Tuesday, 7 October 2014

बेजुवान पशुओं के बध का पर्व !

 

       बेजुवान पशुओं के बध का पर्व कहें या अत्याचार । 

       मानव होकर देख रहे हैं दानवता ये पशु संहार ॥

      उधर गले काटते फिर रहे इधर गले मिलने का रोग ।

      ऐसी कैसी ईद अजूबी यही पाक करता है ढोंग ॥

          भारत वर्ष अहिंसा पूजक क्या युद्धों से डरता है ।

         हिंसक पर्व पृथा वालों से आश  शान्ति की करता है ॥ 

केर बेर का साथ चलेगा कब  तक कैसे हो त्यौहार ।

पशुओं से क्यों छीना  जाए उनके जीने का अधिकार ॥

   जियो और जीने दो सबको सबका हो आपस में प्यार ।

   सारी  धरती अपना आँगन सारा जग अपना परिवार ॥

सबको ख़ुशी बाँट सकते हो सबसे कर सकते हो प्यार ।

सबके दुःख कम करके देखो ऐसा दिन होते  त्यौहार

                                  लेखक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी

 क्या आप अपने को सांप्रदायिक कहलाना पसंद करेंगे ?

    त्यौहार किसी का गला किसी का काटा जाए,गले किसी के मिला जाए, बधाई किसी को दी जाए किन्तु सबसे बड़ी बिपत्ति जिन पशुओं पर पड़ी हो उनके प्रति किसी की कोई संवेदना नहीं !ऊपर से ऐसे दुर्दिन  भाईचारे के पर्व बताए जाएँ !जिनकी आत्मा ऐसे अत्याचारों को न सह सके वे सांप्रदायिक !यदि ऐसा है तो हमें अपनी अहिंसक साम्प्रदायिकता पर गर्व है !

                                                      निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी


बंधुओ !हिंसा हमारे सांस्कृतिक स्वभाव में ही नहीं हैं मैं क्या करूँ ! 

     ऐसे हिंसक पर्वों की कैसे बधाई दूँ ! हमारे भी बच्चे हैं परिवार है प्रियजन हैं दूसरों की जान लेने का त्यौहार मनाने वालों का समर्थन करके हम अपनी एवं अपनों की जान जोखिम में नहीं डालना चाहते !!!हमें कोई सांप्रदायिक कहे तो कहता रहे !मुझे इस बात का दुःख नहीं हैं कि मैं आज उस भाईचारे के त्यौहार में सम्मिलित होने से बंचित हूँ !

                                                    निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी



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