Sunday, 18 October 2015

केजरीवाल जी !

 मैं शीला दीक्षित नहीं हूं, - केजरीवाल
     किंतु केजरीवाल जी  ! शीला दीक्षित  आप हो तो सकते ही नहीं हैं उनका अभिनय करना भी आपके वश का नहीं है आज उनके किए विकास कार्य  उनका परिचय देने के लिए पर्याप्त हैं उनकी भाषा हमेंशा मर्यादित और संयमित रही उन्होंने कभी किसी नेता को चोर बेईमान नहीं कहा सबके सम्मान का ख्याल रखा इसलिए उनके आचरण की नक़ल कर पाना भी आपके वश का नहीं है इसलिए आप उनसे अपनी तुलना कैसे कर सकते हैं । उन्होंने दिल्ली वालों के लिए बहुत कुछ किया है और आपको बहुत कुछ करना बाक़ी है फिर आप ये कैसे कह सकते हैं कि हम उनसे अच्छा ही कर लेंगे !
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केजरीवाल जी ! आप CM की बुराई करके CM तो बन गए किंतु क्या समझते हैं कि PM की बुराई करके PM भी बन जाएँगे !
         "मैं पीएम को चैन से सोने नहीं दूंगा- केजरीवाल"
    किंतु श्रीमान केजरीवाल जी ! PM बनने के बाद मोदी जी बूढ़े लगने लगे हैं जबकि आप जवान लगने लगे हो !जनता की चिंता किसको कितनी है ये चेहरे बता  रहे हैं और जनता समझ रही है !जनता को बुद्धू मत  समझिए !रही बात सोने  देने की तो केजरीवाल जी !तुम खुद ही भटके हुए राहगीर हो तुम क्या मोदी जी को नहीं सोने दोगे ! मोदी जी स्वयं साधक व्यक्ति हैं नींद और भोजन पर उनका अद्भुत नियंत्रण है ये दुनियाँ ने देख लिया है । CM साहब !आपतो केवल इतनी बात से खुश हो सकते हैं कि मोदी जी काम करते रहे फिर भी हम उन्हें बदनाम करते रहे !बेचारी जनता देखती see more...http://sahjchintan.blogspot.in/2015/10/cm-cm-pm-pm.html




साहित्यकारों का पुरस्कार पाना हो या लौटाना दोनों राजनीति से प्रेरित होते हैं !
 अच्छा रहा   कबीर  सूर तुलसी मीरा जैसे साहित्यकारों को नेताओं ने कोई पुरस्कार नहीं दिया इसीलिए साहित्यकार के रूप में ही आजतक ज़िंदा रह सके हैं वे लोग !बंधुओ !जिन्हें पुरस्कार नहीं मिलता ऐसे साहित्यकार क्या सम्मानित नहीं होते !
   साहित्यकार चाहे तो समाज को बदल सकता है किंतु आज सरकारें पुरस्कार देकर बदल दे रहीं हैं साहित्यकार !अपराध हो जाने पर सरकार किसी अपराधी के शरीर को उठा कर जेल में डाल सकती है फाँसी पर लटका सकती है किंतु सरकार किसी का मन नहीं बदल सकती है जबकि साहित्यकार मन भी बदल सकते हैं !ऐसे सक्षम साहित्यकार  यदि थान लें तो बदल सकते हैं समाज और रोक सकते हैं सभी प्रकार के अपराध और बलात्कार !  see more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_66.html





साहित्यकारों और सरकारों के सहयोग से ही हो सकता है अच्छे समाज का निर्माण !
      साहित्यकारों की जिम्मेदारी है कि वो समाज को जगाएँ और आपराधिक सोच पर अंकुश लगाएँ न कि पुरस्कार लौटाएँ और बेकार में सरकारों पर गुस्सा दिखाएँ ! समाज में अपराधिक सोच न पनपने देना  साहित्यकारों की अपनी जिम्मेदारी है । अपराध हो जाने पर कानूनी कार्यवाही करना सरकारों की अपनी जिम्मेदारी है इसलिए समाज में घटित होने वाले प्रत्येक प्रकार के अपराध को सरकारों पर डालकर साहित्यकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते !
        हमें याद रखना होगा कि सरकारों का शासन जनता के तनों अर्थात शरीरों तक ही सीमित होता है जबकि साहित्यकारों का सीधा प्रवेश जनता के मनों तक होता है साहित्यकार जनता के see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/10/blog-post_89.html

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