बाबाओं के भटकाव का कारण है संपत्ति से लगाव और वैराग्य भावना से अलगाव !
कई लोग संत बन कर साधना करने का सपना लेकर वैराग्य लेते हैं किंतु पूर्व
जन्म के पापों के प्रभाव से पूजापाठ में मन नहीं लगता फिर साधना पथ से भटके हुए ऐसे लोग सेवाकार्यों के बहाने अपना जीवनबोझ ढोना प्रारम्भ कर देते हैं और बड़े बड़े स्कूल, अस्पताल आदि चलाने का नारा देकर जुटाने लगते हैं चंदा और करने लगते हैं व्यवस्था परिवर्तन के लिए सेवाकार्य,स्वदेशी कार्य,शुद्ध कार्य ,स्वाभिमानीकार्य,और सरकार सहयोगीकार्य इसके बाद सरकार कार्य और इन सबके बाद धीरे धीरे निपट आती
है जिंदगी !जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें स्वामी जी मानाने वाले लोग सेठ
जी मानने लगते हैं, नेता जी मानने लगते हैं किन्तु सधुअई ठगी सी निहार रहीं
होती है इनकी विरक्त वेष भूषा !ऐसे लोग जब अपनी ओर देखते हैं तो याद आते हैं वो सब बेकार कार्य जिनमें जीवन भटका दिया! तब पता लगा कि उन कार्यों के लिए तो ईश्वर ने औरों को बनाया था जिनमें आप उलझे गए आपने तो वैराग्य लेकर ईश्वर आराधना का बचन भगवान को दिया था जो केवल तुम्हें ही पूरा करना था किन्तु उसे तुम पूरा नहीं कर सके, आपके उन बचनों को कोई और पूरा नहीं कर सकता !अब उनके लिए एक और जन्म लेना पड़ेगा !
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