भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Thursday, 18 December 2014
बच्चे मारे गए पाकिस्तान में, मगर दिल में दर्द भारत के बच्चों को भी हुआ ! - BBC
बंधुओ !भारत के सहिष्णु एवं संवेदनात्मक संस्कारों का उल्लेख किए बिना नहीं रह सका -BBC , हमारी भावनाएँ उसे भी समझ में आ गईं किन्तु क्या इसी रूप में ये बातें पाकिस्तान की समझ में भी आ पाएँगी क्या पाकिस्तान के आम लोगों तक भारतीयों की भावनाओं को पहुँचाने में मदद करना चाहेगा BBC !
वैसे भी यही हमारी पहचान है ये हमारे सहज संस्कार हैं , पाकिस्तान के छद्म युद्ध से भारत परेशान भले हो जाए किंतु संस्कारों ,सहयोगों ,नैतिक ,आध्यात्मिक एवं आत्मीय व्यवहारों के किसी मंच पर भारत पराजित नहीं किया जा सकता !ये भारत के संस्कार हैं जिनके बलपर सहिष्णु भारत हमेंशा से अजेय रहा है आगे भी रहेगा !
हाफिज सईद जैसे लोगों का इस शिशुसंहार से कोई सम्बन्ध तो नहीं है ! पाक सरकार को इसकी भी करवानी चाहिए जाँच ! कौन जानता है बंधुओ !पेशावर हमले के लिए भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हाफिजसईद जैसे लोग ही जिम्मेदार हों क्योंकि इनकी नीति और नियति हमेंशा से आत्मघाती रही है वे हमेंशा से पाकिस्तान को शर्मिन्दा करते आ रहे हैं आज भी वही कर रहे हैं भारत के विरूद्ध पाकिस्तानी लोगों को भड़काने के लिए वो हमेंशा पाकिस्तान का ही नुक्सान केवल यह दिखाने के लिए करते रहे हैं कि देखो यह भारत ने किया है !
भारत में मुख्य अतिथि के रूप में पधारने वाले ओबामा के आगमन को न पचा पाने के कारण ही पाकिस्तान की आम आवाम को उबालने के कारण हाफिज ने ही तालिबान से मिल कर करवाया हो यह भीषण शिशु संहार !अन्यथा उन निर्दोष बच्चों का शोणित अभी सूखा भी नहीं है कि दैत्य राज हाफिज पाकिस्तानी जनता को भारत के विरुद्ध भड़काने में जी जान से जुट गया है !आखिर क्या अपराध है भारत का और क्यों उगल रहा है भारत के विरुद्ध आग ?वह राक्षस भारत की आत्मीयता का हमेंशा से अपमान करता रहा है आज भी कर रहा है !पाकिस्तान के स्कूल में बच्चों की हत्याओं पर बेचैन भारत को ही दोषी ठहरा रहा है यह असुर !हाफिज सईद जैसे असुरों पर भरोसा तो पाक को भी नहीं करना चाहिए।भारत की आत्मीयता को अपमानित करना पाकिस्तान के भी हित में नहीं है यह अब पाक की आम जनता को भी समझ में आ जाना चाहिए !
पाकिस्तान को अब भी सोचना चाहिए कि बच्चों के हत्यारे उन आतताइयों की ओर से यह कहा जाना कि "पाक सैनिक हमारे शिविरों पर हमला कर रहे थे इसलिए उनके बच्चों पर हमला किया गया है!" किन्तु भारत को तो पाकिस्तान ने अनेंकों बार ऐसी बेदनाएँ दी हैं जिनका जवाब भारत भी उसी भाषा में दे सकता था किन्तु ऐसा जवाब देने की तो कभी कल्पना ही नहीं अपितु सह नहीं सका है भारतवर्ष !दहल उठे हैं हम भारतीयों के हृदय !
आखिर क्यों नहीं होगा भारत के बच्चों के दिल में दर्द ! भारत माँ का ही बच्चा पाकिस्तान है और पाकिस्तान के बच्चे हैं वे जिनके आत्मीय शरीरों के चीथड़े देखे हैं भारतीय बच्चों ने माँओं ने और सभी लोगों ने ! यह खबर सुनने के बाद भारतीयों की रातें जागते बीत रही हैं भोजन के ग्रास निगले नहीं जा रहे हैं ! पाकिस्तान में हुए आत्मीय बच्चों पर हमला भारत के लिए मात्र एक खबर भर नहीं थी आखिर वो भी भारत माता के ही जिगर के टुकड़े थे वह खून भी हम भारतीयों का ही था !उनकी सुरक्षा करना भी हमारा दायित्व है !भारत सरकारें हमेंशा से इसी सोच और प्रयास में लगी रही हैं किन्तु पाक ने हमेंशा हमारी आत्मीय भावनाओं के उत्तर अनात्मीय आचार व्यवहारों से दिए हैं ।
हाफिज जैसे दैत्यों के भारत विरोधी घातक वाणी और व्यवहारों पर लगाम न लगाया जाना पाकिस्तानी सरकारों की आतंकवाद के विरुद्ध गैर जिम्मेदारी को दर्शाता है । अतीत में भी ऐसे ही दैत्य समूहों का दलन करने के लिए बहुत मजबूरी में ही भारत ने हथियार उठाए होंगे जब जब पाक ने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा होगा अन्यथा भारतवर्ष पाकिस्तानी भाई बहनों के प्रति अनात्मीय व्यवहार करने का पक्षधर कभी नहीं रहा है !
किन्तु दुर्भाग्य इस बात का है कि पाकिस्तान के मुट्ठी भर विश्वासघाती राजनेता केवल अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकने के लिए भारतीयों की तरह ही पाकिस्तानियों के दिलों में पल रहे इस पुरातन निजी संबंध को हमेंशा से झुठलाते रहे हैं । भारत माता के प्रति गद्दारी करने वाले वो चंद लोग यदि सुधर जाते तो क्या हम लोग अलग होकर भी साथ साथ नहीं रह सकते थे क्या कोई लड़का अपनी माँ से अलग होने के बाद माँ बेटे का सम्बन्ध भी भूल जाता है ! किन्तु पाकिस्तानी नेता उस पवित्र सम्बन्ध को भी कलंकित करने का प्रयास हमेंशा करते रहे हैं ! अटल जी की आत्मीयता को इसी नवाज ने कारगिल युद्ध से नवाजा था ,मुंबई में हमला ,एवं आए दिन हमारे निर्दोष सैनिकों की हत्याएँ ,शहीद हेमराज का शिर और उससे सम्बंधित वीडियो जैसी असह्य वेदना सहकर भी भारतीय शांत रहे हैं किन्तु पाकिस्तानी नेता राजनीति उन देशों के उकसावे पर चल रहे हैं जो इस क्षेत्र में शान्ति की संभावना ही नहीं बनने देना चाहते !
बंधुओ ! इसी विषय में हमारा यह लेख भी -
पाकिस्तानी भाई बहनों के प्रति समर्पित आत्मीय 'दो शब्द' !
पाकिस्तान में निर्दोष बच्चों की हत्याओं से मानवता दहल उठी है!
भारत माता के ही हृदय के कभी अभिन्न अंग रह चुके पाकिस्तान के बच्चों पर आतताइयों ने इतना बड़ा अत्याचार किया हो चीथड़े उड़ा दिए गए जिन नौनिहालों के उनके परिजनों के करुण क्रंदन से ब्यथितात्मा आपके अपने भारतीयों से कौर नहीं निगले जा रहे थे सो नहीं सके हैं भारतीय !see more....http://samayvigyan.blogspot.in/2014/12/blog-post_4.html
Wednesday, 17 December 2014
ज्योतिष R T I
अंध विश्वास
1. सरकार के प्रमाणित
विश्व विद्यालयों से ज्योतिष सब्जेक्ट में एम.ए.पी.एच.डी.जैसी डिग्रियाँ हासिल
करने वाले लोगों से अंध विश्वास फैलता ही नहीं है क्योंकि वे शास्त्र प्रमाणित बातें ही बोलते हैं फिर भी सरकार को यदि ऐसा लगता है तो इन विषयों को सरकारी विश्व विद्यालयों में पढ़ाया क्यों जाता है ?ज्योतिष जैसे विषयों से जुड़े फर्जी डिग्री या बिना डिग्री वाले लोग या
और भी सभी प्रकार से अयोग्य लोग ज्योतिष से संबंधित प्रेक्टिस करते हैं जिन्हें ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान
तो होता नहीं है इसलिए ज्योतिष के विषय में वे जो कुछ भी बोलते हैं उसे ज्योतिष शास्त्र के किसी नियम से प्रमाणित नहीं किया जा सकता है किंतु ऐसी काल्पनिक डरावनी बातें बोलकर ये समाज को डरवाकर उसका भाग्य बदलने के नाम पर उससे धन लेते हैं यही अशास्त्रीय बातें अंध विश्वास की श्रेणी में आती हैं इन्हीं से फैलता है अंध विश्वास है इसलिए अंधविश्वास को मिटाने हेतु ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के लिए क्या कोई प्रावधान है और है तो क्या ?
2. ज्योतिष को कुछ लोग विज्ञान एवं कुछ लोग अंध विश्वास मानते हैं किन्तु सरकार ज्योतिष को क्या मानती है विज्ञान या अंध विश्वास ?
3. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से मैंने एम.ए. के समकक्ष परीक्षा पाठ्यक्रम के निर्धारित नियमानुशार ज्योतिषाचार्य अर्थात आधुनिक भाषा में ज्योतिष सब्जेक्ट लेकर एम.ए. की डिग्री हासिल की है !इसके बाद हिन्दी विषय में ज्योतिष से सम्बंधित विषय पर शोध प्रबंध लिखकर पी.एच.डी. की है किन्तु जैसे ज्योतिषाचार्य ( एम.ए.) की डिग्री हम जैसे लोग पढ़ लिखकर लिख सकते हैं वैसे ही वे लोग भी लिखते हैं जिन्होंने ज्योतिष की कोई डिग्री ही नहीं ली है न कोई पढ़ाई ही की है और ज्योतिष की प्रेक्टिस जैसे हम लोग करते हैं वैसे ही वो लोग भी करते हैं जिन्होंने ज्योतिष की कोई डिग्री ही नहीं ली है न कोई पढ़ाई ही की है ऐसी परिस्थिति में सरकारी विश्व विद्यालयों में सरकारी पाठ्यक्रम का अनुशरण करते हुए ज्योतिष का अध्ययन करने और ज्योतिषाचार्य ( एम.ए.)की डिग्री लेने का लाभ ही क्या है ?
4. लाल किताब और काल सर्प योग
लाल किताब और काल सर्प योग जैसी किसी किताब का ज्योतिष के ग्रंथों एवं पाठ्यक्रम में कहीं कोई जिक्र ही नहीं मिलता है और यदि है तो विश्व विद्यालयीय ज्योतिष पाठ्यक्रम में उसे सम्मिलित
क्यों नहीं किया गया है ? और यदि नहीं है तो ऐसी मन गढ़ंत किताबों पर
प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया जाता है ?और न ही सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ऐसा कोई विषय पढ़ाया ही जाता है किन्तु अंध विश्वास फैलाने वाले कुछ लोग ज्योतिष के नाम पर 'लालकिताब' और 'काल सर्प योग ' जैसे दोनों ही शब्दों का प्रयोग अंध विश्वास फैलाकर लोगों से धन ऐंठने के लिए किया करते हैं जिसका ज्योतिष ग्रंथों में कहीं कोई प्रमाण ही नहीं मिलता है ऐसी परिस्थिति में 'लालकिताब' और 'काल सर्प योग ' जैसे नामों पर फैलाए जा रहे अंधविश्वास को रोकने के लिए सरकार क्या कुछ कदम उठाएगी ?
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
Tuesday, 16 December 2014
पुलिस क्या करे कैसे रखावे महिलाओं को ?
आज कालगर्ल,या भद्दे भद्दे अश्लील नाच गायन से समाज का मनोरंजन करने वाली ,प्यार के कारोबार में सम्मिलित लड़कियों या महिलाओं की सुरक्षा आखिर कैसे की जाए ?इसका मुख्य कारण यह है कि ऐसे अधिकाँश केसों में ऐसी लड़कियों का शत्रु वही होता है जिस पर वे अधिक विश्वास करने लगती हैं जिस दिन इनका आपसी विश्वास टूटता है उसी दिन ये एक दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं ऐसे हिंसक जोड़ों की एक दूसरे से रखवाली पुलिस कैसे करे ?
एक लड़का सुन्दरी, संपन्न,शिक्षित आदि देखकर नई लड़की से प्रेम करने लगता है और पुरानी प्रेमिका को छोड़ देता है किन्तु पुरानी प्रेमिका उसे छोड़ना नहीं चाहती हुई इसलिए वो बार बार फोन करती है जिस कारण उसका नई प्रेमिका से तनाव रहने लगता है अब वो लड़का पुरानी प्रेमिका को अपने रास्ते से हटाने की साजिश रचता है
Friday, 28 November 2014
राहुल गाँधी जी !अब आप ऐसा कौन सा विकास करना चाहते हैं जो पिछले 15 वर्षों में नहीं कर पाए ! आखिर क्यों ?
राहुल गाँधी जी ! केवल चुनावों के समय आपको आम जनता की जरूरत पड़ती है बाकी कहाँ रहते हैं आप !आम जनता का दुःख दर्द सुनने के लिए कभी क्यों नहीं आए जनता के सामने !क्यों नहीं दिया कोई संपर्क सूत्र !
राहुल गाँधी जी! अभी तक इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहकर जो कार्य आप नहीं कर पाए तो अब इस बात को मान लेने में या बुराई है कि काम करना आपके बश का नहीं है !अब मोदी सरकार को करने दीजिए जनता ने इसीलिए आपको शांत किया है इसलिए कुछ दिन तो शांत रहिए !राहुल जी आप भी देश के लिए अत्यंत प्रिय एवं बहुत दुलारे हो किन्तु जो काम करना आपको नहीं आता है वो काम करने के लिए आपको कैसे सौंप दिया जाए !अभी तक केंद्र से दिल्ली प्रदेश तक की सरकारें आपके अँगुली के इशारे पर नाचती रहीं किन्तु तब भी न आप कुछ कर पाए और न ही अपनी सरकारों से करवा पाए !यहाँ तक कि सोनियाँ जी को इलाज कराने विदेश जाना पड़ता रहा यहाँ कोई अच्छा अस्पताल नहीं बनवा पाए आप !
आपकी पार्टी के पराजित होने का मतलब ये कतई नहीं है कि देश आपसे गुस्सा है ! हाँ यदि आपको सरकार चलाना नहीं आता है तो देश की बागडोर आपको कैसे सौंप दी जाती भला तुम्हीं बताओ ! देश वासियों के लिए विकास कार्य हुए हों या न हुए हों अब हो जाएँगे किन्तु हमें इस बात का दुःख है कि देश की आदरणीया सोनियाँ जी देश की सम्मानित बहू हैं उनकी देख रेख में कहीं कोई कमी न रह जाए इसलिए देश ने सबसे लम्बे समय तक आपकी पार्टी को सत्ता सौंपी किंतु उनके इलाज लायक आज तक देश में एक अस्पताल नहीं बनाया जा सका !जब अखवारों में खबर छपती है की सोनियाँ जी इलाज के लिए विदेश गईं यह खबर पढ़कर क्या बीतती है समस्त देश वासियों पर ! और स्वाभिमानी गरीबों ग्रामीणों पर !जो गलत काम नहीं करेंगे केवल इस व्रत का पालन करने के लिए सारी जिंदगी गरीबत में गुजार देते हैं !
राहुल गाँधी जी ! इस देश के बहुत लोग भाग्य वश धन से गरीब होने के कारण भले चार रोटियों की जगह दो रोटियाँ ही खाने को मिल पाती हों किन्तु किसी और को भूखादेख कर उन दो रोटियों में से एक रोटी उस भूखे को देने के लिए उनका हाथ उठ जाता है उनके इस सांस्कृतिक संस्कार को भाग्य भी नहीं रोक सकता !
बंधुओ ! किन्तु राहुल गाँधी ऐसा चाहते क्यों हैं मोदी सरकार हर काम उनसे पूछ पूछ कर करे !और क्यों करे ?पूछे भी तो तब जब पता हो कि सामने वाला हमसे अधिक समझदार है,या सामने वाला पिछले दस वर्षों में बहुत अच्छे काम करके गया है जो मोदी सरकार बिगड़ रही है इसलिए उसे हमदर्दी हो रही है किन्तु ऐसा कुछ तो हुआ नहीं यदि ऐसा ही था तो उन झुग्गियों को पहले ही नियमित कर देते आखिर अभी तक तो सरकार में राहुल गाँधी जी आप ही थे !
बिना वैराग्य वाले बाबालोग जब अपने नहीं हुए, अपनों के नहीं हुए तो आपके क्या होंगे ?
बाबाओं के भटकाव का कारण है संपत्ति से लगाव और वैराग्य भावना से अलगाव !
कई लोग संत बन कर साधना करने का सपना लेकर वैराग्य लेते हैं किंतु पूर्व जन्म के पापों के प्रभाव से पूजापाठ में मन नहीं लगता फिर साधना पथ से भटके हुए ऐसे लोग सेवाकार्यों के बहाने अपना जीवनबोझ ढोना प्रारम्भ कर देते हैं और बड़े बड़े स्कूल, अस्पताल आदि चलाने का नारा देकर जुटाने लगते हैं चंदा और करने लगते हैं व्यवस्था परिवर्तन के लिए सेवाकार्य,स्वदेशी कार्य,शुद्ध कार्य ,स्वाभिमानीकार्य,और सरकार सहयोगीकार्य इसके बाद सरकार कार्य और इन सबके बाद धीरे धीरे निपट आती है जिंदगी !जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें स्वामी जी मानाने वाले लोग सेठ जी मानने लगते हैं, नेता जी मानने लगते हैं किन्तु सधुअई ठगी सी निहार रहीं होती है इनकी विरक्त वेष भूषा !ऐसे लोग जब अपनी ओर देखते हैं तो याद आते हैं वो सब बेकार कार्य जिनमें जीवन भटका दिया! तब पता लगा कि उन कार्यों के लिए तो ईश्वर ने औरों को बनाया था जिनमें आप उलझे गए आपने तो वैराग्य लेकर ईश्वर आराधना का बचन भगवान को दिया था जो केवल तुम्हें ही पूरा करना था किन्तु उसे तुम पूरा नहीं कर सके, आपके उन बचनों को कोई और पूरा नहीं कर सकता !अब उनके लिए एक और जन्म लेना पड़ेगा !
यदि अमर सिंह जी भाजपा की ओर बढ़ते हैं तो निभेगी कब तक ?- ज्योतिष
अमर सिंह जी के डगमगाते डग क्या अब बढ़ेंगे भाजपा की ओर ! किंतु वहाँ निभ जाएगी क्या ?- ज्योतिष
अमर सिंह जी अमित शाह जी की भाजपा में कब तक रह पाएँगे ? 'अ' तो वहाँ भी है ईश्वर करे अच्छा ही हो !!
किन्हीं दो लोगों का नाम ज्योतिष में एक अक्षर से प्रारम्भ नहीं होना चाहिए यदि ऐसा होता है तो उनके सम्बन्ध प्रारम्भ में तो बहुत अच्छे होते हैं और बाद में अचानक बिलकुल टूट जाते हैं जिनके फिर जुड़ने की कोई गुंजाइस नहीं रह जाती !अमर सिंह जी ज्योतिष का यह भाग्यदंश वर्षों से झेल रहे हैं ! उनकी यह यात्रा समाजवादी पार्टी से ही प्रारम्भ हो चुकी थी !आप भी देखिए -
समाजवादी पार्टी में जब तक मुलायम सिंह जी का बर्चस्व रहा तब तक अमर सिंह जी की झुमाई झूमती रही किन्तु अक्षर वाले आजम खान से पटरी नहीं खाई तो उन्हें बाहर जाना पड़ा ! ये दोनों 'अ' इकट्ठे नहीं रह सके इसके बाद समाजवादी पार्टी में अखिलेश का बर्चस्व बढ़ा तो अखिलेश के 'अ' से टकराकर अमर सिंह पार्टी से बाहर हो गए अमर सिंह जी इसके बाद यही 'अ'अमिताभबच्चन अनिलअंबानी अभिषेक बच्चन आदि से टकराया और सब छूट गए फिर यही 'अ' अजीतसिंह से टकराते समय मैंने की थी यह ज्योतिषीय भविष्यवाणी देखें आप भी और पढ़ें जरूर -see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/03/blog-post_2579.html
Friday, 21 November 2014
स्वच्छता अभियान !
स्वच्छता अभियान में तीन बड़ी पार्टियाँ शामिल !
आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह झाड़ू को काँग्रेस के चुनाव चिन्ह हाथ से पकड़कर भाजपा स्वच्छता अभियान चला रही है !
लगता है कि अब नेता बनने के लिए झाड़ू पकड़े हुए फोटो खिंचाकर फेस बुक पर
डालना या पत्र पत्रिकाओं में छापना स्टेटस सिम्बल सा बन गया है और है भी !
क्या पता किसी दिन ऐसे चेहरों पर भी प्रधानमंत्री जी की दृष्टि पड़ ही जाए
और हो जाए उद्धार !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
प्रधान मंत्री जी का स्वच्छता अभियान ! इसमें बाकी सारे गुण हैं दोष केवल एक ही है !
दोष केवल एक यही है कि अगर नेताओं अभिनेताओं या
इस स्वच्छता अभियान में सम्मिलित बड़े बड़े प्रसिद्ध पुरुषों के झाड़ू पकड़ने
के ढंग की नक़ल करने की शौक कहीं उन सफाई कर्मचारियों में आ गई जिनके ऊपर
सफाई करने की वास्तविक जिम्मेदारी है ! सैलीब्रेटियों की नक़ल तो लोग वैसे भी अक्सर करते हैं इसलिए जिन्हें झाड़ू पकड़ना भी न आता हो स्वच्छता अभियान के नाम पर ऐसे सैलीब्रेटियों की नक़ल करना ठीक नहीं होगा !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
स्वच्छता अभियान के बहाने जानिए झाड़ूविज्ञान का महत्त्व !
स्वच्छता अभियान एक अच्छी पहल है किन्तु केवल देश से बाहरी कूड़ा ही नहीं अपितु कुसंस्कारों का कूड़ा तो दिमागों से भी निकाला ही जाना चाहिए लोगों को झाड़ू पकड़ने में आखिर शर्म क्यों लगती है ?
ये लोग झाड़ू जैसी
महत्वपूर्ण चीज श्रद्धा से पकड़ते भी नहीं हैं हम लोगों को तो बचपन से ही
सिखाया गया है कि यदि झाड़ू में पैर लग जाए तो उसके पैर छूना होता है इसलिए
झाड़ू विज्ञान पर मेरी निजी आस्था तो है ये आस्था ही है कि मुझे यह लिखने के
लिए बाध्य करती कि बड़े लोग झाड़ू लगावें या न लगावें किन्तु पकड़ें तो
श्रद्धा से क्योंकि इस काम को हम किसान और ग्रामीण लोग गलत नहीं मानते और
बहुत श्रद्धा से करते हैं हम लोगों का तो शुभ प्रभात ही झाड़ू बुहारू से ही
प्रारम्भ हुआ करता है दोपहर तक जिसने अपने दरवाजे और घर में झाड़ू न लगाई हो उसे लोग अच्छी दृष्टि से नहीं देखते हैं । घर के लोग जब घर से बाहर तक साफ
सफाई कर लेतें हैं तब उनके चहरे पर कृतकार्यता का अद्भुत उत्साह होता है
इसलिए झाड़ू बुहारू के काम को हलके से नहीं लेना चाहिए ! और न ही अपने को इससे छोटा
ही समझना चाहिए !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी तो झाड़ू भी अच्छे ढंग से लगा लेते हैं !
आजकल चार चार पैसे कमाने वाले लोग झाड़ू लगाने जैसे काम करने में शर्म समझते हैं कई लोग तो झाड़ू लगा लेते हैं किन्तु उन्हें यह स्वीकार करने में शर्म लगती है कि कहीं कोई उन्हें छोटा न समझ ले उन्हें मोदी जी के झाड़ू पकड़ने एवं झाड़ू लगाने के वास्तविक ढंग से बहुत कुछ सीखना चाहिए ।
मोदी जी ने झाड़ू
पकड़ा भी ठीक से था और लगाया भी ठीक से था वो फार्मिलिटी नहीं कर रहे थे कई
अन्य लोगों ने भी ऐसा किया होगा जिसे मैं देख नहीं पाया या यहाँ पर उन सबके नाम
गिना पाना भी संभव नहीं है किन्तु कई लोग श्री कलराज मिश्र जी की तरह से भी
झाड़ू लगा रहे थे जिनके पीछे खड़े उनके सहयोगी दो लोग हँस रहे थे जब श्री मिश्र जी झाड़ू लगानेकी जगह हिला रहे थे संभवतः उनके झाड़ू लगाने
पर ही वो हँसते होंगें या फिर और भी कोई कारण रहा हो ! झाड़ू लगाने की रीति पर इसका मुझे ठीक ठीक अंदाजा नहीं है
किन्तु लग बिलकुल ऐसा रहा था जैसे कोई विवाहआदि काम काज की कोई रस्म झाड़ू पकड़ कर निभाई जा
रही हो !यद्यपि केवल मिश्र जी ही ऐसे नहीं होंगें और भी होंगे किन्तु
हमारी जानकारी इतनी ही है कुछ लोग तो A C वाले कमरे में कूड़ा फैलवा कर भी
झाड़ू लगवा रहे थे क्या कहा जाए किसी को !आखिर इसे स्वच्छता अभियान क्यों न माना जाए !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
स्वच्छ भारत या पवित्र भारत या स्वच्छ और पवित्र दोनों ?पवित्रता की आज बहुत आवश्यकता है !
इसलिए केवल स्वच्छता ही क्यों पवित्रता भी तो चाहिए !
पहले से फैली हुई गन्दगी को साफ करना स्वच्छता एवं गंदगी को फैलाने से ही बचने की भावना पवित्रता है गंदगी से अभिप्राय सभी प्रकार की गंदगी से है भले वो भ्रष्टाचार की ही गन्दगी क्यों न हो !उसे भी पैदा ही न होने देना पवित्रता की भावना है !see more .... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
Thursday, 20 November 2014
बाबाओं को मुख मत लगाओ केवल संतों की शरण में जाओ !
बाबा बर्बाद करते हैं संत सुधार करते हैं ! see more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/11/blog-post_16.html
घर के व्यस्त प्रपंचों से अलग हटकर उपासनामय जीवन व्यतीत करने के लिए लोग संत बनते हैं जबकि बाहर की बासनामय इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए लोग बाबा बनते हैं जबकि see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_27.html
संतों और बाबाओं में अंतर क्या है ?
अपनी संपत्ति लुटाकर लोग संत बनते हैं जबकि दूसरों की संपत्ति लूटने के लिए लोग बाबा बनते हैं ! जो सब कुछ छोड़कर संत बनें हों उनका वैराग्य विश्वास करने योग्य है और जो तरह तरह के सेवा कार्यों के बहाने समाज को लूट रहे हों उन पर भरोसा भी कैसे किया जाए ! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_25.html
जहाँ बैठकर लोग त्याग वैराग्य साधना संयम आदि का करते हुए तपस्या करें वो योग पीठ और जहाँ बैठकर बाबा केवल अपना व्यापार बढ़ाने विषय में सोचें दिनभर राजनीति करें वो कहने की योग पीठ वस्तुतः तो भोग पीठ ही है
जो अपने योग बल के द्वारा अपनी एवं औरों की भी सुरक्षा करे वो योगी जो अपने किए हुए भोगों से भयभीत होकर अपनी सुरक्षा के लिए औरों से गिड़गिड़ाए वो कैसा योगी ?
मीडिया -
अब ठहरे कलियुगी बाबा उन्हें शहरों कस्बों में डर लगता है !
पहले चरित्रवान योगी और संत लोग होते थे वे योग और तपस्या के द्वारा अपने शरीर को बज्र बना लेते थे उनका जंगलों में भी कोई बालबाँका नहीं कर पाता था भरद्वाज ,अगस्त ,अत्रि जैसे तपस्वी ऋषि जंगल में पड़े रहे थे रावण आदि राक्षस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे !
पहले बड़े बड़े राजा लोग अपनी सुरक्षा का आशीर्वाद संतों से माँगने जाया करते थे किन्तु अब कलियुग का पाप प्रभाव ही है कि अपने को संत और योगी कहने वाले लोग अपने लिए सुरक्षा सरकारों से माँगा करते हैं !
आश्रम या ऐय्यासाश्रम
जहाँ अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से रहित त्याग वैराग्य आदि तपोमय जीवन जीया जाए वो तो आश्रम और जहाँ भोग विलास सभी वस्तुओं जुटाने भोगने की होड़ लगी हो उसे ऐय्यासाश्रम कहते हैं
घर के व्यस्त प्रपंचों से अलग हटकर उपासनामय जीवन व्यतीत करने के लिए लोग संत बनते हैं जबकि बाहर की बासनामय इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए लोग बाबा बनते हैं जबकि see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_27.html
संतों और बाबाओं में अंतर क्या है ?
अपनी संपत्ति लुटाकर लोग संत बनते हैं जबकि दूसरों की संपत्ति लूटने के लिए लोग बाबा बनते हैं ! जो सब कुछ छोड़कर संत बनें हों उनका वैराग्य विश्वास करने योग्य है और जो तरह तरह के सेवा कार्यों के बहाने समाज को लूट रहे हों उन पर भरोसा भी कैसे किया जाए ! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_25.html
बिना वैराग्य वाले बाबालोग जब अपने नहीं हुए, अपनों के नहीं हुए तो आपके क्या होंगे ?
कई लोग संत बन कर साधना करने का सपना लेकर वैराग्य लेते हैं किंतु पूर्व जन्म के पापों के प्रभाव से पूजापाठ में मन नहीं लगता फिर साधना पथ से भटके हुए ऐसे लोग सेवाकार्यों के बहाने अपना जीवनबोझ ढोना प्रारम्भ कर देते हैं और बड़े बड़े स्कूल, अस्पताल आदि चलाने का नारा देकर जुटाने लगते हैं चंदा और करने लगते हैं व्यवस्था परिवर्तन के लिए सेवाकार्य,स्वदेशी कार्य,शुद्ध कार्य ,स्वाभिमानीकार्य,और सरकार सहयोगीकार्य इसके बाद सरकार कार्य और इन सबके बाद धीरे धीरे निपट आती है जिंदगी !जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें स्वामी जी मानाने वाले लोग सेठ जी मानने लगते हैं, नेता जी मानने लगते हैं किन्तु सधुअई ठगी सी निहार रहीं होती है इनकी विरक्त वेष भूषा !ऐसे लोग जब अपनी ओर देखते हैं तो याद आते हैं वो सब बेकार कार्य जिनमें जीवन भटका दिया! तब पता लगा कि उन कार्यों के लिए तो ईश्वर ने औरों को बनाया था जिनमें आप उलझे गए आपने तो वैराग्य लेकर ईश्वर आराधना का बचन भगवान को दिया था जो केवल तुम्हें ही पूरा करना था किन्तु उसे तुम पूरा नहीं कर सके, आपके उन बचनों को कोई और पूरा नहीं कर सकता !अब उनके लिए एक और जन्म लेना पड़ेगा !
ढोंगी, भोगी और योगी की पहचान कैसे हो !
साधू बनकर जो संपत्ति बढ़ाने के लिए अनेकों प्रपंचों में व्यस्त हों वो ढोंगी इनसे बचो ! जो संपत्ति के द्वारा राजसी भोग भोग रहे हों तो भोगी इनसे बचो ! किन्तु जो संपत्ति और भोगभावना दोनों से मुक्त होकर साधना का पवित्र अभ्यास करते हुए दिव्यता की ओर बढ़ रहे हों वही योगी होते हैं ऐसे अवतारी पुरुषों की चरण रज कई पीढ़ियाँ पवित्र कर देती है उन्हें खोजो !
जहाँ बैठकर लोग त्याग वैराग्य साधना संयम आदि का करते हुए तपस्या करें वो योग पीठ और जहाँ बैठकर बाबा केवल अपना व्यापार बढ़ाने विषय में सोचें दिनभर राजनीति करें वो कहने की योग पीठ वस्तुतः तो भोग पीठ ही है
जो अपने योग बल के द्वारा अपनी एवं औरों की भी सुरक्षा करे वो योगी जो अपने किए हुए भोगों से भयभीत होकर अपनी सुरक्षा के लिए औरों से गिड़गिड़ाए वो कैसा योगी ?
मीडिया -
पाखंडी बाबाओं ,पाखंडी ज्योतिषियों और पाखंडी तांत्रिकों से मोटे मोटे पैसे लेकर उनके विषय में झूठ मूठ की कल्पित कहानियाँ गढ़कर पहले उनकी प्रशंसा किया करते हैं और जब ऐसे बाबा,ज्योतिषी,तांत्रिक आदि खूब प्रचारित हो जाते हैं तो मीडिया को घास डालना बंद कर देते हैं ऐसे पाखंडियों के साथ मिलजुल कर धर्म के नाम पर जनता को लूटने का सपना भांग होते ही कुंठित मीडिया पागल हो उठता है और गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हुए धर्म कर्म ,ज्योतिष एवं तंत्र आदि जैसे गंभीर शास्त्रीय विषयों को बताने लगता है अंध विश्वास ! उस समय मीडिया को यह होश भी नहीं रहता है कि भारत सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष एवं तंत्र आदि विषयों को पढ़ाने के लिए डिपार्टमेंट हैं और जहाँ सब्जेक्ट के रूप में ये विषय पढ़ाए जाते हैं तो क्या भारत सरकार अंधविश्वास को पढ़वाती होगी ऐसी कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !मीडिया यदि अपना लोभ रोक सके और कानून शक्ति से इसके विरुद्ध नियम बनावे और इसे रोकने के लिए अभियान चलावे और इन विषयों से जुड़े विज्ञापन देने से पहले उनकी डिग्रियाँ चेक करे कि ज्योतिष और तंत्र आदि विषयों में काम करने के शौकीन एवं अपना प्रचार प्रसार करवाने के इच्छुक लोग डिग्री होल्डर हैं या झोला छाप हैं और यदि डिग्री होल्डर हैं तो उन्हें अंध विश्वास फैलाने वाला कैसे माना जा सकता है और जो अधिकारी नहीं हैं उन्हें जिसे जो मन आवे सो समझे उनके साथ कानून जैसे चाहे वैसे निपटे !किन्तु इतना सच है कि यदि मीडिमीडिया चाहे तो ये पाप बंद किया जा सकता है !
घर परिवार व्यवहार एवं सभी प्रकार के व्यापारों का परित्याग करके साधू संत बनने वाले लोग फिर प्रेमिकाएँ पालें, भोग सामग्रियाँ जुटावें,व्यापार या राजनीति करने लगें आखिर यदि यही करना था तो पहले घरद्वार छोड़कर निकलने की जरूरत क्या थी और यदि अपने वैराग्य लेने के व्रत को बीच में छोड़कर भाग खड़े हुए लोगों के द्वारा आज कही जा रही बातों पर भरोसा कैसे किया जाए !ऐसे लोग आज अपने खाने पीने के विषय में सफाई देते क्यों घूमते हैं कि वो दिनभर में केवल एक ग्लास दूध या एक फल या एक रोटी खाते हैं आखिर वो क्यों बताते घूमते हैं ये उनका व्रत है जो उनके और ईश्वर के बीच का बंधन है वो समाज में ये बातें समाज को बताते क्यों घूमते हैं ये लोग और कितने विश्वसनीय होते हैं ये ?
व्यापार और राजनीति करने हेतु धनसंग्रह के लिए बाबा बनने का रिवाज ठीक नहीं !
धार्मिक वेष भूषा धारण करके समाज सेवा के नाम पर धन इकठ्ठा करके भोग विलास की सामग्रियों को जुटाने वाले बाबाओं पर विश्वास करना बंद किया जाए !,
सुख सुविधाओं के आदी बिलासी बाबाओं के अविश्वसनीय वैराग्य पर भरोसा करने वाले स्त्री पुरुष धर्म को जिम्मेदार न ठहराएँ हमारे धार्मिक महापुरुष बिलासी नहीं हो सकते !
हमारे धर्म के पूज्य साधू संत एक बार घर परिवार व्यापार आदि सारे प्रपंचों का त्याग कर घर से निकल जाते हैं तो दुबारा उसमें नहीं फँसते हैं और जो फँसते हैं उनमें वैराग्य ही नहीं है और जब वैराग्य नहीं तो साधू संत कैसे ?आखिर कोई संत अपने द्वारा की गई उलटी(वोमिटिंग) दोबारा कैसे ग्रहण कर सकता है !
जो बाबा अपने खाने पीने के संयम का ढिंढोरा पीटते हैं वे सबसे अधिक खतरनाक होते हैं जो कहते हैं हम एक ग्लास दूध पीकर रहते हैं एक फल कहते हैं कि हम केवल एक जूस
संदिग्ध के पीछे छिपी बिलासिता की भावना का बारीकी से अध्ययन किया जाए को पढ़ा जाए धर्म बाबाओं के द्वारा की जा रही ऐय्याशी बंद करने के उपाय सोचे सरकार !
अब ठहरे कलियुगी बाबा उन्हें शहरों कस्बों में डर लगता है !
पहले चरित्रवान योगी और संत लोग होते थे वे योग और तपस्या के द्वारा अपने शरीर को बज्र बना लेते थे उनका जंगलों में भी कोई बालबाँका नहीं कर पाता था भरद्वाज ,अगस्त ,अत्रि जैसे तपस्वी ऋषि जंगल में पड़े रहे थे रावण आदि राक्षस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे !
पहले बड़े बड़े राजा लोग अपनी सुरक्षा का आशीर्वाद संतों से माँगने जाया करते थे किन्तु अब कलियुग का पाप प्रभाव ही है कि अपने को संत और योगी कहने वाले लोग अपने लिए सुरक्षा सरकारों से माँगा करते हैं !
आश्रम या ऐय्यासाश्रम
जहाँ अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से रहित त्याग वैराग्य आदि तपोमय जीवन जीया जाए वो तो आश्रम और जहाँ भोग विलास सभी वस्तुओं जुटाने भोगने की होड़ लगी हो उसे ऐय्यासाश्रम कहते हैं
Saturday, 15 November 2014
कानपुर के जनप्रतिनिधियों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , अधिकारियों एवं कर्मचारियों से नैतिक निवेदन -
बात अब कानपुर की -
कानपुर में कोई चलता हुआ अत्यंत उपयोगी रास्ता यदि कोई अपने सोर्स और घूस के बल पर बंद कर देना चाहे तो क्या ईमानदार नेताओं और अफसरों को ऐसा होने देना चाहिए ! इस विषय में हमारी ओर से सभी जिम्मेदार महानुभावों से नैतिक एवं विनम्र निवेदन !-
बात कानपुर के कल्याणपुर कला क्षेत्र की है यहाँ पनकी रोड से पुराने शिवली रोड के बीच या आसपास की काफी बड़ी बस्ती के दिन रात आवागमन के लिए एक ही सीधा रास्ता है जो जवाहर लाल स्कूल के सामने पनकी रोड से प्रारंभ होकर गैस गोदाम के पास से होते हुए फूलेश्वर शिवमंदिर परिषर के बाउंडरी वाल के साथ साथ निकलकर यही रोड पुराने शिवली रोड में मिलता है इसमें अधिसंख्य लोगों की आवाजाही दिनरात लगी रहती है अभी तक ये रास्ता पूरी तरह से निरवरोध चल रहा है ।
पिछले वर्ष यह रोड सीमेंटेड किया गया था जिसमें बीच का करीब करीब
बीस फिट रास्ता किसलिए छोड़ दिया गया है निश्चित तौर पर कुछ कह पाना हमारे लिए कठिन है किन्तु यह पता है कि इतना रास्ता सीमेंटेड नहीं
किया गया है ,बाद में पता लगा कि रोड की यह जगह निजी उपयोग के लिए छोड़वा ली
गई है यहाँ सीमेंटेड रोड इसीलिए नहीं बनाया जाएगा और इस रास्ते को यहीं से बंद कर दिया जाएगा !
महोदय ! इस आम रास्ते का निजी तौर पर उपयोग करने के लिए छोड़वाना या छोड़ा जाना कितना न्यायोचित है क्या ऐसा किया जाना चाहिए या होने देना चाहिए !वह भी तब जबकि यह जगह विशुद्ध रूप से सरकारी और सार्वजनिक है । इससे जिसका रास्ता रुकेगा उस आम जनता का इसमें दोष आखिर क्या है !उस आवागमन को बाधित करने का समाजहित में उद्देश्य क्या है ?
अतएव आप से हमारा विनम्र निवेदन है कि जनहित को ध्यान में रखते हुए इस
रास्ते को अतिक्रमण मुक्त एवं अनवरत चालू रखने के लिए इस छोड़े गए रास्ते
को भी अविलम्ब सीमेंटेड करवा दिया जाना चाहिए इस काम में विलंब करने का
अर्थ अप्रत्यक्ष रूप से अतिक्रमण को प्रोत्साहित करना ही होगा जो आज रास्ता बाधित करने के रूप में समाज के लिए कष्टकारी होगा और आगे चलकर कुछ और लोग भी ऐसे लोगों से प्रेरित होकर यदि ऐसा करेंगे तो उन्हें कैसे और क्यों रोका जाएगा इसलिए ऐसे संभावित अतिक्रमणों को रोकने के लिए यहाँ यथा संभव शीघ्रातिशीघ्र सीमेंटेड रोड बना दिया जाना चाहिए !
सम्बंधित जगह का मैप
सम्बंधित जगह का मैप
इस मैप में संबंधित जगह का संकेत काले रंग से किया गया है!
Sunday, 26 October 2014
जियो और जीने दो के सिद्धांतों पर मनाए जाते हैं हिन्दुओं के तिथि त्यौहार !
जो अपना त्यौहार मनाने के लिए औरों की कुर्बानी देते हैं उन्हें कैसे सहा जाए ! बलि के नाम पर अपने शिर काटकर भगवान शिव को समर्पित करने वाले रावण को भी राक्षस कहा जाता था किन्तु उन्हें क्या कहा जाए जो अपने त्योहारों के नाम पर दूसरे जीवों के शिर काट रहे हैं ?
जो त्यौहार मनाने के नाम पर किसी का गला काटते हैं और किसी से गले मिल रहे हैं उन पर भरोसा कैसे किया जाए !ये लोग ऐसे भयानक ढंग से मनाते हैं त्यौहार ! ऐसे लोगों के साथ रह पाना कितना कठिन है कितने निर्दयी होते हैं वे लोग !वो भी उन बेजुबान जीवों की कुर्वानी जिन्होंने किसी का कभी कुछ बिगाड़ा ही नहीं होता है आखिर किसी के त्योहारों से उन बेचारे जीवों का क्या सम्बन्ध जो निरपराध होने पर भी मारे जाते हैं ।
हमारे ऋषियों मुनियों ने त्योहारों की ऐसी पवित्र परिकल्पनाएँ की हैं जिनमें पशु पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के साथ हमारे पर्व मनाने की परंपरा है सब कुशल हों सब प्रसन्न हों ! जहाँ त्योहारों में साँपों को भी दूध पिलाने की परंपराएँ हैं जो साँप मनुष्य जाति को नुक्सान पहुँचा सकते हैं फिर भी ऐसे सर्पों का पूजन सम्मान करके भी हम मना लेते हैं त्यौहार ! हिंदुओं का दीपावली जैसा इतना बड़ा त्यौहार हो गया किन्तु सारे जीव जंतु प्रसन्न हो कर आशीर्वाद दे रहे हैं !
दूसरी ओर उनके त्यौहार मनाने की परंपरा है जिसमें बिना किसी जीव का खून बहाए त्यौहार ही नहीं मनाए जा सकते !निरपराध बकड़े ऊँट और जाने कौन कौन से बहुसंख्य जीवों की हत्या करके कहते हैं कि हमारा आज त्यौहार है अरे !जिस दिन असंख्य जीवों की जीवन लीला समाप्त की जा रही हो उनके परिवार उजाड़े जा रहे हों जीव जगत में हाहाकार मचा हो उस भयानक दिन को त्यौहार कैसे कहा जाए !
हिन्दू मंदिरों में साईं आखिर घुसे कैसे ! किसी चर्च,मस्जिद,या गुरुद्वारा में उनकी दाल क्यों नहीं गली ?
हिन्दुओं की लापरवाही का फल हैं साईं
- ईसाई लोगों का बाइबल अंग्रेजी भाषा में है इसलिए वो अंग्रेजी पढ़ते हैं जिससे बाइबल पढ़ते और समझते हैं ।
- मुस्लिम लोगों का कुरान उर्दू भाषा में है इसलिए वो उर्दू पढ़ते हैं जिससे कुरान पढ़ते और समझते हैं ।
- सिक्ख लोगों का पवित्र गुरुग्रंथ साहब पंजाबी भाषा में है इसलिए वो पंजाबी पढ़ते हैं जिससे गुरुग्रंथ साहब पढ़ते और समझते हैं ।
सनातनधर्मी हिन्दुओं के वेद आदि पवित्र ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं किंतु हिन्दू लोग संस्कृत भाषा पढ़ते नहीं हैं इसलिए वे न वेद समझ पाते हैं न पुराण न गीता न भागवत ! इसीलिए उन्हें उनके धर्म के नाम पर कोई कुछ भी सिखा समझाकर चला जाता है इसीलिए हिन्दुओं के धर्म स्थलों मंदिरों में कोई किसी की मूर्ति लगाकर चला जाता है कोई किसी की और कह देता है संस्कृत भाषा न पढ़ने के कारण तुम्हें तुम्हारे धर्म का ज्ञान नहीं है इसलिए भोगो इसका पाप और अपने सक्षम देवी देवताओं की उपस्थिति में भी अपने मंदिरों में ही पूजो साईं बुड्ढे को !अगले जन्म में जब संस्कृत पढ़ोगे तब पता लगेगा कि अपने देवी देवताओं को छोड़कर साईं को पूजकर कितना बड़ा पाप किया है तब करना पड़ेगा इसका प्रायश्चित्त !
Tuesday, 7 October 2014
" ईद वालों से शांति सद्भाव की क्या उम्मींद !"
बेजुबान जीवों के बध को कुर्बानी कैसे कह दें।
हिंसा मुक्त संस्कृति मेरी कैसे बदनामी सह लें ॥
जिस दिन निरपराध बकड़ों का होता हो भीषण संहार।
कहो बंधुओ !कैसे कह दें उस दारुण दिन को त्यौहार ॥
बकड़े बेबश खड़े कट रहे शोणित के फूटे फब्बार ।
रक्त रंजिता धरती माता शिर और खालों के अम्बार॥
ऐसा दुर्दिन दीख रहा जब जीवों में हो हाहाकार ।
हत्या दिन को कैसे मानें भाई चारे का त्यौहार ॥
अमन चैन का दिन कह करके कैसे इन्हें बधाई दूँ ।
बकड़े कोसेंगे मरकर क्यों उनसे ब्यर्थ बुराई लूँ ॥
जिनकी पर्व प्रथा हो ऐसी उनसे शांति की उम्मींद!
तब तक कैसे की जा सकती जब तक है ऐसी बकरीद ?
निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
बेजुवान पशुओं के बध का पर्व !
बेजुवान पशुओं के बध का पर्व कहें या अत्याचार ।
मानव होकर देख रहे हैं दानवता ये पशु संहार ॥
उधर गले काटते फिर रहे इधर गले मिलने का रोग ।
ऐसी कैसी ईद अजूबी यही पाक करता है ढोंग ॥
भारत वर्ष अहिंसा पूजक क्या युद्धों से डरता है ।
हिंसक पर्व पृथा वालों से आश शान्ति की करता है ॥
केर बेर का साथ चलेगा कब तक कैसे हो त्यौहार ।
पशुओं से क्यों छीना जाए उनके जीने का अधिकार ॥
जियो और जीने दो सबको सबका हो आपस में प्यार ।
सारी धरती अपना आँगन सारा जग अपना परिवार ॥
सबको ख़ुशी बाँट सकते हो सबसे कर सकते हो प्यार ।
सबके दुःख कम करके देखो ऐसा दिन होते त्यौहार
लेखक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
क्या आप अपने को सांप्रदायिक कहलाना पसंद करेंगे ?
त्यौहार किसी का गला किसी का काटा जाए,गले किसी के मिला जाए, बधाई किसी को दी जाए किन्तु सबसे बड़ी बिपत्ति जिन पशुओं पर पड़ी हो उनके प्रति किसी की कोई संवेदना नहीं !ऊपर से ऐसे दुर्दिन भाईचारे के पर्व बताए जाएँ !जिनकी आत्मा ऐसे अत्याचारों को न सह सके वे सांप्रदायिक !यदि ऐसा है तो हमें अपनी अहिंसक साम्प्रदायिकता पर गर्व है !
निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
बंधुओ !हिंसा हमारे सांस्कृतिक स्वभाव में ही नहीं हैं मैं क्या करूँ !
ऐसे हिंसक पर्वों की कैसे बधाई दूँ ! हमारे भी बच्चे हैं परिवार है प्रियजन हैं दूसरों की जान लेने का त्यौहार मनाने वालों का समर्थन करके हम अपनी एवं अपनों की जान जोखिम में नहीं डालना चाहते !!!हमें कोई सांप्रदायिक कहे तो कहता रहे !मुझे इस बात का दुःख नहीं हैं कि मैं आज उस भाईचारे के त्यौहार में सम्मिलित होने से बंचित हूँ !
निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
Thursday, 11 September 2014
साईं संग से बिगड़े लोगों को ईश्वर सदाचरण सहने की सामर्थ्य दे !
भगवान श्री राम जी,श्री कृष्ण जी ,श्री शिव जी,,श्री गणेश जी,,श्री दुर्गा जी आदि देवी देवताओं के सामने आखिर कहाँ ठहरते हैं साईं ?फिर भी उन्हें पैसे के बलपर घुसेड़ा गया सनातन धर्म के मंदिरों में इसे षडयंत्र न कहा जाए तो क्या कहा जाए ?
जिन लोगों की शिक्षा के स्तर से मैं परिचित नहीं हूँ उनकी कुतर्की बातों का जवाब देना अपना स्वभाव नहीं है अन्यथा शिक्षित लोगों के साथ शास्त्रीय संवाद करने में अपनी रूचि है और सत्य स्वीकार करने में हमें कोई संकोच भी नहीं होता है पहली बात तो जो शिक्षित होगा वो बेहूदे प्रश्न छेड़ेगा ही क्यों उसे पता होना चाहिए कि वह क्या बोल रहा है शास्त्रीय तर्क हैं तो रखे अन्यथा केवल गाली देने से बात कैसे बन सकती है । प्रायः जिसको जो बात समझ में नहीं आती है वो उसे बकवास ही समझता है ये उसकी मजबूरी भी है किन्तु कोई सुबुद्ध व्यक्ति भी ऐसे बीमारों की दवा कैसे कर सकता है । वैसे भी शेर की खाल ओढ़ कर कुछ देर के लिए तो गधे भी शेर बन सकते हैं किन्तु उनके चीपों चीपों बोलने से उनकी पोल खुल ही जाती है कई लोग अपने नाम के साथ देखा देखी ब्राह्मण जातियाँ लगा लेते हैं किन्तु ब्राह्मण जन्म और कर्म दोनों से मिलकर बनता है इसलिए साईं बाबा निर्मल बाबा या और भी ऐसे लोगों का पूजन भजन करने वाले लोग ब्राह्मण कैसे हो सकते हैं ब्राह्मण तो गायत्री का उपासक होता है वो श्री राम जी,श्री कृष्ण जी ,श्री शिव जी,,श्री गणेश जी,,श्री दुर्गा जी आदि देवी देवताओं की जगह साईं टाईप के लोगों को कैसे पूज सकता है !गाय का दूध छोड़कर गधी का दूध पीने वाले की गो निष्ठा पर केवल यह कह देने मात्र से भरोसा कैसे कर लिया जाए कि वह तो गो भक्त है क्योंकि यदि यह सच होता तो वह गधी का दूध पीता ही क्यों ?इसी प्रकार से श्री राम जी,श्री कृष्ण जी ,श्री शिव जी,,श्री गणेश जी,,श्री दुर्गा जी आदि देवी देवताओं पर अविश्वास करके साईं पूजने वाले लोगों को सनातन धर्मी मान ही कैसे लिया जाए !
Sunday, 24 August 2014
जिसने मरना सीख लिया है
जिसने मरना सीख लिया है
जीने का अधिकार उसी को
जो काँटों के पथ पर आया
फूलो का उपहार उसी को
जिसने गीत सजाये अपने
तलवारो के झनझन स्वर पर
जिसने भैरव राग अलाप
े रिमझिम गोली के वर्सन पर
जो वलिदानो का प्रेमी है
इस जगती का प्यार उसी को
जीने का अधिकार उसी को
जो काँटों के पथ पर आया
फूलो का उपहार उसी को
जिसने गीत सजाये अपने
तलवारो के झनझन स्वर पर
जिसने भैरव राग अलाप
े रिमझिम गोली के वर्सन पर
जो वलिदानो का प्रेमी है
इस जगती का प्यार उसी को
Thursday, 21 August 2014
ब्राह्मणवाद या सवर्णवाद जैसी संकीर्ण सोच ईश्वर शत्रुओं को भी न दे !
सवर्णों ने किसी का शोषण कभी किया ही नहीं है किन्तु अपना शोषण सहा भी नहीं है और दलितों ने सहा है आज भी सहते जा रहे हैं फिर भी दोष सवर्णों को देते हैं आखिर आरक्षण की इच्छा ही क्यों अपनी भुजाओं के भरोसे स्वाभिमान पूर्वक क्यों नहीं जीना सीखते !
सवर्णों ने कभी किसी जाति का शोषण नहीं किया है हाँ अपना शोषण किसी को करने भी नहीं दिया है !सवर्ण लोग अपनी जाति वाले अपराधियों को भी क्षमा नहीं करते रावण को मारने की माँग ब्राह्मणों ने ही उठाई थी इसी प्रकार से क्षत्रिय लोगों ने युद्ध हमेंशा क्षत्रिय राजाओं के विरुद्ध लड़े हैं !
समाज के कुछ कामचोर,अकर्मण्य मक्कार लोग बिना किसी योग्यता के बिना कुछ किए धरे बहुत सारा धन इकठ्ठा करके सुख सुविधा पूर्ण का जीवन जीना चाहते हैं ऐसे सफेदपोश लोग जातिवाद क्षेत्रवाद संप्रदायवाद आदि के बलपर समाज को बरगलाकर अपना घर भरते हैं जबकि ऐसे लोग किसी जाति क्षेत्र या संप्रदाय से कोई ख़ास सम्बन्ध नहीं रखते इन्हें केवल अपना शरीर और अपने परिवार आदि का ही घर भरने के लिए जातिवाद क्षेत्रवाद संप्रदायवाद आदि का मुखौटा ओढ़ना पड़ता है और ये शोषण की प्रवृत्ति अनादि काल से चली आ रही है ये कुछ लालच देकर समाज के किसी एक वर्ग को अपना निशाना बनाते हैं उसे पहले अपने चंगुल में फँसाते हैं और फिर बेइज्जती तो उनकी कराते हैं और घर अपना भरते हैं ये लोग सवर्ण होने के बाद भी सवर्णों का और दलित होने के बाद भी दलितों का शोषण करने में हिचकते नहीं हैं । सवर्णों में भी गरीब लोग हैं उन्होंने गरीबत सह ली है किन्तु इन सामाजिक दलालों के हाथ अपना सम्मान स्वाभिमान बेचा नहीं है । जो लोग इनके दिए लालच में फँस गए वे आजतक आरक्षण के भिखारी बने हुए हैं वो दलाल आरक्षणार्थियों को बहुत कुछ दिला चुके हैं बहुत कुछ दिला रहे हैं और बहुत कुछ आगे दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं फिर भी लेने वाले गरीब ही बने हैं और दलालों की मौज हो रही है अब उन दलालों की निगाहें जाति,क्षेत्र, संप्रदायवाद आदि के नाम पर सवर्णों की भी शान्ति भंग करने पर लगी हुई हैं जिससे सवर्णों या सम्पूर्ण समाज को सतर्क रहने की आवश्यकता है । मुझे ऐसे लोगों की सलाहें आजकल खूब आ रही हैं ।
बंधुओ ! ब्राह्मणवाद से ब्राह्मणों को कुछ नहीं मिलेगा आखिर संख्या कितनी है ब्राह्मणों की ! इस लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं इसलिए सारी समाज को साथ लिए बिना न ब्राह्मणों का भला हो सकता है और न ही समाज का ! ब्राह्मणवाद या सवर्णवाद पनपाने से राजनीति में ब्राह्मण और सवर्ण वाद के नाम पर दलितों की तरह ही ब्राह्मणों और सवर्णों में भी कुछ नए चौधरी तैयार होकर राजनीति में कुछ पद प्रतिष्ठा पा जाएँगे इसके अलावा और क्या होगा जो पार्टी या सरकार उनका और उनके सगे सम्बन्धियों का हित साधन नहीं करेगी तब सवर्णों में स्वाभिमान की हवा भरकर सवर्ण भीड़ें इकट्ठा करके सरकारों पर दबाव बनाया जाएगा और जैसे ही पार्टी और सरकारें दबाव में आ जाएँगी तो अपना निजी हित साधन होगा ! भिखारी बनाकर खड़े तो सारे सवर्ण किए जाएँगे किन्तु फायदा केवल सवर्णों के स्वयंभू चौधरी उठाएँगे !
दलितों के मसीहा लोगों ने सवर्णों को बदनाम कर करके केवल अपने घर भरे हैं दलितों को कुछ नहीं दिया है दलित जहाँ थे वहीँ हैं उन दलितों के चौधरियों की अकूत सम्पदा की आज जाँच होनी चाहिए कि वह आई कहाँ से ?जाँच का दायरा इस प्रकार का बने कि जिस दिन वो राजनीति में आए थे तब उनके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है जो संपत्ति बढ़ी है वह आई कहाँ से ! उचित तो ये है कि ऐसी जाँच सभी नेताओं की होनी चाहिए किन्तु दलित नेताओं की इसलिए जरूर होनी चाहिए क्योंकि उनकी गरीबत के लिए सवर्णों को कोसा जाता रहा है आखिर यह सच जनता के सामने आना तो चाहिए कि दलितों के नाम पर दी जा रही आरक्षण आदि सुविधाएँ आखिर जा कहाँ रही हैं !
दलितों से आरक्षण की भीख मँगवा मँगवा कर दलित नेताओं ने उन्हें तो सरकारी भिखारी सिद्ध करवा दिया और लाभ स्वयं लेते रहे दलित नेताओं को आप स्वयं देखिए आज खुद तो अनाप शनाप प्रॉपर्टियाँ बना रहे हैं बड़े बड़े उद्योग लगा रहे हैं और जहाजों पर चढ़े घूम रहे हैं किन्तु उन दलित बेचारों को क्या मिला जिनका मिस यूज हुआ !
मैं कभी नहीं चाहूँगा कि ब्राह्मणवाद या सवर्णवाद फैलाकर सवर्णों को इसप्रकार का बेचारा बनाकर कभी सरकार के सामने भीख का कटोरा पकड़ा कर खड़ा किया जाए !और जो लोग इस प्रकार के विचारों से हमें जोड़ने के लिए संपर्क भी कर रहे हैं मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ क्योंकि मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि इतनी संकीर्ण सोच का हमें मित्र तो नहीं ही मिले किन्तु शत्रु भी न मिले जो जाति क्षेत्र और धर्म के नाम पर आरक्षण की भीख माँगकर समाज पर बोझ बन कर जिए और अपने पिछड़ेपन का दोष किसी और पर मढ़ता रहे आखिर जब उनके पूर्वजों का या उनका शोषण हुआ था तभी उन लोगों ने इसका विरोध करके अपने को बचाया क्यों नहीं था आज सवर्णों के पास कुछ हो या न हो सुखी हों या दुखी हों किन्तु आज भी कोई सरकार उनका मिसयूज कोई लालच देकर नहीं कर सकती! सरकारों और राजनैतिक दलों को भी पता है कि बेवकूफ किसे बनाया जा सकता है किसे नहीं ,जिसे बनाया जा सकता है वे उसे ही बनाते हैं सबको नहीं बना सकते !यही कारण है कि सरकारें और राजनैतिक दल एवं राजनेता सवर्णों को मान प्रतिष्ठा पूर्वक सम्मान स्वाभिमान की बातें बताकर पटाते हैं और असवर्णों (दलितों ) को रोटी अर्थात आरक्षण आदि सुविधाएँ दिखाकर पटाते हैं ! क्योंकि असवर्ण जाति क्षेत्र के नाम पर फिर उनसे जुड़ जाएगा किन्तु सवर्ण लोग अपनी जाति वाले अपराधियों को भी क्षमा नहीं करते रावण को मारने की माँग ब्राह्मणों ने ही की थी इसी प्रकार से क्षत्रिय लोगों ने युद्ध हमेंशा क्षत्रिय राजाओं के विरुद्ध ही लड़े हैं ये सवर्णों की जीवित मानसिकता का परिचय है इसी कारण सवर्णों को बेवकूप नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उन्हें पता है कि सवर्ण लोग सवर्णों के अपराध को भी सह नहीं पाएँगे !
आखिर ये व्यवहार दलित लोग दलित नेताओं के साथ क्यों नहीं करते हैं उनसे क्यों नहीं पूछते हैं बिना कुछ किए धरे उनकी अकूत संपत्ति बढ़ने का राज !आखिर जब वो राजनीति में आए थे तब उनके पास इतनी या इससे आधी चौथाई संपत्ति भी थी क्या ?
इन सब उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए मैं कभी नहीं चाहूँगा कि कोई भी सवर्ण अपने सम्मान स्वाभिमान की लगाम किसी अन्य सवर्ण को दे जो उसका मिसयूज करता रहे ।
Saturday, 16 August 2014
साईं प्रकरण पर शास्त्रार्थ में भी कुछ लोग स्वार्थ खोज रहे हैं आखिर क्यों ?
शास्त्रार्थ के नाम पर कुछ लोग धमकाते घूम रहे हैं कि उनके पास कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर कोई नहीं दे सकता !अर्थात यदि उनके प्रश्न जानना चाहते हो तो उनका आर्थिक पूजन करो !अन्यथा इतना सारा ड्रामा करने की अपेक्षा उन्हें अपने प्रश्न सीधे क्यों नहीं पूछ लेने चाहिए ! कुछ स्वयंभू विद्वान शास्त्रार्थ का नाम सुनकर ऐसा सक्रिय हो गए हैं कि उन्होंने इसमें भी दिमाग लगाना शुरू कर दिया है कि धनार्जन कैसे किया जाए !एक अपरिचित व्यक्ति पंडितों की वेष भूषा में हमसे मिलने आए उन्होंने नेट पर हमारे विषय में पढ़ा होगा कि मैं सनातन धर्मी हूँ और सनातन धर्म में फैलाए जा रहे पाखण्ड के विरोध में लिखता हूँ यह सब सोच समझकर उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी ने शास्त्रार्थ आखिर क्यों रखा है क्या वो केवल अपने को ही विद्वान समझ रहे हैं तो उनसे मैंने कहा निःसंदेह !वो बहुत बड़े विद्वान हैं दूसरी बात वो सनातन धर्म के शीर्ष धर्माचार्य हैं तीसरी बात उन्होंने सनातन धर्म में घुसपैठ करके पाखण्ड फैला रहे साईंयों के विरुद्ध आवाज उठाई है इसलिए समस्त सनातन धर्मियों के वैदुष्य पर उनका अधिकार भी है कि वो अपने शास्त्रीय कर्तव्य का निर्वहन करते हुए विद्वानों को उत्साहित करें कि विद्वान लोग आगे आएँ और सनातन धर्म को पाखण्ड मुक्त बनाने में अपने अपने दायित्व का निर्वाह करें !
इसपर उन विद्वान महानुभाव ने हमसे कहा कि मेरे पास पाँच प्रश्न ऐसे हैं जो मैं अगर साईं के पक्ष के लोगों से पूछ दूँ तो वो निरुत्तर होकर वापस चले जाएँगें इसी प्रकार से पाँच प्रश्न हमारे पास ऐसे भी हैं कि यदि वे प्रश्न हम सनातनधर्म के शास्त्रीय विद्वानों या शंकराचार्य जी से ही पूछ दें तो उन्हें निरुत्तर होकर वो सभा छोड़ने पर मजबूर होना होगा किन्तु मैं नहीं चाहता कि सनातन धर्म की बेइज्जती हो इसलिए ये बात मैं आपको बता रहा हूँ ! इस मैंने उनसे कहा कि आप अपने प्रश्नों के बारे में मुझे बताएँ आखिर वे प्रश्न क्या हैं तो उन्होंने अपने प्रश्न हमें बताने से यह कहते हुए मना कर दिया कि ये ऐसे नहीं होगा हम शास्त्रार्थ तो शास्त्रार्थ सभा में ही करेंगे तो मैंने उनसे कहा कि किसी भी सभा में मैं आपके शास्त्रीय प्रश्नों का उत्तर देने या शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हूँ बशर्ते ! आपकी शास्त्रीय शिक्षा और हमारी शिक्षा समान हो तो अन्यथा कई बार लोग आते हैं और चोंच लड़ाकर चले जाते हैं वो तो ये कहने लायक हो जाते हैं कि मैंने उनसे शास्त्रार्थ किया था किन्तु हमारी शैक्षणिक सामर्थ्य का उपहास हमें झेलना पड़ता है इसलिए मैं आपके प्रश्नों का सामना करने को तैयार हूँ बशर्ते आप हमारी शैक्षणिक सामर्थ्य का सामना करने को तैयार हों !उन्होंने हमारी शिक्षा के बारे में जानना चाहा तो मैंने यह लिंक उन्हें दे दिया - (यहलिंकदेखें-http://snvajpayee.blogspot.com/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html )
इस पर वो हम पर न केवल नाराज हुए अपितु बिना कोई कांटेक्ट नम्बर दिए हुए मुझे घमंडी कहते हुए वो चले गए -
मैंने उन्हें यह भी बताने की कोशिश की कि शंकराचार्य जी ने साईंयों को पहले समझाया था कि वो सनातन धर्म में भ्रष्टाचार फैलाने से बाज आएँ किन्तु साईंयों ने न केवल उनके शास्त्रीय आदेश की अवहेलना की अपितु पैसे का प्रदर्शन करते हुए कुछ मीडिया के लोगों एवं कुछ पंडित और बाबाओं का आर्थिक पूजन करके उन्हें अपने पक्ष में प्रभावित कर लिया और सनातन धर्मशास्त्रों के विरुद्ध साईं को भगवान बनाने के समर्थन में उन बेचारों से बयान दिलवाए जाने लगे टी.वी.चैनल भी साईंयों के द्वारा किए गए अपने आर्थिक पूजन से प्रभावित होकर न केवल साईंयों के गुण गाने लगे अपितु उनके समर्थन में धर्म संसद आयोजित करने लगे जिसमें धर्म एवं धर्म शास्त्रों का एक भी प्रमाण बोले बिना केवल चोंचें लड़वाई जाती रहीं जिसमें सनातन धर्म में फैलते पाखण्ड के विरोध में शंकराचार्य जी के द्वारा उठाई जा रही बातों को विवादित बयान बताया जाता रहा चूँकि टी.वी.चैनलों पर यह सब कुछ इतना अधिक फैल चुका था जिससे इस भ्रम का शास्त्रीय निराकरण होना बहुत आवश्यक हो गया था इसीलिए पक्षपाती मीडिया को एक तरफ करके अब शास्त्रार्थ सभा में लोगों को आमने सामने बात करने का अवसर मिलेगा और दोनों ओर से शास्त्रीय विचार सामने लाए जाएँगे ,जब साईँ समर्थक भी हमारे भाई बंधु ही हैं तो धर्मशास्त्रों की बातें उन्हें भी माननी होंगी यही धर्म है ।
वैसे भी शास्त्रार्थ का उद्देश्य कभी किसी को निरुत्तर करने का नहीं होता यह बात और है कि जिसका जैसा शास्त्रीय अध्ययन है वो उतनी देर उस शास्त्रीय बहस में टिक पाता है अंततः उसे पीछे हटना ही होता है किन्तु इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि पराजित हो गया इसलिए वो अयोग्य है अपितु उसका अभिप्राय यह लगाया जाना चाहिए कि वह अन्य लोगों की अपेक्षा शास्त्र का अधिक विद्वान था तब तो सम्मिलित हुआ शास्त्रार्थ में ! इसलिए सम्मान उसका भी होता है और होना भी चाहिए !
अब रही बात शास्त्रीय विद्वानों की एक से एक बड़े विद्वान सनातन धर्म में हो चुके हैं आज भी हैं और आगे भी होते रहेंगे दूसरी बात सनातन धर्म चूँकि सभी धर्मों से प्राचीन है और इसकी शास्त्रीय समृद्धि रूपी गाय हमेंशा हम सनातन धर्मियों पर उपकार करती रही है !यहाँ भी कुछ लोग तो इस गाय के ज्ञान रूपी दूध घी का आनंद लेते रहे तो कुछ लोग गाय के गोबर और मूत्र को लेकर न केवल उसकी दुर्गन्ध स्वयं सूँघते रहे अपितु समाज को भी बताते रहे कि देखो सनातन धर्मी लोग ऐसी गायों को पूजते हैं जिनके मल मूत्र में इतनी गंध होती है! इसके पीछे का कारण यह रहा कि उन्हें अपने अज्ञान के कारण हमेंशा यह लगता रहा कि गायों के भी मलमूत्र होता है और उसमें भी दुर्गन्ध होती है यह बात सनातन धर्मियों को पता ही नहीं है अन्यथा वो गाय के दूध का प्रयोग ही नहीं करते इस भ्रम में उन्होंने अपने को गाय के मल मूत्र का अन्वेषक मान लिया और समाज को चुनौती देते फिरने लगे कि मेरे पास गाय के विषय में कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो पूछ कर मैं बड़े बड़ों को निरुत्तर कर सकता हूँ किन्तु मैं पूछना इसलिए नहीं चाहता कि इससे सनातन धर्म की बेइज्जती हो जाएगी क्योंकि सनातन धर्मी गाय को पूजते हैं किन्तु उन्हें गाय के मल मूत्र के विषय में पता नहीं है यह खोज स्वयं मैंने ही की है !
एक दिन किसी विद्वान से वे ऐसे ही मिथ्या अहंकार बश उलझ गए कि जो मैं जानता हूँ वह किसी को पता नहीं है तो उस विद्वान ने उन्हें समझाया कि जब से सृष्टि बनी प्रारम्भ से ही लोग गाय के दुग्ध को अमृतोपम मानते रहे हैं और गाय के मल मूत्र को औषधि मान कर अनंत काल से उसका लाभ लेते रहे हैं !जैसे ही उन्होंने गाय के दूध और मल मूत्र के विषय में जानकारी दी तो उस शास्त्रार्थी अन्वेषक को अपने अज्ञान का पता लग गया और इन्हें बड़ा संकोच हुआ यह देखकर उन विद्वान महानुभाव ने समझाया कि गलती आपकी वहाँ नहीं है जहाँ आप समझ रहे हैं अपितु गलती वहाँ हुई है जिसे आप अभी भी समझना नहीं चाह रहे हैं उन्होंने पूछा कि वो कैसे ?
इस पर विद्वान ने कहा कि आपको अपने ज्ञान और ज्ञान के विषय में तो पता हो सकता है इसी प्रकार से आप कम या अधिक पढ़े लिखे भी हो सकते हैं यह तो सब कुछ संम्भव हैं किन्तु दूसरा किस विषय को कितना जानता है या नहीं, योग्य है या अयोग्य ,आपके प्रश्न का उत्तर वो दे सकता है या नहीं इन सबका मूल्यांकन आप नहीं कर सकते और यदि आप करते हैं तो ये आपकी सबसे बड़ी मूर्खता है !आखिर इस सृष्टि सागर में विद्या पर जितना अधिकार आपका है उतना ही किसी और का जितना परिश्रम आप कर सकते हैं उतना ही कोई और जितने विद्वान गुरु आपको मिल सकते हैं उतने ही किसी और को भी फिर आप किसी और को यह चुनौती कैसे दे सकते हैं कि आपके शास्त्रीय प्रश्नों के उत्तर कोई और दे ही नहीं सकता है !ऐसी धारणा वाले लोग शास्त्रीय स्वाध्याय के क्षेत्र में अपने जैसा हर किसी को समझने लगते हैं और जो विद्वान होता है वो दूसरे को भी विद्वान ही मानकर चलता है बाद में जो हो सो हो क्योंकि किसी विद्वान के मन में दूसरे विद्वान के परिश्रम का भी सम्मान होता है -
विद्वज्जनेव जानाति विद्वज्जन परिश्रमम् ।
इस विषय में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और हरिहर कृपालु जी के बीच शास्त्रार्थ की चर्चा मैंने भी सुनी है - जो शास्त्रार्थ हरिहर कृपालु जी की तरफ से ही टाला गया था रहें होंगे उसके कुछ सामाजिक कारण जिनके विषय में मुझे पता नहीं है किन्तु वे भी उद्भट विद्वान थे फिर भी धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज से किसी ने कह दिया कि संभवतः उन्होंने पराजय के भय से ऐसा किया होगा तो महाराज जी ने उसी क्षण उन्हें यह कहते हुए रोका कि शास्त्रार्थ में कभी किसी की पराजय नहीं होती हाँ विजय जरूर होती है किन्तु वो किसी व्यक्ति की नहीं होती अपितु विजय तो शास्त्र की ही होती है क्योंकि शास्त्रार्थ में हमेंशा तर्क भले कोई भी देता रहे किन्तु सर्व सम्मति से स्वीकार वही किया जाता है जो शास्त्रीय सच होता है तो शास्त्रार्थ से शास्त्र का एक नया अर्थ एक नया पक्ष एक नया अभिप्राय सामने आता है इससे कुछ लोगों के अथक परिश्रम से लाभ सारे शास्त्रीय समाज को हो जाता है उन्हें बिना किसी विशेष परिश्रम के एक नए अर्थ का लाभ हो जाता है जो अंततः सनातन धर्मियों की ज्ञान संपदा को बढ़ाने वाला होता है इससे लाभ तो सनातन धर्म का ही होता है ,क्योंकि मेरी जानकारी में शास्त्रार्थ की परंपरा किसी अन्य धर्म में नहीं है ! इसलिए इसका सबसे बड़ा लाभ उन लोगों को होता है जिनका अध्ययन बहुत अधिक नहीं होता है ।
इसलिए शास्त्रार्थ को किसी की जीत हार के रूप में न देखकर अपितु इसे शास्त्र की विजय के रूप में देखा जाना चाहिए !
Friday, 8 August 2014
मुक्त लेखन
जिंदगी में आप कितने खुश हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आपके कारण कितने लोग खुश हैं !
कुछ लोग कहते हैं कि साईं को संत मान कर पूजने में क्या बुराई है ?
साईं सेवक बंधुओं ! हमारा निवेदन मात्र इतना है कि पूज तो किसी को भी सकते हो पूजने में बुराई क्या है कण कण में ईश्वर का बास है तो उसी भावना से पूजिए फिर साईं कहाँ से आ गए !और यदि साईं को ही पूजना है तो सोच कर देखो जब साईं की प्राण प्रतिष्ठा का कोई मन्त्र नहीं होता है इसलिए इनकी प्राण प्रतिष्ठा तो हो नहीं सकती और साईं के अपने प्राण तो ऊपर जा चुके हैं संग मरमर पत्थरों में साईं के नाक मुख कान आदि बनाकर
लेकिन तुम्हारे बाप मरेंगे तो उनके आनंद-अनुभूति के, उनके समाधि के, उनके ध्यान के तुम हकदार नहीं हो जाओगे। भीतर का धन ऐसे नहीं दिया जाता कि उसकी वसीयत कर दी कि मरते वक्त जैसे वसीयत लिख गये कि मेरा सारा धन मेरे बेटे का और मेरी समाधि भी, और मेरा ध्यान भी इसी का। कि मेरे चार बेटे हैं तो चारों समाधि को बांट लेना। ध्यान या समाधि बांटी नहीं जाती, न दी जाती न ली जाती।
लेकिन तुम्हारे बाप मरेंगे तो उनके आनंद-अनुभूति के, उनके समाधि के, उनके ध्यान के तुम हकदार नहीं हो जाओगे। भीतर का धन ऐसे नहीं दिया जाता कि उसकी वसीयत कर दी कि मरते वक्त जैसे वसीयत लिख गये कि मेरा सारा धन मेरे बेटे का और मेरी समाधि भी, और मेरा ध्यान भी इसी का। कि मेरे चार बेटे हैं तो चारों समाधि को बांट लेना। ध्यान या समाधि बांटी नहीं जाती, न दी जाती न ली जाती।
दो. जौं चाहउ सुख शांति घर भरा रहै धन धाम ।शुभ प्रभात तौ बोलना मित्रो 'जय श्री राम '॥
प्रिय तुम मेरे स्वप्न नहीं हो,जीवन की सच्चाई हो !
कोमल दिल का स्पंदन हो,धड़कन की शहनाई हो !
मनुष्य कितना मूर्ख है |
प्रार्थना करते समय समझता है कि भगवान सब सुन रहा है,
पर निंदा करते हुए ये भूल जाता है।
पुण्य करते समय यह समझता है कि भगवान देख रहा है,
पर पाप करते समय ये भूल जाता है।
दान करते हुए यह समझता है कि भगवान सब में बसता है,
सनातन धर्म की परंपरा में असंख्य बड़े बड़े तपस्वी सिद्ध महापुरुष हुए हैं किसके किसके नाम गिनावें कोई छूट न जाए इस भय से मैं सभी को प्रणाम कर लेता हूँ ,सूर ,तुलसी ,मीरा जैसे और भी अनेकों भक्त कवि हुए हैं जिन्हें अवतारी महापुरुष मानने में कोई बुराई नहीं है जिन्होंने भक्ति सरिता बहाई है अपने जिस परंपरा में
"अच्छा समय और अच्छी समझ एक साथ कभी किसी को नहीं आते समय आता है तब समझ नहीं होती और समझ होती है तो समय निकल जाता है !"
विवादों में रहने वाली बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन नहीं छोड़ना चाहती है भारत P-7 News
भारत छोड़ना कौन चाहता है नवाज शरीफ आए थे तो बार बार ऐसे घूम घूम कर भारत में आकर अच्छा लगने की बात पत्रकारों को बता रहे थे लग रहा था कि वो भी कहीं ऐसा ही न सोच लें कि यहाँ आकर जब इतना अच्छा लगा तो यहाँ रहने पर न जाने कितना अच्छा लगेगा और सच भी यही है तसलीमा नसरीन ने तो रहकर भी देख लिया कि इन आधुनिकता के झंझावातों के विकार भारत में भी आ गए होंगे ये माना जा सकता है किन्तु इन सबके बाद भी संस्कारों के देश भारत में अभी भी बुराई को बुराई कहने और मानने की परंपरा है और एक दूसरे के अच्छे विचार बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करने की परंपराएं सुरक्षित हैं कुछ विकारों और भ्रष्टाचारों के बाबजूद शासक और शासितों के बीच आपसी विश्वास कायम है ! शास्त्रीय संस्कारों के देश भारत की क्षमा भावना को विश्व जानता है यहाँ बड़े से बड़े अपराधी अत्याचारी आतंकवादी जैसे मानवता के शत्रुओं को भी न्याय पाने का पूर्ण अवसर दिया जाता है हमारी उदात्त भावना से विश्व सुपरिचित है !इसीलिए तो कहा गया है कि -
"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा "
क्या निर्मम अपराधी हो सकते हैं नाबालिग?-IBN-7
क्यों नहीं !अपराध सोचे तो मन से जाते हैं विशेषकर सेक्सापराध और उनका निश्चय भी मन से ही किया जाता है सेक्सानन्द लेने की इच्छा भी मन में ही होती तन तो मन की आज्ञा का पालन करते हुए उस सोच की मात्र मदद करता है मूल कारण तो मन ही है और मन कभी बालिक या नाबालिक नहीं होता है वो तो हमेंशा एक जैसा रहता है इसलिए नाबालिक बच्चे अपराध भी कर सकते हैं और निर्मम अपराध भी !बशर्ते उनका शरीर उस लायक हो !
अंगार न लिखना मित्र कभी झुलसेंगे लोग तवाही से ।
श्रंगार लिखा यदि तो टूटेंगे तटबंध मनाही के ॥
यदि प्यार लिखा तो दुराचार की ओर बढ़ रही तरुणाई । अब सदाचार संस्कार लिखो अति उत्तम शिष्टाचार लिखो !
लेखक -दो. शेष नारायण वाजपेयी
किस्मत वो तवायफ है, जो सिर्फ मेहनत करने वालों के
साथ सोती है।
साथ सोती है।
Thursday, 7 August 2014
kaangres
संविधान की तौहीन है बेनीवाल को हटाना: कांग्रेस-IBN-7
किन्तु अयोध्या आंदोलन के समय भाजपा की चारों सरकारें क्यों बर्खास्त कर दी गई थीं और ये काम किया किसने था अगर ये मान भी लिया जाए कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था को बनाए एवं बचाए रखने में सफल नहीं हुई तो केवल उत्तर प्रदेश सरकार पर कार्यवाही होती वहां तक तो ठीक माना भी जा सकता था किन्तु अलग अलग प्रदेशों की जनता ने उन उन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें चुनी थीं उस जनता की इच्छा के विरुद्ध उन उन प्रदेशों की सरकारों को क्यों हटाया गया था आखिर उनका क्या दोष था ?तब कहाँ चली गई थी नैतिकता ?
धर्म परिवर्तन
गाजियाबाद: धर्म परिवर्तन के बाद नाबालिग से रेप -अमर उजाला
बंधुओ ! अभी मेरठ की घटना ठंडी हुई भी नहीं थी कि गाजियाबाद में भी ....!
आखिर ये सब हो क्या रहा है उ.प्र. की सपा सरकार समेत सभी धर्म निरपेक्ष नामक दल हमेंशा हिन्दू संगठनों को कोसा करते हैं इन जड़ लोगों ने वोट लोभ के कारण ही सच्चाई छिपाने के लिए हिन्दू संगठनों को भगवा आतंकवादी कहा होगा।जो लोग ऐसा अक्सर कहा करते हैं कहीं उन लोगों का इस धर्म परिवर्तन से कोई सम्बन्ध तो नहीं है ! यदि मेरठ और गाजियाबाद में दो घटनाएँ एक ही प्रकार की सामने आती हैं और लगभग एक ही समय आती हैं इसका मतलब यह भी तो हो सकता है कि ये सब कुछ पहले से ही बड़े पैमाने पर चल रहा है किन्तु सारा मामला प्रकाश में आ ही न पा रहा हो संभव ये भी है कि मोदी जी की सरकार आ जाने के कारण अब ऐसे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस हो गया है हो सकता है कि इससे पहले ऐसे लोगों की आवाज दबा दी जाती रही हो किन्तु इस क्षेत्र में इस तरह की घटनाएँ अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण हैं मुस्लिम बंधुओं को चाहिए कि वे ऐसी घटनाओं का पर्दाफाश करने के लिए स्वयं आगे आएँ और प्रशासन का सहयोग करें साथ ही ऐसे तत्वों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए !अन्यथा यदि ये काम हिन्दू समाज को करना पड़ा तो तनाव बढ़ भी सकता है क्योंकि बच्चियों पर हो रहे अत्याचारों पर सहनशीलता दिनोंदिन जवाब देती जा रही है !
राहुल गांधी
संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है- राहुल गांधी
किन्तु राहुल जी ! वो एक व्यक्ति अपनी बात बोलता है इसलिए उसकी सुनी जा रही है और उसकी सरकार है इसलिए उसकी सुनी जा रही है आपको बुरा क्यों लग रहा है जो बोलेगा उसी की तो सुनी जाएगी आप तो किसी और के द्वारा लिखा लिखाया पढ़ते हो कहाँ तक सुने जाएँ वही पुराने धुराने आरोप वही घिसे पिटे भाषण ! एक बार केवल कलावती की कथा सुनाई थी आपने जिसमें कोई विशेष बात नहीं थी, सुना है संसद का समय बहुमूल्य होता है जनता का धन खर्च होता है इस पर तो वहाँ जनता के कामों के लिए ही चर्चा हो तो वही अच्छा होगा कलावती की कथा सुनाने के लिए तो नहीं ही होगा वो तो कहीं भी सुनाई जा सकती है ।
संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है- राहुल गांधी
वैसे भी राहुल जी ! जो सरकार आपके द्वारा कलावती की कथा सुनती रही उसका तो मोक्ष हो गया ! ये सरकार अभी नई बनी है ये अपना मोक्ष क्यों चाहेगी !इसलिए आपकी कथा नहीं सुन रही है !
संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है-राहुल गांधी
राहुल जी ! जनता बातें करने वाले को नहीं अपितु काम करने वाले को पसंद करती है और उसी की सुनती है ! आपको जनता ने काम करने को दस वर्ष समय दिया तब आप काम करने की जगह कलावती की कहानियाँ सुनाते रहे और आपकी सरकार बेकार निकल गई अब आपकी बात आखिर क्यों सुनी जाए नया क्या बताओगे अगर कुछ करना आपके बश का ही होता तो तब करके दिखा देते जब आपकी सरकार थी अन्यथा आज बताने की क्या जरूरत !
संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है-राहुल गांधी
किन्तु राहुल जी !लोकतंत्र में तो जनता ही सर्वोपरि होती है जिसकी जनता सुनती है उसी की सब सुनते हैं लेकिन अबकी चुनावों में आपकी बात जनता ने ही नहीं सुनी तो कोई क्यों सुने !जब तक जनता ने आपकी सुनी तो लोग भी आपकी कथा कहानियां सुन सुन कर मेजें थपथपाते रहे किन्तु आज वही आपकी आलोचना कर रहे हैं क्योंकि आज जनता जनार्दन ने आपसे मुख फेर लिया है !
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