Tuesday, 6 October 2015

सरकारी आफिसों से AC हटाओ ,बिजली बचाओ ,गाँव गरीबों के यहाँ भी तो बिजली पहुँचाओ !अरे नेताओ !आजादी अकेले मत भोगिए !!

 सरकारी लोगों !हमसे कहते हो कि " CFL जलाओ बिजली बचाओ !"हम उनसे कहते हैं कि सरकारी आफिसों से AC हटाओ और गाँव गरीबों के यहाँ भी बिजली पहुँचाओ !उनके यहाँ भी जलाओ बत्ती और चलाओ  पंखा !अब देश की आजादी केवल मुट्ठी भर लोगों को नहीं भोगने दी जाएगी !
   अरे देश के शासको ! सरकारी रोड लाइटें अक्सर दिन में भी जलती रहती हैं !सरकारी आफिसों में सबसे ज्यादा फुँकती है ब्यर्थ में बिजली !वो बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है !हम लोगों को यदि थोड़ी भी शर्म हो तो जब तक दूर दराज के गावों में बिजली नहीं पहुँच जाती तब तक के लिए सरकारी आफिसों से AC निकाल बाहर किए जाने चाहिए !आखिर  वो कार्यस्थल हैं आरामगाह नहीं !
किसान मई जून की झुलसाती दोपहर में खुले आसमान में काम कर सकते हैं तो सरकारी आफिसों में छाया होने के बाद भी पंखा चलने के बाबजूद AC जरूरी क्यों ?
    यदि किसान मई जून की भरी दोपहर में उघारी पीठ पर खुले आसमान के नीचे धूप और लू सहते हुए परिश्रम पूर्वक काम कर सकता है तो हम बंद कमरों में छाया में पंखा की हवा का आनंद लेते हुए काम क्यों नहीं कर सकते !माना कि हमारे संसाधन अच्छे थे हम पढ़ लिख गए वो उतना नहीं पढ़ पाए ! 
   धिक्कार है ऐसे लोकतंत्र को जहाँ गरीबों ग्रामीणों के साथ गुनहगारों जैसा व्यवहार करते हों लोकतंत्र के रखवाले !
  अरे लोकतंत्र के पहरेदारो!गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों को मत सताइए इतना !अशिक्षा का इतना बड़ा दंड दे रहे हो तुम  ! उन्हें इंसान ही नहीं समझते हो तुम लोग !तुम्हारे अधिकारी कर्मचारी जिनसे बोलने में बेइज्जती  समझते हों काम करना तो दूर जिनसे मिलना न पसंद करते हों जिन्हें अपने AC कमरों में घुसने न देते हों !क्या गरीबों की बेइज्जती करने लिए ही बने हैं ये सरकारी विभाग !अरे लोकतंत्र के ठेकेदारो !यदि तुम्हारे लाडले कर्मचारी किसी का काम करने को मना कर दें तो घूस देकर काम कराने के लावा और दूसरा विकल्प बचता ही क्या है उनके पास !और जिके पास घूस देने के पैसे न हों कैसे हों उन गरीबों ग्रामीणों के काम !
   सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का गुजारा हजारों लाखों में नहीं  हो पाता तो किसान मजदूर गरीब ग्रामीणों का गुजारा सैकड़ों हजारों में कैसे होता होगा भूख तो उन्हें भी लगती होगी क्या मिटटी फाँक रहे होंगे वो लोग !आप लोग आखिर क्या सोचते हैं उनके विषय में ! वे अपने भाई बंधु यदि शिक्षा में पिछड़ गए हैं तो क्या वो इंसान भी नहीं रहे आपकी दृष्टि में !  
 बारे लोकतंत्र !कैसे तुमपर गर्व करें !
   मुट्ठी भर नेता और उनके सेवक सरकारी कर्मचारी चाटे जा रहे हैं देश की आजादी इसमें गरीबों ग्रामीणों मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं है क्या ?गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों से ये मंत्री -अफसर आदि बात ही नहीं करना चाहते कितना घृणित समझते हैं उन्हें !जबकि  वो बहुत सम्मान देते हैं इन्हें !ये अफसर लोग अपने  एयरकंडीसण्ड कमरों में उन गरीबों को घुसने नहीं देना चाहते भय होता है कहीं गंदा न हो जाए आफिस !सरकारें डेंगू से अपने को एवं अपनों को बचाने के लिए तो सारे प्रयास कर लेती हैं किंतु बेचारे गरीब किसान मजदूरों के यहाँ सुनी गई कभी फागिंग होते !देखा कभी पंखा चलते !वर्षात की अँधेरी रातों में साँप काट ले तो दिखाई नहीं पड़ता कि लकड़ी चुभी है या साँप ने काटा है ! अँधेले में दीपक माचिस खोजना मुश्किल होता है मिल भी जाए तो मिहानी माचिस जलती नहीं है और जब तक प्रकाश का इंतजाम हो पाता है तब तक देर हो चुकी होती है आखिर उनके घरों में क्यों नहीं पहुँची बिजली और क्यों नहीं जला  सके बल्ब !कुल मिलाकर बिजली खा गए सरकारी आफिसों के AC - हीटर और ग़रीबों के हिस्से के पैसे खा गए सरकार एवं सरकारी कर्मचारी अपनी सैलरी बढ़ा या बढ़वा कर !इस प्रकार से आजादी से आज तक गरीबों किसानों की उपेक्षा करके मुट्ठी भर लोगों के द्वारा भोगा जा रहा है देश का लोकतंत्र !बंधुओ !सरकारी कर्मचारी हों या सरकारों में सम्मिलित लोग उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनके कामों को सेवा  कहा जाता है और सेवा में सैलरी नहीं मिलती है सेवा में तो गुजर बसर के लिए मानधन ही मिल पाता है इसलिए जिसे करोड़ों अरबोंपति  बनना है वो छोड़ दे राजनीति और सरकारी नौकरी जैसे सेवा कार्य और करे जाकर अपने रोजगार व्यापार !किंतु गरीबों के हक़ हड़प कर गरीबों से ही घृणा करना ठीक नहीं है !    बंधुओ ! हमारे शिक्षित होने का क्या यही मतलब है कि हम अशिक्षितों को इंसान ही न समझें !शिक्षा तो सरिता है सरोवर है और सरिता सरोवरों की शोभा इसी में है कि बिना किसी भेदभाव के सबकी प्यास बुझावे !
    अरे सुविधा भोगी नेताओ अधिकारियो कर्मचारियो !
   डेंगू का डर तो गाँवों में भी होता है उन्हें तुमसे सैकड़ो गुना ज्यादा काटते हैं मच्छर ,छोटे छोटे बच्चे गरमी से बिलबिलाया करते हैं आखिर उनके घर क्यों नहीं चला पाए कम से कम एक पंखा !धिक्कार है तुम्हारी ऐसी निम्न सोच को !
     वर्षा की अँधेरी रातों में यदि साँप काट लेता है तो पता नहीं लग पाता है कि लकड़ी चुभी है या कुछ और !
   जबतक माचिस खोजो दीपक खोजो माचिस सीमी होने के कारण जलती नहीं है तब तक साँप निकल जाता है पता ही नहीं लग पाता है कि लकड़ी चुभी है या साँप ने डसा है और जब पता लग पाता है तब तक देर हो चुकी होती है !अरे देश के संसाधनों का अकेले भोगने वाले नेताओ !ऐसे लोगों के घरों में भी कम से कम एक बल्ब तो जलाओ !


    धिक्कार है हमारे ऐसे बड़प्पन को जो केवल अपनी सुख सुविधाओं के विषय में ही सोचता है !
    मेरे प्यारे देशवासियों !इंटरनेट के सभी माध्यमों पर जुड़े हमारे  भाई बहनों इतने कठोर शब्द प्रयोग करने के लिए मुझे क्षमा कर देना आपका वाजपेयी अपने शिक्षित होने को तभी धन्य मानेगा जिस दिन अपनी सुख सुविधाओं से उन गरीबों ग्रामीणों मजदूरों और अन्नदाता किसानों का भी हिस्सा निकाल सके !जिनकी कमाई खाए बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता उन किसानों से आखें मिलाकर यदि हम बात करना चाहते हैं तो हमें संकीर्णता छोड़नी होगी और उन ग्रामदेवताओं के लिए भी जीना  होगा !वो भी तरक्की करते भारत के अभिन्न हिस्सा हैं उनमें से बहुत लोग देश के विषय इन हम लोगों से अच्छा सोचते हैं आखिर हमने जरूरी क्यों नहीं समझा कि कभी उनसे भी पूछ लेते कि भाई बहनो अपना प्यारा भारत आप कैसा बनाना चाहते हैं !आखिर हमें ऐसा अहंकार क्यों है कि हम्हीं सबसे अच्छा सोच सकते हैं !जिस परिवार में एक आदमी अन्य सदस्यों को नजरअंदाज करके उनका मंतव्य जाने बिना केवल अपनी बात सब पर थोपता है ऐसे घर ,संगठन,पार्टियाँ,सरकारें आदि बहुत जल्दी नष्ट होते देखे गए हैं !
    इसलिए आप सबसे हमारी प्रार्थना है कि प्रत्येक देश वासी को सुख पहुँचाने के विषय में सोचिए उन्हें नजरंदाज मत कीजिए !ईश्वर न करे देश पर कभी कोई मुशीबत आवे किंतु दुर्भाग्य से यदि ऐसा कोई अवसर आ ही गया तो देश के लिए हम आलसी लोगों की अपेक्षा बड़ी कुर्वानी देने के लिए तैयार हैं वो भारत माता के लाडले !
    बंधुओ ! किसी माँ के तीन बच्चे साथ साथ काम करने जाते हैं तो माँ सबका खाना एक जगह बाँध कर बड़े बच्चे को दे देती है मतलब साफ होता है कि तीनों मिलकर खा लेना किन्तु यदि बड़ा अकेले ही खा जाए और दूसरे देखते रहें तो वही माँ दूसरे बच्चे को खाना देना शुरू कर देगी !ऐसे ही ईश्वर ने हमें जो शिक्षा संपत्ति एवं क्षमता दी है वो केवल इसीलिए कि हम सबके काम आवें !

     सरकारी आफिसों में AC की क्या जरूरत और जिन्हें जरूरत है वहाँ क्यों नहीं ध्यान जाता है तुम्हारा !केवल इसीलिए कि वे तुम्हारे नहीं हैं ! आफिसों को आरामगाह बनाने के पीछे का उद्देश्य क्या है कि वो काम न करें आलसी हो जाएं कमरे बंद कर के बैठे रहें ताकि आम जनता उनसे मिल न सके नहीं उनकी ठंडी हवा निकल जायेगी ! ऐसे सुख सुविधाभोगी अफसरों से ये उम्मीद कैसे की जाए कि वो फील्ड पर जाकर जनता की समस्याएँ सुनेंगे जो आफिसों में ही आम आदमी से मिलना पसंद नहीं करते !आज दस पांच हजार रुपए की सैलरी देकर प्राइवेट प्राइमरी  स्कूल अच्छी शिक्षा दे लेते हैं किंतु साथ हजार सैलरी देकर सरकार नहीं पढ़वा  पाती है अपने स्कूलों में !सरकार के लगभग हर विभाग का यही हाल है क्योंकि सरकारी काम करने की किसी की जिम्मेदारी नहीं होती है नीचे से ऊपर तक हर कोई केवल जवाब तैयार रखता है कि हमसे जब कोई पूछेगा काम क्यों नहीं हो रहा है तो सरकार की कोई छोटी सी कमी बताकर बच जाएँगे ! और वैसे भी लाख पचास हजार पाने वाले सरकारी कर्मचारी काम के प्रति समर्पित  क्यों हों जब दो दो लाख रूपए सैलरी पाने वाले सुविधा भोगी उनके अधिकारी अपने अपने कमरों से नहीं निकलते हैं निकलेंगे तो एयर कंडीसण्ड गाड़ियों में ! आखिर उनके कर्मचारियों ने मक्कारी करना उन्हीं से तो सीखा है आज वो भी इतने चालाक हो गए हैं कि जब रेस्ट करना होता है तो यूनिटी बनाकर कह देते हैं कि नेट नहीं आ रहा है उनका क्या बिगाड़ लेगी आम जनता !और उन्हें किसी अधिकारी का भय ही नहीं है क्योंकि उन्हें पता होता है कि अधिकारी पहली बात तो आएँगे नहीं और आ भी गए तो कुछ पूछेंगे नहीं क्योंकि काम होने से उनका अपना कुछ बिगड़ नहीं रहा है और काम  होने से उन्हें कोई तमगा नहीं मिल जाएगा !वो कोई नेता तो हैं नहीं कि चुनाव जीतने की चिंता हो ! और यदि अधिकारी पूछ भी देगा तो कोई आफिस में चीज सामानों की कोई छोटी मोटी  कमी या फिर शर्दी जुकाम आदि कुछ भी बता दिया जाएगा वो भी हर कोई 
    ऐ भारत वर्ष के प्रतिष्ठा प्राप्त नेताओ ! कभी तुमने उन किसानों मजदूरों ग़रीबों के विषय में सोचा है क्या  जो एक दीपक जलाकर जीवन जीते हैं खर पतवार के बने घर ,छप्पर छनियों से टपक रहा पानी पानी के भय से भयभीत सर्प बिच्छू छिप कर बैठ जाते हैं कत्थर गुद्दरी बिस्तरों में पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों के बीच भगवान भरोसे चलना होता है कहीं भी डस सकता है साँप !कई बार गाँव किनारे की बढ़ी फसलों में छिपकर बैठ जाते हैं हिंसक जानवर और मौका मिलते ही घात लगाकर उठा ले जाते हैं बच्चे !
       अरे अधिकार संपन्न निर्लज्ज शासको! सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते समय देश की जनता से कभी पूछा है कि अभी ऐसा किया जाए या नहीं और नहीं पूछ है तो क्यों ?देशवासी जानना चाहते हैं कि सांसदों विधायकों और सरकारी कर्मचारियों गुजारा जब हजारों लाखों में नहीं होता है तो आम आदमी कैसे जिए ?कभी उसके लिए भी सोचा है कि केवल अपना ही पेट भरने में जुटे हो तुम लोग !धिक्कार है तुम्हारे ऐसे बड़प्पन को !
कार्यस्थलों को आरामगाह मत बनाओ !
 आफिसों में अधिकारियों की इतनी आवभगत क्यों क्या वे कर्मचारी नहीं होते !जनता के काम करने की उनकी क्या कोई जिम्मेदारी नहीं होती !जनता ही सरकारों को चुनती है इसीलिए तो देश के प्रधानमंत्री बड़े गर्व से अपने को प्रधान सेवक कहते हैं !लोकतंत्र में तो जनता ही जनार्दन होती है जनता की कमाई से ही सरकारें भरती हैं अपने अधिकारियों कर्मचारियों के पेट और देती हैं भारी भरकम सैलरी साथ ही सुख सुविधा के असीम साधन ,किंतु वे अधिकारी कर्मचारी सरकारी लोगों का तो काम कर देते हैं उनकी बातें भी सुनते हैं और उनकी डाँट भी सहते हैं किंतु इस लोकतंत्र में उस लोक(जनता ) का कितना अपमान होता है ये जनता ही जानती है । सरकार का कोई विभाग जनता से जुड़ना नहीं चाहता है सरकार के अधिकांश अधिकारी कर्मचारी आम आदमी से मिलना जरूरी नहीं समझते क्योंकि उनसे मिलने में और न ही उनकी सम्मान अपने के द्वारा मिले हुए टैक्स से ही सरकारें देतीं हैं उनकी सैलरी समय समय पर बढ़ाती भी हैं तो जनता के टैक्स से !

  सरकारी  कर्मचारियों का इतना स्वागत क्यों ?                    कुदाल सोने की भी हो या लोहे की मिट्टी तो खोदनी ही पड़ेगी अन्यथा कुदाल किस बात की! इसी प्रकार सरकारी कर्मचारी यदि अधिकारी भी हो तो भी काम तो करना ही पड़ेगा अन्यथा कर्मचारी किस बात के ! 
आज सरकारी आफिसों में अधिकारियों के कमरे किसी लक्जरी बेडरूम से काम नहीं हैं वहाँ केवल बेड नहीं होता बाकी वाही एकांत वही प्राइवेसी वही स्वतंत्रता वही मनोनुकूलता आदि आदि सब कुछ अपने और अपनी इच्छा के अनुशार !जिससे बोलने में अच्छा लगेगा उसे बार बार बोलकर बात की जाएगी जिससे नहीं अच्छा लगेगा उसे धमका कर भगा दिया जाएगा बंद कर लिया जाएगा दरवाजा !ठंडक निकलने के बहाने से बंद कर लिए जाते हैं दरवाजे !आम आदमी सरकारी विभागों में कई कई दिन धक्के खाने के बाद निराश हताश होकर बड़ी हिम्मत करके बहुत ठिठुकते हुए कुंडी खटखटाता है अधिकारियों के आफिसी बेडरूमों की !अक्सर उनकी परिचर्या में लगे कर्मचारी ही उस मैले कुचैले पसीने पसीने हो रहे आम आदमी को इशारे से लौटा देते हैं कई अधिकार भावना से भावित कर्मचारी डाँटकर लौटा देते हैं अधिकारियों की ड्योढ़ी से !वह आम आदमी काँपते हुए कदमों से लौट आता  है पीछे यह सोचकर कि शायद हमसे कोई गलती ही हो गई हो इस अपराधबोध की भावना से फिर लग जाता है लाइन में या फिर निराश हताश होकर लौट आता है अपने घर !

     अधिकारी हों या कर्मचारी कार्यस्थलों पर आराम क्यों ?    घर जाकर रात में ACचलाकर आराम से सोवे किंतु दिन में कार्यस्थलों पर आराम किस बात की !मई जून की भरी दोपहर में भी तो धूप में लू लपटों के बीच किसान खेतों  खेतों में किया करते हैं काम उन्हें तो छाया भी नसीब नहीं होती पंखा तो दूर की बात है तुम्हें तो छाया भी है पंखा भी है काम करने का दबाव भी नहीं है फिर भी AC बारी शौक !

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