Tuesday, 20 October 2015

ऐसे काट"जुओं " को कब तक सहती रहेगी भारतीय संस्कृति !

" दाल-प्याज महंगी, गोमूत्र पियो, गोबर खाओः काटजू"

   किंतु ऐसे ही काटजूकुतर्क तो हर विषय में  गढ़े जा सकते हैं !'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के विषय में भी काटजू कह सकते हैं कि "बेटों को न तो बचाओ और न ही पढ़ाओ" जनसंख्या नियंत्रण करने की स्कीमों का भी यह कह कर उपहास उड़ाया जा सकता है कि 'लोगों पर बम डाल दो' !आदि । इसी प्रकार  जो शिक्षित नहीं वो अशिक्षित ,जो ज्ञानी नहीं वो अज्ञानी ,ऐसे ही जो  बिल्डिंग विद्यालय नहीं है उसे मूर्खतालय कहने लगा जाएगा क्या ?जो बिल्डिंगें  न्यायालय नहीं है उन सारे भवनों को अन्यायालय कहा जाने लगेगा क्या ?

      हे सम्माननीय पूर्व न्यायाधीश महोदय !

शिक्षित-अशिक्षित , ज्ञानी-अज्ञानी, विद्यालय- मूर्खतालय न्यायालय-अन्यायालय जैसे शब्दों के बीच में भी बहुत कुछ छूट जाता है जरूरत उसे भी ध्यान रखने की है जो आपके बयानों में निरंतर चूक होती जा रही है !

    काटजूसाहब !आप ऐसे पद पर रह चुके हैं दूसरी बात वयोवृद्ध हैं और शिक्षित तो हैं ही आपके इस सारे गुणगौरव का सम्मान करना यदि समाज का कर्तव्य है तो इनकी गरिमा बचाए रखने की जिम्मेदारी आपकी भी है !गायों का सम्मान पूजन ,गोबर और गोमूत्र की महिमा का ज्ञान हमें वेदों पुराणों धर्मशास्त्रों से मिलता है इसलिए उनका उपहास उड़ाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती देश में वो कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो या रहा हो !

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