बाबा बर्बाद करते हैं संत सुधार करते हैं ! see more....http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/11/blog-post_16.html
घर के व्यस्त प्रपंचों से अलग हटकर उपासनामय जीवन व्यतीत करने के लिए लोग संत बनते हैं जबकि बाहर की बासनामय इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए लोग बाबा बनते हैं जबकि see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_27.html
संतों और बाबाओं में अंतर क्या है ?
अपनी संपत्ति लुटाकर लोग संत बनते हैं जबकि दूसरों की संपत्ति लूटने के लिए लोग बाबा बनते हैं ! जो सब कुछ छोड़कर संत बनें हों उनका वैराग्य विश्वास करने योग्य है और जो तरह तरह के सेवा कार्यों के बहाने समाज को लूट रहे हों उन पर भरोसा भी कैसे किया जाए ! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_25.html
जहाँ बैठकर लोग त्याग वैराग्य साधना संयम आदि का करते हुए तपस्या करें वो योग पीठ और जहाँ बैठकर बाबा केवल अपना व्यापार बढ़ाने विषय में सोचें दिनभर राजनीति करें वो कहने की योग पीठ वस्तुतः तो भोग पीठ ही है
जो अपने योग बल के द्वारा अपनी एवं औरों की भी सुरक्षा करे वो योगी जो अपने किए हुए भोगों से भयभीत होकर अपनी सुरक्षा के लिए औरों से गिड़गिड़ाए वो कैसा योगी ?
मीडिया -
अब ठहरे कलियुगी बाबा उन्हें शहरों कस्बों में डर लगता है !
पहले चरित्रवान योगी और संत लोग होते थे वे योग और तपस्या के द्वारा अपने शरीर को बज्र बना लेते थे उनका जंगलों में भी कोई बालबाँका नहीं कर पाता था भरद्वाज ,अगस्त ,अत्रि जैसे तपस्वी ऋषि जंगल में पड़े रहे थे रावण आदि राक्षस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे !
पहले बड़े बड़े राजा लोग अपनी सुरक्षा का आशीर्वाद संतों से माँगने जाया करते थे किन्तु अब कलियुग का पाप प्रभाव ही है कि अपने को संत और योगी कहने वाले लोग अपने लिए सुरक्षा सरकारों से माँगा करते हैं !
आश्रम या ऐय्यासाश्रम
जहाँ अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से रहित त्याग वैराग्य आदि तपोमय जीवन जीया जाए वो तो आश्रम और जहाँ भोग विलास सभी वस्तुओं जुटाने भोगने की होड़ लगी हो उसे ऐय्यासाश्रम कहते हैं
घर के व्यस्त प्रपंचों से अलग हटकर उपासनामय जीवन व्यतीत करने के लिए लोग संत बनते हैं जबकि बाहर की बासनामय इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए लोग बाबा बनते हैं जबकि see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_27.html
संतों और बाबाओं में अंतर क्या है ?
अपनी संपत्ति लुटाकर लोग संत बनते हैं जबकि दूसरों की संपत्ति लूटने के लिए लोग बाबा बनते हैं ! जो सब कुछ छोड़कर संत बनें हों उनका वैराग्य विश्वास करने योग्य है और जो तरह तरह के सेवा कार्यों के बहाने समाज को लूट रहे हों उन पर भरोसा भी कैसे किया जाए ! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/05/blog-post_25.html
बिना वैराग्य वाले बाबालोग जब अपने नहीं हुए, अपनों के नहीं हुए तो आपके क्या होंगे ?
कई लोग संत बन कर साधना करने का सपना लेकर वैराग्य लेते हैं किंतु पूर्व जन्म के पापों के प्रभाव से पूजापाठ में मन नहीं लगता फिर साधना पथ से भटके हुए ऐसे लोग सेवाकार्यों के बहाने अपना जीवनबोझ ढोना प्रारम्भ कर देते हैं और बड़े बड़े स्कूल, अस्पताल आदि चलाने का नारा देकर जुटाने लगते हैं चंदा और करने लगते हैं व्यवस्था परिवर्तन के लिए सेवाकार्य,स्वदेशी कार्य,शुद्ध कार्य ,स्वाभिमानीकार्य,और सरकार सहयोगीकार्य इसके बाद सरकार कार्य और इन सबके बाद धीरे धीरे निपट आती है जिंदगी !जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें स्वामी जी मानाने वाले लोग सेठ जी मानने लगते हैं, नेता जी मानने लगते हैं किन्तु सधुअई ठगी सी निहार रहीं होती है इनकी विरक्त वेष भूषा !ऐसे लोग जब अपनी ओर देखते हैं तो याद आते हैं वो सब बेकार कार्य जिनमें जीवन भटका दिया! तब पता लगा कि उन कार्यों के लिए तो ईश्वर ने औरों को बनाया था जिनमें आप उलझे गए आपने तो वैराग्य लेकर ईश्वर आराधना का बचन भगवान को दिया था जो केवल तुम्हें ही पूरा करना था किन्तु उसे तुम पूरा नहीं कर सके, आपके उन बचनों को कोई और पूरा नहीं कर सकता !अब उनके लिए एक और जन्म लेना पड़ेगा !
ढोंगी, भोगी और योगी की पहचान कैसे हो !
साधू बनकर जो संपत्ति बढ़ाने के लिए अनेकों प्रपंचों में व्यस्त हों वो ढोंगी इनसे बचो ! जो संपत्ति के द्वारा राजसी भोग भोग रहे हों तो भोगी इनसे बचो ! किन्तु जो संपत्ति और भोगभावना दोनों से मुक्त होकर साधना का पवित्र अभ्यास करते हुए दिव्यता की ओर बढ़ रहे हों वही योगी होते हैं ऐसे अवतारी पुरुषों की चरण रज कई पीढ़ियाँ पवित्र कर देती है उन्हें खोजो !
जहाँ बैठकर लोग त्याग वैराग्य साधना संयम आदि का करते हुए तपस्या करें वो योग पीठ और जहाँ बैठकर बाबा केवल अपना व्यापार बढ़ाने विषय में सोचें दिनभर राजनीति करें वो कहने की योग पीठ वस्तुतः तो भोग पीठ ही है
जो अपने योग बल के द्वारा अपनी एवं औरों की भी सुरक्षा करे वो योगी जो अपने किए हुए भोगों से भयभीत होकर अपनी सुरक्षा के लिए औरों से गिड़गिड़ाए वो कैसा योगी ?
मीडिया -
पाखंडी बाबाओं ,पाखंडी ज्योतिषियों और पाखंडी तांत्रिकों से मोटे मोटे पैसे लेकर उनके विषय में झूठ मूठ की कल्पित कहानियाँ गढ़कर पहले उनकी प्रशंसा किया करते हैं और जब ऐसे बाबा,ज्योतिषी,तांत्रिक आदि खूब प्रचारित हो जाते हैं तो मीडिया को घास डालना बंद कर देते हैं ऐसे पाखंडियों के साथ मिलजुल कर धर्म के नाम पर जनता को लूटने का सपना भांग होते ही कुंठित मीडिया पागल हो उठता है और गला फाड़ फाड़कर चिल्लाते हुए धर्म कर्म ,ज्योतिष एवं तंत्र आदि जैसे गंभीर शास्त्रीय विषयों को बताने लगता है अंध विश्वास ! उस समय मीडिया को यह होश भी नहीं रहता है कि भारत सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष एवं तंत्र आदि विषयों को पढ़ाने के लिए डिपार्टमेंट हैं और जहाँ सब्जेक्ट के रूप में ये विषय पढ़ाए जाते हैं तो क्या भारत सरकार अंधविश्वास को पढ़वाती होगी ऐसी कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !मीडिया यदि अपना लोभ रोक सके और कानून शक्ति से इसके विरुद्ध नियम बनावे और इसे रोकने के लिए अभियान चलावे और इन विषयों से जुड़े विज्ञापन देने से पहले उनकी डिग्रियाँ चेक करे कि ज्योतिष और तंत्र आदि विषयों में काम करने के शौकीन एवं अपना प्रचार प्रसार करवाने के इच्छुक लोग डिग्री होल्डर हैं या झोला छाप हैं और यदि डिग्री होल्डर हैं तो उन्हें अंध विश्वास फैलाने वाला कैसे माना जा सकता है और जो अधिकारी नहीं हैं उन्हें जिसे जो मन आवे सो समझे उनके साथ कानून जैसे चाहे वैसे निपटे !किन्तु इतना सच है कि यदि मीडिमीडिया चाहे तो ये पाप बंद किया जा सकता है !
घर परिवार व्यवहार एवं सभी प्रकार के व्यापारों का परित्याग करके साधू संत बनने वाले लोग फिर प्रेमिकाएँ पालें, भोग सामग्रियाँ जुटावें,व्यापार या राजनीति करने लगें आखिर यदि यही करना था तो पहले घरद्वार छोड़कर निकलने की जरूरत क्या थी और यदि अपने वैराग्य लेने के व्रत को बीच में छोड़कर भाग खड़े हुए लोगों के द्वारा आज कही जा रही बातों पर भरोसा कैसे किया जाए !ऐसे लोग आज अपने खाने पीने के विषय में सफाई देते क्यों घूमते हैं कि वो दिनभर में केवल एक ग्लास दूध या एक फल या एक रोटी खाते हैं आखिर वो क्यों बताते घूमते हैं ये उनका व्रत है जो उनके और ईश्वर के बीच का बंधन है वो समाज में ये बातें समाज को बताते क्यों घूमते हैं ये लोग और कितने विश्वसनीय होते हैं ये ?
व्यापार और राजनीति करने हेतु धनसंग्रह के लिए बाबा बनने का रिवाज ठीक नहीं !
धार्मिक वेष भूषा धारण करके समाज सेवा के नाम पर धन इकठ्ठा करके भोग विलास की सामग्रियों को जुटाने वाले बाबाओं पर विश्वास करना बंद किया जाए !,
सुख सुविधाओं के आदी बिलासी बाबाओं के अविश्वसनीय वैराग्य पर भरोसा करने वाले स्त्री पुरुष धर्म को जिम्मेदार न ठहराएँ हमारे धार्मिक महापुरुष बिलासी नहीं हो सकते !
हमारे धर्म के पूज्य साधू संत एक बार घर परिवार व्यापार आदि सारे प्रपंचों का त्याग कर घर से निकल जाते हैं तो दुबारा उसमें नहीं फँसते हैं और जो फँसते हैं उनमें वैराग्य ही नहीं है और जब वैराग्य नहीं तो साधू संत कैसे ?आखिर कोई संत अपने द्वारा की गई उलटी(वोमिटिंग) दोबारा कैसे ग्रहण कर सकता है !
जो बाबा अपने खाने पीने के संयम का ढिंढोरा पीटते हैं वे सबसे अधिक खतरनाक होते हैं जो कहते हैं हम एक ग्लास दूध पीकर रहते हैं एक फल कहते हैं कि हम केवल एक जूस
संदिग्ध के पीछे छिपी बिलासिता की भावना का बारीकी से अध्ययन किया जाए को पढ़ा जाए धर्म बाबाओं के द्वारा की जा रही ऐय्याशी बंद करने के उपाय सोचे सरकार !
अब ठहरे कलियुगी बाबा उन्हें शहरों कस्बों में डर लगता है !
पहले चरित्रवान योगी और संत लोग होते थे वे योग और तपस्या के द्वारा अपने शरीर को बज्र बना लेते थे उनका जंगलों में भी कोई बालबाँका नहीं कर पाता था भरद्वाज ,अगस्त ,अत्रि जैसे तपस्वी ऋषि जंगल में पड़े रहे थे रावण आदि राक्षस उनका कुछ नहीं बिगाड़ सके थे !
पहले बड़े बड़े राजा लोग अपनी सुरक्षा का आशीर्वाद संतों से माँगने जाया करते थे किन्तु अब कलियुग का पाप प्रभाव ही है कि अपने को संत और योगी कहने वाले लोग अपने लिए सुरक्षा सरकारों से माँगा करते हैं !
आश्रम या ऐय्यासाश्रम
जहाँ अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से रहित त्याग वैराग्य आदि तपोमय जीवन जीया जाए वो तो आश्रम और जहाँ भोग विलास सभी वस्तुओं जुटाने भोगने की होड़ लगी हो उसे ऐय्यासाश्रम कहते हैं
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