Tuesday, 7 October 2014

" ईद वालों से शांति सद्भाव की क्या उम्मींद !"

बेजुबान जीवों के बध को कुर्बानी कैसे कह दें।

हिंसा मुक्त संस्कृति मेरी कैसे बदनामी सह लें ॥ 

 जिस दिन निरपराध बकड़ों का होता हो भीषण संहार। 

कहो बंधुओ !कैसे कह दें उस दारुण दिन को त्यौहार ॥ 

बकड़े बेबश खड़े कट रहे शोणित के फूटे फब्बार । 

 रक्त रंजिता धरती माता शिर और खालों के अम्बार॥ 

 ऐसा दुर्दिन दीख रहा जब जीवों में हो हाहाकार ।

हत्या दिन को कैसे  मानें भाई चारे का त्यौहार ॥ 

 अमन चैन का दिन  कह करके  कैसे इन्हें बधाई दूँ । 

बकड़े कोसेंगे मरकर क्यों उनसे ब्यर्थ बुराई लूँ ॥ 

जिनकी पर्व प्रथा हो ऐसी उनसे शांति की उम्मींद!

तब तक कैसे की जा सकती जब तक है ऐसी बकरीद ?

                                                      निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी


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