Monday, 9 January 2017

प्रत्याशियों की योग्यता का परीक्षण कैसे करती हैं राजनैतिक पार्टियाँ ? हिम्मत है तो घोषित करें कि किस प्रत्याशी में क्या देखकर दिया गया है टिकट !

     देश में राजतंत्र  है नहीं लोकतंत्र भी नहीं है तो फिर ये है क्या !जिसकी दुहाई दे देकर सवा सौ करोड़ देशवासियों से काम करवाया जाता है और उनके कमाए हुए धन से देश के मुट्ठीभर लोग और उनके परिवार भोग रहे हैं राजाओं महाराजाओं जैसी सुख सुविधाएँ !मजे की बात कामचोर लोगों को पसंद भी कामचोर लोग ही हैं जो मेहनत करके अपने परिवार का भरण पोषण करता है उससे तो इन्हें चाहिए टैक्स !किंतु जो कुछ न करे उसे देते हैं अनुदान और  आरक्षण !
      प्रत्याशियों को टिकट देने का आधार गुण होते हैं या दुर्गुण !योग्यता होती  है या अयोग्यता ! आखिर किस आधार पर दिए जाते होंगे टिकट !वैसे तो गुण और योग्यता के आधार पर यदि प्रत्याशियों का चयन किया जाता होता तो सांसद विधायक पार्षद जैसे पदों से आज सम्मानित बने घूम रहे बहुत सारे नेताओं के सपने चकना चूर हो जाते !बेचारे बेरोजगार हो जाते किंतु बलिहारी उनके दुर्गुणों और अयोग्यता को जिनके बल पर आज पूजे जा रहे हैं वो !मेरे विचार से तो ऐसे नेताओं को अपने दुर्गुणों दो फूल रोज चढ़ाने चाहिए जिनके बल पर आज वो वो समझे जा रहे हैं जिनके पैरों की धोवन भी नहीं हैं वो !
       राजनैतिक पार्टियों के मालिकों की दया पर टिका है देश का लोकतंत्र !ऐसे लोकतंत्र से उठता जा रहा है विश्वास !आम जनता के लिए राजनैतिक पार्टियों के पास न कोई पद होते हैं और न ही प्रत्याशी बनाए जाने लायक गुण !न को भी कोई आशा रखनी चाहिए क्या ?
      देश की आम जनता को ये लोग केवल वोट देने लायक समझते हैं बस !बाकी पार्टियों के पद हों या चुनाव लड़ाने के लिए चयन किए जाने वाले प्रत्याशी वो सभी दलों में स्थापित नेताओं के नाते रिस्तेदार घर खानदान वाले या उनके परिचित या फिर पैसे वाले वे लोग होते हैं जिन्हें पार्टियों के मालिकों या मठाधीशों की अँगुलियों के इशारे पर नाचना आता हो !योग्य सांसदों विधायकों का पैमाना केवल इतना या कुछ और भी !जो लोग सदनों में शोर मचा लेते हों समाज से बार बार झूठ बोलकर ,लालच देकर ,डरा -धमका कर वोट ले  लेते हों ऐसे बटरिंग प्रत्याशियों से राजनैतिक पार्टीमालिकों के केवल निजी स्वार्थों का साधन करने के अलावा वे देश और समाज के किसी भी काम आने योग्य न होते हैं और न ही किसी काम आते हैं !
     ये दलों के मालिक लोग बड़ा से बड़ा अपराध करें या करवावें !भष्टाचार से कितनी भी कमाई क्यों न करें किंतु इनकी ओर आँख उठाने वाले बड़े बड़े कानून कुंठित कर दिए जाते हैं ऐसे नहीं तो अपने आज्ञाकारी सदस्यों से सदन में तरह तरह के उपद्रव करवाकर सम्माननीय सदनों की कार्यवाही रोक कर खड़े हो जाते हैं सरकार को सदन की कार्यवाही चलाने की हजार बार गर्ज हो तो ऐसे  भ्रष्टाचारियों अपराधियों के सामने घुटने टेके और भ्रष्टाचार से समझौता करे अन्यथा नहीं होने देते हैं कोई कामकाज !
       कानून को चकमा देकर भ्रष्टाचार पूर्वक धन इकट्ठा करने लगातार रिकार्ड तोड़ते चले जाते हैं ।प्रायः सामान्य या गरीब घरों से आने वाले नेता लोग अमीर तो अमीर ये  अमीरों के भी बाप बनते चले जाते हैं इनसे कोई नहीं पूछता है कि ये धन आता  कहाँ से है व्यापर करने के लिए तुम्हारे पास  नौकरीकरने की योग्यता नहीं समय नहीं फिर संपत्ति लूट की नहीं तो है किसकी !आम आदमी के पास होता तो यही सरकारी एजेंसियाँ चौराहे पर खड़ा करके नंगा कर दें और कपड़े तक उतरा कर करती हैं चेकिंग !और तो और कई बार तो पेट में निगल गए लोगों के पेट से निकलवा लेते हैं ये लोग !किंतु नेताओं के विषय में इस कोई कानून नहीं होना चाहिए क्या ?इनके विषय में तो चोर चोर का शोर मचता है और अचानक साहूकार घोषित कर दिए जाते हैं ये लोग !
       चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए उच्च शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं की जानी चाहिए !यही प्रत्याशी भविष्य में मंत्री सदनों के अध्यक्ष जैसे पद सुशोभित करते हैं !ये अशिक्षित  या अल्प शिक्षित होने के कारण अधिकारियों कर्मचारियों से विनम्रता पूर्वक काम नहीं ले पाते हैं उन्हें केवल अपने पद का रौब दिखाकर उनकी शिक्षा का अपमान किया करते हैं !क्या राजनीति का उद्देश्य बस इतना होता है क्या ?
       अशिक्षित या अल्प शिक्षितजन प्रतिनिधि सदनों के सदस्य होने के बाद भी उचित सहभागिता नहीं निभा पाते  हैं उन्हें न किसी विषय की समझ होती है और न समझने की योग्यता होती है ऐसे लोग सामाजिक और राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर अपने विचार और अनुभव कैसे रख सकते हैं !ऐसे लोग केवल अपनी पार्टी अध्यक्षों की भावना में ही बहा करते हैं !ऐसी परिस्थिति में उनका मत स्वतंत्र न होने के कारण उनके परतंत्र मत का महत्त्व कितना मूल्यवान है !ऐसे परतंत्र सदस्य जनसेवा कैसे कर सकते हैं क्योंकि जन सेवा के लिए नेटव्रती नहीं अपितु जनता व्रती होना पड़ता है !
      सदन की चर्चा में अशिक्षित  या अल्प शिक्षित होने के कारण जो सदस्य चर्चा में बोलने और समझने की योग्यता नहीं रखते हैं वो चर्चा के समय सदनों से बाहर जाकर घूम फिर कर समय पास करें !सदनों में बैठकर सोवें या अपने मोबाइलों पर मनोरंजन करें या फिर चर्चा में थोड़ी भी गुंजाइश दिखाई पड़े तो हुल्लड़ काटने लगें या अन्य तरीकों से उपद्रव करने लगें !ऐसे लोगों का उद्देश्य तब तक हुल्लड़ मचाकर सदनों की कार्यवाही रोकना होता है जबतक उनकी पार्टी का मालिक अच्छा या बुरा जैसा भी चाहता है वैसा हो न जाए या उनका इशारा शांत रहने के लिए न मिल जाए तब तक वे शांत नहीं होते !यहाँ तक कि सदन में व्यवस्था कायम करने के लिए जिम्मेदार पीठासीन अधिकारी के आदेश का भी उन पर कोई खास असर नहीं पड़ता है !ऐसी परिस्थिति में  राजनीति का मतलंब क्या  देश की राजनैतिक पार्टियों के मालिकों को ही खुश करना मात्र है ?
       कंपनी या उद्योगों  का स्वरूप धारण करती जा रही प्रायः राजनैतिक पार्टियों का मालिक केवल एक व्यक्ति या एक ही परिवार होता है वही पीढ़ी दर पीढ़ी चला करता है उन्हीं मुट्ठी भर लोगों के इशारों पर नाचा करता है लोकतंत्र !
       

 देने वाले लोग 
       चुनाव लड़ाए जाने के लिए प्रत्याशियों का चयन करने की


प्रत्याशियों में किन किन गुणों का होना अनिवार्य है ?
प्रत्याशियों की शिक्षा
       
   

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