यों ?
  •    सरकारी अस्पतालों में बड़ी बड़ी सुविधाओं की व्यवस्था होने के बाद भी लोगों की पहली पसंद प्राइवेट अस्पताल ही बने हुए हैं क्यों ?
  •  सरकारी डाक विभाग बड़ी सारी  व्यवस्थाएँ करने की बात करता है अपने कर्मचारियों की सैलरी भी प्राइवेटवालों से अधिक देता है फिर भी सरकारी डाक की अपेक्षा लोगों का भरोसा प्राइवेट कोरियर पर अधिक क्यों है ?
  • सरकारी दूर संचार व्यवस्था तरह तरह की तमाम सुविधाएँ देने के दावे भले करे किंतु लोगों की पहली पसंद आज भी प्राइवेट फोन कम्पनियाँ ही हैं आखिर क्यों ?
  •   सरकारी कर्मचारियों के पास संसाधनों की कमी है, जिम्मेदारी की कमी है,अधिकारियों की कमी है या सरकारों में इच्छा शक्ति की कमी है या निगरानीतंत्र की कमी है या भ्रष्टाचार अधिक है आखिर क्या कारण हैं कि निजी संस्थाएँ कम सैलरी देकर भी अधिक सैलरी देने वाली सरकारों की अपेक्षा अच्छा काम करवा लेती हैं और वो जनता का विश्वास जीतने में भी कामयाब रहती हैं ?

 
      


 

 

फर्जी डिग्री या बिना डिग्री वाले अर्थात ज्योतिषीय अशिक्षित फिर भी ज्योतिष का कारोबार करने वाले लोग पैसे के द्वारा विज्ञापनों के बल पर विद्वान ज्योतिषी  होने का अपना प्रचार प्रसार करते रहते हैं और सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व  विद्यालयों से प्रदान की जाने वाली सारी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाते हैं। ये सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के प्रमाणित निर्धारित पाठ्यक्रम एवं डिग्रियों का सरासर अपमान है। मान्यवर,यदि यही सही है तो कोई वर्षों तक परिश्रम करके क्यों पढ़ेगा? सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों के महत्त्व एवं उस पर किए जाने वाले आर्थिक व्यय का औचित्य क्या  रह जाता है?
    नियमतः उनके द्वारा किया जाने वाला यह आचरण अपराध की श्रेणी में आता है साथ ही चिकित्सा आदि क्षेत्रों की तरह फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ  लिखना भी कानूनन अपराध मानकर कार्यवाही की जानी चाहिए किंतु ऐसा कुछ  देखने सुनने  को नहीं मिलता है।
    अपराध रोकने की जिम्मेदारी सरकारी हाथों में है जबकि अपराध करने वाले अधिकतर गैर सरकारी लोग हैं !
     प्राइवेट लोगों से हर सरकारी विभाग पराजित है शिक्षाविभाग सँभालने की सारी जिम्मेदारी सरकारी और निगम के प्राथमिक स्कूलों ने प्राइवेट  स्कूलों पर डाल रखी है , आलम यह है कि शिक्षक अपने बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ा रहे हैं !
   यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है उनका हौसला ही प्राइवेट अस्पतालों के सामने पस्त हैं वो अपने घर वालों को भी प्राइवेट नरसिंग होम में दिखाने  जाते हैं ,
    यही स्थिति दूर संचार विभाग की है उसे प्राइवेट कंपनियों ने इतना ढीला कर रखा है,डॉक विभाग प्राइवेट कोरिअर के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए हाथ जोड़े खड़ा है !
    बंधुओ! सरकारी  विभागों में सरकारी कर्मचारियों के काम करने की पद्धति यदि इतनी ही शिथिल है जिसे ठीक करने के लिए सरकारें आज तक कुछ नहीं कर सकी हैं ऐसे में सरकारी पुलिसविभाग में भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं उन पर सरकार का इतना विश्वास किस कारण  है कि वो अपना काम संपूर्ण निष्ठा से कर रहे होंगे ?और यदि वो सरकार के इस    विश्वास पर निरंतर खरे नहीं उतर पा रहे हैं और सभी प्रकार के अपराधों में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी  होती जा  रही है ऐसी परिस्थिति में इन अपराधों को रोकने के लिए सरकार किसी अन्य विकल्प पर भी विचार करेगी क्या ?अथवा पुलिस विभाग में ही ऐसा क्या नया परिवर्तन करेगी  जिससे अपराध घटें और देश की महिलाएँ सुरक्षित हों ! 



फर्जी डिग्री या बिना डिग्री वाले अर्थात ज्योतिषीय अशिक्षित फिर भी ज्योतिष का कारोबार करने वाले लोग पैसे के द्वारा विज्ञापनों के बल पर विद्वान ज्योतिषी  होने का अपना प्रचार प्रसार करते रहते हैं और सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व  विद्यालयों से प्रदान की जाने वाली सारी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाते हैं। ये सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के प्रमाणित निर्धारित पाठ्यक्रम एवं डिग्रियों का सरासर अपमान है। मान्यवर,यदि यही सही है तो कोई वर्षों तक परिश्रम करके क्यों पढ़ेगा? सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों के महत्त्व एवं उस पर किए जाने वाले आर्थिक व्यय का औचित्य क्या  रह जाता है?
    नियमतः उनके द्वारा किया जाने वाला यह आचरण अपराध की श्रेणी में आता है साथ ही चिकित्सा आदि क्षेत्रों की तरह फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ  लिखना भी कानूनन अपराध मानकर कार्यवाही की जानी चाहिए किंतु ऐसा कुछ  देखने सुनने  को नहीं मिलता है।

फर्जी डिग्री या बिना डिग्री वाले अर्थात ज्योतिषीय अशिक्षित फिर भी ज्योतिष का कारोबार करने वाले लोग पैसे के द्वारा विज्ञापनों के बल पर विद्वान ज्योतिषी  होने का अपना प्रचार प्रसार करते रहते हैं और सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व  विद्यालयों से प्रदान की जाने वाली सारी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाते हैं। ये सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के प्रमाणित निर्धारित पाठ्यक्रम एवं डिग्रियों का सरासर अपमान है। मान्यवर,यदि यही सही है तो कोई वर्षों तक परिश्रम करके क्यों पढ़ेगा? सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों के महत्त्व एवं उस पर किए जाने वाले आर्थिक व्यय का औचित्य क्या  रह जाता है?
    नियमतः उनके द्वारा किया जाने वाला यह आचरण अपराध की श्रेणी में आता है साथ ही चिकित्सा आदि क्षेत्रों की तरह फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ  लिखना भी कानूनन अपराध मानकर कार्यवाही की जानी चाहिए किंतु ऐसा कुछ  देखने सुनने  को नहीं मिलता है।
    अपराध रोकने की जिम्मेदारी सरकारी हाथों में है जबकि अपराध करने वाले अधिकतर गैर सरकारी लोग हैं !
     प्राइवेट लोगों से हर सरकारी विभाग पराजित है शिक्षाविभाग सँभालने की सारी जिम्मेदारी सरकारी और निगम के प्राथमिक स्कूलों ने प्राइवेट  स्कूलों पर डाल रखी है , आलम यह है कि शिक्षक अपने बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ा रहे हैं !
   यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है उनका हौसला ही प्राइवेट अस्पतालों के सामने पस्त हैं वो अपने घर वालों को भी प्राइवेट नरसिंग होम में दिखाने  जाते हैं ,
    यही स्थिति दूर संचार विभाग की है उसे प्राइवेट कंपनियों ने इतना ढीला कर रखा है,डॉक विभाग प्राइवेट कोरिअर के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए हाथ जोड़े खड़ा है !
    बंधुओ! सरकारी  विभागों में सरकारी कर्मचारियों के काम करने की पद्धति यदि इतनी ही शिथिल है जिसे ठीक करने के लिए सरकारें आज तक कुछ नहीं कर सकी हैं ऐसे में सरकारी पुलिसविभाग में भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं उन पर सरकार का इतना विश्वास किस कारण  है कि वो अपना काम संपूर्ण निष्ठा से कर रहे होंगे ?और यदि वो सरकार के इस    विश्वास पर निरंतर खरे नहीं उतर पा रहे हैं और सभी प्रकार के अपराधों में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी  होती जा  रही है ऐसी परिस्थिति में इन अपराधों को रोकने के लिए सरकार किसी अन्य विकल्प पर भी विचार करेगी क्या ?अथवा पुलिस विभाग में ही ऐसा क्या नया परिवर्तन करेगी  जिससे अपराध घटें और देश की महिलाएँ सुरक्षित हों ! 
 
 
 
फर्जी डिग्री या बिना डिग्री वाले अर्थात ज्योतिषीय अशिक्षित फिर भी ज्योतिष का कारोबार करने वाले लोग पैसे के द्वारा विज्ञापनों के बल पर विद्वान ज्योतिषी  होने का अपना प्रचार प्रसार करते रहते हैं और सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व  विद्यालयों से प्रदान की जाने वाली सारी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाते हैं। ये सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के प्रमाणित निर्धारित पाठ्यक्रम एवं डिग्रियों का सरासर अपमान है। मान्यवर,यदि यही सही है तो कोई वर्षों तक परिश्रम करके क्यों पढ़ेगा? सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों के महत्त्व एवं उस पर किए जाने वाले आर्थिक व्यय का औचित्य क्या  रह जाता है?
    नियमतः उनके द्वारा किया जाने वाला यह आचरण अपराध की श्रेणी में आता है साथ ही चिकित्सा आदि क्षेत्रों की तरह फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ  लिखना भी कानूनन अपराध मानकर कार्यवाही की जानी चाहिए किंतु ऐसा कुछ  देखने सुनने  को नहीं मिलता है।

 




 भूकंप विज्ञान विभाग -
      सं 2004 से 2014 के बीच भविष्य में आने वाले भूकंपों के विषय में क्रमिक खोज करते हुए भूकंप विज्ञान विभाग कितना आगे बढ़ पाया है और क्या क्या नई जानकारियाँ जुटाई हैं इस बीच में भूकंप विज्ञान विभाग ने ऐसी कौन सी नई खोज की है जिसकी जानकारी 2004 में अपने पास नहीं थी ?
  • भविष्य में आने वाले भूकंपों का पता लगाने के लिए किए जा रहे अध्ययन में जमीन  के अंदर संचित ऊर्जा गैसों का अध्ययन ,जमीन के अंदर की प्लेटों का अध्ययन ही किया जाता है या उसके अतिरिक्त प्राकृतिक लक्षणों को भी सम्मिलित किया जाता है ?या इसके अलावा अन्य किन किन विषयों को भूकंप संबंधित अध्ययन में सम्मिलित किया जाता है ?
  • सुनामी जैसे समुद्री प्रकोपों का कारण समुद्री भूमि की आतंरिक सतहों पर आए भूकंपों को माना जाता है या केवल जलीय हलचल से उठी लहरों को ?
  • पशुपक्षियों की चेष्टाओं  ग्रहसंकेतों, प्राकृतिकलक्षणों,नक्षत्रयुतियों आदि को भी भूकंप संबंधित अध्ययन में सम्मिलित किया जाता है क्या ? यदि हाँ तो कैसे और नहीं तो क्यों ?
  • 25-4 -2015 को नेपाल में आए  भूकंप के विषय में भारतीय भूकंप विज्ञान विभाग का क्या कुछ पूर्वानुमान था या बिलकुल नहीं था और यदि नहीं था तो क्यों ?अनुमान किया ही नहीं जा सकता या किया नहीं गया और यदि किया ही नहीं जा सकता तो क्यों ?अनुमान करना कठिन है या असंभव ?यदि कठिन है तो उस दिशा में प्रगति क्या हो रही है और यदि असंभव है तो भूकंप विज्ञान विभाग का औचित्य क्या है ?





मौसम विभाग - 
       भारत कृषि प्रधान देश है कृषि विकास के लिए वर्षा का पूर्वानुमान बहुत आवश्यक होता है क्योंकि फसलें उसी हिसाब से उगाई और संरक्षित की जा सकती हैं । मार्च अप्रैल में रवि की फसल काट कर किसान लोग अपनी  जरूरत भर के लिए आनाज एवं पशुओं का चारा रख लेते हैं बाक़ी रख रखाव की समस्या एवं धन की आवश्यकता के कारण बेच लेते हैं उन्हें सहारा होता है कि अगस्त सितम्बर में खरीफ की फसल आ जाएगी बाक़ी जरूरतें उससे पूरी होंगी !किंतु यदि जुलाई अगस्त में सूखा  हो जाता है या अधिक वर्षा हो जाती है तो उससे फसलें बर्बाद हो जाएँगी जिससे किसान का परेशान होना स्वाविक है । ऐसी परिस्थिति में किसान को मार्च अप्रैल में ही यदि  पता लग गया होता तो किसान आनाज एवं चारे के लिए रवि की फसल को बचा कर रख सकता था साथ ही खेतों में उस प्रकार की फसलें बो सकता था जो आगामी जुलाई अगस्त में अनुमानित वर्षा की संभावना के अनुकूल हों !जबकि जून जुलाई तक किसान अपना आनाज और पशु चारा तो बेच चुके होते हैं इसलिए तब वर्षा के पूर्वानुमान का किसानों को उतना लाभ नहीं हो पाता है । 
      वर्षाऋतु (अगस्त सितंबर )में वर्षा कम होगी या अधिक या नहीं होगी इसका पूर्वानुमान करके मौसम विभाग अधिक  से अधिक कितने महीने पहले जानकारी दे सकता है और वह कितने प्रतिशत सच हो सकती है !साथ ही किस जिला प्रदेश या क्षेत्र आदि में वर्षा का भविष्य कैसा रहेगा क्या ये जानकारी भी दी जा सकती है ?
वर्षा के विषय में अनुमान करने के आधार क्या क्या होते हैं ?क्या प्रकृति लक्षणों को भी वर्षा संबंधी अध्ययन में सम्मिलित किया जाता है ?
     
     
 
                                                   

           शिक्षा मंत्रालय -
        प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों को दस दस हजार रुपए महीनें में शिक्षक मिल जाते हैं वो अनट्रेंड होने के बाद भी इतना अच्छा पढ़ा लेते हैं कि हर कोई अपने बच्चों को उन्हीं के यहाँ पढ़ाना चाह रहा है ! यहाँ तक कि विधायक सांसद मंत्री संत्री अफसर कर्मचारी सबके अधिकाँश बच्चे प्राइवेट में पढ़ते हैं जबकि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई के लिए जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी शिक्षकों तक के अधिकाँश बच्चे प्राइवेट स्कूलों में उन्हीं अनट्रेंड शिक्षकों से पढ़ना पढ़ाना चाह रहे हैं ।प्राइवेट शिक्षक अपनी माँगें मनवाने के लिए कभी धरना प्रदर्शन करते नहीं देखे जाते हैं !
  • प्राइवेट शिक्षक कम सैलरी में न केवल अच्छी शिक्षा देते हैं अपितु अपनी माँगें मनवाने के लिए कभी धरना प्रदर्शन भी नहीं करते फिर भी सरकारी स्कूलों में उस तरह के शिक्षक क्यों नहीं रखे जा सकते ?
  •  सरकारी एक शिक्षक की सैलरी में प्राइवेट वाले लगभग चार पाँच शिक्षक मिल जाते हैं इससे कम बजट में शिक्षक अधिक उपलब्ध हो सकते हैं ,शिक्षा के स्तर में सुधार हो सकता है अधिक लोगों की बेरोजगारी दूर हो सकती है किन्तु सरकार यदि ऐसा करना चाहे तो कठिनाई क्या है ?
  • अनट्रेंड शिक्षक प्राइवेटस्कूलों में इतना अच्छा पढ़ा ले रहे हैं तो सरकारी शिक्षकों की ट्रेनिंग अनिवार्य क्यों है ?
  • शिक्षकवर्ग ऑफीशियल वर्क के बहाने स्कूल टाइम में कक्षाओं से अनुपस्थित रहते हैं जबकि स्कूलों का पहला  उद्देश्य ही बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा  है ऐसी परिस्थिति में कक्षाओं में शिक्षकों की उपस्थिति अनिवार्य बनाने में कठिनाई क्या है ?
  •  सरकारी शिक्षक यदि अपने बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाएँगे तो स्कूलों की विश्वसनीयता में वृद्धि होगी , बच्चों की सुरक्षा,भोजन शुद्धि और शिक्षा की गुणवत्ता पर उनका भी ध्यान विशेष रहेगा। ऐसा करने में कठिनाई क्या है । 
  • शिक्षक जिस कक्षा में पढ़ाते हैं उस कक्षा की परीक्षा में यदि स्वयं उन्हें बैठाया जाए तो क्या वे उत्तीर्ण हो सकते हैं यह जानना जरूरी है या नहीं और यदि है तो यह जानने के लिए सरकार की प्रक्रिया क्या है ?
 जातिवाद क्यों ?
  •  जातियों की उत्पति कब और क्यों हुई और किसने बनाई ये जातियाँ ? 
  • जातियाँ काल्पनिक हैं या इनमें कुछ सच्चाई भी है अगर ये काल्पनिक हैं तो ग़रीबों को आगे बढ़ाने के लिए दी जाने वाली सुविधाओं का आधार काल्पनिक जातियों को क्यों माना जा रहा है और यदि ये सच हैं तो इन्हें झुठलाया क्यों जा रहा है ? 
  • 'दलित' शब्द का अर्थ नष्ट- भ्रष्ट, छिन्न- भिन्न, कटा -फटा, टुकड़े- टुकड़े आदि शब्दकोशों में दिया गया है कुछ जातियों के लिए प्रयोग किया जाने वाले 'दलित' शब्द  का अभिप्रायार्थ क्या माना गया है अन्यथा इन अशुभ सूचक अर्थों वाले दलित शब्द का प्रयोग मनुष्यों के किसी वर्ग के लिए करने का उद्देश्य क्या है ? 
  • सवर्ण जातियों के नाम से पहचाने जाने वाले लोगों ने दलित जातियों का शोषण कब क्यों और कैसे किया था ?चूँकि सवर्ण जातियों की संख्या आज भी बहुत कम है उस समय भी कम ही रही होगी जबकि दलितसंज्ञक लोगों की संख्या अधिक थी ऐसी परिस्थिति में सवर्णों ने दलितों का शोषण किया कैसे होगा और  दलितों ने सहा क्यों होगा ?यदि कोई सवर्ण बालक अपने परिश्रम से संघर्ष पूर्वक आगे बढ़कर अपना विकास कर सकता है तो दलित बालक क्यों नहीं कर सकता ?आखिर वो सवर्ण बालक से किस मामले में कमजोर है आखिर उसे आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता क्यों समझी जा रही है ? इसका मतलब है कि दलितों को सवर्णों के बराबर नहीं समझा जा रहा है और यदि ऐसा है भी तो इस भावना के पीछे के वो कारण क्या हैं जिस कारण सरकार दलितों को सवर्णों से कमजोर समझती है और यदि वास्तव में ऐसा है तो जातिवाद समाप्त करने के लिए एक कमजोर और एक जोरदार की जोड़ी बनाई भी जाए तो चलाई कैसे जाए ? 
  • जातिगत आरक्षण से दलितों का लाभ कम और हानियाँ अधिक हैं ये दलितों को आत्म सम्मान से जीने नहीं देता है इसके कारण हमेंशा हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं दलित इसलिए इन्हें भी आरक्षण मुक्त करके कमाने खाने के लिए क्यों न स्वतंत्र छोड़ा जाए और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का शैक्षणिक एवं बौद्धिक विकास करने के लिए जातिमुक्त योजनाएँ चलाने में कठिनाई क्या है सरकार दलितों को इतना कमजोर क्यों मानती है कि वो सवर्णों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगेंगे तो दलित लोग तरक्की नहीं कर सकते ?
   











जातिगत आरक्षण -सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय,भारत सरकार (आयुर्वेद,योग,प्राकृतिकचिकित्सा, मनोरोग विभाग ) 

 महिला एवं बालविकास मंत्रालय - महिलाओं पर अत्याचारों की रोकथाम के लिए शिक्षात्मक कार्य- महिलाओं के साथ होने वाले सामाजिक अपराधों की रोकथाम के लिये जनसाधारण को कानूनों एवं उनके प्रवर्तन की जानकारी देने के उद्देश्य से संचालित इस योजना, के तहत कानूनी साक्षरता शिविर, परा-कानूनी कार्यकर्ता प्रशिक्षण, प्रचार सामग्री, संगोष्ठियाॅं तथा कार्यशालायें आयोजित करने तथा महिलाओं के साथ हिंसा पर अध्ययनों को प्रोत्साहन देने के लिए स्वैच्छिक संगठनों, विश्वविद्यालयों, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं तथा उच्च शिक्षण संस्थानों को सहायता प्रदान की जाती है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना

 

 

 



Saturday 23 May 2015

निर्धन और निर्दोष लोग कानून के कानों तक कैसे पहुँचावें अपने मन की बेदना ?

बिना पैसे के अच्छे वकील कहाँ मिलते हैं और  अच्छे वकीलों के बिना न्याय कैसे मिल सकता है गरीबों को ? 
   पैसों के प्रभाव से ही नेताओं और अभिनेताओं को  सोर्स एवं पुलिस का सहयोग मिलता है तथा अच्छे वकील मिल पाते हैं जो सजा पाए हुए लोगों के पक्ष में तर्क गढ़ कर निर्दोष साबित कर देते हैं बड़े बड़े अपराधियों को !और निर्दोषों को भी सिद्ध कर देते हैं अपराधी ! 
   बिना धन के अच्छे वकील नहीं मिलते  पुलिस आपके अनुकूल मुकदमा नहीं बनाती ,गवाह आपकी बात कहने के पैसे माँगता है फिर गरीबों को न्याय कैसे मिले ?ऐसे गरीबों की ब्यथा सुनने के लिए है कोई प्लेटफार्म !
    वर्तमान न्याय व्यवस्था में गरीबों के साथ वैसा न्याय हो पाना संभव है क्या जैसा रईसों के साथ होता है !कैसे हो उनके पास न धन है न सोर्स और बिना धन के अच्छे वकील कैसे मिलें !    
    बंधुओ ! क्या ये जेलें केवल गरीबों और साधन विहीनों के लिए हैं क्योंकि नेताओं और अभिनेताओं को सजा होती है तो वो यदि बड़ा अपराध नहीं तो अपनी क्षमताओं का उपयोग करके जेलों को ठेंगा दिखाते हुए चले आते हैं टाटा बॉय बॉय करके जबकि गरीब लोग वहाँ पड़े पड़े सड़ते रहते हैं महीनों वर्षों तक आखिर क्यों ? अच्छे वकीलों एवं अच्छे सोर्स सिफारिस से अच्छे धन दौलत से यदि  न्याय प्रभावित किया जा सकता है तो न्याय क्या न्याय है !
     कई पूर्व मंत्रियों मुख्यमंत्रियों नेताओं अभिनेताओं के आरोपित होने पर मीडिया चिल्ला चिल्लाकर कह रहा होता है कि अब ये जेल जाएँगे कुछ वर्षों के लिए जाएँगे बड़े बड़े कानूनविदों के पैनल बुलाकर बैठाए जाते हैं वे चर्चा कर रहे होते हैं उससे भी निकल कर यही आता है कि अब सजा जरूर होगी किंतु जब आरोपी सजधज कर सारे लाव लश्कर के साथ मीडिया का हुजूम लिए पहुँचता है तो बड़े नेता अभिनेता लोगों के साथ ऐसा क्या चमत्कार होता है कि टाटा बॉय बॉय  करते चले  आते हैं वे लोग अपने घर ! जिन्हें वर्षों की सजा हो  रही होती है वे महीनों में ठेंगा दिखाकर भाग आते हैं और फिर से बन जाते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि । एक प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके व्यक्ति को पाँच वर्ष की जेल की घोषणा हो गई हो जिसका प्रचार प्रसार मीडिया ने खूब किया हो और फिर उसी को महीना दो महीने में बेल मिल जाए और वो राजनीति के महागठबंधन बनाता घूम रहा हो ,चुनावी जन सभाएँ कर रहा हो लोगों को चुनाव लड़वा  रहा हो सब जगह जा आ रहा हो सबकुछ कर पा रहा हो उसे देखकर वह गरीब जनता क्या सोचेगी जिसे पता लग चुका है कि गंभीर आरोपों में उन्हें पाँच वर्ष की सजा हुई है फिर ये सब कैसे संभव है आम गरीब आदमी ऐसे प्रकरणों पर क्या सोचेगा !कल्पना की जा सकती है ।एक बार मैं स्वयं ऐसी पीड़ा का शिकार हुआ !
     बात 1998 कानपुर के शिवराज पुर थाने की है हमारे अत्यंत अंतरंग आत्मीय बड़े भाई साहब पर कुछ गुंडों ने दिन के दस बजे हमला कर दिया जिससे सिर पर  हॉकी मारी गई थी दिन भर खून बहता रहा था किंतु दरोगा जी दस हजार रुपयों के लिए बैठाए  रहे थे दिनभर न ड्रेसिंग न दवा ! दरोगा जी ने रिपोर्ट दर्ज करने के लिए यह समझाते हुए दस हजार रूपए माँगे थे कि जो मैं लिखूँगा मुक़दमा उसी पर चलना है जज तुम्हारा घाव तो देखने आएगा नहीं वो तो हमारी आँखों से ही देखेगा और जब तक उसे देखने का समय आएगा तब तक घाव ठीक हो जाएगा इसलिए जज तो हमारी कलम का गुलाम है अब तुम बताओ मुकदमा कैसा करना चाहते हो !फ्री वाला या कुछ खर्च करके ? मैंने घूस देने को मना कर दिया था इसलिए दरोगा जी हमसे रूठ गए उधर अपराधियों ने चौबेपुर के भाजपा नेताओं में शिरमौर ब्राह्मण परिवार से संपर्क साधा पैसे देखते ही पंडित जी पिघल गए थाने में उनकी अच्छी दलाली चलती थी उनका दरोगा जी के पास रिपोर्ट न दर्ज करने के लिए फोन आ गया दरोगा जी ने फिर आकर मुझसे कहा कि चौबेपुर से भाजपा वालों का फोन आ गया है कि फैसला न करें तो मैं दोनों पक्षों को बंद कर दूँ यह कहते हुए उसने सूर्यास्त के समय भाई साहब की चोट में 16 टांके लगवाए दर्द की दवा दिलवाई और हम दोनों भाइयों को और उनमें से एक को झगड़ा दिखाकर बंद कर दिया थाने में ! भाई साहब को रातभर दर्द रहा जिससे परेशान होकर मुझे समझौते के लिए विवश होना पड़ा !
    एक रिटायर्ड जज साहब से एक दिन मैंने पूछा कि जब आप  किसी को निर्दोष जानते हुए भी उसे सजा सुनाते हैं और किसी दोषी को आरोप मुक्त कर देते हैं उस दिन  क्या आप की आत्मा आपको धिक्कारती नहीं है!शाम को आप भोजन ठीक से कर पाते हैं उस रात नींद आ जाती है ठीक से ! आप अपने इन्हीं कर्मों के बलपर बच्चों की कुशलता की भीख माँग पाते हैं क्या परमात्मा से !आपकी चित्त शुद्धि से सुस्नात आँखें क्या अपनों का सामना कर पाती हैं ! कभी नहीं लगता है कि इतना पढ़ने के बाद करना पड़ा ऐसा काम !क्या माता सरस्वती ने यही करने के लिए कृपा करके विद्या दी थी जिसके बल पर आप वर्तमान लोकतान्त्रिक पद्धति के न्याय देवता माने गए हैं !  देवशक्तियाँ ऐसे लोगों पर दोबारा कृपा नहीं करतीं जो उनके कृपा प्रसाद का एक बार दुरुपयोग करते हैं !यह सब सुनकर जज साहब बहुत भावुक हो गए उन्होंने ढबढबाई आँखों से हमसे पूछा कि तुमने कई विषयों से एम. ए. फिर पीएच.डी. करने के बाद भी नौकरी क्यों नहीं की या मिली नहीं ? मैंने कहा कि सर्विस के फार्म पर मैंने कभी साइन ही नहीं किए मुझे लगा कि यदि मैं अपने हिस्से का न्याय न कर सका तो प्रायश्चित्त लगेगा तो किसी पद पर बैठकर उसकी जिम्मेदारी सँभालने का संकल्प लेने से स्वतन्त्र कार्य करने का निश्चय किया ! यह सुनकर उन्होंने हमारा सर सहलाते हुए स्नेह से मेरी ओर देखा और कहने लगे -"बेटा !उस सीट पर बैठकर न्यायाधीश के दायित्व का निर्वाह करना पड़ता  है जहाँ आरोपी,पुलिस,गवाह और वकील तीनों पर संशय रखकर बात करनी होती है ये चारों  सच बोलेंगे या नहीं फिर भी सच इनसे निकालना उतना कठिन होता है जैसे बालू से तेल निकालना !अंतर इतना है कि बालू से तो तेल निकलता नहीं है किंतु यहाँ कुछ निकलता है वह प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मानक न्याय होता है जबकि वास्तविक न्याय तो ईश्वर को ही पता होता है !


    

Thursday 21 May 2015

मोदी जी और कुछ करते हों न करते हों किंतु चैन से बैठे तो नहीं हैं कुछ करते दिख तो रहे हैं !

  पहले की सरकारों में आम जनता को तो पता ही नहीं लगता था कि मालिक लोग देश के विषय में क्या फैसला ले रहे हैं !केवल सोनियाँ जी राहुल जी को बताया जाता था देश की जनता तो केवल सुनने और सहने के लिए थी अब देशवासियों को भी पता लग रहा है !
    मोदी जी कहाँ जा रहे हैं   किस काम के लिए जा रहे हैं किससे किससे मिलना है क्या क्या बात करनी है इसके बाद किस किस से मिलकर क्या बात हुई उससे क्या लाभ हानि होने की संभावना है आदि बातों का हिसाब किताब वो जनता तक पहुँचाते हैं जनता की भावनाओं से इतना जुड़ते हैं कि जनता के सुख दुःख में जनता के साथ इतना घुलमिलकर रहते हैं कि तुरंत न केवल जनभावनाओं के अनुशार एक्टिव हो जाते हैं अपितु इतनी शीघ्र प्रतिक्रिया देकर समाज को बता देते हैं देशवासियो ! तुम घबड़ाना नहीं हम तुम्हारे साथ हैं तुम्हारी पीड़ा हम तक पहुँच चुकी है तुम जैसा चाह रहे हो वैसा ही होगा तुम्हारा मोदी वैसा ही कर रहा है काम प्रारम्भ हो चुका है कश्मीर की बाढ़ हो या नेपाल का भूकंप या बिहार का तूफान या कुछ और देश को आश्वस्त कर देते हैं कि देश वासियों तुम चैन से सो जाओ तुम्हारी भावनाओं का आदर करती हुई मोदी सरकार की सारी मशीनरी वैसा करना प्रारम्भ कर चुकी है जैसा तुम लोग करवाना चाह रहे हो ! देश वासियों की इच्छाओं का सम्मान इस सरकार की रगों में है अन्यथा इसके पहले किसी प्रधानमंत्री ने जन भावनाओं का आदर करते हुए अपना कोट नीलाम नहीं किया है किंतु मोदी जी ने किया है ऐसे समर्पणों का सम्मान करना हमें भी सीखना होगा !जो अभी तक की सरकारों में होता नहीं देखा गया है हमें पता ही नहीं लगता रहा कि एक नौसिखिया सरकारी राजकुमार ने सारे मंत्रिमंडल के किसी सामूहिक निर्णय को न केवल  नकार दिया था अपितु उससे सम्बंधित फाइल फाड़ने तक की बात कह डाली थी जनता को यह बताना भी जरूरी नहीं समझा गया था कि वो ऐसा कह क्यों रहे हैं !
     आज काँग्रेस मोदी सरकार पर  हल्लाबोले जा रही हा आखिर क्यों ? किंतु काँग्रेस का मोदी सरकार पर हल्ला बोलने का उद्देश्य आखिर जनहित तो नहीं ही है निजीहित  हो सकते हैं ये सारा विश्व जनता है कि काँग्रेस सर्वाधिक समय तक सत्ता में रही है और अच्छा बुरा जो कुछ किया वो जनता जनार्दन के सामने है अब भाजपा (NDA)सरकार  को भी जनता अपनी आँखों से देखेगी काँग्रेस की आँखों से क्यों देखे ?
         काँग्रेस  ऐसा क्यों सोचती है कि मोदी उससे पूछ पूछकर काम करें ! काँग्रेस को जैसा ठीक लगा अभी तक वैसे सत्ता चलाई अब भाजपा को अपने अनुसार चलाने दे !काँग्रेस यदि  ठीक ही चल रही होती तो जनता ने खदेड़ा क्यों और भाजपा को गले लगाया इसका भी कुछ तो कारण  होगा उसका मंथन किए बिना अपने आचार व्यवहार में बदलाव किए बिना केवल कुछ दिन छुट्टी लेकर कुछ भाषण रट कर आक्रामक हो जाने से जनता सच्चाई भूल नहीं जाएगी !
   सोनिया जी के लिए देश में एक अस्पताल नहीं बनाने वाली काँग्रेस से अमेठी में मेगा फूड पार्क की आशा क्यों ?इतने वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी जो काँग्रेस सोनिया जी के लायक  देश में एक अस्पताल नहीं बनवा सकी उन्हें इलाज के लिए दौड़ दौड़कर विदेश जाना पड़ता है वो अमेठी में मेगा फूड पार्क क्या बनवाएगी !ये तो सब बातें हैं और बनवाना ही होता तो दस वर्ष कोई  कम तो नहीं होते हैं और यदि तब नहीं कर सके तो अब क्या आस ?अब तो सत्ता के बिना रहा नहीं जाता वही छटपटाहट है !   
    कुल मिलाकर काँग्रेस ने अभी तक कियाकाँग्रेस की कर्म कुंडली पढ़कर ही तो जनता ने दुदकारा है और भाजपा को गले लगाया है फिर जनता के फैसले पर अंगुली उठाने वाली काँग्रेस होती आखिर कौन है अभी तो जनता ने किसी लायक नहीं रखा है काँग्रेस को !
    

Tuesday 19 May 2015

नए नए मंत्रियों,मुख्यमंत्रियों की भी होनी चाहिए ट्रेनिंग !अन्यथा काम करना इन्हें आता नहीं है इसलिए औरों को बदनाम करके काम चलाया करते हैं !

राजनीति केवल एक गेम है क्या ?जितने चाहो उतने झूठे वायदे  कर दो ?जनता के साथ इतना मजाक !
   राजनीति में बोले वो जो जनता को सुनने में अच्छा लगे और करे वो जो अपने फायदे का सौदा हो इसे यदि राजनीति कहा जाए तो फिर धोखाघड़ी किसे कहा जाए !   अब  राजनेताओं की नियत में खोट तो बहुत तेजी से आती जा रही है बहुत कमलोग हैं जो राजनीति जैसी रपटीली जगह पर जाकर भी अपने चरित्र और सिद्धांतों पर अडिग रह पाते हैं।आज देश की हर पार्टी अपनी मूल प्रकृति से हिली  हुई  है किंतु क्यों ये किसी को नहीं पता है श्री राम मंदिर मुद्दा हो या धारा 370 या गोरक्षा या और भी जो कुछ पुराने मुद्दे हों या नेता धीरे धीरे सब अदृश्य होते जा रहे हैं आखिर क्यों क्या केवल सत्ता तक पहुँचने के लिए ही सारी सैद्धांतिक बातें बघारी जाती हैं मोदी जी बहुत अच्छा काम कर रहे होंगे मैं इनकार नहीं करता किंतु मात्र कुछ लोगों की कंपनी सी बन चुकी भाजपा अब भाजपा सी लग नहीं रही है पता नहीं क्यों ?ये स्थिति केवल भाजपा की ही नहीं है अपितु हर पार्टी इसीप्रकार की राजनैतिक वेश्यावृत्ति की शिकार है मुद्दे हों या नेता या पार्टी या सिद्धांत किसी का कुछ भी स्थिर नहीं है हरपार्टी की स्थिति ये है कि चुनावी भूकम्प के समय मुद्दों और सिद्धांतों की प्लेटें तो खिसक ही जाती हैं ।आम आदमी की बात करने वाले केजरीवाल अब अपने साथियों को ही लात आने की बातें कर रहे हैं । 
      राजनैतिक खानदान का एक उत्तराधिकारी चुनाव जीतकर सरकार अधियाँ बटाई पर उठा देता है इसके बाद आराम फिर पाँच वर्ष बाद वही पाँच बातें -
   गरीबों को चावल गेहूँ देकर भोजन सुरक्षादेने की बात ,मजदूरों को मनरेगा देने की बात ,दलितों का उत्थान करने की बात ,महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की चिकनी चुपड़ी बातें तथा जवानों को रोजगार आदि इन्हीं पाँच बातों को बोलते हुए दशकों से चुनाव लड़े और जीते जा रहे हैं किंतु गरीब अभी भी गरीब हैं ,मजदूर अभी भी मजदूर हैं दलित न जाने कब तक दलित रहेंगे !महिलाओं की सुरक्षा कभी न संतोष जनक रही है न रहेगी और हर जवान पहले तो बेरोजगार ही होता है बाद में भूखों तो कोई नहीं मरता है भोजन तो ईश्वर हर किसी को देता ही है ।
    जनता बहुत गुस्सा होती है तो पाँच दस वर्षों के लिए चुनाव हरा देती है जनता आखिर जाएगी कहाँ पाँच नहीं तो दस वर्षों में  दोबारा सत्ता सौंपेगी तब कमा लिया जाएगा भूखों तो वैसे भी नहीं मारना होता है ।
     अनट्रेंड , अशिक्षित और नौसिखिया लोग भी आजकल ये ही जुमले दोहराते हुए चुनाव तो जीत जाते हैं किन्तु करना धरना कुछ आता नहीं है इसीलिए या तो आपस में लड़ते रहते हैं या अप्सरों को धमकाते रहते हैं फिर घूम टहल कर बिता लेते हैं पाँच वर्ष का अपना समय ! या फिर मौनी बाबा बन कर काट लेते हैं हाँ हुजूरी पूर्वक अपना गौरवहीन जीवन किन्तु राजनीति में शिक्षित समझदार ईमानदार लोगों को आगे बढ़ाने में हर पार्टी न जाने क्यों आज हिचक सी रही है !विरोधी पक्ष के नेता लोग सत्ता पक्ष के लोगों को जब तक भ्रष्ट न कहें तब तक वो नेता कैसे !भ्रष्ट और भ्रष्टाचार ये दो शब्द राजनीति एवं राजनेताओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं चुनावों से पहले सरकार के पक्ष के सभी लोगों को भ्रष्टाचारी कहा जा रहा होता है किंतु चुनाव जीतने के बाद वही नेता इतना शिष्टाचारी और संस्कारी हो जाता है उन्हीं नेताओं से गले मिलेगा हाथ मिलाएगा उन्हीं के बेटा बेटियों के शादी विवाह में जाएगा !कोई कह दे पहले तो आप उन्हें भ्रष्टाचारी बता रहे थे और कह रहे थे कि सरकार में आने के बाद इन सबको जेल भिजवाएँगे अब क्या कह रहे हैं ?तो नेता जी ने हँसते हुए कहा बदले की कार्यवाही किसी पर नहीं की जाएगी !और चुनावों के समय कही हुई बातों पर भरोसा मत कीजिए !फिर पत्रकार ने पूछा चुनावों के समय तो आप बहुत कुछ फ्री देने की बातें कर रहे थे सो ?बोले बिरासत में खजाना खाली मिला है ।बोले आप सुरक्षा की बात कर रहे थे बोले कहाँ नहीं है सुरक्षा देखो हम जहाँ जहाँ जाते हैं वहाँ वहाँ ही सुरक्षा होती है पहले हम गली कूचों में भटका करते थे तब कहाँ होती थी इतनी सुरक्षा !फिर पूछा विकास कार्य कब प्रारम्भ होंगे !बोले विकास तो हो गया बस ये विकासवाली बात जनता तक पहुँचाना बाकी  है पूछा अभी कहाँ विकास हो गया अभी तो शुरू ही नहीं हुआ है तो बोले यही तो प्रेस मीडिया वालों की बातें हैं ये लोग विपक्ष से मिले हुए हैं अन्यथा इतना बड़ा विकास इन्हें दिखता नहीं है हम जहाँ जहाँ जाते हैं हमें तो कोई रोड टूटा दिखता नहीं है तो पूछने वाले ने कहा कि टूटे वाले रोड़ों से अधिकारी तुम्हें ले ही कहाँ जाते हैं आदि आदि !       
   जिन नेताओं को काम करना नहीं आता वे चुनाव जिताऊ होने के कारण पार्टी के मालिक होते हैं चुनाव जिताऊ होने का मतलब खुद खाली हाथ होने के बाद भी सबको सबकुछ देने की बात करे और जब चुनाव जीत जाए तो अपना घर भरे !
   चुनाव जीतने की कला सब में नहीं होती !
    इसके लिए पहले सबकी जरूरतें जाननी होती हैं फिर उन्हें पूरा करने के लिये निडरता पूर्वक झूठा बचन देना होता है और जिनमें काम करने की समझ और योग्यता होती है उनमें चुनाव जीतने की योग्यता नहीं होती है क्योंकि आदर्श जीवन जीने के प्रेमी वे लोग अपने सिद्धांतों से समझौता कैसे कर सकते हैं !
   मैंने स्वयं कुछ राजनैतिक पार्टी के लोगों से संपर्क साधा कि अपनी पार्टी में मुझे भी जोड़ लीजिए मैं भी राजनीति के माध्यम से समाज सेवा करना चाहता हूँ मैंने विभिन्न विषयों पर अपनी लिखी किताबें उन मठाधीश  नेताओं को दिखाईं उन्हें भेंट कीं किसी को कोरियर से भेजीं विभिन्न विश्व विद्यालयों से प्राप्त अपनी डिग्री प्रमाणपत्र  दिखाए उनकी प्रतियाँ भेंट कीं किन्तु उन्होंने हमारे निवेदन को स्वीकार नहीं किया ! एक धर्म की ठेकेदार पार्टी के जिम्मेदार नेता से मैं मिलने गया तो उन्होंने हमारी दी हुई पुस्तकें कहीं रखीं नहीं अपितु रखने के नाम पर जैसे फेंकी वो ढंग ठीक नहीं था ! इसी पार्टी के एक नेता ने हमारी लिखी हुई दुर्गा सप्तशती देखते हुए कहा-- ओह! तो आप चंडी पाठ करते हैं मैंने सोचा कि सुनकर इन्हें अच्छा लगेगा तो मैंने खुश होकर हाँ कर दिया तो उन्होंने कहा कि फिर आप राजनीति में काम कैसे कर पाएँगे क्योंकि आप चंडी पाठ वाले आदमी राजनीति का रंडीपाठ कैसे कर पाएँगे ! मैंने कहा कि सारे लोग रंडी पाठ वाले ही तो नहीं होंगे बहुत लोग अच्छे भी होंगे उनके साथ ही जुड़ लेंगे तो उन्होंने अपना नाम न बताने की शर्त पर समझाया कि जो अच्छा होगा वो राजनीति में आएगा ही क्यों ? राजनीति में अच्छा होना जरूरी नहीं होता अपितु अच्छा दिखना आवश्यक होता है मन से बुरा हो तो भी चलेगा !यह सब सुनकर मैं अपने घर वापस आ गया !
    किसी को काम करना आता हो तब न काम करें विरोधी पार्टी के अनुभवी नेता चुनाव हारने के कारण बेकार लगने लगे और अपने अनुभवी साथी चुनाव जीतने के कारण  बेकार लगने लगे !इसलिए उनकी तो छटनी हो गई जो रह गए उन्हें काम का अनुभव नहीं होने से नौसिखिया होने के कारण कोई आपस में लड़ रहे हैं तो कोई विदेश भ्रमण कर रहे हैं राज काज करना कुछ समझ में आवे तो काम करना शुरू करें तब तक आ जाएँगे चुनाव !फिर कुछ नौसिखियों के हाथ चली जाएगी देश की वागडोर !यही देश का दुर्भाग्य है । 
 राजनेताओं से सवाल क्यों वो किसी को कुछ भी बोल दें उनकी बातों पर बवाल क्यों ?
    भारत में सारे कानूनी संकट केवल उनके लिए हैं जो इंसानियत से जीना  चाहते हैं उन्हें तो कानून के अनुशार चलना होता है किंतु नेता लोग जो कानून की परवाह ही नहीं करते कहीं भी धज्जियाँ उड़ा देते हैं कानून की ऐसी जगह कानून स्वयं ही उनका अनुगमन करने लगता है अर्थात नेताओं के पीछे पीछे चलने लगता है !क्योंकि हर नेता में एक मंत्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तो छिपा ही रहता है न जाने कब कहाँ किसकी कैसी लाटरी लग जाए !
     लोकतंत्र बहुमत से चलता है आज विधानसभाओं से लेकर लोकसभा तक में बढ़ती आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले नेताओं की संख्या चिंताप्रद है स्थिति यदि यही रही तो धीरे धीरे चुनावों में विजयी होने वाले नेताओं में आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले नेताओं की संख्या अधिक होगी तब सरकार उनकी बनेगी मंत्री मुख्यमंत्री प्रधान मंत्री वो लोग बनेंगे कानून उनके हिसाब से बनेंगे हर अपराधी को यह कह कर बेगुनाह सिद्ध करने का प्रयास किया जाएगा कि जातिवाद संप्रदायवाद के भेदभाव से आहत होकर ये अपराधों की और प्रवृत्त हुए थे इसलिए इन्होंने अपराध नहीं किया है अपितु अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी है !इस प्रकार की विरुदावली गाते हुए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा जाएगा !इस प्रकार से विश्वगुरु भारत की पहचान आपराधिक भारत के रूप में हो बलात्कारी भारत के रूप में हो हत्यारों के भारत के रूप में हो लुटेरों के भारत के रूप में हो या शिक्षित भारत के रूप में हो सच्चरित्र भारत के रूप में हो आदर्श भारत के रूप में हो ईमानदार भारत के रूप में हो उससे अच्छा है 
  लोकतंत्र में चुनाव जीतने मात्र से नरपशु भी देवताओं की तरह पुजने लगते हैं इसीलिए शिक्षा और समझदारी की बातें सुनते ही अशिक्षित नेता लोग शोर मचाने लगते हैं कि लोकतंत्र खतरे में पड़ा जा रहा है क्योंकि उन्हें पता होता है कि आज लोकतंत्र की ही देन  है कि सभी दोष दुर्गुणों से भरे पुरे लोग भी इंसानों की तरह ही नहीं अपितु देवताओं की तरह पूजे जा रहे हैं !
  
   जब राजनीति में शिक्षा का कोई महत्त्व ही नहीं है तब मंत्री या मुख्यमंत्री  बनने के लिए भी ट्रेनिंग होनी चाहिए ! 
   एक शिक्षक को स्कूल चलाना होता है उसकी तो ट्रेनिंग,पुलिस और होम गार्ड तक की ट्रेनिंग किंतु विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई ट्रेनिंग क्यों नहीं ! विशेष रूप से पूर्व मंत्रियों मुख्यमंत्रियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को अपने अनुभव अपने उत्तराधिकारियों को सीखने चाहिए और सेवा की ट्रेनिंग होती है तो क्यों नहीं ? 
सरकारी आफिसों में ?जहाँ जनता की लम्बी लाइनें लगी हैं और  बाबू मोबाईल पर बातें कर रहा होता है ।
    यदि घूस न भी ले रहा हो तो ये ठीक है क्या ?कितने लोगों के पेट में दर्द हो रहा होता है किंतु सरकारी अस्पतालों का बाबू उन्हें पर्ची काटकर नहीं देता है ,डाक्टर साहब जरूरी काम से चले जाते हैं मरीज दर्द से तड़पता रहता है, घर वाले अपने छोटे छोटे बच्चों को तैयार  करके स्कूल भेज आते हैं किन्तु वहाँ शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में झांकने नहीं जाते हैं है कोई देखने वाला !कई स्कूलों में तो शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में बैठकर छोटे छोेटे बच्चों के सामने ही समोसे चिप्स मँगवाकर खा रहे होते हैं और पी रहे होते हैं फ्रूटी जूस आदि आदि !क्या बीतती होगी उन बच्चों पर! माँ बाप ऐसा कर रहे होते तो सह जाते क्या वे !या तो बच्चे देख रहे होते माता पिता से खाया जाता क्या ?किन्तु यहाँ तो बच्चे टुकुर टुकुर देख रहे होते हैं क्या यही शिक्षकों का आदर्श है !
  कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जी !बातें बनाना छोड़िए और अधिकारियों को वातानुकूलित आफिसों से निकालिए और छिपकर खड़ा  कीजिए उन लाइनों में जहाँ जनता जूझ रही है सरकार के अकर्मण्य दुलारों से !और आप खुद निकल कर देखिए कि अधिकारी उन आफिसों में गुप्त निरीक्षण के लिए जा भी रहे हैं या नहीं !बाकी सारी  मीटिंगें बाद में अन्यथा मीटिंगों के नाम पर सरकार या सरकारी कर्मचारी कभी भी रेस्ट करने लगते हैं यदि जनता का काम ही रुक गया तो मीटिंगें किस बात की !और यदि मीटिंगें इतनी ही जरूरी होती हैं आफिस टाइम के बाद  कीजिए मीटिंगें , किसान मजदूर रात रात  भर काम करते हैं तो सरकारी कर्मचारी  क्यों नहीं कर सकते हैं और यदि नहीं ही कर सकते हैं तो सीटें खाली करें !उनसे अधिक योग्य उनसे कम पैसों में उनसे अधिक जिम्मेेदारी पूर्वक काम करने वाले अभ्यर्थियों की लाइनें लगी हैं फिर सरकार अपने कर्मचारियों से काम क्यों नहीं ले पाती है !
     बंधुओ! सच पूछो तो खोट सरकारी कर्मचारियों में नहीं है अपितु सरकारों में है अधिकारी कर्मचारी तो बदनाम हैं बाक़ी घूस तो सरकारों में सम्मिलित नेताओं को चाहिए होती है उसी में कुछ उनको भी मिल जाती है जो बेचारे मंत्रियों के लिए कमा कमा कर लाते हैं अन्यथा राजनीति में घुसते समय किराए के लिए तरस रहे नेता बिना किसी उद्योग धंधे के अरबों खरबों पति कैसे हो जाते हैं यदि घूस नहीं लेते या उनके पास भ्रष्टाचार का पैसा नहीं आता है तो !आखिर क्या होते हैं उनके आय के पवित्र स्रोत इनकी जाँच क्यों नहीं होनी चाहिए और सार्वजनिक किए जाने चाहिए उनकी आय के स्रोत किंतु ऐसा तभी संभव हैं जब देश का प्रशासक प्रधानमंत्री कोई ईमानदार चरित्रवान आदर्शवान कर्तव्यनिष्ठ जनता के प्रति जवाब देय एवं जन सेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति बने और वो राजनीति को पारदर्शी बनाने के लिए कृत संकल्प हो किंतु आजकल किसी से ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए ! राजनीति में केवल ये फार्मूला चलता है कि तुमने लूट लिया अब हमें लूटने दो यदि तुम हमारी जाँच नहीं करोगे तो हम तुम्हारी भी जाँच नहीं  कराएँगे इसी सेटिंग के साथ बनती बिगड़ती हैं सरकारें और होते हैं काम काज ! आपने चुनावों के समय विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सरकार में सम्मिलित नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते खूब सुना होगा किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो भ्रष्टाचारियों पर न कोई कार्यवाही होती है और न ही जाँच !दोनों एक दूसरे से गले मिलने लगते हैं उसका कारण केवल यह होता है कि अभी तक जो सप्ताह उन लोगों के पास पहुँचाते थे अब वो अपने पास आने लगता है इस प्रकार से जब अपना घर ही काँच का बना हो तो दूसरों के घरों पर कंकड़ फेंकना भी तो बुद्धिमानी नहीं होती है ।

केजरीवाल जी ! अधिकारी घूस लेते हैं कि नहीं इस बात का पता लगाने के लिए केवल अपनी बेटी का ही उदाहरण क्यों ?

मुख्यमंत्री जी ! क्या कर रहा है आपका निगरानी तंत्र और कहाँ हैं आपकी पार्टी के प्रति समर्पित आपके कर्मठ वालेंटियर !
    केजरीवाल जी ! एक मुख्यमंत्री के रूप में आपका निगरानी तंत्र क्या कर रहा है कहाँ हैं पार्टी के प्रति समर्पित आपके वालेंटियर ! उन पर भरोसा करके उन्हें क्यों नहीं भेजा जा रहा है सरकारी आफिसों में ?जहाँ जनता की लम्बी लाइनें लगी हैं और  बाबू मोबाईल पर बातें कर रहा होता है ।
    यदि घूस न भी ले रहा हो तो ये ठीक है क्या ?कितने लोगों के पेट में दर्द हो रहा होता है किंतु सरकारी अस्पतालों का बाबू उन्हें पर्ची काटकर नहीं देता है ,डाक्टर साहब जरूरी काम से चले जाते हैं मरीज दर्द से तड़पता रहता है, घर वाले अपने छोटे छोटे बच्चों को तैयार  करके स्कूल भेज आते हैं किन्तु वहाँ शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में झांकने नहीं जाते हैं है कोई देखने वाला !कई स्कूलों में तो शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में बैठकर छोटे छोेटे बच्चों के सामने ही समोसे चिप्स मँगवाकर खा रहे होते हैं और पी रहे होते हैं फ्रूटी जूस आदि आदि !क्या बीतती होगी उन बच्चों पर! माँ बाप ऐसा कर रहे होते तो सह जाते क्या वे !या तो बच्चे देख रहे होते माता पिता से खाया जाता क्या ?किन्तु यहाँ तो बच्चे टुकुर टुकुर देख रहे होते हैं क्या यही शिक्षकों का आदर्श है !
  कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जी !बातें बनाना छोड़िए और अधिकारियों को वातानुकूलित आफिसों से निकालिए और छिपकर खड़ा  कीजिए उन लाइनों में जहाँ जनता जूझ रही है सरकार के अकर्मण्य दुलारों से !और आप खुद निकल कर देखिए कि अधिकारी उन आफिसों में गुप्त निरीक्षण के लिए जा भी रहे हैं या नहीं !बाकी सारी  मीटिंगें बाद में अन्यथा मीटिंगों के नाम पर सरकार या सरकारी कर्मचारी कभी भी रेस्ट करने लगते हैं यदि जनता का काम ही रुक गया तो मीटिंगें किस बात की !और यदि मीटिंगें इतनी ही जरूरी होती हैं आफिस टाइम के बाद  कीजिए मीटिंगें , किसान मजदूर रात रात  भर काम करते हैं तो सरकारी कर्मचारी  क्यों नहीं कर सकते हैं और यदि नहीं ही कर सकते हैं तो सीटें खाली करें !उनसे अधिक योग्य उनसे कम पैसों में उनसे अधिक जिम्मेेदारी पूर्वक काम करने वाले अभ्यर्थियों की लाइनें लगी हैं फिर सरकार अपने कर्मचारियों से काम क्यों नहीं ले पाती है !
     बंधुओ! सच पूछो तो खोट सरकारी कर्मचारियों में नहीं है अपितु सरकारों में है अधिकारी कर्मचारी तो बदनाम हैं बाक़ी घूस तो सरकारों में सम्मिलित नेताओं को चाहिए होती है उसी में कुछ उनको भी मिल जाती है जो बेचारे मंत्रियों के लिए कमा कमा कर लाते हैं अन्यथा राजनीति में घुसते समय किराए के लिए तरस रहे नेता बिना किसी उद्योग धंधे के अरबों खरबों पति कैसे हो जाते हैं यदि घूस नहीं लेते या उनके पास भ्रष्टाचार का पैसा नहीं आता है तो !आखिर क्या होते हैं उनके आय के पवित्र स्रोत इनकी जाँच क्यों नहीं होनी चाहिए और सार्वजनिक किए जाने चाहिए उनकी आय के स्रोत किंतु ऐसा तभी संभव हैं जब देश का प्रशासक प्रधानमंत्री कोई ईमानदार चरित्रवान आदर्शवान कर्तव्यनिष्ठ जनता के प्रति जवाब देय एवं जन सेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति बने और वो राजनीति को पारदर्शी बनाने के लिए कृत संकल्प हो किंतु आजकल किसी से ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए ! राजनीति में केवल ये फार्मूला चलता है कि तुमने लूट लिया अब हमें लूटने दो यदि तुम हमारी जाँच नहीं करोगे तो हम तुम्हारी भी जाँच नहीं  कराएँगे इसी सेटिंग के साथ बनती बिगड़ती हैं सरकारें और होते हैं काम काज ! आपने चुनावों के समय विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सरकार में सम्मिलित नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते खूब सुना होगा किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो भ्रष्टाचारियों पर न कोई कार्यवाही होती है और न ही जाँच !दोनों एक दूसरे से गले मिलने लगते हैं उसका कारण केवल यह होता है कि अभी तक जो सप्ताह उन लोगों के पास पहुँचाते थे अब वो अपने पास आने लगता है इस प्रकार से जब अपना घर ही काँच का बना हो तो दूसरों के घरों पर कंकड़ फेंकना भी तो बुद्धिमानी नहीं होती है ।