प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा दिए जाते हैं नए नए संदेश !
इसलिए प्रकृति में प्रत्येक घटना प्रतिवर्ष प्रत्येक दिन अलग अलग प्रकार से घटित होती है !क्योंकि संदेश अलग अलग होते हैं इसलिए इसमें समानता (equality)खोजने का प्रयास कभी नहीं करना चाहिए यही तो इसकी सुंदरता है |पिछले वर्ष इस तारीख को मानसून आया था अबकी उस तारीख को आया !पिछले बार इतने सेंटीमीटर वर्षा हुई थी अबकी उतनी ही क्यों हुई !सर्दी गर्मी वर्षा आदि ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !ग्लेशियर पिघल रहे हैं !कुछ जगहों पर बहुत अधिक बारिश हो रही है और कुछ स्थानों पर बहुत कम !आखिर ऐसा क्यों हो रहा है |विज्ञान का काम केवल प्रकृति को समझना है उसके परिवर्तनों को स्वीकार करना एवं उसके अनुरूप समाज को ढलने के लिए प्रेरित करना है |इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के नाम पर या किसी अन्य शंका के आधार पर केवल अफवाहें फैलाना विज्ञान नहीं है | जो चीज सिद्ध ही नहीं की जा सकी है उसे समाज के सामने परोसा ही नहीं जाना चाहिए !समाज ऐसे अपरिपक्व अनुसंधानों वक्तव्यों से क्या और कैसे लाभ लाभ उठा सकता है |प्रकृति में घटनाएँ यदि अलग अलग समय में भिन्न भिन्न प्रकार से घटित हों इसका पूर्वानुमान लगाने में यदि हम सफल न हों तो इसका मतलब यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है | ऐसा तो जीवन में भी होता रहता है सभी वर्ष सभी महीने सभी दिन सभी घंटे एक जैसे कभी नहीं रहते | इसका मतलब ये तो नहीं है कि जीवन में भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है |
प्रकृति हो या जीवन परिवर्तन ही तो उसकी सुंदरता है इनके विषय में ऐसी आशा कभी नहीं की जानी चाहिए कि ये रॉबोट की तरह चलेंगे जिस तारीख को मानसून आने के लिए कह देंगे उस तारीख को मानसून आ जाएगा और जब जैसी जहाँ जितनी मात्रा में वर्षा चाहेंगे उतनी वर्षा हो जाएगी ! कैसे हो सकता है | ग्लेशियर यदि आज पिघल रहे हैं तो कभी जमीन भी तो होंगे !उस समय इनके ज़मने में मनुष्य की कोई भूमिका नहीं थी तो आज इसके पिघलने में परेशान होने की क्या आवश्यकता है| जहाँ आज सूखा पड़ता है कभी वहाँ जल भी तो था आज सूखा है फिर भी कभी वहाँ जल रहा होगा इसके लिए इतना अधिक परेशान होने की आवश्यकता क्या है |
जीवन हो या प्रकृति यह भी तो एक प्रकार का संगीत है|जिसके स्वर सृष्टि में विभिन्न स्वरूपों में गूँजा करते हैं|सुख दुःख आदि से संबंधित जीवन में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाएँ जीवनसंगीत के स्वर हैं इसी प्रकार से प्रकृति का अपना संगीत है आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ ही उस संगीत के स्वर हैं |
जिस प्रकार से कोई कुशल संगीतकार अलग अलग प्रकार की थापें दे दे कर अपनी अपनी रूचि के अनुशार भिन्न भिन्न प्रकार के स्वर निकालता है कभी कोई अँगुली मारता है कभी कोई दूसरी मारता है तो कभी तेज आदि अनेकों प्रकार की थापें दे देकर उस संगीत को रुचिकर बना लेता है |
श्रोताओं में से जो लोग उस संगीत के रहस्य को नहीं समझते हैं उन्हें उसकी हर थाप पर आश्चर्य होता है पहले तो इतनी तेज थाप मारी अबकी धीमे थाप मारी अबकी बहुत तेज थाप मारी जिसने इतने समय का रिकार्ड तोड़ा है |चूँकि वो संगीत की उस प्रक्रिया से अनभिज्ञ है इसी कारण उसे हर थाप में आश्चर्य हो रहा है क्योंकि थाप का प्रत्येक विंदु एक जैसा नहीं होता है अलग अलग प्रकार की थाप होने के कारण उससे अलग अलग प्रकार के ही स्वर निकलते देखे जाते हैं | उस संगीत से अनभिज्ञ लोगों को प्रत्येक बात में रिकार्ड टूटते दिखते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि प्रत्येक थाप एक जैसी होनी चाहिए उसमें समय का एक निश्चित अंतराल होना चाहिए आदि आदि |संगीत के रहस्य को न समझने वाले तथाकथित संगीत वैज्ञानिकों ने संगीत के विषय में जो आधार विहीन कल्पनाएँ कर रखी हैं थापें यदि उस प्रकार की नहीं पड़ती हैं तो वे इस थापप्रक्रिया को संगीत संबंधी 'जलवायुपरिवर्तन' मान लेते हैं |
यहाँ ध्यान केवल इतना दिया जाना चाहिए कि संगीतकार का उद्देश्य उत्तम स्वर निकालना है वो जैसे भी संभव हो वैसे उसकी अँगुलियाँ चलती जाती हैं अँगुलियाँ चलाना या थापें मारना उसका कर्म तो है किंतु उद्देश्य नहीं उद्देश्य तो उत्तम संगीत है | यदि कोई अकुशल संगीत वैज्ञानिक ये समझने लगता है कि ये तबले को केवल पीट रहा है तो इसको किसी एक प्रकार से ही पीटना चाहिए अन्यथा 'जलवायुपरिवर्तन' हो रहा है ऐसा मान लिया जाना चाहिए |
यही स्थिति मौसमसंबंधी घटनाओं की है जो हमें आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप आदि केवल घटनाएँ दिखाई पड़ रही होती हैं तो हम इन्हें केवल घटनाएँ मात्र मानकर चल रहे होते हैं जबकि इनके परोक्ष में प्रकृति का गायन चल रहा होता है उस गीत के अनुसार ही प्रकृति रूपी वाद्ययंत्र से आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ भूकंप रूपी स्वर निकल रहे होते हैं | प्रकृति के उस संगीत की लय न समझने के कारण हमें ये प्रकृति आपदाएँ लगती हैं जबकि ये तो समयगीत के अनुशार लगने वाली वे थापें हैं जिन्हें संगीतस्वर कहा जाता है | ये एक जैसी कभी नहीं हो सकती हैं ये हर क्षण बदलती हैं जिन परिवर्तनों से ऊभ कर कुछ लोग इसे जलवायुपरिवर्तन का कारण मानने लगते हैं जबकि ऐसा है नहीं !
मौसम को समझने के लिए हमें प्रकृति संगीत को समझना होगा जिसके अनुसार ये प्राकृतिक घटनाओं के रूप में स्वर निकल रहे होते हैं |
जिस प्रकार से तबले पर थापें गीत के अनुशार लग रही होती हैं उसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ प्रकृति संगीत के अनुशार घटित हो रही होती हैं किंतु जिस गीत के अनुशार तबले पर थापें लग रही होती हैं या फिर प्रकृति में घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उस गीत के विषय में जानकारी न होने एवं उसकी लय की समझ न होने के कारण हम तबले पर पड़ रही थापों में या प्रकृति में घटित हो रही घटनाओं में समानता खोजने लग जाते हैं |वो समानता न मिलने के कारण हम उसका नाम जलवायुपरिवर्तन रख लेते हैं जबकि संगीत में हो या प्राकृतिक घटनाओं में समानता मिलना संभव ही नहीं है क्योंकि जहाँ जैसे स्वरों की आवश्यकता होती है वहाँ वैसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं |
जिस प्रकार से गीत की लय को समझे बिना हम टेबल पर पड़ रही भिन्न भिन्न प्रकार की थापों की लय को नहीं समझ सकते हैं ठीक उसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं की निर्माण पद्धति को समझे बिना आँधी तूफानों आदि के पूर्वानुमान को नहीं समझ सकते हैं | ऐसे ही रडारों उपग्रहों से बादलों की जासूसी करके मौसम के रहस्य को नहीं समझा जा सकता है और रहस्य को समझे बिना हम मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
प्राकृतिक घटनाएँ आपस में प्रायः एक दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं !
तबले पर थाप देते समय अलग अलग अँगुलियाँ हथेली आदि अलग अलग प्रकार से एक एक करके अपनी अपनी भूमिका अदा कर रहे होते हैं जिसमें प्रत्येक थाप पर सभी अँगुलियों की भूमिका एक एक करके बदलती रहती है |इसके बाद भी उन दोनों हाथों में एवं दोनों हाथों की अँगुलियों में परस्पर इतना अच्छा तालमेल होता है कि सब अपनी अपनी बारी पर ही आवश्यकतानुसार ही अपनी अपनी भूमिका अदा करते हैं | इसमें कभी ऐसा भी नहीं होता है कि एक अँगुली जब अपनी थाप दे रही होती है उस समय दूसरी अँगुलियाँ शांत एवं तटस्थ नहीं होती हैं अपितु वे भी अपनी अपनी भूमिका किसी न किसी रूप में अवश्य अदा कर रही होती हैं |
इसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का भी आपस में अद्भुत तालमेल होता है जिस प्रकार से वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण भूकंप आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हो सकती हैं या होती हैं उनमें से अधिकाँश घटनाएँ एक दूसरे से संबंधित होती हैं या यूँ कह लें कि एक दूसरे के बारे में कुछ न कुछ संकेत अवश्य दे रही होती हैं जो भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं से संबंध रखते हैं | प्रकृति में आज घटित हो रही कोई घटना भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना की सूचना दे रही होती है| जबकि आज घटित होते दिख रही घटना के विषय में भी इसकी पूर्वसूचना किसी न किसी घटना के द्वारा आज से कुछ सप्ताह पहले प्रकृति के द्वारा अवश्य दी जा चुकी होगी |
प्रकृति में कोई घटना अकेली कभी नहीं घटित होती है अपितु प्रत्येक घटना के पीछे घटनाओं का एक समूह होता है जिसमें मुख्य घटना तो एक ही होती है किंतु उसके लक्षणों को व्यक्त करने वाली छोटी छोटी घटनाएँ अनेकों होती हैं |जिस प्रकार से किसी एक चार पहिए वाली गाड़ी का कोई एक पहिया किसी गड्ढे में गिर जाता है तो उसका असर उन बाकी पहियों पर भी पड़ता है और गाड़ी पर भी पड़ता है उसकी गति रूक जाती है !इसीप्रकार से प्रकृति में स्थान स्थान पर अलग अलग समयों में घटित होने वाली घटनाओं के अन्य प्राकृतिक घटनाओं के साथ अंतर्संबंध अवश्य होते हैं |सभी प्राकृतिक घटनाएँ किसी माला के मोतियों की तरह एक दूसरे के साथ गुथी होती हैं |
प्रकृति में अचानक कभी कोई घटना नहीं घटित होती है प्रत्येक घटना की सूचना प्रकृति कुछ महीने सप्ताह आदि पहले अवश्य देने लगती है बाद वो घटना घटित होती है | प्रकृति के उन संकेतों को समझ न पाने के कारण हमें आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ यहाँ तक कि भूकंप जैसी घटनाएँ अचानक घटित हुई लगती हैं जबकि वे घटनाएँ बहुत पहले से निश्चित होती हैं और धीरे धीरे घटित होती जा रही होती हैं |
प्रकृति में जो भी घटना जब कभी भी घटित होते दिख रही होती है तो उस घटना को बहुत ध्यान से देखे जाने की आवश्यकता होती है !उसके छै महीने पहले से उस क्षेत्र में घटित हो रही छोटी बड़ी सभी घटनाओं पर दृष्टिपात करना होता है उन घटनाओं के स्वभाव का ध्यान रखना होता है उनसे प्राप्त संकेतों को समझकर वर्तमान घटना के स्वभाव के साथ उन्हें जोड़कर उसका संयुक्त अध्ययन करना होता है !जिससे यह पता लगाना आसान होता है कि भूकंप आदि जो घटना घटित होते आज दिख रही होती है इसका निर्माण कितने पहले से होना प्रारंभ हो चुका था और इससे पहले कौन कौन सी प्राकृतिक घटनाएँ किस किस समय घटित हुई थीं जिनके द्वारा भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता था |
जिस क्षेत्र में जिस प्रकार की घटना घटित होनी होती है वह पंचतत्वों में से जिस तत्व की अधिकता के कारण घटित होनी होती है उस तत्व का अतिरिक्त संग्रह उस क्षेत्र में लगभग 200 दिन पहले से प्रारंभ होने लगता है यही उस घटना का गर्भप्रवेश काल होता है जो अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण प्रारंभ में तो नहीं दिखाई पड़ता है किंतु धीरे धीरे घटनाओं का स्वरूप बढ़ने लगता है और उन घटनाओं के गर्भ लक्षण प्रकट होने लगते हैं |
प्रकृति की तरह ही मनुष्यादि जातियों में भी गर्भकाल अलग अलग हो सकता है किंतु प्रक्रिया यही रहती है वहाँ भी गर्भकाल के प्रारंभिक समय में गर्भ लक्षण दिखाई भले न पड़ें किंतु धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतते जाता है गर्भ लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं जिन्हें देखकर विशेषज्ञ लोग इस बात का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि इस गर्भ को अभी कितने महीने बीते होंगे उसके साथ ही इस बात का पूर्वानुमान भी लगा लेते हैं कि इस गर्भ का प्रसव लगभग कितने सप्ताह बाद होगा !किंतु यह पूर्वानुमान लगाना हर किसी के बश की बात नहीं होती है यह तो केवल कोई विशेषज्ञ ही लगा सकता है |
इसीप्रकार से संसार में प्रकृति में या जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का अपना अपना गर्भ प्रवेश काल होता है जिस समय वह घटना प्रारंभ होती है | जीवन या प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येक घटना उसी के आधीन होकर घटित होती है |
इसी प्रकार से आचरण संबंधी गर्भ प्रवेशकाल होता है |जीवन में भी देखें तो जो लोग बेईमानी करके धन कमाते हैं उसका गर्भकाल 11 वर्षों का होता है इसके बाद वह धन नष्ट हो जाता है !जो जिस रस अधिक खाते हैं उसके परिणाम स्वरूप उन्हें ऐसे रोग होते हैं जिनमें मीठा खाना बंद करना पड़ता है !जो किन्हीं दूसरों की बहन बेटियों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं उनकी अपनी बहन बेटियों के साथ कोई दूसरा वैसा ही वर्ताव करता है !जो समय को नष्ट करते हैं समय उनको नष्ट करता है जो आनाज या खाने पीने के सामान को बर्बाद करते हैं एक दिन उस अन्न या भोजन के लिए उन्हें तरसना पड़ता है जो किसी दूसरे को दुःख देते हैं एक दिन उन्हें स्वयं दुखी होना पड़ता है जो किसी पद प्रतिष्ठा का दुरूपयोग करते हैं वे एक दिन उसी प्रकार की पद प्रतिष्ठा के लिए तरसते हैं !जो जल को प्रदूषित करते हैं वे कितना भी स्वच्छ जल पिएँ किंतु उन्हें ऐसे रोग होते हैं जो दूषित जल पीने वालों को होते हैं ,जो हवा को दूषित करते हैं वे कितनी भी स्वच्छ हवा में रहने का प्रयास कर लें किंतु उन्हें रोग ही वही होते हैं जो दूषित हवा में साँस लेने वालों को होते हैं |
इसप्रकार से जीवन से संबंधित घटनाओं पर यदि बिचार किया जाए तो ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं का अपना अपना गर्भकाल होता है उस समय यदि ध्यान न दिया जाए या सँभल कर आचरण न किया जाए तो उसके परिणाम सामने आने लगते हैं |उस समय हम ईश्वर को दोष देते हैं वस्तुतः उन घटनाओं का गर्भकाल तो हमलोगों ने स्वतः बिगाड़ा होता है |कई बार कुछ धार्मिक सदाचारी ईमानदार लोग अपने बच्चों के दुराचरणों से परेशान होकर केवल उन्हें ही दोष देते हैं किंतु सच्चाई कुछ और होती है | जिस समय उन बच्चों का गर्भ में प्रवेश होता है उस समय उनके माता पिता की जो भावना होती है वह समय उसी भावना से भावित संतान देता है !ऐसे लोग सारे जीवन धार्मिक सदाचारी ईमानदार आदि रहे होते हैं किंतु बच्चे के गर्भ प्रवेश के कुछ क्षण उस बच्चे के जीवन को एवं उससे माता पिता के संबंधों को बनाने या बिगाड़ने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं उनके बिगड़ जाने से बच्चों का जीवन और मातापिता से संबंध सदाचार आदि सबकुछ बिगड़ जाता है |
कुलमिलाकर अपने शरीर एवं स्वभाव के विरुद्ध घटित हो रही घटनाओं को हम संकट या आपदा मानने लगते हैं जबकि उसके गर्भ प्रदाता हम स्वयं होते हैं संभवतःयही कारण है कि पूर्वज लोग अपनी संतानों को ईमानदारी सदाचरण आदि के लिए प्रेरित किया करते थे क्योंकि वे कर्मपरिणामों से सुपरिचित होते थे |
जिसप्रकार से हमारे आज के कर्मबीज ही कालांतर में अपने अच्छे बुरे फल देते हैं !जिनमें बुरे फलों से आहत होकर हम उन्हें ईश्वर प्रदत्त आपदा मानने लगते हैं और अच्छे को अपने कर्मों का परिणाम मानने लगते हैं |
ऐसे ही प्रकृति में प्राकृतिक आपदाओं का निर्माण होता है घटनाएँ तो वहाँ भी घटित होती रहती हैं!जिनमें से कुछ का कारण मनुष्य आदि जीवजंतु होते हैं तो कुछ का कारण प्रकृति स्वयं होती है जब मनुष्यादि प्राणी इतने विकसित नहीं थे उद्योग धंधे नहीं थे मोटरगाड़ियाँ नहीं थीं तब भी आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि घटनाएँ तो इसीक्रम में घटित होती रही हैं | चूँकि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम संबंधी घटनाओं पर विचार करना अभी सौ दो सौ वर्ष पहले से ही प्रारंभ किया गया है इसलिए अपने पास इससे अधिक समय की प्राकृतिक घटनाओं की कोई सूची भी नहीं है इसलिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से देखने से ऐसा लगता है कि जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग या आँधीतूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि ऐसी सारी घटनाएँ अभी सौ दो सौ वर्ष में ही घटित होने लगी हैं पहले ऐसा कुछ नहीं होता रहा होगा या कम होता रहा होगा ,किंतु ऐसा है नहीं वस्तुतः सभी प्रकार की घटनाएँ सभी युगों में इसी प्रकार से घटित होती रही हैं |ये बात हम केवल कह ही नहीं रहे हैं अपितु आवश्यकता पड़ने पर हम इसे सिद्ध भी कर सकते हैं |
मानवजीवन की तरह ही प्राकृतिक घटनाओं का भी गर्भकाल होता है प्राकृतिक घटनाओं के भी गर्भ चिन्हों की पहचान भी प्रकृति विशेषज्ञों को ही होती है वही इस बात का पर्वानुमान लगा सकते हैं कि किस समय किस स्थान की प्रकृति किस प्रकार की घटना के गर्भ को धारण कर रही है और उसके प्रसव का संभावित समय क्या हो सकता है | इसी के आधार पर प्राचीनकाल में प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा रही है |
प्रकृति में घटित होने वाली अन्य घटनाओं की तरह ही भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के घटित होने के 200 दिन पूर्व से उस क्षेत्र की प्रकृति में भी उस प्रकार के बदलाव होने प्रारंभ हो जाते हैं |वहाँ के वायुमंडल में उसी प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं यहाँ तक कि पहाड़ों के स्वरूप रंग आदि में सूक्ष्म परिवर्तन होने लगते हैं | उस क्षेत्र के पेड़ पौधों की बनावट एवं उनकी पत्तियों के आकार प्रकार रंगरूप एवं उनके फूलने फलने के ढंग में उसप्रकार का बदलाव आने लगता है | फूलों फलों के सुगंध स्वाद आदि में उस प्रकार का अंतर आने लगता है |कुलमिलाकर उस क्षेत्र की प्रकृति का क्रम हिलने सा लगता है |
इसीप्रकार से उसका असर सभी प्राणियों पर पड़ने लगता है इसलिए उनके स्वास्थ्य स्वभाव आदि में उस प्रकार के परिवर्तन आने लगते हैं !जिसके कारण उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव होने लगते हैं | जिसे पहचान कर कई बार लोगों ने भूकंप आदि घटनाओं से जोड़कर देखने का प्रयास भी किया है किंतु वे सभी प्रकार के भूकंपों में एक जैसी मानसिकता रखते हैं और प्रकृति तथा जीवों के स्वभाव में उसी एक प्रकार के बदलाव खोजने लगते हैं जबकि भूकंप अलग अलग प्रकार के होते हैं उनका स्वभाव अलग अलग होता है उसका असर अलग अलग होता है | जो जैसा भूकंप होता है वैसे जीवों पर ही उस प्रकार का उसका असर जीवन पर पड़ता है !सूर्य के प्रभाव से निर्मित भूकंप के आने के कुछ महीने पहले से उस क्षेत्र के वाता वरण में गर्मी बढ़ने लग जाती है गर्मी से होने वाले रोग होने लगते हैं इसीलिए अधिक गर्मी न सहपाने वाले जीव जंतुओं में ऐसे समय बेचैनी बढ़ने लगती है |
इसी प्रकार से कुछ भूकंप चंद्र के प्रभाव से निर्मित होते हैं उसमें प्राकृतिक वातावरण तो बहुत हरा भरा बना रहता है किंतु अधिक सर्दी न सह पाने वाले जीव जंतुओं के स्वभावों में उस प्रकार के बदलाव आने लगते हैं |
ये असर मनुष्यजीवन पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगता है मनुष्यों के भी स्वास्थ्य एवं स्वभाव में उसी प्रकार के विकार होने लगते हैं |लोगों का चिंतन भी उसी प्रभाव से भावित होने लगता है |
भूकंप से प्राप्त होने वाली सूचनाएँ -
कुछ भूकंप बहुत छोटे होते हैं जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 के आसपास या उससे कुछ कम होती है ऐसे भूकंप जिस क्षेत्र में आते हैं वहाँ कोई प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी घटना घटित होने वाली होती है | आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि की परिस्थिति बनने पर इस दृष्टि से अनुसंधान किया जाना चाहिए कि ऐसी घटनाएँ निकट भविष्य में घटित होने वाले या तो किसी भूकंप आदि के विषय में सूचना दे रही होती हैं या फिर इनके विषय में सूचना देने के लिए कोई भूकंप अवश्य आएगा !इसी में कुछ भूकंपों की तीव्रता बहुत कम होती है इसलिए उनसे प्राप्त होने वाले संकेत भी अत्यंत छोटी अर्थात कम प्रभाववाली घटनाओं की ओर संकेत कर रही होती हैं |
कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जहाँ पृथ्वी की आतंरिक या बाह्य अर्थात वायुमंडल की परिस्थितियों के कारण बार बार भूकंप आते रहते हैं ऐसे भूकंपों को सूचना जैसी प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ अक्सर परस्पर विरोधी होती हैं |
कई बार किसी क्षेत्र में कोई भूकंप बहुत कम तीव्रता का आता है तो उसके द्वारा सूचित की जाने वाली घटनाओं का वेग भी अत्यंत कमजोर होता है | कई बार किसी क्षेत्र में पहले से जिस प्रकार की कोई गतिविधि प्रकृति में या समाज में चल रही होती है उसी गतिविधि को और अधिक आगे बढ़ाने वाला यदि कोई भूकंप आ जाता है तो उसकी तीव्रता कम होने पर भी उसका असर अधिक दिखाई पड़ता है |जैसे किसी क्षेत्र में वर्षा हो रही हो और उसी क्षेत्र में चंद्र निर्मित भूकंप कुछ कम तीव्रता का आने पर भी उस क्षेत्र में वर्षा के प्रभाव को बढ़ा देता है !इसी प्रकार से सर्दी की ऋतु में यदि चंद्र तो सर्दी या बर्फवारी का असर काफी अधिक बढ़ जाता है |
ऐसे ही सूर्य निर्मित भूकंप यदि गर्मी की ऋतु में आ जाता है तो गर्मी का ताप बहुत अधिक बढ़ जाता है किंतु ये सूर्यज भूकंप यदि सर्दी में आ जाता है तो गर्मी का ताप तो बहुत अधिक नहीं बढ़ता है किंतु सर्दी के असर को बहुत अधिक कमजोर कर देता है |
ऐसे ही कई बार प्रकृति में या समाज में जिस प्रकार की गतिविधि पहले से चली आ रही होती है ऐसे समय में यदि अचानक कोई भूकंप आ जाता है और वह उस पहले से चली आ रही गतिविधि के विरोध की कोई सूचना देता है तो उसका प्रभाव कुछ कमजोर हो जाता है यदि भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तब तो ऐसे विरोधी स्वभाव वाले भूकंपों का असर भी अच्छा दिखाई पड़ता है |
कई बार एक भूकंप आकर कोई सूचना देकर चला जाता तो उस क्षेत्र में ऐसी सूचना का असर 30 से 50 दिनों तक रहता है किंतु यदि पहले भूकंप के 10,5 या पंद्रह दिनों के अंदर कोई दूसरा भूकंप आ जाता है तो यहीं से पहले वाले भूकंप का असर समाप्त होकर बाद वाले भूकंप का प्रभाव पड़ने लग जाता है |
भूकंपों के वैसे तो 9 प्रकार होते हैं सबके अलग अलग स्वभाव प्रभाव आदि होते हैं |जिनमें से 4 प्रकार के भूकंप बहुत कम दिखाई पड़ते हैं क्योंकि ये सौ दो सौ वर्षों में कभी कभी ही आते हैं किंतु जब कभी जहाँ कहीं भी आते होंगे उनकी प्रवृत्ति काफी अधिक हिंसक होती है जो पृथ्वी में बहुत बड़े बदलाव के लिए आते हैं जिनमें नदियों झीलों तालाबों समुद्रों टापुओं आदि के आस्तित्व को ही परिवर्तित करके पृथ्वी के संतुलन को सँवारते देखे जाते हैं | मनुष्य के द्वारा अवाञ्च्छित निर्माण आदि के द्वारा कभी किसी एक स्थान में बहुत सारा भार बढ़ा देते हैं ऐसी परिस्थितियों के गर्भ से उस प्रकार के भूकंप जन्म लेते हैं |ऐसे भूकंपों की आवृत्तियाँ इतनी कम होती हैं कि उनके विषय में अनुभव जुटाकर रिसर्च करना संभव नहीं हो पाता है |
इन सबके अतिरिक्त 4 प्रकार के भूकंप ही प्रमुख होते हैं जो अक्सर दिखाई पड़ा करते हैं ये जिस क्षेत्र में आते हैं उस क्षेत्र से संबंधित कोई न कोई सूचना समेटे होते हैं|ये प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में शुभाशुभ सूचनाएँ देने के लिए अक्सर आया करते हैं इन्हीं के विषय में अथर्ववेद में लिखा हुआ है "शं नो भूमिर्वेप्यमाना" अर्थात 'काँपती हुई भूमि हमारी रक्षा करे!'इन चार भूकंपों के अलावा एक दैवी भूकंप होता है | इससे
जनधन की भारी हानि होती है |ये मनुष्यकृत अपराधों से प्रेरित ईश्वरीय शक्तियों के प्रकोप से प्रकट होता है |
प्रकृति में कोई क्रिया ऐसी नहीं होती है जो निरर्थक या मानवता में सहायक न होती हो |कई क्रियाएँ ऐसी भी होती हैं जो देखने में कुछ समय के लिए अवश्य विपरीत लगती हैं किंतु उनकी दूरगामी परिणामों पर यदि ध्यान दिया तो वे सृष्टि में सहायक होती हैं | इसी प्रकार से भूमि के कंपन से पृथ्वी का आतंरिक जगत व्यवस्थित होता है और बाह्य प्रकृति में भी संतुलन बनता है !