Wednesday, 18 January 2017

सरकारी अधिकारी कर्मचारी हों या नेतालोग लोकतंत्र का तमाशा बनाए घूम रहे हैं सब !

    सरकारी विभागों की घूस खोरी और राजनैतिक दलों के द्वारा की जाने वाली चुनावी टिकटों की बिक्री ने लोकतंत्र को निष्प्राण कर दिया है अब तो गरीबों ग्रामीणों किसानों की सहनशीलता पर ही टिका हुआ है लोकतंत्र !जिस दिन वो बौखलाए उस दिन क्या होगा ! 
   घूसखोरी सरकारी सिस्टम की सच्चाई है जैसे सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देना सरकार की मज़बूरी है वैसे ही घूस लेना कर्मचारियों की मज़बूरी है काम करवाने के लिए घूस देना जनता के लिए जरूरी है !हर किसी की अपनी अपनी दलीलें हैं !
      नंबर दो का काम करने वालों का मानना है कि यहाँ सरकारी विभागों में इतना अधिक भ्रष्टाचार है कि नंबर एक में चल ही नहीं पाएगा व्यापार !हर किसी को पैसे चाहिए । 
     घूस लेने वालों का मानना है कि नौकरी पाना  हो या प्रमोशन लेना हो इसके लिए न शिक्षा न योग्यता और न ही उसके द्वारा किए हुए अच्छे काम का ही कोई ध्यान देता है जैसी घूस वैसी नौकरी  प्रमोशन आदि सबको मिला करता है !
     घूस लेकर नौकरी और प्रमोशन आदि देने वालों का मानना होता है कि किसी कर्मचारी की अच्छी शिक्षा या उसके काम की गुणवत्ता मेरे किस काम आएगी घूस  का पैसा तो सीधे अपने घर जाएगा !घूस लेना गलत है यदि ऐसा सोचे भी तो इनकी शिक्षा और योग्यता पर कितना भरोसा किया जाए !जब घूसखोर अधिकारी कर्मचारी एक से एक अनपढों को टॉपर घोषित कर  सकते हैं तो इनकी पढ़ाई और योग्यता पर कैसे विश्वास कर लिया जाए !ऐसे अयोग्य लोग भी यदि नौकरी और प्रमोशन चाहते हैं तो ये गलत नहीं है क्या ?और इसका दंड इन्हें क्यों नहीं मिलना चाहिए !इसलिए इनसे घूस लेना अधर्म नहीं अपितु धर्म है । 
      नौकरी और प्रमोशन पाने के इच्छुक अयोग्य लोग सोचते हैं कि कुछ पैसे यदि पास करने वाले ने ले लिए कुछ नौकरी दिलाने वाले ने तो कुछ प्रमोशन दिलाने वाला भी ले लेगा ये तो उसका हक़ बनता है मैंने कुछ पढ़ा लिखा भी तो नहीं था वैसे भी पढ़ते  लिखते भी तो जब कॉपी जाँचने वाले ही नहीं पढ़े लिखे होंगे या उनके घर वाले और नौकरों आदि को ही कापियाँ जाँचनी हैं तो उनके लिए क्या  पढ़े लिखे और क्या अनपढ़ !उन्हें तो दर्जन के हिसाब से पैसे मिलते हैं वे क्यों और कैसे पढ़ने जाएँ कि बच्चे ने लिखा क्या है !
    वैसे भी अकेले हमारे घूस देकर नौकरी पाने में गलत क्या है जब नौकरी पाने का सिस्टम ही यही बन चुका है और जो सिस्टम का पालन नहीं करेगा वो आउट हो जाएगा !इसीलिए तो आज एक से एक पढ़े लिखे लोग खेती मजदूरी करते घूम रहे हैं और अयोग्य लोग भोग रहे हैं सारी सरकारी सुख सुविधाएँ ! आज भी यदि परीक्षा लेने वाले या पढ़ाने वाले शिक्षकों की भी ईमानदारी से परीक्षा ले ली जाए तो सरकारी सिस्टम में नौकरियों पर लगे आधे लोगों का भी पास होना कठिन हो जाएगा !प्रायः सभी घूस और सोर्स के बल  हैं हो सकता है कि कुछ लोग योग्यता और ईमानदारी के बल पर भी लगे हों किंतु उनकी शिक्षा कितनी होगी !
     सरकारी कर्मचारियों की अयोग्यता की कहानी कहने के लिए सरकारी सेवाएँ प्रत्यक्ष प्रमाण हैं सरकारी स्कूल अस्पताल डाक व्यवस्था फ़ोन व्यवस्था आदि सब पर भारी पड़ रही हैं इन्हीं क्षेत्रों से संबंधित प्राईवेट सेवाएँ !यहाँ तक कि प्रायः सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी सरकारी सेवाओं पर भरोसा नहीं करते हैं!सरकारी स्कूलों में कितने प्रतिशत  पढ़ाते हैं अपने बच्चे ! इसका सीधा सा कारण सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की अयोग्यता है या कामचोरी !स्कूल शिक्षकों के नाम से ,अस्पताल चिकित्सकों के नाम से और मंदिर पुजारियों के नाम से जाने जाते हैं जिस मंदिर को लोग केवल इस नाम से जानते हों कि वहाँ प्रसाद खूब बँटता है इसका मतलब वहाँ का पुजारी मूर्ख है अन्यथा पुजारी के नाम पर पहचान होनी चाहिए थी !
   जैसे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई होती है तो लोग अपने बच्चे भी पढ़ाते हैं फीस भी देते हैं और हाथ पैर भी जोड़ते हैं क्योंकि वहाँ के योग्य शिक्षक अपनी जिम्मेदारी निभाना जानते हैं वहीँ दूसरी ओर सरकारी भ्रष्ट लोगों को  कामचोर अकर्मण्य अनपढ़ आदि मानकर लोग कितनी घृणा से देखते होंगे उन्हें !इसीलिए तो अच्छे लोग सरकारी स्कूलों में भेजकर अपने बच्चों की जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहते हैं !अपने कामचोर शिक्षकों की गुडविल बनाए रखने के लिए सरकार भोजन वस्त्र कापी किताबें पैसे आदि सबकुछ बाँटते घूम रही है फिर भी अच्छे परिवारों के बच्चे बुलाए बुलाए भी नहीं आते हैं सरकारी स्कूलों में !सरकार को लीपा पोती करने के बजाए आखिर उनसे ही क्यों नहीं पूछना चाहिए कि आपके स्कूलों को लोग इतनी गिरी निगाह से क्यों देखते हैं पचासों हजार की सैलरी लेकर यदि आप अपनी और अपने स्कूल की गुडबिल भी नहीं बना पाए तो मर जाना चाहिए चिल्लू भर पानी में डूब कर !
      सरकारी नौकरियों में अक्सर देखा जाता है कि अपने दायित्व के प्रति किसी का विशेष समर्पण ही नहीं होता है और न ही कोई लक्ष्य होता है और न अपने संस्थान की इज्जत से ही कोई लगाव होता है न ही कोई उत्साह होता है मुर्दों की तरह शरीर ढोए घूम रहे हैं लक्ष्य भ्रष्ट कर्मचारी !सुबह शरीर ले जाकर आफिस में रख देते हैं और शाम को लाकर घर वालों को सौंप देते हैं । आफिस में आफिस वाले जो चाहें करवा लें और घर में घर वाले जहाँ चाहें जोत लें !ऐसे अनुत्साहित जीवन की अपेक्षा परिश्रम करके कमाने खाने वालों का कभी नहीं गिरता है उत्साह !किसानों मजदूरों में भी जो उत्साह देखा जाता है अक्सर वो भी नहीं होता है सरकारी कर्मचारियों में ! यही कारण है कि सरकारी विभागों और आफिसों की दिनोंदिन भद्द पिटती जा रही है !
     जिस अफसर के कार्यकाल में जिस विभाग से संबंधित कोई भी अपराध हुआ हो उस अपराध और अपराधी को पकड़ने से पहले उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को पकड़ कर पूछा जाना चाहिए कि आप इसे रोक क्यों नहीं पाए !आपको  जानकारी थी या नहीं यदि थी तो क्यों नहीं रोक पाए आप !आखिर जिसे सैलरी दी जाती है उसकी जिम्मेदारी क्यों नहीं सुनिश्चित की जानी चाहिए !
   इसी प्रकार से सरकारी जमीनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभालने वाले अधिकारी कर्मचारी लोग ही घूस ले ले कर कब्ज़ा करवाया करते हैं !जो रोके उससे कहते हैं एप्लिकेशन दो तो कार्यवाही करें किंतु यदि वो शिकायती पत्र दे दे तो यही लोग भूमाफियाओं को वो पत्र दिखाकर शिकायत करने वाले की वो  धुनाई करवाते हैं कि उसके बाद शिकायत करने की कोई हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है और सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करा देते हैं यही सरकारी लोग !
    ऐसे घूस खोर लोग सरकार की नाक कटाने के अलावा देश और समाज के किसी काम तो नहीं आ पा रहे हैं फिर भी सरकार न केवल उन्हें सैलरी दिए जा रही है अपितु भारी भरकम धनराशि देती है क्यों आखिर किस ख़ुशी में !जिन्होंने सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करवाया उन अधिकारियों कर्मचारियों पर कठोर कार्यवाही क्यों नहीं ?
    सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपराधियों पर इसी लिए नियंत्रण नहीं कर पाते हैं क्योंकि अपराधी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं जबकि सरकारी कामकाज की शैली को देखकर किसी को नहीं लगता कि ये अपने दायित्व के लिए गंभीर हैं !अपराधी और आतंकवादी लोग अपने लक्ष्य साधन के प्रति इतने अधिक समर्पित होते हैं कि उनका लक्ष्य प्रायः चूकता नहीं है जबकि सरकारी कर्मचारियों का पहली बात तो कोई लक्ष्य नहीं दिखता है दूसरी बात यदि कोई लक्ष्य बनावें भी तो उसे पूरा करने में भारी लापरवाही देखी  जाती है !सच्चाई तो ये है कि जैसे आतंकवादियों के रखे गए विस्फोटक उनके द्वारा निर्धारित समय और स्थान पर ही फिट किए जाते हैं और फूटते भी हैं किंतु यही काम यदि सरकार के आम कर्मचारियों का होता तो ये ये विस्फोटक समय पर नहीं फिट होता उस  स्थान पर नहीं पहुँच पाते और जहाँ कहीं रखते वहाँ वो फूटता भी या नहीं इसका किसी को भरोसा ही नहीं होता !भ्रष्टाचार का तो आलम ये है कि कहो बारूद की जगह मिट्टी ही भरी होती उनमें !
         इसलिए  घूस देकर काम करा लेना जनता की  मज़बूरी है जनता घूस देकर न काम करावे तो जनता के पास ऐसे कोई अधिकार भी तो नहीं होते हैं जिनका प्रयोग करके वो अपना काम करवा ही लेते !जनता के पास तो घूस बल का ही सहारा बचा है जिन नौकरियों को पाने और प्रमोशन में योग्यता और अच्छाइयों का कोई खास महत्त्व ही न हो केवल घूस  और सोर्स ही सब कुछ हो तो ऐसी नौकरी पाने के लिए कोई पढ़े क्यों और  प्रमोशन पाने के लिए कोई अच्छा काम क्यों करे !
   कोई अच्छा पढ़ भी ले और परीक्षा भी अच्छी दे आवे किंतु जब कापियाँ  जाँचने वालों को ही कुछ नहीं आता होगा या आता भी होगा तो वो न जाँचते हों कापियाँ अपितु उनके घर वाले या नौकर लोग जाँच देते हों कापियाँ और घूसखोर अनपढ़ अफसर लोग मूर्खों को भी टॉपर बना देते हों !उस देश की प्रतिभाओं का क्या कहना !
     नोटबंदी अभियान  में ही देखिए सरकार ने जिन कालेधन वालों के विरुद्ध अभियान छेड़ रखा था उसी समय कुछ गद्दार कर्मचारी उन्हीं काले धन वालों के गोदामों में रखे नोट बदलते चले जा रहे थे !क्योंकि वहाँ तो उन्हें घूस का लालच था जो मिलनी जरूरी थी !जबकि सरकार से केवल सैलरी लेनी होती है वो निश्चित होती है जबकि सरकार अनिश्चित होती है ऐसे में जो कर्मचारी प्रधानमंत्री जी की बातों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं देते हैं वो आम जनता की जरूरतों और बातों पर  कितना ध्यान दे पा रहे होंगे !          
   घूस और सोर्स के बल पर नौकरी पाने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए घूस लेना जरूरी है उन्हें सैलरी देना सरकार की मज़बूरी है !नहीं देगी तो कोर्ट जाकर ले लेंगे !सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देना जनता की मजबूरी है क्योंकि जनता के पास इसके अलावा कोई अधिकार ही नहीं होते हैं !                          चुनाव लड़ने वाले कितने प्रत्याशियों का चयन राजनैतिक दल योग्यता के आधार पर करते हैं टिकट पाने वाले प्रत्याशियों की ऐसी योग्यता क्या घोषित कर सकते हैं राजनैतिक दल जो उस क्षेत्र के अन्य कार्यकर्ताओं में न हो !
    इसी प्रकार से नौकरी देते समय कितने लोग योग्यता के आधार पर हासिल कर पाते हैं नौकरी !क्या सरकार उनके नाम विश्वास पूर्वक सार्वजानिक कर सकती है !     कुल मिलाकर घूस देने को पैसा हो तो चुनावी टिकट भी मिलती है और नौकरी भी !इसी का नाम है लोकतंत्र !इस सच्चाई को जो नहीं स्वीकार करता है वो लोकतंत्र विरोधी !
    आप किसी पार्टी से पूछ लो कि प्रत्याशियों के चयन में किस योग्यता  का परीक्षण करते हैं आप !तो बोलती बंद हो जाएगी !इसी प्रकार सरकारी नौकरियाँ जिन्हें जो परीक्षा देकर  मिलीं हों उनकी आज वो परीक्षाएँ लेकर देख लो आधे से अधिक फेल हो जाएँगे भ्रष्टाचार के द्वारा नौकरी पाने वालों के चेहरे चमककर सामने आ जाएँगे !करोड़ों में वैकेंसियाँ खाली हो जाएँगी !योग्य लोगों को नौकरी मिले अयोग्य लोगों को बहार किया जाए किन्तु इस करे कौन जो ईमानदार हो वही न किंतु ईमानदार है कौन !सरकार ईमानदार और कर्मठ होती और उसे अपने कर्मचारियों से काम लेने की अकल ही होती तो उसे अपने कर्मचारियों से काम लेना आता न होता !सरकारी लोग तो सरकारी कर्मचारियों को सैलरी बाँटने और बढ़ाने के टट्टू हैं बस !इनसे काम लेना तो प्राइवेट लोगों को ही आता है ये सुनते ही उन्हीं की हैं !घूस पाते ही एक्टिवेट होने लगते हैं उनके अंग प्रत्यंग !
   इन  कर्मचारियों को सैलरी देगी नहीं तो ले कहाँ जाएगी सरकार कोर्ट में लड़कर ले लेंगे सरकार को बदलकर ले लेंगे नेताओं से जुगाड़ भिड़ाकर ले लेंगे !सैलरी  हासिल करने के सौ जुगाड़ किंतु घूस मिलने का कोई नहीं और इसमें कोई ह मदद भी नहीं करेगा इसलिए पहले घूस लो बाद में सैलरी माँगो !सरकार दे तो ठीक न दे तो हड़ताल पर चले जाओ !हड़ताल में मस्ती की मस्ती ऊपर से सैलरी भी उसके ऊपर से  माफी भी मंगवाने का मौका मिलता है बारी राजनीति और बारी सरकार !सब का भ्रष्टाचार जब तक जनता भोगे तब तक लोकतंत्र अन्यथा किस बात  का लोकतंत्र !
      राजनीति सभी प्रकार के अपराधियों का अपना आँगन है जिसका आँगन उसी को निकालना चाहते हैं कुछ ईमानदार लोग ! 
  ईमानदारों ने नोटबंद किए तो बेईमानों ने  नोट  बदल लिए आखिर क्या बिगड़ गया उनका !यही न कि सौ के सत्तर मिले तो क्या हुआ सरकार से सैलरी लेने वाले बैंक वालों को घूस का लालच देकर ठाट से करवाई अपनी नौकरी सरकार देखती रह गई !भ्रष्टाचारियों ने ठेंगा दिखा दिया सरकार को ! ईमानदारी की अपेक्षा बेईमानी वाले काम ज्यादा आसानी से होते हैं !घर चलकर दे जा रहे थे नए नए नोट जिसे जितने चाहिए उतने मिल रहे थे जो उन्हें घूस देता था उसे देते थे किंतु जिसने घूस नहीं दी उन्हें लगना पड़ा लाइनों में !किसी नेता किसी रईस व्यक्ति को बैंकों के आगे नहीं देखा गया लाइनों में लगते सब जान गए कि जो लाइनों में खड़े सो ईमानदार और जो नहीं खड़े हुए वे बेईमान !आखिर क्या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ी होगी !क्यों वो खाना नहीं खाते थे !सबको जरूरत थी किंतु उन्हें बेईमानी से मिल रहा था और ईमानदारी से पाने के लिए लोग लाइनों में डम तोड़ रहे थे !
    वेश्याएँ अपना शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं जबकि राजनीति तो वो भी छीन लेती है !     
 राजनीति बहुत कठोर एवं सबसे बड़ा पापकर्म है मूर्खों का मनोबल बढ़ाती है और ज्ञानियों को अपमानित करवाती है अपराधियों के आकाओं का कद बड़ा करती है अपराध समाप्त करने वालों को समाप्त करती है राजनीति !मेहनत करके ईमानदारी पूर्वक कमाने खाने वालों को तंग करती है राजनीति और कामचोरों बेईमानों लुच्चों लुटेरों को महिमा मंडित करती है राजनीति !हर प्रकार के अपराधियों और अत्याचारियों को जन्म देती है राजनीति !
   वस्तुतः सेवा विहीन सैलरी लेने वाले नेताओं के द्वारा की जा रही राजनीति सबसे बड़ा पाप है इसीलिए भले लोग राजनेताओं के अत्याचार सह लेते हैं इनका बोला गया हर वाक्य सौ प्रतिशत झूठ मानकर भी सुन लेते हैं इनकी हर हरकत बर्दाश्त कर लेते हैं किन्तु राजनीति में जाना पसंद नहीं करते !बड़े बड़े  पढ़े लिखे अधिकारी इन बहुसंख्य अल्पशिक्षित संस्कार भ्रष्ट सांसदों विधायकों मंत्रियों की गालियाँ सुन लेते हैं इनके द्वारा किया जाने  वाला अपमान सह लेते हैं किंतु नौकरी छोड़कर राजनीति नहीं करते हैं ।
      प्रायःअशिक्षित या अल्पशिक्षित संस्कार विहीन अच्छी बोली भाषा से हीन अच्छे कर्मों से विहीन अच्छी भावना से विहीन कठोर एवं कपटी हृदय वाले लोग  राजनीति में जाते हैं ऐसे लोगों की ड्यूटी होती है कि ये देश और समाज के हित  की विकासकारिका अपनी बातें सदनों में उठावें औरों के बिचार जानें किन्तु बुद्धि विहीन अल्प शिक्षित नेता लोग कम पढ़े लिखे होने के कारण अपनी कह नहीं सकते औरों  की समझ नहीं सकते तो सदनों में बैठकर चर्चा के समय भी मोबाईल पर मनोरंजन किया करते हैं चर्चा छोड़कर बाहर घूमने फिरने चले जाते हैं या सदनों में अपनी कुर्सियों पर ही सो जाते हैं और मौका मिलते ही शोर मचाकर बंद करवा देते हैं कार्यवाही !किंतु यदि उनके ये सारे उपद्रव किसी जिम्मेदार व्यक्ति को बुरे लग रहे होते तो ऐसे अयोग्य नेताओं को चुनावों में प्रत्याशी ही क्यों बनाया जाता क्या पढ़े लिखे शिक्षित शालीन लोगों की देश में कमी है क्या किंतु शिक्षित और शालीन लोग राजनीति के पिछले दरवाजे से भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे ये सबको डर होता है इसलिए इन लोगों की हमेंशा कोशिश रहती है कि अच्छे लोगों को राजनीति में आने ही न दिया जाए !इसलिए अपने ही उपद्रवी नाते रिस्तेदारों घर खानदान  वालों को पार्टियों में भर लिया करते हैं कुछ टिकटें बचीं तो बेच लेते हैं खर्चा पानी निकल  जाता है फिर बेशर्मी का मुख लेकर निकलते हैं जनता से वोट माँगने !अरे निर्ल्लज्ज लोगो !जिस जनता को तुम पार्टियों का पद देने लायक नहीं समझते टिकट देने लायक नहीं समझते उसके दरवाजे वोट लेने क्यों पहुँच जाते हैं आप !
   प्रायः सामान्य  परिवारों से आने वाले नेता लोग जब राजनीति में आए थे तब जिनकी जेब में किराया नहीं होता था वो आज करोड़ों अरबोंपति हैं किंतु कैसे ? फुलटाइम राजनीति करने वाले नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न धन था न समय था सैलरी इतनी थी नहीं कंजूसी से रहना ये जानते नहीं हैं फिर भी अरबों का अंबार !ये हैं भ्रष्टाचारी और यहाँ ही छिपा है भ्रष्टाचार का सारा धन !किंतु भ्रष्टाचारी नेताओं का भ्रष्टाचार न कभी पकड़ा गया है और न पकड़ा जा सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाने वाले अधिकारियों की बागडोर भ्रष्टाचारी नेताओं के हाथ में ही रहनी है इस सच्चाई को वो भी समझते हैं सारा देश जानता है यदि इस देश में कोई भी ईमानदार प्रधानमंत्री आ भी जाए तो भी वो सारे देशवासियों पर गरज बरस लेगा किंतु नेताओं के गिरेबान में हाथ डालने की हिम्मत उसकी भी नहीं पड़ेगी यदि उसने ऐसा करने की कोशिश की भी तो सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी जाएगी ऊपर से शोर मचाया जाएगा !
     सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करवाकर बस्तियाँ बसाने के बाद उन कालोनियों के नियमितीकरण के लिए आंदोलन करने वाले पापी समाज से कालाधन निकलने का नाटक करते हैं अरे पकड़ना ही है ईमानदारी की थोड़ी भी लज्जा है तो पहले नेताओं की संपत्तियों का हिसाब दो बाद में जनता का कालाधन पकड़ो !
  राजनीति सबसे गंदा  धंधा बन  गया है ये सेवा धर्म पर आश्रित थी जो आज संपत्तियाँ इकट्ठी करने का साधन बनी हुई है !राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को बार बार धिक्कार !!
    राजनैतिक भ्रष्टाचार और कामचोरी की लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ी है कि पढ़ाई चोर विद्यार्थियों ने स्कूलों में राजनीति शुरू कर दी है तथा कामचोर और हराम की कमाई खाने के शौक़ीन भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों ने ड्यूटी टाइम में यूनियनें बना बनाकर राजनैतिक पाप करना शुरू कर दिया है उन मक्कारों को ये पता नहीं है कि उनके इस समय की भी सैलरी उन्हें जनता के खून पसीने की कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसों से दी जाती है फिर भी वो हड़ताल किया करते हैं !अरे  संतुष्ट नहीं हो तो त्यागपत्र दो जगह खाली करो औरों को मौका दो हड़ताल करने की क्या जरूरत !सर्कार यदि भरष्ट न हो ईमानदार हो तो हड़तालियों को सस्पेंड करके नए लोगों को नौकरी दे किन्तु सरकारों बैठे लोग काली कमाई करवाते उन्हीं से हैं आज ये सस्पेंड कर देंगे तो कल वो इनकी पोल खोल देंगे !

     वेश्याओं को भी पता है कि राजनीति सबसे बड़ा कमाऊ धंधा है राजनीति में अपार संपत्ति एवं भारी भरकम सुख सुविधाएँ हैं सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा आदि सारे सुख हैं ,काम केवल चुनाव जीतना इसी बल पर सारे राजभोग   भोगते हैं राजनेता ! चुनाव तो वेश्याएँ भी औरों की अपेक्षा अधिक आसानी से जीत सकती हैं उनका धंधा ही लोगों को प्रभावित करना है शिक्षा की आवश्यकता चुनाव लड़ने के लिए होती नहीं है सबसे अलग अलग ढंग से आँख मार कर खुश करना नेताओं से ज्यादा उन्हें आता है नेताओं से अधिक अच्छे ढंग से वे झूठ बोल लेती हैं फिर भी वेश्याएँ वेश्यावृत्ति की सारी जलालत सहती हैं किंतु राजनीति में नहीं आती हैं उन्हें पता है कि वेश्यावृति में केवल शरीर ही दाँव पर लगाना होता है जबकि राजनीति चरित्र सिद्धांत सदाचरण आदि सबकुछ ही छीन लेती है इसीलिए वेश्याएँ शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं अपना  !वेश्याएँ इस कटु  सच्चाई को समझती हैं कि वेश्यावृत्ति में केवल शरीर का ही सौदा करना होता है जबकि  वर्तमान राजनीति तो धंधा ही चरित्र और सिद्धांतों की बोली लगवाने का है ।वेश्याएँ शरीर आर्थिक परिस्थितियों के कारण बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं ।
        राजनीति का कितना अवमूल्यन हुआ है आज ।आप स्थापित सरकारों में सम्मिलित लोगों को चोर छिनार भ्रष्टाचारी कहकर जीत लेते हैं चुनाव !आप ब्राह्मणों सवर्णों को गाली देकर जीत लेते हैं चुनाव !दलितों महिलाओं गरीबों अल्पसंख्यकों की बातें करके जीत लेते हैं चुनाव !विकार के आश्वासन देकर जीत लेते हैं चुनाव !इसीलिए सदाचारी ,योग्य और लोगों को राजनीति में घुसने कौन देता है !किस पार्टी में जगह है ऐसे लोगों के लिए !ये वर्तमान समय के हमारे लोकतंत्र का चरित्र है ।
      संसद और विधान सभा जैसे अत्यंत पवित्र सदनों की गरिमा ही चरित्र और सिद्धांतों की रक्षा करने से है किंतु कितने चरित्रवान  और सिद्धांतवादियों को प्रवेश मिल पाता है राजनीति में !इसी प्रकार से संसद और विधान सभा जैसे सदन होते ही चर्चा के लिए हैं चर्चा करने के लिए उच्च शिक्षा को  अनिवार्य क्यों न बनाया जाए !जो सदस्य अपनी अयोग्यता के कारण औरों की कही हुई बात समझेंगे ही नहीं अपनी समझा नहीं सकेंगे उनका इन सदनों में और काम ही क्या है उदास बैठने के अलावा ! या तो वे हुल्लड़ मचावें या सोवें या बाहर निकलकर कहीं गप्पें मारें आखिर ऐसे सदनों में और वो करें भी तो क्या कहाँ तक उदास बैठे रहें !
    चरित्र ,सिद्धांत शिक्षा और सदाचरण जैसे महत्त्वपूर्णमूल्यों को चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य करने के लिए बहुमत चाहिए !भले और शिक्षित लोगों का बहुमत कभी हो ही नहीं सकता भीड़ होती ही जनरल बोगी में हैं !माना कि अवसर सबको मिलना चाहिए किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अशिक्षित और अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा दिया जाए मूर्खों को कलट्टर बना दिया जाए अशिक्षितों को शिक्षक बना दिया जाए यदि ये सब होना गलत है तो इन सम्मानित सदनों के सदस्यों के लिए भी शिक्षा और योग्यता के उच्चमानदंड क्यों न बनाए जाएँ !
    संसद और विधान सभा जैसे सदनों के सदस्यों पर कम जिम्मेदारी होती है क्या ?उनमें से अयोग्य लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर सकेंगे !किंतु ऐसा सब कुछ सोचने वाले सजीव राजनेता कहाँ और कितने हैं जिनसे उमींद की जाए कि ये देश के लिए भी कुछ सोचेंगे !
     राजनीति में शिक्षित योग्य ईमानदार सदाचारी लोग आवें ऐसा बोलते तो सब हैं किंतु ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में घुसने कौन देता है जिसने एहसान व्यवहार में घुसने भी दिया तो वो उसे पहले वैचारिक बधिया (नपुंसक) बनाने की प्रतिज्ञा करवाता है बाद में घुसने देता है ताकि वो पार्टी में आकर चरित्र और सिद्धांतों का झंडा उठाए न घूमें  !
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