साहित्यकारों और सरकारों के सहयोग से ही हो सकता है अच्छे समाज का निर्माण !
साहित्यकारों की जिम्मेदारी है कि वो समाज को जगाएँ और आपराधिक सोच पर अंकुश लगाएँ न कि पुरस्कार लौटाएँ और बेकार में सरकारों पर गुस्सा दिखाएँ ! समाज में अपराधिक सोच न पनपने देना साहित्यकारों की अपनी जिम्मेदारी है । अपराध हो जाने पर कानूनी कार्यवाही करना सरकारों की अपनी जिम्मेदारी है इसलिए समाज में घटित होने वाले प्रत्येक प्रकार के अपराध को सरकारों पर डालकर साहित्यकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते !
हमें याद रखना होगा कि सरकारों का शासन जनता के तनों अर्थात शरीरों तक ही सीमित होता है जबकि साहित्यकारों का सीधा प्रवेश जनता के मनों तक होता है साहित्यकार जनता के see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html
साहित्यकारों का पुरस्कार पाना हो या लौटाना दोनों राजनीति से प्रेरित होते हैं !
अच्छा रहा कबीर सूर तुलसी मीरा जैसे साहित्यकारों को नेताओं ने कोई पुरस्कार नहीं दिया इसीलिए साहित्यकार के रूप में ही आजतक ज़िंदा रह सके हैं वे लोग !बंधुओ !जिन्हें पुरस्कार नहीं मिलता ऐसे साहित्यकार क्या सम्मानित नहीं होते !
साहित्यकार चाहे तो समाज को बदल सकता है किंतु आज सरकारें पुरस्कार देकर बदल दे रहीं हैं साहित्यकार !अपराध हो जाने पर सरकार किसी अपराधी के शरीर को उठा कर जेल में डाल सकती है फाँसी पर लटका सकती है किंतु सरकार किसी का मन नहीं बदल सकती है जबकि साहित्यकार मन भी बदल सकते हैं !ऐसे सक्षम साहित्यकार यदि थान लें तो बदल सकते हैं समाज और रोक सकते हैं सभी प्रकार के अपराध और बलात्कार ! see more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_66.html
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