Sunday, 15 January 2017

अधिकारियों के रवैये से उखड़े पीएम मोदी, बीच मीटिंग से उठकर चले गए!

  वैसे भी आम जनता के किस काम आते हैं अधिकारी !
   अधिकारी गण तो अपने अपने कर्मचारियों की ही भाषा बोलते हैं क्योंकि मेरी समझ में जनता की समस्याओं पर उनकी अपनी सूचना के कोई सीधे स्रोत नहीं होते हैं और सम्बंधित समस्याओं के विषय में जनता की बातों पर वे भरोसा नहीं कर पाते हैं अंत में जनता की शिकायतों की जाँच उन्हीं कर्मचारियों से करवाते हैं अधिकारी जिनके व्यवहार से तंग होकर बड़े अधिकारियों के पास जाती है जनता !वही कर्मचारी जाँच करने जाते हैं तो पीड़ित को ही रेट लिस्ट समझाकर पूछते हैं कि बताओ कैसी लगानी है रिपोर्ट फिर दूसरे पक्ष से मिलते हैं उससे भी पूछते हैं बताओ कैसे लगा दूँ रिपोर्ट !जो जितनी ऊँची बोली लगा लेता है वैसी लग जाती है रिपोर्ट और रिपोर्ट के अनुशार हो जाती है कार्यवाही किंतु मेरा प्रश्न सरकारी कामकाज  में न्याय कहाँ है !ऐसा तो आदि काल में कबीलों में हुआ करता था अभी भी आदिवासी क्षेत्रों में ताकत के बल पर निर्णय हथिया लिए जाते हैं यदि वही प्रक्रिया लोकतंत्र में भी अपनाई जाने लगी तो ऐसे  लोकतंत्र की प्रशंसा कैसे की जाए !जो केवल सरकारों में सम्मिलित नेताओं और केवल सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को ही वरदान देता हो !
     न जाने क्यों देश के अधिकारी कर्मचारी लोग दिनों दिन अपनी भूमिका खोते जा रहे हैं देश की आम जनता में तो अधिकारियों की इमेज एक ऐसे खुंखार व्यक्ति के रूप में बना दी गई है जो सरकारी विभागों के एक कमरे में कैद होकर केवल विधायकों सांसदों मंत्रियों पैसे वाले लोगों के फोन सुनता है उन्हीं से बातें करता है और उन्हीं की बातें मानकर जैसा वो लोग कहते हैं वैसा कर या करवा  देता है !इसके अलावा आम जनता से उसका कोई लेना देना ही नहीं होता है !जूनियर कर्मचारी लोग तो उसे क्रोधी घूसखोर आदि बता बताकर उसके नाम पर ही वसूला  करते हैं घूस !इन सब बातों के कारण ही जनता भी उन्हें इन्हीं रूपों में मानने लगती है !               सच्चाई ये है कि अपराधियों से ज्यादा अधिकारियों के क्रोध को डरने लगे हैं लोग न जानें उन्हें कौन सी बात बुरी लग जाए और कब बैक गेयर मार कर शिकायत करने वाले को ही डाँटने लगें या शिकायत करने वाले के ही विरुद्ध उल्टी जाँच शुरू करा दें !               अधिकारी यदि अपने दायित्व निर्वाह के प्रति सतर्क होते और समाज को विश्वास में लेकर चलते तो घट सकते थे समाज के अस्सी प्रतिशत अपराध !क्योंकि अपराधों की योजना बनाते समय ही जनता के सहयोग से पता लगाया जा सकता है किन्तु वे अपने   कोप भवनों से बाहर निकलें तब तो !
  सरकारी विभागों में अपने अपने दायित्वों के प्रति लापरवाह लोग कमियाँ ठीक करना तो दूर अपनी जिम्मेदारियों को देखने तक नहीं जाते हैं देखने भी जाएँ तो वर्तमान परिस्थितियों में भी सरकारी काम काज में काफी सुधार लाया जा सकता है कर्मचारियों से जवाब माँगे जा सकते हैं किंतु उन अधिकारियों पर सरकारी विभागों में काम न होने का फर्क कहाँ पड़ता है जूझना तो जनता को पड़ता है सरकारी काम काज में लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारी तो सरकार से केवल सैलरी लेने पर भरोसा करते हैं बस बाकी सारी सेवाएँ वो  प्राइवेट वालों से ही लेते हैं !
   जहाँ सरकारी काम काज पर सरकारों के अपने अधिकारी कर्मचारी ही भरोसा न करते हों वहाँ जनता कैसे संतुष्ट होगी !ये है देश का घायल लोक तंत्र ! विधायक सांसद मंत्री आदि अक्सर अपने अधिकारियों से कम पढ़े लिखे होते हैं उन्हें खुद ये पता ही नहीं होता है कि अधिकारियों से काम लेना क्या है और लिया कैसे जाए !वो अधिकारों के रौब में केवल डाँटना जानते हैं वो समझदार अधिकारी लोग भी उनसे सर सर करके पास कर ले जाते हैं अपना समय ! 
    देश के सारे विभाग सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाहियों के शिकार हैं नेताओं में अकल के अकाल का बोझ ढो रहे हैं बेचारे !ये है हमारा लज्जित लोकतंत्र जिसे केवल सरकार और सरकारी कर्मचारी ही भोग पा रहे हैं जनता बेचारी सह रही है ऐसे काले अंग्रेजों के अत्याचार !
   भ्रष्टाचार का शोर बहुत है कार्यवाही कम !अरे सरकार  और सरकारी कर्मचारी घूस लेना बंद कर दें और अच्छे ढंग से अपने दायित्व का निर्वाह करने लगें तो कहाँ है भ्रष्टाचार !जनता को तो कोई घूस देता नहीं है जब सरकार और सरकारी कर्मचारी जनता का नैतिक सहयोग करने से भी मुख चुराने लगते हैं उनके जरूरी काम काज भी रोककर खड़े हो जाते हैं तब परिवार का पालन पोषण करने की मज़बूरी में जनता को इन्हें घूस देकर इनसे लेना पड़ता है काम !यदि इन लोगों में काम करने की आदत और ईमानदारी ही होती तो जनता को किसी पागल कुत्ते ने तो काटा नहीं है आखिर वो क्यों देती इन्हें घूस !see more .... http://hindi.news18.com/news/nation/pm-modi-upset-with-officers-presentation-and-walked-out-857789.html

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