Wednesday, 21 October 2015

क्या केवल साहित्यकारों और लेखकों की हत्या के खिलाफ हैं साहित्यकार !

     हर किसी का जीवन बहुमूल्य है , हत्या किसी की भी विरोध सामूहिक होनाचाहिए !मिलजुलकर ही निपटा जा सकता है मानवता के शत्रुओं से !
           " विचारकों और लेखकों की हत्या  लोकतंत्र के खिलाफ :विश्वनाथ त्रिपाठी "
      फरीदाबाद में एक परिवार के बच्चों को जिंदा जला देने की घटना क्या लोकतंत्र के खिलाफ नहीं है !एक साहित्यकार के ये कैसे उद्गार ! कुल मिलाकर  जिसका जितना विराट व्यक्तित्व होता है उसका परिवार भी तो उतना ही बड़ा होता है । ऐसे लोगों को सारा समाज अपना मानता है किंतु ऐसे लोग केवल अपनों को अपना मानें तो इनके लिए पराया कौन है !
      ये कैसा वक्तव्य !आश्चर्य !!क्या विचारकों और लेखकों के अलावा और किसी के जीवन का कोई महत्त्व नहीं है इनकी दृष्टि में !आज के पहले भी बहुतों को अत्याचारियों की बर्बरता की पीड़ा झेलनी पड़ी है किन्तु तब इतने आंदोलित क्यों नहीं हुए साहित्यकार !तब उनकी अपनी सरकारें थीं इसलिए आक्रोश प्रकट करना ठीक नहीं समझा गया या साहित्यकारों के अलावा समाज की पीड़ा पर उनका ध्यान ही नहीं था !साहित्यकारों की भावनाओं में इतनी संकीर्णता और ऐसी राजनीति !    
     माना कि साहित्यकार का जीवन बहुमूल्य होता है ऐसा समाज मानता है किंतु यदि साहित्यकार भी ऐसा ही मानने लगेंगे तो कैसे बचेगा समाज !क्या केवल साहित्यकार ही सँभाल लेंगे देश की सारी भूमिकाएँ !
     महोदय ! हत्या किसी की भी हो वह लोकतंत्र के खिलाफ ही होती है किंतु विद्वानों के मुख से नहीं शोभा देती है संकीर्णता !कोई सच्चा साहित्यकार केवल अपने या अपनों के लिए नहीं जीना चाहता  वो तो विराट समुद्र होता है जिसमें जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय से ऊपर उठकर लोग अवगाहन कर सकें !
  इसी विषय में हमारे कुछ और लेख -
  • केंद्र सरकार के विरुद्ध बड़े बड़े समझदार लोग न जाने क्यों बनाने लगे हैं डरावना माहौल !seemore.... http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html 
  • साहित्यकारों और सरकारों के सहयोग से ही हो सकता है अच्छे समाज का निर्माण !आपसी विश्वास बनाए और बचाए रखना बहुत जरूरी !see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html 
  • साहित्यकारों का पुरस्कार पाना हो या लौटाना दोनों राजनीति से प्रेरित होते हैं ! अच्छा रहा   कबीर  सूर तुलसी मीरा जैसे साहित्यकारों को नेताओं ने कोई पुरस्कार नहीं दिया इसीलिए साहित्यकार के रूप में ही आजतक ज़िंदा रह सके हैं वे लोग !बंधुओ !जिन्हें पुरस्कार नहीं मिलता ऐसे साहित्यकार क्या सम्मानित नहीं होते !seemore.... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_66.html
  • अरे पुरस्कार लौटाने वालो ! दुखी तो देशवासी भी हैं किंतु वो लौटावें क्या ?पुरस्कार उन्हें दिए नहीं गए ,बाजारों में मिलते नहीं हैं !पुरस्कार लेने का जुगाड़ उन्हें आता  नहीं है !see more.... 

     



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