Tuesday, 3 January 2017

राजनैतिकपार्टियों के कुछ मालिक यदि बेईमान न होते तो नेता बनने लायक शिक्षित योग्य और ईमानदार लोगों की देश में कमी है क्या ?

   सुयोग्य लोगों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप पद क्यों नहीं मिलने चाहिए ?इन प्रतिभाओं का आखिर होगा क्या ?
     राजनीति में टिकट पाने के हकदार या तो नेताओं के रिस्तेदार होते हैं या फिर जिनमें टिकट खरीदने की क्षमता होती है उन्हें मिलता है टिकट !नौकरी उन्हें मिलती है जिनकी जेब में घूस देने के लिए पैसे होते हैं या फिर होता है सोर्स ! घूस और सोर्स के बिना न राजनीति पूछती है और न नौकरी मिलती है !
   विद्वान् ज्ञानी गुणी प्रतिभा संपन्न लोगों की  लगता है देश को जरूरत ही नहीं है ऐसी परिस्थिति में अपराध भ्रष्टाचार बढ़ने से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए ! शिक्षित अल्पशिक्षित अयोग्य अपराधी एवं भ्रष्टाचारी लोगों को प्रत्याशी ही क्यों बनातीं  राजनैतिक पार्टियाँ !आखिर देश की विद्वत्ता प्रतिभा राजनीति के लायक क्यों नहीं समझी जाती है ? 
    जो नेता लोग संसद आदि की कार्यवाही में बोल  नहीं पाते समझ नहीं पाते ऐसे गूँगे बहरे या संस्कार भ्रष्ट लोगों का इन सदनों में काम ही क्या होता  है और ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाने के पीछे राजनैतिक पार्टियों के मालिकों का अपना लोभ क्या होता है !
      ऐसे अशिक्षित या अल्पशिक्षित लोगों का  सदनों की कार्यवाही से कोई लेना देना नहीं होता है ये तो जिस बटालियन (पार्टी) में भर्ती हुए होते हैं उसी पार्टी रूपी कंपनी के मालिक के इशारे पर इन्हें हुल्लड़ मचाने के लिए पार्टी के मालिक ने दिहाड़ी मजदूरों की तरह रखा होता है ऐसे कंपनी मालिकों को जब तक जरूरत होती है तब तक वो उनसे हुल्लड़ मचवाते हैं और जब जैसा चाहते हैं वैसा करवा लेते हैं तो बंद करवा देते हैं हुल्लड़ !ऐसे हुल्लड़ी नेताओं की आत्माएँ स्वतंत्र नहीं होती हैं इनका किया हुआ मतदान भी उन्हीं मालिकों की इच्छा के अधीन होता है । 
    हुल्लड़ी नेताओं को तब तक के लिए छुट्टी मिल जाती है जब तक किसी अन्य प्रकरण में हुल्लड़ मचवाने की जरूरत नहीं होती !ऐसे अघोषित अवकाश प्राप्त लोग अपने खली समय में या तो सदनों में ही गेम खेलते मूवी देखते देखे जाते हैं या कभी कभी सो भी लेते हैं या चाय पानी के बहाने बाहर टहलने चले जाते हैं ।
     संसद हो या विधानसभाएँ यहाँ की गतिविधियों पर अंतर्राष्ट्रीय निगाहें लगी होती हैं ऐसे सदनों में शिक्षित सदाचारी चरित्रवान और ईमानदार लोग पहुँचने चाहिए इससे देश की छवि बनती है !ऐसे सुयोग्य स्थानों में तथ्ययुक्त तर्कयुक्त सारगर्भित नई नई जानकारियों अनुभवों से युक्त आदर्शपूर्ण वक्तव्य हो सकते हैं एक दूसरे की योग्यता अनुभवों आदर्शों से हर किसी की जानकारी बढ़ रही होती उठने बैठने बोलने की प्रेरणा मिल रही होती !ऐसे पवित्र लोग संसद विधानसभा जैसे मंदिरों में देवताओं की तरह लगते !समाज के मन में उनके प्रति  स्वाभाविक आस्था होती उनकी सहज बात भी प्रमाणमान ली जाती !उन्हें अपनी बात सही सिद्ध करने के लिए कसम न खानी पड़ती !किंतु राजनैतिक पार्टियों के भ्रष्ट नेता लोग ऐसे गुणी लोगों को आगे ही नहीं आने देते हैं ।
  अपनी पार्टियों में भले लोगों को रखना कौन चाहता है !बुरे लोग कमाई करवाते हैं अच्छे लोग अपराधियों से बुरे कर्मों से कमाई करने को रोकते हैं जबकि बुरे लोग अपराधियों से भी अच्छी खासी कमाई करवा लेते हैं         राजनेता लोग अपराध करने से क्यों डरें ?नेताओं के सामने कानून तो कमजोर होता है इसीलिए तो वो लोग कभी तोड़ देते हैं कानून !
   नेताओं पर भ्रष्टाचार के अपराध  करने करवाने के चारा घोटाले के बलात्कारों के बड़े बड़े आरोप लगते हैं इसके बाद वो लोग तहत से राजनीति करते हैं अपराध करने का आरोप लगाने वाला गलत है या वो पता कैसे लगे !जो नेता लोग जेल गए भी उनकी आरती उतारा करते हैं जेलवाले !जेल से जुलूस में निकलते हैं  नेता लोग उनके चेहरे पर कभी नहीं देखी गई जेल जनित उदासी या शर्म !ऐसे परिस्थिति में  अपराध करने को कोई क्यों डरे !
    छोटे बड़े सभी बैरायटी के अपराधी बनने के लिए किसी न किसी नेता का आशीर्वाद लिए बिना लगभग असंभव सा है आप बिना हेलमेट मोटर साईकिल चलावें तो पकड़ लिए जाएँगे इतना चुस्त प्रशासन दूसरी ओर कोई अपराधी अचानक बड़े बड़े मर्डर नहीं करने लगता है शुरू शुरू में हर किसी को डर  लगता है वो डर छुटाते हैं नेता !बाद में यही अपराधी भ्रष्टनेताओं की आमदनी का स्रोत बन जाते हैं । 
     राजनीति में आने के समय दो दो पैसे के लिए परेशान लोग चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबोंपति हो जाते हैं कोई काम काज धंधा व्यापार भी करते नहीं देखे जाते नौकरी करने का समय नहीं व्यापार करने के लिए पैसे नहीं होते किंतु खर्च राजा रजवाड़ों की तरह !ये उन्हीं अपराधियों की आपराधिक आमदनी में नेताओं का भी हिस्सा होता होगा !तभी तो न अपराध घटते हैं और न नेताओं की आमदनी न खर्च !
   जनता जिनसे अपराध घटने की आशा रखती है वे ही स्वयं सम्मिलित होते हैं आपराधिक प्रवृत्तियों में !अन्यथा नेताओं की कमाई के स्रोत सार्वजानिक क्यों नहीं किए जाते !जनता का तो वो सब कुछ जान लेते हैं  उनके आयव्यय के स्रोतों का पता जनता को भी तो लगे !

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