Thursday, 3 December 2015

जाति पूछ कर कुछ दिया जाए तब तो सम्मान अन्यथा अपमान ! ये जाति पूजन ठीक है क्या ?

 मंदिर के पुजारी ने जाति पूछने के बदले  कुछ दिया नहीं बुरा ये लगा या वास्तव में उसका जाति पूछना ही बुरा लगा ! 
    जाति बताकर आरक्षण , धन ,शिक्षा सुविधाएँ नौकरी ,चुनावी टिकट ,वोट मिलें मंत्रालय मिले तो ठीक ,किंतु जहाँ कुछ न मिले वहाँ जाति पूछ लेने से  अपमान कैसे हो गया !       
   शैलजा जी की शंका निर्मूल है अपितु यह बात ब्राह्मणों के विरुद्ध षड्यंत्र है ये तो धर्म कर्म और विद्वानों के मुख में लगाम लगाने की निंदनीय  कोशिश है धर्म शास्त्रीय परम्पराओं पर अनावश्यक रूप से अंगुली उठाना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा !धर्म कर्म कोई माने  या न माने ये उसकी निजी इच्छा  विषय है किंतु धार्मिक प्रक्रियाओं को बदनाम करने या उसमें रोड़ा लगाने की कोई भी कोशिश सहना  असंभव है !          ब्राह्मणों पर ऐसे ऊटपटाँग आरोप लगाकर सताया जा रहा है उन्हें जबर्दश्ती कटघरे में खड़ा किया जा रहा है जाति पूछने में पुजारी का दोष आखिर क्या है इससे तो साफ काँग्रेस की मानसिकता का पता लगता है कि अब  काँग्रेस सीधे सीधे धर्म और धर्म शास्त्रों को बदनाम करने पर उतर आई है ! 
   बंधुओ !जाति सूचक कोई शब्द  पुजारी के द्वारा बोला गया  होता  तब तो कुछ हद तक गलत माना भी जा सकता था  किंतु जाति पूछने से अपमान कैसे हो गया ये बात समझ से परे है !दलितों के उत्थान का मतलब क्या ब्राह्मणों को अब पिंजरे में बंद करके रखा जाएगा क्या !या धर्म और धर्म शास्त्र भी अब काँग्रेस के संविधान से चलाए जाएँगे क्या ?
     जाति बताने से  धन मिले तो ठीक ,शिक्षा मिले तो ठीक ,सुविधाएँ मिलें तो ठीक ,नौकरी मिले तो ठीक ,  पदोन्नति मिले तो ठीक ,चुनावी टिकट मिले मिले तो ठीक ,वोट मिलें तो ठीक ,मंत्रालय मिले तो ठीक ,किंतु जहाँ कुछ न मिले वहाँ जाति बताना अपमान !ये कैसी नीति !
      मैं तो कहता हूँ कि यदि जाति पूछना ही बुरा लगता है तो किसी को मत बताओ अपनी जाति अपितु उसे छिपाकर रखो !साथ ही मैं तो सभी जाति के लोगों से निवेदन करना चाहूँगा कि जिसे अपनी जाति बताने में अपमान लगता हो उसे जतियाँ पुजाना भी छोड़ देना चाहिए !
     जहाँ तक बात शैलजा जी के साथ घटित घटना  की है तो उन्हें ये चर्चा सदन तक लानी ही नहीं चाहिए थी जातिसंबंधी प्रश्न का उत्तर मंदिर वालों से ही क्यों नहीं पूछ लिया उन्होंने ? सदन में ऐसे प्रश्नों को करने का औचित्य क्या है ?ये लोग कोई पंडे पुजारी हैं क्या या शास्त्रज्ञ हैं ?या फिर ब्राह्मणों पर कानूनी लट्ठ चलवाने के लिए भावुक साजिश कर रही थीं वो !माना जा सकता है कि ऐसे असहिष्णुता फैलाने की हो रही हैं कोशिशें !
     ये कोई बात है क्या कि किसी सांसद के पेट में  दर्द हो तो वो सम्मानित सदस्य दवा संबंधी प्रश्न किसी  डॉक्टर से करेगा ये प्रश्न भी सदन की चर्चा में पूछा जाएगा ?
      ये तो उस तरह का व्यवहार है कि किसी स्त्री के पेट में  दर्द हो और वो किसी पुरुष डाक्टर के पास चली जाए दिखाने और डाक्टर उस दर्द का कारण जानने के लिए कुछ प्रश्न पूछ ले वो बीमारी जानने के लिए जरूरी हों किंतु सुनने में अच्छे न लगते हों तो क्या बिना जाए समझे उस डाक्टर पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगा देना चाहिए और ये उचित है क्या ?
   यही ब्यवहार तो यहाँ देखने को मिल रहा है बेचारे उस पुजारी के साथ !यदि आप किसी मंदिर में दर्शन करने जाएँगे और पूजा भी करना चाहेंगे तो संकल्प होगा ही और संकल्प में नाम गोत्र और जाति तीनों बोलने पड़ेंगे ही तो वो पुजारी आप से नहीं पूछेगा तो किससे पूछेगा ?
  उचित था कि शैलजा जी को सर्व प्रथम मंदिर से संबंधित अपनी शंका का समाधान मंदिर में ही कर लेना चाहिए था या फिर किसी संस्कृत विद्वान से मिलकर समझनी चाहिए थी सच्चाई !अन्यथा धर्म शास्त्रों को खुद पढ़ना चाहिए था !किंतु सदन की चर्चा में ऐसे प्रश्नों का क्या औचित्य ?वह कोई धर्म शास्त्रीय मंच तो है नहीं !
     दूसरी बात धर्म शास्त्रों में हर जगह जातियों की चर्चा है इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता !आयुर्वेद में तो सर्पों तक की जातियों का वर्णन है । वास्तु में तो जमीन के रंग के आधार पर जातियों का वर्गीकरण किया गया है सनातन धर्म के सभी धर्म कर्मों में जाति  और गोत्र की चर्चा होती ही है क्योंकि हर प्रकार के कर्मकांड में संकल्प बोला ही जाएगा और संकल्प में गोत्र ,नाम और जाति बोलनी ही पड़ती है ।see more.....http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/12/blog-post_2.html

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