किसी भी राजनैतिक पार्टी के द्वारा अपने किसी भी प्रत्याशी को चुनावी टिकट देते समय ये भी तो सार्वजनिक किया जाए कि उसे टिकट आखिर क्यों दिया गया उसमें ऐसे कौन से गुण विशेष थे जो पार्टी के अन्य नेताओं में नहीं थे !
'चुनावी चंदे में पारदर्शिता' एवं 'रिश्तेदारों से दूरी' तो ठीक है किंतु प्रत्याशियों के चयन के समय ही उनकी योग्यता अनुभव शिक्षा और संस्कारों को भी तो महत्त्व दिया जाए अन्यथा भ्रष्टाचारी नेता लोग अपनी कमाई करवाने के लिए अपने साथ साथ अधिकारियों और कर्मचारियों को भी भ्रष्ट बना लेते हैं इसीराजनैतिक भ्रष्टाचारके कारण तो आज अपराधियों से ज्यादा अधिकारियोंसे डरनेलगे हैं लोग !
संसद और विधान सभाएँ चर्चा का मंच हैं किंतु नासमझ नेता लोग चर्चा योग्य सदनों में तो प्रदर्शन करते हैं वहाँ चर्चा नहीं देते और रोडों पर प्रदर्शन किया जा सकता है तो वहाँ चर्चा करने के लिए जनसभाएँ करते घूमते हैं देश की राजनीति को बर्बाद करने वाले बिना पेंदी के लोटे !कभी भी कहीं से भी लुढ़कने लगते हैं चर्चा करने की योग्यता न रखपाने वाले नेता लोग !
'चुनावी चंदे में पारदर्शिता' एवं 'रिश्तेदारों से दूरी' तो ठीक है किंतु प्रत्याशियों के चयन के समय ही उनकी योग्यता अनुभव शिक्षा और संस्कारों को भी तो महत्त्व दिया जाए अन्यथा भ्रष्टाचारी नेता लोग अपनी कमाई करवाने के लिए अपने साथ साथ अधिकारियों और कर्मचारियों को भी भ्रष्ट बना लेते हैं इसीराजनैतिक भ्रष्टाचारके कारण तो आज अपराधियों से ज्यादा अधिकारियोंसे डरनेलगे हैं लोग !
संसद और विधान सभाएँ चर्चा का मंच हैं किंतु नासमझ नेता लोग चर्चा योग्य सदनों में तो प्रदर्शन करते हैं वहाँ चर्चा नहीं देते और रोडों पर प्रदर्शन किया जा सकता है तो वहाँ चर्चा करने के लिए जनसभाएँ करते घूमते हैं देश की राजनीति को बर्बाद करने वाले बिना पेंदी के लोटे !कभी भी कहीं से भी लुढ़कने लगते हैं चर्चा करने की योग्यता न रखपाने वाले नेता लोग !
जो विद्वान् अनुभवी एवं भाषा पर अधिकार रखने वाले सिद्धांत वादी लोग हैं उन्हें राजनैतिक दलों के मालिक अपना प्रत्याशी इसलिए नहीं बनाते हैं कि ये जिंदा लोग यदि चुनाव जीतकर वहाँ पहुँच गए तो राजनैतिक हुड़दंगियों का पत्ता तुरंत काट देंगे और टिकट बेचने वाले ठेकेदारों की कर देंगे छुट्टी क्योंकि उन्हें पता होता है कि संसदीय चर्चाओं को ये अपनी बुद्धि से समझेंगे अपनी आत्मा की तराजू पर तौलेंगे और अपने अनुभवों के आधार बोलेंगे !इन्हें पार्टी मालिकों का गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता है !इसलिए सबसे अच्छा है ऐसे जिन्दा लोगों को चुनावों में टिकट ही न दो !
राजनैतिक दलों के मालिकों की स्थिति कुछ वैसी होती है जैसे बैलों से खेती करने वाले किसान होते हैं किसानों को पता होता है कि किसी बैल को यदि बैल बना रहने दिया गया तो उससे खेत नहीं जोता जा सकता क्योंकि वो भी स्वतंत्र रहना चाहेगा इसलिए चालाक किसान लोग उस बैल को बैल नहीं रहने देते उसे बधिया करके हिजड़ा बना देते हैं और अपने मन मुताबिक जोता करते हैं खेत ! राजनैतिक पार्टियों के मालिक भी योग्य अनुभवी सिद्धांत वादी और चरित्रवान लोगों को पचा कहाँ पाते हैं वो तो गले में पट्टा बाँध कर उसकी रस्सी अपने हाथों में रखते हैं और जब देख लेते हैं कि जोर जोर भौंकता है और हमारे लिए भौंकता है तब पकड़ा देते हैं उसे चुनावी टिकट !प्रत्याशियों के चयन में वैचारिक नपुंसकता का प्रोत्साहन क्यों ?
राजनीति में आते समय सभी नेता लोग प्रायः गरीब परिवारों से आते हैं किंतु चुनाव जीतते ही अचानक करोड़ों अरबोंपति हो जाते हैं !प्रायः वो धन इनका अपना कमाया हुआ नहीं होता क्योंकि कमाएँगे कैसे व्यापार करने के लिए इनके पास न समय होता है और न धन और नौकरी करते ये देखे नहीं जाते हैं !फिर कमाई हुई कैसे ?वैसे भी इतने ही काबिल थे तो चुनाव जीतने के पहले क्यों नहीं कर ली थी ऐसी कमाई !सीधी सी बात है कि वो भ्रष्टाचार के द्वारा ही की गई कमाई होती है ऐसा आरोप भी नेता लोग प्रायः अपनी विरोधी पार्टियों के नेताओं पर लगाया करते हैं उनके तरह तरह के प्रूफ भी दिया करते हैं किंतु सरकारों में आने के बाद ये भ्रष्टाचारी अपने विरोधियों की जाँच नहीं करवाते हैं इन्हें पता होता है कि आज हम इन्हें पकड़ेंगे तो कल ये हमें भी तो पकड़ेंगे !
एक बार एक पुलिस वाले से पूछा गया कि अपराधियों को पकड़ने के लिए पहले तो आप कुत्तों का उपयोग किया करते थे अब उनका उतना उपयोग नहीं दिखाई देता है तो उस पुलिस वाले ने कहा कि अब इसलिए नहीं करते हैं कि कुत्ते हम लोगों के ही घरों में घुस आते हैं और हमें ही पकड़कर खड़े हो जाते हैं !ठीक यही स्थिति नेताओं की है ये विरोधी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप तो लगाया करते हैं किंतु जाँच नहीं करवाते हैं क्योंकि इस जाँच की आँच उन पर भी आने का भय बना रहता है ! इसलिए केवल आरोप लगाया करते हैं बस !
एक बार एक पुलिस वाले से पूछा गया कि अपराधियों को पकड़ने के लिए पहले तो आप कुत्तों का उपयोग किया करते थे अब उनका उतना उपयोग नहीं दिखाई देता है तो उस पुलिस वाले ने कहा कि अब इसलिए नहीं करते हैं कि कुत्ते हम लोगों के ही घरों में घुस आते हैं और हमें ही पकड़कर खड़े हो जाते हैं !ठीक यही स्थिति नेताओं की है ये विरोधी पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप तो लगाया करते हैं किंतु जाँच नहीं करवाते हैं क्योंकि इस जाँच की आँच उन पर भी आने का भय बना रहता है ! इसलिए केवल आरोप लगाया करते हैं बस !
सरकारी कर्मचारियों की यूनियनों का मतलब क्या है सीधी सी बात जो व्यवस्था मिल रही है उसमें काम कर सकते हो तो करो नहीं कर सकते हो तो त्याग पत्र दो उसके लिए यूनियन का क्या काम !
ऐसी यूनियन बनाने वाले कर्मचारी भ्रष्टाचारी कामचोर आदि सारे दुर्गुणों से संपन्न होते हैं चूँकि काम करने में उनका अपना मन नहीं लगता है इसलिए वो औरों को भी डिस्टर्ब करने के लिए आफिसों में राजनीति करने लगते हैं और अपने कर्तव्य का पालन न करके आफिस टाइम में यूनियन बनाने और उसका काम काज देखने कर्मचारियों से संपर्क करने पार्टी करने आदि में अपना समय तो बर्बाद करते ही हैं साथ ही अन्य ईमानदार कर्मचारियों का समय भी बर्बाद करते हैं ऐसे कुकर्मों को करते रहने के बाद भी सैलरी उठाया करते हैं !
भ्रष्ट सरकारें ये सबकुछ जानते हुए भी उन पर अंकुश इसलिए नहीं लगा पाती हैं क्योंकि उनकी सरकारों में सम्मिलित नेताओं की आमदनी भी तो उन्हीं भ्रष्ट लोगों ने ही करवाई होती है कोई मंत्री जनता से सीधे तो माँगता नहीं है इसलिए उन भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने का मतलब होता है अपने लिए कुआँ खोदना !उनकी इसी कमजोरी का लाभ सरकारी कर्मचारी हमेंशा उठाया करते हैं और पोल खोलने की धमकी दे देकर सरकारों को ब्लैकमेल किया करते हैं तथा हड़ताल पर चले जाते हैं !भ्रष्ट सरकारें उन्हें सस्पेंड करने के बजाए उनके पीछे पीछे घूमती हैं उन्हें मनाने के लिए !सरकारें ईमानदार हों तब जब ईमानदार प्रत्याशियों को राजनीति में घुसने दिया जाए !
ऐसी यूनियन बनाने वाले कर्मचारी भ्रष्टाचारी कामचोर आदि सारे दुर्गुणों से संपन्न होते हैं चूँकि काम करने में उनका अपना मन नहीं लगता है इसलिए वो औरों को भी डिस्टर्ब करने के लिए आफिसों में राजनीति करने लगते हैं और अपने कर्तव्य का पालन न करके आफिस टाइम में यूनियन बनाने और उसका काम काज देखने कर्मचारियों से संपर्क करने पार्टी करने आदि में अपना समय तो बर्बाद करते ही हैं साथ ही अन्य ईमानदार कर्मचारियों का समय भी बर्बाद करते हैं ऐसे कुकर्मों को करते रहने के बाद भी सैलरी उठाया करते हैं !
भ्रष्ट सरकारें ये सबकुछ जानते हुए भी उन पर अंकुश इसलिए नहीं लगा पाती हैं क्योंकि उनकी सरकारों में सम्मिलित नेताओं की आमदनी भी तो उन्हीं भ्रष्ट लोगों ने ही करवाई होती है कोई मंत्री जनता से सीधे तो माँगता नहीं है इसलिए उन भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने का मतलब होता है अपने लिए कुआँ खोदना !उनकी इसी कमजोरी का लाभ सरकारी कर्मचारी हमेंशा उठाया करते हैं और पोल खोलने की धमकी दे देकर सरकारों को ब्लैकमेल किया करते हैं तथा हड़ताल पर चले जाते हैं !भ्रष्ट सरकारें उन्हें सस्पेंड करने के बजाए उनके पीछे पीछे घूमती हैं उन्हें मनाने के लिए !सरकारें ईमानदार हों तब जब ईमानदार प्रत्याशियों को राजनीति में घुसने दिया जाए !
देश की राजनीति में बहुमत प्रायः असभ्य अयोग्य अशिक्षित या अल्पशिक्षित लोगों के हाथ में रहता है वो अपने अनुकूल बना लिया करते हैं कानून !इसलिए चोरी छिनारा हत्या बलात्कार लूट पाट आदि की जितनी भी घटनाएँ होती हैं उनके विरोध में भाषण बहुत और काम बिलकुल न के बराबर होता है क्योंकि उसमें नेताओं का इन्वाल्वमेंट रहता है अपराधियों को पकड़ने पर उनकी भी पोल खुलती है । वैसे भी सबसे ज्यादा झूठ बोलने धोखाधड़ी करने वाले अकर्मण्य और अमर्यादित लोग पहुँचते ही राजनीति में हैं !जनता उनकी बातों पर भरोसा करने जैसे अपने पाप का फल हमेंशा से भोगती रही है आज तक !चरित्रहीन शिक्षाहीन संस्कारहीन सिद्धांतहीन शर्महीन सभ्यताहीन निर्लज्ज एवं अयोग्य लोगों का अड्डा बन चुकी है राजनीति ! हे प्रधानमंत्री जी ! इस ब्लैक पॉलिटिक्स को कैसे ह्वाइट कैसे किया जाए !
ये सबको पता है कि सभी प्रकार के अपराधियों की जड़ें राजनीति में ही होती हैं सबसे ज्यादा अयोग्य और अनुभव विहीन लोग राजनीति में ही होते हैं इसीलिए जो किसी लायक न हो उसे राजनीति में घसीट लेते हैं उनके आका लोग !
यहीं से ऊर्जा मिलती रहती है उन्हें !सरकारी मशीनरी से मदद पा रहे होते हैं अपराधी किंतु सरकार में सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की क्षमता नहीं है या भ्रष्ट मशीनरी ही भ्रष्ट नेताओं की कमाई का साधन है इसलिए भ्रष्टाचार के विरोध पर बड़े बड़े भाषण देने वाले सरकारी नेता लोग नहीं पकड़ते हैं भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट कर्मचारियों को !इन भ्रष्टाचारियों के सुधरते ही सबकुछ सुधर जाएगा किंतु इन्हें सुधारे कौन जो खुद सुधरना चाहता हो वही न !
नोटबंदी जैसे कड़े फैसले लेने के बाद प्रधान मंत्री जी ने लीक से हटकर अच्छा काम करने की कोशिश की है ईश्वर उन्हें दीर्घायुष्य प्रदान करे !
नोटबंदी जैसे कड़े फैसले लेने के बाद प्रधान मंत्री जी ने लीक से हटकर अच्छा काम करने की कोशिश की है ईश्वर उन्हें दीर्घायुष्य प्रदान करे !
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