Tuesday, 10 January 2017

चुनाव

 आदरणीय चुनाव आयुक्त महोदय  
                                         सादर  नमस्कार !
         महोदय,
          चुने हुए कुछ सांसदों विधायकों के बिगड़ते बयानों ब्यवहारों संस्कारों भ्रष्टाचारों से देश की लोकतांत्रिक आत्मा को आघात पहुँचना स्वाभाविक है। भिन्न भिन्न राजनैतिक दलों के नेता लोग एक दूसरे दल के नेताओं पर भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाते समय मर्यादा की सारी सीमाएँ लाँघ जाते हैं किंतु जाँचों में निकलकर कुछ नहीं आता है या निकाला  नहीं जाता है !इसी प्रकार से चुनावों के समय बड़े बड़े वायदे ,आश्वासन आदि जो भी किए दिए जाते हैं चुनावों के बाद वो प्रायः भुला दिए जाते हैं !जन प्रतिनिधियों के ऐसे व्यवहारों से जनप्रतिनिधियों के प्रति जनता का भरोसा टूटता जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए चिंता जनक है ।
        जन प्रतिनिधि लोग प्रायः सामान्य या गरीब घरों से आते हैं किंतु चुनाव जीतने के बाद उनकी चल अचल संपत्तियाँ अचानक बढ़ने लगती हैं और पर्वताकार हो जाती हैं किंतु इन संपत्तियों के स्रोत समझाने के लिए  समाज को कोई संतोष जनक उत्तर नहीं दिया जाता है  इन संपत्तियों को जुटाने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर किया गया कोई नौकरी या व्यापार आदि प्रयास दिखाई नहीं देता है फिर इन संपत्तियों के संचय का अनुत्तरित प्रश्न लोकतान्त्रिक विश्वसनीयता पर संशय पैदा करता है !
         संसद आदि चर्चा योग्य सदनों में अशिक्षा या अल्प शिक्षा के कारण जो सदस्य अपनी बात कहने और दूसरे सदस्यों की बात समझने की क्षमता नहीं रखते हैं अपनी पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के आदेशानुसार मतदान कर देते हैं या उन्हीं के इशारे पर शोर शराबा आदि करने लगते हैं ! ऐसे जनप्रतिनिधियों की पराधीनता अयोग्यता अनुभव हीनता उनके मत को महत्त्वहीन सिद्ध करती है !ऐसे लोगों के समर्थन या विरोध का मतलब उस पार्टी के शीर्ष पर बैठकर आदेश दे रहे दो चार लोग ही होते हैं जो दल के सारे सदस्यों को भेड़ बकरियों की तरह हाँक रहे होते हैं उन दोचार लोगों की आज्ञा पालन करना ही तो संसदीय प्रणाली का प्रयोजन नहीं होता है ।
       राजनैतिक पार्टियों में बनाए जाने वाले पार्टी पदाधिकारियों के पद हों या चुनावों में पार्टियों के द्वारा चयन किए जाने वाले प्रत्याशियों के नामों के चयन की प्रक्रिया लोकतान्त्रिक और पारदर्शी न होने के कारण विश्वसनीय नहीं है न होने के कारण

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