Monday, 30 November 2015

आरक्षण जैसी सभी सुविधाओं के लिए तो जाति बताने में गर्व और मंदिरों में जाति बताने में शर्म ! ये कैसा सिद्धांत ?

"शैलजा, पुनिया ने मंदिरों में जाति पूछे जाने का मामला उठाया, राज्यसभा में हंगामा"
    जातिवादी सरकारें अब जातियों के नाम पर स्कूलों में भी खेलने लगी हैं बचपन बाँटने का खतरनाक खेल !तब क्यों बुरा नहीं लगता है ऐसे स्वार्थसंकीर्ण दयादोहक नेताओं को ! शिक्षा ,नौकरी अनुदान आदि हर जगह जातियों के आधार पर जीने वाले लोग अब जातियाँ बताने में डरने क्यों लगे हैं !
     अब तो सरकारें ये भी तो बता दें कि किस दिन किस जाति के बच्चे स्कूल में पढ़ने आवें !इससे और कुछ हो न हो किंतु सवर्णों के बच्चे बेचारे जलील होने से तो बच ही जाएँगे !
बंधुओ !आरक्षण का जहर स्कूलों तक न पहुँचने दिया जाता तो अच्छा होता ! सरकारी स्कूलों में किसी को एससी के नाम पर पैसे मिलते हैं किसी को माइनॉरिटी के नाम पर और सवर्णों के छोटे छोटे बच्चे ताकते रह जाते हैं वे बेचारे नहीं समझ पाते कि सरकारें किस पाप का दंड दे रही हैं उन्हें !
सवर्णों के छोटे छोटे बच्चे स्कूलों से मायूस होकर लौटते हैं घर और पूछते हैं अपने माता पिता से कि एससी या माइनॉरिटी बनने के लिए क्या पढ़ाई पढ़नी पड़ती है ? माँ ने पूछा क्यों ?बच्चे ने उदास होकर कहा माँ मुझे भी बनना है एससी और माइनॉरिटी दोनों !माँ ने कहा तू कैसे बन सकता है? बच्चे ने कहा माँ मेहनत करके पढ़ाई लिखाई करूँगा तब भी नहीं बन सकता क्या !माँ ने कहा तुम कभी नहीं बन सकते !बच्चे ने पूछा क्यों ?तो माँ ने कहा बेटा ये सब कुछ बनने के लिए कुछ पढ़ना वढ़ना नहीं अपितु बेवकूफ रहना होता है । बच्चे ने कहा कि क्यों ?तो माँ ने कहा बेटा भगवान न करे कि सरकार से भीख माँगने के लिए किसी को ये तरह तरह के वेष धरने पड़ें !

बेटा !ये सबकुछ बनने के लिए बड़े झूठ बोलने पड़ते हैं पहले कहना पड़ता है कि मैं सवर्णों के कारण गरीब हूँ क्योंकि उन्होंने मेरा पहले शोषण किया था किंतु बेटा आजतक ये झूठे ये नहीं बता पाए कि सवर्णों ने इनका शोषण किया कब और कैसे था कितना किया था और वो धन गया कहाँ यदि सवर्णों ने ऐसा किया होता तो वो लोग क्यों गरीब होते !दूसरी बात सवर्णों की संख्या तो कम थी जब वे शोषण कर रहे थे तब बहु संख्यक लोगों ने उन्हें ऐसा करने क्यों दिया ?आदि बातों के उनके पास जवाब नहीं होते !

इसी प्रकार एक तरफ तो ये लोग अपने घर गृहस्थी का खर्च चलाने के लिए सरकारों के आगे हाथ फैलाया करते हैं ये खुद स्वीकार करते हैं कि हम अपने बल पर अपनी तरक्की नहीं कर सकते हमें घर चलाने के लिए के लिए सरकार की मदद चाहिए !तो दूसरी ओर चुनाव लड़कर विधायक मंत्री आदि सब कुछ बन जाना चाहते हैं ऊपर से कहते हैं कि हम तो देश की तरक्की करेंगे !अरे !अपनी तरक्की अपने बल पर कर नहीं सकते उसके लिए तो आरक्षण चाहिए किंतु देश की तरक्की करने की गारंटी लेते हैं । बहुत झूठ बोलते हैं ये लोग !

वैसे भी ऐसा झूठ साँच बोलकर पाया गया धन न तो अपने काम आता है और न ही बच्चों की तरक्की के काम और न ही इससे स्वाभिमान ही बन पाता है इसलिए तुम पैसे मांगने या दयादोहन करने के लिए एससी ,माइनॉरिटी आदि कुछ भी न बनो परिश्रम करके तरक्की करो और स्वाभिमानी जीवन जियो !

सरकारों की आरक्षण आदि कृपा के बलपर जीवित रहने वाले लोग पेट तो भर सकते हैं किंतु तरक्की कभी नहीं कर सकते और न ही स्वाभिमान ही बचाकर रख सकते हैं रही बात पेट भरने की तो वो तो पशु भी भर लेते हैं मानव का कर्तव्य तो स्वाभिमानपूर्वक अपनी तरक्की स्वयं करना है ।

माँ की ये सब बातें सुनकर बच्चा सच्चाई समझते ही खुश होकर शांत हो गया !








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