Thursday, 3 December 2015

शिक्षकों ,साधुओं, शासकों की शाख घटने से बढ़ी है असहिष्णुता !

रामदेव का ब्यापार और केजरीवाल की राजनीति  दोनों लोगों ने समाज में   बढ़ाई है असहिष्णुता !    
     रामदेव ने शुद्धता और स्वदेशी का नारा देकर जनता और ब्यापारियों के आपसी विश्वास को तोड़कर अपने को घुसा दिया है जबकि ब्यापारियों ने सराहनीय  सज्जनता  का परिचय दिया है उन्होंने कभी रामदेव के कार्यब्यापार की आलोचना नहीं की है जबकि ब्यापारिक गलतियाँ होती सबसे हैं और ब्यापारिक झूठ बोलते सब हैं किंतु गृहस्थ ब्यापारियों के झूठ पर समाज भरोसा करता है जबकि बाबाओं के साधुवेष पर समाज इतना अधिक भरोसा करता है कि ये जहर दे दें तब भी बाबा ब्यापारियों के ब्यापारिक झूठ और ब्यापारिक गलतियों पर समाज के ध्यान देने की बात तो छोड़िए ऐसी तो कल्पना भी नहीं कर सकता है समाज !
  
    साधुओं में पनपती सुख सुविधाओं की भूख : समाज को   सांसारिक प्रपंचों से दूर रहने एवं शांति संतोष सहन शीलता की शिक्षा देने वाले साधुओं में पैसे और बासना की भूख यदि इतनी बढ़ जाए कि  सांसारिक प्रपंचों  में वे खुद फॅंसने लगें ब्यापार रुजगार फैलाने लगें तो ये साधुत्व का सामान्य पतन है क्या ?इससे पनपती है असहिष्णुता जन्म लेते हैं कुसंस्कार !छोटे छोटे बच्चे तक सोचते कि अपने को बैरागी कहने वाले बाबा यदि  अरबपति बने  घूम रहे हैं तो मैं धर्म सिद्धांत नैतिकता की दकियानूसी बातों पर भरोसा क्यों करूँ !इस सोच से उसके अंदर बढ़ती है पैसे की भूख  पड़ता है सभी प्रकार के अपराधों की ओर !
   
    ब्यापारी लोग समाज के शत्रु नहीं होते हैं किंतु ब्यपारियों के ब्यापारोचित झूठ पर समाज भरोसा नहीं करता  है जबकि वही झूठ बोलकर जब कोई साधू ब्यापार करने लगता है तब आप उस पर तो भरोसा कर लेते हैं किंतु उस तरह के ब्यपारियों पर भरोसा नहीं करते हैं क्यों ? 
 ब्यापार का आधार होता है विश्वास !साधुओं पर समाज का भरोसा है कि ये गलत नहीं करेंगे !
      इसलिए साधू बनकर तो ब्यापार किया जा सकता है किंतु जो साधू नहीं हैं उनसे पूछो कि  कितना कठिन होता है ब्यापार करना !

धू समाज का विशवास इसलिए समाज के सामने जब हम साधुवेष  में जाते हैं तब तो

की ला की वाला
शिक्षकों की कामचोरी मक्कारी एवं कर्तव्य भ्रष्टता ,इसकी भरपाई के लिए सरकार और समाज कुछ करे !

 संन्यास सब कुछ छोड़ने का व्रत है इसलिए कोई संन्यासी कभी ब्यापारी हो ही नहीं सकता !
 किसी ब्यभिचारी को यदि ब्रह्मचारी नहीं माना जा सकता तो किसी ब्यापारी को सन्यासी कैसे मान लिया जाए !



तीन चीजों से बढ़ी है बढ़ने के कारण तीन
       ये तो उसी तरह की बात  हुई कि कोई ब्यभिचारी अपने को ब्रह्मचारी बताकर समाज का विश्वास  जीते किंतु मन में कुटिलता हो !संत होकर व्यापार करना उतना ही गलत है जितना किसी ब्यभिचारी के द्वारा अपने को ब्रह्मचारी कहना गलत है !  ने से एक व्यवस्था भंग होती है केवल इसलिए गलत है !
     किसी भी व्यक्ति के लिए संभव हो तो वर्ण व्यवस्था का पालन करे न संभव हो तो समाज के द्वारा बनाई गई किसी व्यवस्था को तो अंगीकार करना ही चाहिए और उसके अनुशार चलना चाहिए ताकि सम्पूर्ण समाज नियमानुशार विधि विधान पूर्वक चलता रहे !
           आपने सुना होगा बिहार के  शिक्षक मटुकनाथ और एक लड़की के बीच गुरु -शिष्या जैसा पवित्र सम्बन्ध था और उनका अपनी पत्नी के साथ पति पत्नी जैसा सर्वस्वीकृत सम्बन्ध था किन्तु समस्या तब पैदा हुई जब मटुकनाथ उस शिष्या से सेक्स संबंधों में न केवल संलिप्त हुए अपितु उससे प्रेम विवाह किया !
        बंधुओ  ! यहाँ सोचना ये पड़ता है कि वो केवल एक लड़की नहीं अपितु उनकी शिष्या  थी और शिष्या पुत्रीवत  होती है और यदि पुत्री से भी बासनात्मक सम्बन्ध बनाए जाने लगें तो ऐसे पापी पुरुषों और पशुओं में क्या अंतर है ! इसका अन्य शिक्षकों पर या प्रभाव पड़ा होगा !अन्य युवावर्ग पर क्या असर हुआ होगा ! इसके साथ ही एक बड़ा पक्ष इन दोनों लोगों के परिवार वालोंको कितनी सामजिक जलालत झेलनी पड़ी होगी जिन बेचारों का कोई दोष ही नहीं था !

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