Monday, 23 November 2015

लालू जी !शपथग्रहण में आपके बेटे ने तो अर्थ का अनर्थ ही कर दिया था जबकि मोदी जी की बात से अर्थ का अनर्थ नहीं ही हुआ !

   लालू जी विलोम शब्द और तत्सम और तद्भव शब्दों का अंतर समझिए तब तुलना कीजिए !लालू जी विलोम शब्द और तत्सम -तद्भव को एक तराजू पर नहीं तौला  जा सकता !
 "अक्षुण्ण" ही नहीं बोला तो शपथ बेकार है.PM को दोबारा शपथ लेनी चाहिए."अक्षण्ण" का हिंदी में कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है-लालू प्रसाद 
 लालू जी !मोदी जी के द्वारा बोले गए "अक्षुण्ण "शब्द की जगह "अक्षण्ण " शब्द का कोई अर्थ होता हो या न होता हो किन्तु अनर्थ तो नहीं ही होता है ये बात तो पक्की है किंतु लालू जी !आपके बेटे के द्वारा  बोले गए "अपेक्षित" की जगह "उपेक्षित" शब्द से तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है क्योंकि ये आपस में विलोम शब्द हैं दूसरी बात मोदी जी के द्वारा "अक्षुण्ण "शब्द की जगह प्रयोग किए गए "अक्षण्ण "शब्द को यदि निरर्थक मान भी  लिया जाए तो भी विरोधी अर्थ न देने से उतना दोष पूर्ण नहीं माना जा सकता !
केजरीवाल जी को भले दिला  दी जाए दोबारा शपथ !
   अरविंद केजरीवाल जी को भी शपथ दिलाते समय 'अंतःकरण' की जगह 'अंतकरण' बोलवाया गया था जो गलत था किंतु ये गलती शपथ दिलाने वाले की ओर सी हुई थी जबकि शपथ लेने वाले ने समझदारी से काम लिया था !see more... https://www.youtube.com/watch?v=M1UMEPVZLk8
    हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हिंदी में 'तत्सम' शब्द तो नियमों से बँधे होते हैं किंतु 'तद्भव' शब्द तो उच्चारणसुगमता  के आधीन ही होते  हैं बशर्ते जिन शब्दों के बोलने से मूल शब्द का वास्तविक अर्थ स्पष्ट हो जाता हो साथ विपरीत अर्थ भी न निकलता हो ऐसे शब्दों को ही तो तद्भव शब्द कहा गया है इस हिसाब से मोदी जी के द्वारा बोला गया "अक्षुण्ण "शब्द की जगह "अक्षण्ण "कितना गलत रह जाता है आप स्वयं सोचिए !
   तत्सम शब्दों में समय परिस्थिति  एवं बोली भाषा के अंतर के कारण शब्दों के उच्चारण में अंतर हो जाता है किंतु ऐसे शब्दों को तब तक बिलकुल गलत नहीं माना  जा सकता जब तक उनका अर्थ एक दूसरे के विपरीत न हो !
जैसे - रवींद्र   नाथ 'ठाकुर' थे किंतु उन्हें 'टैगोर' कहा जाने लगा जबकि टैगोर अपने यहाँ कोई जाति ही नहीं है । हुआ ये कि अंग्रेजों की जबान नहीं लौटती थी तो वे ठाकुर को टैगोर कहने लगे आज तो भारतीय भी टैगोर कहते हैं ।
    इसी प्रकार से मोदी जी के कहे हुए "अक्षुण्ण "शब्द की जगह "अक्षण्ण "को भी लिया जाना चाहिए ये शब्द भले ही शुद्ध न हो किंतु तद्भव होने के कारण गलत नहीं है !जैसे ये सारे शब्द हैं -आप स्वयं देखिए -
तत्सम -- तद्भव
आभीर -- अहेर
आर्य -- आरज
अनार्य -- अनाड़ी
आश्विन -- आसोज
आश्चर्य -- अचरज
अक्षर -- अच्छर
अगम्य -- अगम
अक्षत -- अच्छत
अक्षय -- आखा
अष्टादश -- अठारह
अग्नि -- आग
आम्रचूर्ण -- अमचूर
आमलक -- आँवला
अमूल्य -- अमोल
अंगुलि -- अँगुरी
अक्षि -- आँख
अर्क -- आक
अट्टालिका -- अटारी
अशीति -- अस्सी
ईर्ष्या -- ईर्षा
उज्ज्वल -- उजला
उद्वर्तन -- उबटन
उत्साह -- उछाह
ऊषर -- ऊसर
उलूखल -- ओखली
उच्छवास -- उसास
किरण -- किरन
कटु -- कड़वा
कपर्दिका -- कौड़ी
कर्तव्य -- करतब
कंकण -- कंगन
कुपुत्र -- कपूत
काष्ठ -- काठ
कृष्ण -- किसन
कार्तिक -- कातिक
कार्य -- कारज
कर्म -- काम
किंचित -- कुछ
कदली -- केला
कुक्षि -- कोख
केवर्त -- केवट
क्षीर -- खीर
क्षेत्र -- खेत
गायक -- गवैया
गर्दभ -- गधा
ग्रंथि -- गाँठ
गोधूम -- गेहूँ
ग्रामीण -- गँवार
गोमय -- गोबर
गृहिणी -- घरनी
धृत -- घी
चंद्र -- चाँद
चंडिका -- चाँदनी
चित्रकार -- चितेरा
चतुष्पद -- चौपाया
चैत्र -- चैत
छिद्र -- छेद
यमुना -- जमुना
यज्ञोपवीत -- जनेऊ
ज्येष्ठ -- जेठ
जामाता -- जवाई
जिह्वा -- जीभ
ज्योति -- जोत
यव -- जौ
दंष्ट्रा -- दाढ़
तपस्वी -- तपसी
त्रीणि -- तीन
तुंद -- तोंद
स्तन -- धन
दधि -- दही
दंत धावन -- दातुन
दीपशलाका -- दीया सलाई
दीपावली -- दीवाली
दृष्टि -- दीठि
दूर्वा -- दूब
दुग्ध -- दूध
द्विप्रहरी -- दुपहरी
धरित्री -- धरती
धूम -- धुंआ
नक्षत्र -- नखत
नापित -- नाई
निष्ठुर -- निठुर
निद्रा -- नींद
नयन -- नैन
पर्यंक -- पलंग
प्रहर -- पहर
पंक्ति -- पंगत
पक्वान्न -- पकवान
पाषाण -- पाहन
प्रतिच्छाया -- परछाई
पत्र -- पत्ता
फाल्गुन -- फागुन
वज्रांग -- बजरंग
वल्स -- बच्चा/बछड़ा
वरयात्रा -- बरात
बलीवर्द -- वैल
बली वर्द -- वींट
विवाह -- ब्याह
व्याघ्र -- बाघ
भक्त -- भगत
भिक्षुक -- भिखारी
बुभुक्षित -- भूखा
भाद्रपद -- भादौं
मक्षिका -- मक्खी
मशक -- मच्छर
मिष्टान्न -- मिठाई
मौक्तिक -- मोती
मर्कटी -- मकड़ी
मश्रु -- मूँछ
राजपुत्र -- राजपूत
लौह -- लोहा
लवंग -- लौंग
लोमशा -- लोमड़ी
सप्तशती -- सतसई
स्वप्न -- सपना
साक्षी -- साखी
सौभाग्य -- सुहाग
श्वसुर -- ससुर
श्यामल -- साँवला
श्रेष्ठी -- सेठी
शृंगार -- सिंगार
हरिद्रा -- हल्दी
हास्य -- हँसी
एला -- इलायची
नारिकेल -- नारियल
वट -- बड़
अमृत -- अमिय
वधू -- बहू
अगाणित -- अनगणित
अंचल -- आँचल
अँगरखा -- अंगरक्षक
अज्ञान -- अजान
अन्यत्र -- अनत
अंधकार -- अँधेरा
आषिष् -- असीस
अमृत -- अमीय
अमावस्या -- अमावस
अर्पण -- अरपन
अंगुष्ट -- अँगूठा
आश्रय -- आसरा
अद्य -- आज
अर्द्ध -- आधा
आलस्य -- आलस
अखिल -- आखा
अंक -- आँक
अम्लिका -- इमली
आदित्यवार -- इतवार
इक्षु -- ईख
इष्टिका -- ईंट
उत्साह -- उछाह
उच्च -- ऊँचा
उलूक -- उल्लू
एकत्र -- इकट्ठा
कच्छप -- कछुआ
क्लेष -- कलेष
कर्ण -- कान
कज्जल -- काजल
कंटक -- काँटा
कुमार -- कुँअर
कुक्कुर -- कुत्ता
कुंभकार -- कुम्हार
कष्ठ -- कोढ़
कपाट -- किवाड़
कोष्ठ -- कोठा
कूप -- कुआँ
कर्पट -- कपड़ा
कर्पूर -- कपूर
कपोत -- कबूतर
कास -- खाँसी
क्रूर -- कूर
गोस्वामी -- गुसाई
गोंदुक -- गेंद
ग्राम -- गाँव
गोपालक -- ग्वाला
गृह -- घर
घटिका -- घड़ी
गर्मी -- घाम
चर्वण -- चबाना

 


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