Friday, 8 August 2014

मुक्त लेखन


जिंदगी में आप कितने खुश हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आपके कारण कितने लोग खुश हैं !





कुछ लोग कहते हैं कि साईं को संत मान कर पूजने में क्या बुराई है ?
साईं सेवक बंधुओं ! हमारा निवेदन मात्र इतना है कि पूज तो किसी को भी सकते हो पूजने में बुराई क्या है कण कण में ईश्वर का बास है तो उसी भावना से पूजिए फिर साईं कहाँ से आ गए !और यदि साईं को ही पूजना है तो सोच कर देखो जब साईं की प्राण प्रतिष्ठा का कोई मन्त्र नहीं होता है इसलिए इनकी प्राण प्रतिष्ठा तो हो नहीं सकती और साईं  के अपने प्राण तो ऊपर जा चुके हैं  संग मरमर पत्थरों में साईं के नाक मुख कान आदि बनाकर
लेकिन तुम्हारे बाप मरेंगे तो उनके आनंद-अनुभूति के, उनके समाधि के, उनके ध्यान के तुम हकदार नहीं हो जाओगे। भीतर का धन ऐसे नहीं दिया जाता कि उसकी वसीयत कर दी कि मरते वक्त जैसे वसीयत लिख गये कि मेरा सारा धन मेरे बेटे का और मेरी समाधि भी, और मेरा ध्यान भी इसी का। कि मेरे चार बेटे हैं तो चारों समाधि को बांट लेना। ध्यान या समाधि बांटी नहीं जाती, न दी जाती न ली जाती।




    
दो. जौं चाहउ सुख शांति घर भरा रहै धन धाम ।शुभ प्रभात तौ बोलना मित्रो 'जय श्री राम '॥

प्रिय तुम मेरे स्वप्न नहीं हो,जीवन की सच्चाई हो !
कोमल दिल का स्पंदन हो,धड़कन की शहनाई हो !
                                    
मनुष्य कितना मूर्ख है |
प्रार्थना करते समय समझता है कि भगवान सब सुन रहा है,
पर निंदा करते हुए ये भूल जाता है।
पुण्य करते समय यह समझता है कि भगवान देख रहा है,
पर पाप करते समय ये भूल जाता है।
दान करते हुए यह समझता है कि भगवान सब में बसता है,


सनातन धर्म की परंपरा में असंख्य बड़े बड़े तपस्वी सिद्ध महापुरुष  हुए हैं किसके किसके नाम गिनावें कोई छूट न जाए इस भय से मैं सभी  को प्रणाम कर लेता हूँ ,सूर ,तुलसी ,मीरा जैसे और भी अनेकों भक्त कवि हुए हैं जिन्हें अवतारी महापुरुष मानने में कोई बुराई नहीं है जिन्होंने भक्ति सरिता बहाई है अपने जिस परंपरा में



"अच्छा समय  और अच्छी समझ एक साथ कभी किसी को नहीं आते समय आता है तब समझ नहीं होती और समझ होती है तो समय निकल जाता है !"

विवादों में रहने वाली बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन नहीं छोड़ना चाहती है भारत    P-7 News 

      भारत छोड़ना कौन चाहता है नवाज शरीफ आए थे तो बार बार ऐसे घूम घूम कर भारत में आकर अच्छा लगने की बात पत्रकारों को बता रहे थे लग रहा था कि वो भी कहीं ऐसा ही न सोच लें कि यहाँ आकर जब इतना अच्छा लगा तो यहाँ रहने पर न जाने कितना अच्छा लगेगा और सच भी यही है तसलीमा नसरीन ने तो रहकर भी देख लिया कि इन आधुनिकता के झंझावातों के विकार भारत में भी आ गए होंगे ये माना जा सकता है किन्तु इन सबके बाद भी संस्कारों के देश भारत में अभी भी बुराई को बुराई कहने और मानने की परंपरा है और एक दूसरे के अच्छे विचार बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करने की परंपराएं सुरक्षित हैं कुछ विकारों और भ्रष्टाचारों के बाबजूद शासक और शासितों के बीच आपसी विश्वास कायम है ! शास्त्रीय संस्कारों  के देश भारत की क्षमा भावना को विश्व जानता है यहाँ बड़े से बड़े अपराधी अत्याचारी आतंकवादी जैसे मानवता के शत्रुओं को भी न्याय पाने का पूर्ण अवसर दिया जाता है हमारी उदात्त भावना से विश्व सुपरिचित है !इसीलिए तो कहा गया है कि -
                                           "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा "



क्या निर्मम अपराधी हो सकते हैं नाबालिग?-IBN-7 
क्यों नहीं !अपराध सोचे तो मन से जाते हैं विशेषकर सेक्सापराध और उनका निश्चय भी मन से ही किया जाता है सेक्सानन्द लेने की इच्छा भी मन में ही होती   तन तो मन की आज्ञा का पालन करते हुए उस सोच की मात्र मदद करता है मूल कारण तो मन ही है और मन कभी बालिक या नाबालिक नहीं होता है वो तो हमेंशा एक जैसा रहता है इसलिए नाबालिक बच्चे अपराध भी कर सकते हैं और निर्मम अपराध भी !बशर्ते उनका शरीर उस लायक हो !

अंगार न लिखना मित्र कभी झुलसेंगे लोग तवाही से । 

श्रंगार लिखा यदि तो टूटेंगे तटबंध मनाही के ॥

यदि प्यार लिखा तो दुराचार की ओर बढ़ रही तरुणाई ।  अब सदाचार संस्कार लिखो अति उत्तम शिष्टाचार लिखो !  

  लेखक -दो. शेष नारायण वाजपेयी 

 

किस्मत वो तवायफ है, जो सिर्फ मेहनत करने वालों के
साथ सोती है।

 

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