Thursday, 26 January 2017

गणतंत्र दिवस पर कसम खाइए कि ऐसे प्रत्याशियों को नहीं दोगे वोट ! लोकतंत्र की रक्षा करना आपका दायित्व है !

        वोट मत दो ऐसे प्रत्याशियों को ! ऐसे दलों का बहिष्कार करो !
       परिवारवादियों, अनपढ़ों , गुंडों ,भूमाफियाओं ,दलालों ,बलात्कारियों अपराधियों के चंगुल से राजनीति को मुक्त करवाइए !क्या आप जानते हैं कि सभी प्रकार के अपराधी भ्रष्ट नेताओं के यहाँ ही शरण लेते हैं ऐसे पापियों को वोट न देकर हरा सकते हैं आप !अपराधियों के आकाओं के हारते ही समाप्त हो जाएँगे सभी प्रकार के अपराध और अत्याचार !
         वोट देते समय केवल योग्यता और ईमानदारी ही देखिए -
     प्रत्याशियों की कर्मठता  ईमानदारी और योग्यता देखकर वोट दें जाति सम्प्रदाय देखकर नहीं !कर्मठ ईमानदार योग्य लोग आपके साथ बुरा बर्ताव नहीं करेंगे वो किसी भी जाति और किसी भी संप्रदाय के क्यों न हों !आपकी जाति और आपके संप्रदाय का नेता यदि जीत भी जाएगा तो उसके खा लेने से आपके पेट में तो नहीं पहुँच जाएँगी रोटियाँ !इसलिए वोट देते समय केवल योग्यता और ईमानदारी ही देखिए और ऐसे प्रत्याशियों के पक्ष में चुपचाप बटन दबा दीजिए जिनके अच्छे चरित्र और योग्यता पर आपको भरोसा हो !
ऐसे लोगों को आप उन्हें क्या करने के लिए देते हैं वोट ?
        जो  कम पढ़े लिखे हों !वे जीत भी जाते हैं तो न बोल पाते हैं न समझ पाते हैं सदनों में पहुँच कर केवल हुल्लड़ मचाया करते हैं ऐसे लोगों के कारण ही अब सदनों की कार्यवाही चलते समय काम कम और हुल्लड़ अधिक होता है क्योंकि काम करने वाले सुशिक्षित सदस्यों की अपेक्षा अल्पशिक्षित सदस्यों की संख्या अधिक होती है !वो सदनों में सोएँ या मोबाईल पर मूवी देखें या हुल्लड़ मचावें आखिर आप उन्हें क्या करने के लिए देते हैं वोट ?

       सभी भाई बहनों से निवेदन है कि बलात्कार भ्रष्टाचार अपराध मुक्त भारत का निर्माण करने के लिए आप अपनी भी भूमिका निभाएँ सारी अपेक्षा केवल राजनीति से ही मत कीजिए !अब समय आ गया है जब राजनीति को शुद्ध करने के लिए आप अपना दायित्व आप भी सँभालें !

बैंक वाले घबड़ा रहे हैं जाँच से ! इसलिए दबाव बनाने के लिए कर रहे होंगे हड़ताल !

    सरकार का पोल खोलने की धमकी  देकर रोकवा सकते हैं बैंकवालों पर चल रही नोट बंदी वाली जाँच !प्रायः सरकारी कर्मचारी इसीलिए करते हैं हड़ताल !
     सरकारी कर्मचारियों की यूनियनों का मतलब बिना काम किए सैलरी उठाओ और सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहो !सरकार चाहे तो जाँच करवा ले यूनियनों में सम्मिलित कर्मचारियों का ध्यान केवल नेतागिरी में रहता है काम काज में नहीं !ऐसे कर्मचारी खुद तो काम करते ही नहीं हैं औरों को भी भड़काते हैं !ऐसे लोग को सैलरी देकर सरकार किस देश सेवा का संदेश देती है !जनता के धन का ऐसा दुरुपयोग !हड़ताल जैसे ड्रामे नेता कर सकते हैं या सरकारी कर्मचारी दोनों को देशवासियों की कमाई खाना  होता है आम आदमी की भी तो सोचो वो कब करता है हड़ताल और हड़ताल करके कैसे जिन्दा रह सकता  है क्योंकि उसे अपना परिवार अपने कन्धों की कमाई से ईमानदारी पूर्वक पालना होता है !
   सरकारी विभागों के कर्मचारी अक्सर हड़ताल करते ही ऐसे समय हैं जब किसी घपले घोटाले में उनका हिस्सा सरकारों में सम्मिलित लोग खुद खाए जा रहे होते हैं उन्हें नहीं देते हैं भ्रष्ट सरकारें घबड़ाकर अपने कर्मचारियों से  समझौता करती हैं !और किसी न किसी बहाने उनका हिस्सा उन तक पहुँचा देती हैं जबकि ईमानदार सरकारें उनसे साफ साफ कह देती हैं नौकरी करना हो तो करो अन्यथा सेवा मुक्त हो भ्रष्टाचार की जाँच तो की ही जाएगी !      बैंककर्मचारियों की हड़ताल है या सरकार पर दबाव बनाने की राजनीति ताकि उनके भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की जाए !बैंकों में लगे वीडियो देख देख कर नींद उड़ी हुई है बैंक वाले भ्रष्ट कर्मचारियों की !
    सरकार इनके सामने झुकती है या इनसे समझौता करती है तो भ्रष्ट और इनसे शक्ति से निपटे तो ईमानदार !अरे !हड़ताल किस बात की नहीं समझ में आता है तो छोड़ दें नौकरी और नई  नियुक्तियाँ करके बहुत लोगों की बेरोजगारी दूर की जा सकती है !बैंक वालों का कहना है कि "सभी बैंक कर्मचारी सात फरवरी को करेंगे बड़ी हड़ताल, कहा – नोटबंदी से हमें बड़ी परेशानी हुई !"
   किंतु बहुत सारे बैंक कर्मचारियों ने तो करोड़ों कमा भी लिए हैं वैसे भी नोटबंदी से सबसे अधिक यदि किसी को फायदा हुआ है तो बैंक कर्मचारियों को ! सरकार के साथ सबसे बड़ी गद्दारी किसी ने की है तो भ्रष्ट बैंक कर्मचारियों ने !काले धन वाले लोग तो कभी लाइनों में खड़े नहीं दिखाई दिए उन्होंने घूस के बल पर अपने गोदामों में रखे करोड़ों नोटों के बोरे बदलवाए इन्हीं बैंक कर्मचारियों से ! वहीँ दो दो हजार के लिए लाइनों में खड़ी दम तोड़ती है आम जनता !आखिर बैंक वालों से ये क्यों नहीं पूछा  जाता कि वो नौकरी सरकार की कर रहे थे या काले धन वालों की !आखिर उन्होंने काले धन के विरुद्ध सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान में पलीता लगाने का काम क्यों किया !बैंकों में लगे वीडियो यदि बारीकी से खँगाले जाएँ और ईमानदारी से कार्यवाही की जाए तो बैंकों लाखों वैकेंसियाँ निकल सकती हैं किंतु कोई भी सरकार ऐसा  करेगी क्यों ?ईमानदारी की बातें करने और ईमानदारी का आचरण करने में बहुत बड़ा अंतर है !सरकार यदि वास्तव में ईमानदार है बैंकवालों के सामने न झुके सरकार की कौन सी पोल खोल देंगे बैंक वाले !अक्सर देखा जाता है कि बेईमान सरकारों के भ्रष्टाचार के पोल खोलने की  देकर सरकारी कर्मचारी जाते हैं हड़ताल पर इसीलिए सरकारें अपने कर्मचारियों से झुक  समझौता किया करती हैं ईमानदार सरकारें हाथ के हाथ ऐसे असंतुष्ट कर्मचारियों की छुट्टी कर देती हैं वो मनाने का लफड़ा ही नहीं पालते हैं भ्रष्ट कर्मचारी सरकार की छवि कभी नहीं बनने देते और सरकारी कर्मचारियों की यूनियन बनाने वाले लोग महाभ्रष्ट कामचोर मक्कार एवं घूस खोर होते उनका मुख्य लक्ष्य भ्रष्टाचार से धन इकठ्ठा करना एवं सरकार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करना जनता के लिए समस्या पैदा करना एवं काले धन वालों की मदद करने का अधिकार चाहते हैं यूनियन बनाने वाले कामचोर कर्मचारी लोग !ये लोग काम न करके अपितु सरकार के लिए संकट खड़ा किया करते हैं !ऐसे हड़तालियों की सरकार हमेंशा के लिए छुट्टी करे और उनकी जगह नई नियुक्तियाँ करे !  

Monday, 23 January 2017

मीडिया सबसे बड़ा बेईमान ! पैसे लेकर गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा बना देता है मीडिया ! मीडिया है या ड्रामा !

  समाज को कितना बड़ा धोखा दे रहा है मीडिया !
 "ट्रंपने पत्रकारों को कहा धरती के सबसे बेईमान लोग !" see more....http://www.khabarindiatv.com/world/us-trump-told-reporters-the-most-dishonest-people-on-earth-503137 
    भ्रष्टाचारी पत्रकार टीवी चैनलों पर बैठ बैठ कर झूठे सर्वे दिखाया करते हैं । डिवेट चलाने के नाम पर हर पार्टी के कुछ लोग बैठा लेते हैं शुरू शुरू में तो ये इंसानों जैसे दिखने वाले शिष्टाचारी लोग होते अचानक इन्हें न जाने क्या हो जाता है सबके सब पागल हो उठते हैं उन राजनैतिक पार्टियों के लोगों का लक्ष्य केवल जोर जोर से दहाड़ते हुए दिखना होता है ताकि उनकी पार्टी के मालिक को उनका मुख खुला हुआ दिखाई दे! 
    ऐसे लोग न जाने क्यों और किस बात पर कब  भौंकना शुरू कर दें उनका कोई इमानधर्म  ही नहीं समझ में आता है !किसी को पता ही नहीं चलता है कि कौन किसको कौन सी गाली कितने खूबसूरती से दे रहा है !मीडिया मैन उन सब राजनैतिक पार्टियों के लोगों  को हेडमास्टर की तरह बार बार डाँट रहा होता है उन्हें शिष्टाचार सिखाने का नाटक करते दिखता है उसकी अपनी मज़बूरी होती है !
    चैनल वाले ने जिस पार्टी या नेता से पैसे लिए होते हैं उसके पक्ष में इसी बहाने बीच बीच में कुछ लाइनें बोल देने का वो बहाना खोज रहा होता है जैसे मौका मिला वो बोल देता है जब उसकी प्रिय पार्टी या नेता के विरोध में कोई जबरदस्त बात बोलना शुरू करता है तैसे ही वो चालाक और ट्रेंड मीडिया मैन उसे ठेंगा दिखाकर ब्रेक पर चला जाता है ।वस्तुतः कुछ नेताओं या पार्टियों के लिए ही ऐसा बहस नाम का ड्रामा रचा गया होता है !
    मीडिया मैन को देखकर ऐसा लगता है कि वास्तव में वो बहस करवाना चाहता है जबकि सबसे बड़ा  कपट तो वही कर रहा होता है जो अच्छे लोगों को बोलने का मौका ही बहुत कम देता है जनता को कुछ सुनाई भी न पड़े इसीलिए तो वो हुल्लड़ करवाया करता है और अंत में कनक्लूजन करने के नाम पर पैसे देने वाले पार्टी और नेता के पक्ष में उसे बोलना होता है । 
    लोग समझते हैं कि ये कुतिया छिनारी हम नहीं समझ पाए तो नहीं सही किंतु ये ज्यादा समझदार हैं इसलिए ये जो बता रहे हैं सबको इस घंटे भर की बहस का साराँश !वो सही ही होगा !वो उसके उन विज्ञापन वाक्यों को बहस का सार मान लेते हैं !वास्तव में समाज को कितना धोखा दे रहा है मीडिया !
  मीडिया विश्वास करने योग्य अब नहीं रहा !कौन चैनल किस पार्टी और किस नेता के विषय में क्या दिखाएगा ये आम जनता को भी पता है !ऐसे में  मीडिया से सच की उमींद करना ही मूर्खता है !टीवी चैनलों अखवारों को जो जैसे जितने पैसे दे उसके विषय में वैसी ख़बरें दिखाई या छापी जाएँगी !

   प्रायः देखा जाता है कि कम समय में रईस होने वाले अधिकाँश लोग भ्रष्ट होते हैं वो चाहें नेता हों बाबा हों पंडित हों सरकारी कर्मचारी हों या प्रापर्टी से जुड़े लोग हों !ऐसे लोग प्रायः हर प्रकार के गंदे काम करते हैं जो एक नहीं अनेकों बार अनेकों बाबाओं आश्रमों नेताओं रईसों सरकारी कर्मचारियों के यहाँ पकड़े जा चुके हैं किंतु वे पकड़े तभी जाते हैं जब मीडिया का आर्थिक पूजन करना बंद कर देते हैं । उसी समय क्रोधित होकर बाबाओं नेताओं व्यापारियों आदि के वे सारे अपराध समाज को मीडिया बताने लगता है जो पैसे लेकर अभीतक छिपा रखे होते हैं !मीडिया को भी लगता है कि इनके साथ साथ कहीं अपने पापों की भी पोल न खुल जाए !इसलिए धक्का मारकर इसे दूर करो और खुद शाकाहारी बनकर खड़े हो जाओ !कितना पाखंडी है मीडिया !
     टीवी चैनलों पर ढोंगी बाबा योगी ज्योतिषी वास्तु स्पेशलिस्ट और भी ज्योतिष या धर्म कर्म सिखाने का नाटक करने वाले बहुत सारे पाखंडी लोग पहली बात तो इन्होंने उन विषयों को बिलकुल नहीं पढ़ा होता है और न ही इनके पास उन विषयों की भारत सरकार के किसी भी प्रमाणित विश्व विद्यालय से मिली कोई डिग्री ही होती है जब पढ़े ही नहीं तो डिग्री क्या हो !और ये नहीं कि सरकार के प्रमाणित विश्व विद्यालयों में ज्योतिषी वास्तु आदि की पढ़ाई न होती हो ये खुद नहीं पढ़े तो सरकार क्या करे !अन्य विषयों की तरह ही इन विषयों के भी डिपार्टमेंट हैं पाठ्यक्रम हैं कक्षाएँ चलती हैं परीक्षाएँ होती हैं डिग्रियाँ मिलती हैं और ऐसे पढ़े लिखे डिग्रीवाले विद्वानों की संख्या भी कम नहीं है किंतु वे ईमानदार किस्म के तपस्वी लोग होते हैं ,इसलिए वे चोरों  छिनारों  बदमाशों  लूटपाट करने वालों , किडनैपिंग फिरौती आदि से कमाई करने वालों ,बलात्कारियों आदि को फँसने न देने की झूठी गारंटियाँ ले लेकर उनसे उनके गलत कामों के कमीशन नहीं खाते हैं इसलिए उनके पास रोटी चलाने और परिवार पालने के लिए पैसे कमा पाना भी मुश्किल हो रहा होता है !वो टीवी वालों को देकर भड़ुअई करने के लिए कहाँ से लाएँगे लाखों रूपए !

     ऐसे भ्रष्टाचार पर जिसे भरोसा न हो वो उनके आफिसों के कैमरे चेक करवाए और उनके टेलीफोन मोबाइलों के काल डिटेल खँगाले जो टीवी पर बैठकर धर्मकर्म ज्योतिष आदि विषयों में बकवास किया करते हैं !ये भ्रष्ट वर्ग समाज को दिखाने के लिए धार्मिकों बाबाओं विद्वानों जैसी वेषभूषा बनाकर बैठता है परदे के पीछे की सच्चाई तो मीडिया वालों को ही पता होती है जिनकी मिली भगत से ये सारा पाप हो रहा होता है !
      मैं मीडिया को चुनौती देता हूँ कि यदि उसे मीडियाधर्म की थोड़ी भी शर्म बची हो तो धर्म के क्षेत्र में झूठी खबरें फैलाने का पाप बंद कर दे !मीडिया जिनको  बड़े बड़े ज्योतिषी योगगुरु आदि बताता है उनमें से 99 प्रतिशत वे लोग हैं जिन्होंने उन विषयों को किसी भी विद्यालय या विश्वविद्यालय से पढ़ा ही नहीं है !वो जो राशिफल रोज लेकर बैठ जाते हैं वो सौ प्रतिशत गलत और धोखाधड़ी मात्र है ,वो जो कालसर्पयोग बताते हैं वो सौ प्रतिशत गलत है उसके ज्योतिष शास्त्र में कहीं प्रमाण ही नहीं मिलते हैं किंतु मीडिया की मिली भगत से ऐसी डरावनी बातें बोल बोल कर समाज को लूटा जा रहा है आधा वो पाखंडी लोग लेते हैं आधा मीडिया लेता होगा !अन्यथा अपने चैनल पर ऐसी झूठी बकवास करवावे ही क्यों !
        भोगगुरु बाबा कामदेव ने एक भोग शिविर में बड़ी डंके की चोट पर कहा कि ज्योतिष पाखंड है ज्योतिषी पाखंडी हैं शनि  साढ़ेसाती नग नगीने आदि सब पाखंड हैं वास्तु झूठ है आदि आदि और भी बहुत कुछ !और ये सबकुछ मीडिया वालों ने बड़े जोर शोर से नमक  मिर्च लगाकर दिखाया ज्योतिष आदि का खूब मजाक उड़ाया !मैंने सोचा कि इस मूर्ख का तो कुछ गया नहीं इसने कुछ न पढ़ा न लिखा ये तो झूठ बोल रहा है क्योंकि इसने तो शास्त्र पढ़े नहीं है इसलिए इस ढोंगगुरु की बातों  को समाज कहीं सही न मानने लग जाए  इसलिए मैंने ज्योतिष से MA ,PhD आदि काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से किया है मुझे अपने विषय का स्पष्टीकरण तो देना चाहिए मैंने लगभग सभी पापुलर चैनलों से संपर्क किया किंतु किसी ने उसका स्पष्टीकरण  तक देना जरूरी नहीं समझा !जबकि ये उनका धर्म था !शास्त्रों एवं संस्कृति के साथ ऐसे गद्दारी करता है मीडिया !
      मीडिया के बिगड़ने के कारण ही बिगड़ा है समाज और बढ़ रहे हैं सभी प्रकार के अपराध और अपराधी !

Sunday, 22 January 2017

सपा का घायल घोषणा पत्र : जो बाप के नहीं हुए वे आपके होने का नाटक कर रहे हैं !

  सैफई में समारोह और लखनऊ में लड़ाई !सारी बातें हवा हवाई !!
    सपा सरकार का मतलब होता है पूरे प्रदेश पर सैफई का शासन !लड़ते रहने वाले लोग रोज नए नए पैंतरें बदल रहे हैं इतने दिन ऐंठने मानाने वाले ड्रामेवाजों को जनता भी अब समझ चुकी है कि इनकेबस का काम काज कुछ है ही नहीं इन्होंने तो आज तक बस केवल सैफई का विकास किया है वहीँ नाच गा लेते हैं और लखनऊ में लड़ने चले आते हैं !
पिछले पांच सालों में लाखों लोगों को नौकरी दी.अखिलेश यादव द्वारा कही गईं मुख्‍य बातें...
सरकारी स्‍कूलों में शिक्षा का स्‍तर सुधारा जाएगा.    प्राइमरी शिक्षा के लिए कई काम हुए.
शिक्षक तो वही हैं पुराने !घूस देकर सोर्स पूर्वक नौकरी पाई थी जिन्होंने !कुछ तो खुद नहीं पढ़े हैं और कुछ का पढ़ाने में मन नहीं लगता है !शिक्षक जो पढ़ाने की सैलरी ले रहे हैं उन्हीं से वो पूछ दिया गया तो बेचारे बता नहीं पाए !
    कार्यकर्ताओं के लिए हमारा काम बताना आसान.
पिता जी के कारण हम कुछ कर नहीं पाए बस इतना ही तो कहना है कार्यकर्ताओं को !
    नोएडा, लखनऊ में लगे पत्‍थर बताते हैं कि अगर सरकार बनी तो बड़े-बड़े हाथी लगा दिए जाएंगे.
सैफई देखकर ये भी तो लगता है कि विशेष  विकास केवलसैफई और यादवों का ही होगा सपा कीसरकार में ! समाजवादी लोगों से किसी का मुकाबला नहीं, क्‍योंकि वे सबसे आगे हैं.
नाटक करने में !महीनों से ड्रामा चला रूठने मनाने जीतने हारने का किंतु किसी को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि शिवपाल को किनारे करने के लिए इतने दिन तक इतना ड्रामा क्यों किया सीधे बुलाकर कह सकते थे कि शिव पाल जी अब आप पिता जी की नहीं अपितु बुआ जी की पार्टी की सेवा करो !ये पार्टी पिता जी से हमने छीन ली है !
     सपा की सरकार बनने जा रही है.
जैसे अध्यक्षी छीन ली वैसे थोड़ा बन जाएगी सरकार !उसके लिए  दिल भी तो जीतना होगा जनता का किंतु दिल तो जो बाप और चाचा का नहीं जीत सका जबर्दश्ती अध्यक्षी हथिया ली दिल वो जनता का क्या जीतेगा !
    यूपी की जनता सपा में भरोसा करती है.
 मनोरंजन  के लिए कुछ तो चाहिए ही वैसे भी शकुनी से लेकर दुर्योधन तक सब एक ही जगह एक ही परिवार में एक साथ विद्यमान हैं घर ही घर में खेल लेते हैं महाभारत जैसा बड़ा युद्ध !किंतु ये तो बातों बातों का ही महा  भारत है इसमें पात्रों के नाम नहीं होते वे केवल काम से पहचाने जाते हैं !
 दोबारा भरोसा मिला तो यूपी का तेजी से विकास करेंगे.
पहली बार क्यों सोते रहे तेजी से तो पहली बार भी किया जा सकता था !
    हम समाजवादियों को दोबारा बहुमत दीजिए.
अब नहीं महाभारत के बाद तो रामायण होनी बहुत जरूरी है!
    2012 के घोषणा पत्र को गंभीरता से लागू किया.
शिवपाल के विरुद्ध अभियान छेड़ने के बाद तो सबको ऐसा ही लगा !
    लैपटॉप, कन्‍या विद्या धन, पूर्वांचल एक्‍सप्रेस-वे, 1090 वुमेन पावर लाईन, लोहिया आवास सरीखी योजनाअों को और अध्‍ािक मजबूती  से चलाएंगे.
प्रदेश वासियों को भिखारी समझते हो क्या जो चीज कर नहीं सकते वो कहते ही क्यों हो !.
    यूपी के हर गांव में लैपटॉप पहुंच गया है.
चलो अकर्मण्य सरकारें मनोरंजन के साधन तो उपलब्ध करवा ही रही हैं ये कम है क्या !
 आने वाले वक्‍त में सरकार और लोगों को सीधा जोड़ेंगे.!
अभी तक जनता से सीधा जुड़ने के लिए किसी ने रोका  था क्या ?
    गरीबों को निशुल्‍क गेंहू दिया जाएगा.!
क्या गेंहूँ भी अपनी कमाई से खरीदने खाने लायक नहीं रखोगे बेचारों को !
    गरीब महिलाओं को प्रेशर कुकर दिए जांएगे.
ये सबसे अच्छा रहेगा !अब कोई अपने को गरीब नाहीं कह सकेगा !अब कोई छिप कर कुछ भी नहीं बना खा पाएगा !चलो इसी बहाने सही सरकारी लोग गरीबों के घरों की सीटियाँ गिनने गाँव तो आया करेंगे मिडिया वाले सीटियों की संख्या से समझ लिया करेंगे कि किसके यहाँ क्या पक रहा है !
वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए ओल्‍ड ऐज होम बनाए जाएंगे.
     पूर्व अध्यक्ष जी का नाम अभी से लिख लीजिए उसमें  !उनके साथी सलाही लोगों का भी ध्यान रखना !
    अल्‍पसंख्‍कों के लिए कई योजनाएं लाएंगे.
  ये आजम साहब के प्रचार के लिए अच्छा होगा !
    आगरा, कानपुर, मेरठ में भी मेट्रो.
चलो !ये तीन शहर बचे हैं इनमें भी मेट्रो पहुंचा  ही दीजिए !
   किसान के बीमार जानवरों के लिए भी एंबुलेंस की व्‍यवस्‍था करेंगे !
  जानवरों के नाम भी वोटर लिस्ट में बढ़वा लेना !
   लैपटॉप के साथ ही पढ़ाई में तेज छात्रों को स्मार्ट फोन भी देंगे.
जब शिक्षक ही नहीं पढ़े होंगे तो बेचारे छात्रों को कैसे पढ़ाई में तेज करेंगे !तेज नहीं तो काहे का स्मार्ट फ़ोन !बिना कुछ दिए लिए ही सब को मिल जाएँगे स्मार्ट फोन !
    मजदूरों के लिए रियायती दर पर खाना.
इसका मतलब उन्हें मेहनत करके कमाने खाने लायक अबकी बार भी नहीं रखोगे !
    कुपोषित बच्चों को 1 किलोग्राम घी और 1 डिब्बा दूध पाउडर हर महीने दिया जाएगा.
 घी और डिब्बा दूध बनाने वालों से चुनावों में कोई मदद मिलती दिख रही है क्या ?उचित तो होता उनकी दाल रोटी ही सुनिश्चित हो जाती !
    एयरपोर्ट पर एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था की जाएगी.
किसानों मजदूरों गरीबों ग्रामीणों के यहाँ क्यों नहीं एयरपोर्ट पर ही क्यों ?

बैंक वाले जाँच से घबड़ा रहे हैं क्या इसलिए कर रहे हैं हड़ताल !

   बैंककर्मचारियों की हड़ताल है या सरकार पर दबाव बनाने की राजनीति ताकि उनके भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की जाए !बैंकों में लगे वीडियो देख देख कर नींद उड़ी हुई है बैंक वाले भ्रष्ट कर्मचारियों की !
    सरकार इनके सामने झुकती है या इनसे समझौता करती है तो भ्रष्ट और इनसे शक्ति से निपटे तो ईमानदार !अरे !हड़ताल किस बात की नहीं समझ में आता है तो छोड़ दें नौकरी और नई  नियुक्तियाँ करके बहुत लोगों की बेरोजगारी दूर की जा सकती है !
    बैंक वाले घबड़ा रहे हैं जाँच से ! इसलिए दबाव बनाने के लिए कर रहे होंगे हड़ताल !नोट बंदी में सारे पाप किए अब घूम रहे है हड़ताल करते !सरकार का पोल खोलने की धमकी  देकर रोकवा सकते हैं बैंकवालों पर चल रही नोट बंदी वाली जाँच !प्रायः सरकारी कर्मचारी इसीलिए करते हैं हड़ताल !
     बैंक वाले हों या कोई अन्य सरकारी कर्मचारी उनका एक ही बल होता है कि अपने भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही जाँच रुकवाने के लिए कर देंगे हड़ताल बना लेंगे दबाव घबड़ा जाएगी सरकार रोक दी जाएगी जाँच और यदि उनकी शर्तें सरकार नहीं मानेंगी तो वो खोल देंगे सरकार के भ्रष्टाचार की पोल जिस तरह की ब्लैक मेलिंग वो लोग पिछली सरकारों में करते रहे हैं किंतु ये सरकार यदि ईमानदार है तो अपनी ईमानदारी का परिचय दे और हड़ताल करने वाले  कर्मचारियों की छुट्टी करे और उनकी जगहों पर सीधे  नई नियुक्तियाँ करे उनसे योग्य योग्य लोग बेरोजगार घूम रहे हैं बेचारे उन जरूरत मंद लोगों को रोजगार उपलब्ध करवावे सरकार !इनसे साफ साफ कह दे कि जाओ मेरी पोल खोल दो मुझे कर नहीं तो डर किस बात का !तुम्हें जो सैलरी सुविधाएँ आदि  मिल रही हैं उसी में काम करना हो तो करो अन्यथा जाओ !सरकार को ये भी साफ साफ कहा देना चाहिए कि नोटबंदी के समय में हुए भ्रष्टाचार में सम्मिलित लोगों के विरुद्ध चल रही जाँच नहीं रुकेगी तुम दबाव बनाने के लिए हड़ताल जैसे कितने भी नाटक क्यों न कर लो !
     बहुत सारे बैंक कर्मचारियों ने तो करोड़ों कमा भी लिए हैं वैसे भी नोटबंदी से सबसे अधिक यदि किसी को फायदा हुआ है तो बैंक कर्मचारियों को ! सरकार के साथ सबसे बड़ी गद्दारी किसी ने की है तो भ्रष्ट बैंक कर्मचारियों ने !काले धन वाले लोग तो कभी लाइनों में खड़े नहीं दिखाई दिए उन्होंने घूस के बल पर अपने गोदामों में रखे करोड़ों नोटों के बोरे बदलवाए इन्हीं बैंक कर्मचारियों से ! वहीँ दो दो हजार के लिए लाइनों में खड़ी दम तोड़ती है आम जनता !आखिर बैंक वालों से ये क्यों नहीं पूछा  जाता कि वो नौकरी सरकार की कर रहे थे या काले धन वालों की !आखिर उन्होंने काले धन के विरुद्ध सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान में पलीता लगाने का काम क्यों किया !बैंकों में लगे वीडियो यदि बारीकी से खँगाले जाएँ और ईमानदारी से कार्यवाही की जाए तो बैंकों लाखों वैकेंसियाँ निकल सकती हैं किंतु कोई भी सरकार ऐसा  करेगी क्यों ?ईमानदारी की बातें करने और ईमानदारी का आचरण करने में बहुत बड़ा अंतर है !सरकार यदि वास्तव में ईमानदार है बैंकवालों के सामने न झुके सरकार की कौन सी पोल खोल देंगे बैंक वाले !अक्सर देखा जाता है कि बेईमान सरकारों के भ्रष्टाचार के पोल खोलने की  देकर सरकारी कर्मचारी जाते हैं हड़ताल पर इसीलिए सरकारें अपने कर्मचारियों से झुक  समझौता किया करती हैं ईमानदार सरकारें हाथ के हाथ ऐसे असंतुष्ट कर्मचारियों की छुट्टी कर देती हैं वो मनाने का लफड़ा ही नहीं पालते हैं भ्रष्ट कर्मचारी सरकार की छवि कभी नहीं बनने देते और सरकारी कर्मचारियों की यूनियन बनाने वाले लोग महाभ्रष्ट कामचोर मक्कार एवं घूस खोर होते उनका मुख्य लक्ष्य भ्रष्टाचार से धन इकठ्ठा करना एवं सरकार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करना जनता के लिए समस्या पैदा करना एवं काले धन वालों की मदद करने का अधिकार चाहते हैं यूनियन बनाने वाले कामचोर कर्मचारी लोग !ये लोग काम न करके अपितु सरकार के लिए संकट खड़ा किया करते हैं !ऐसे हड़तालियों की सरकार हमेंशा के लिए छुट्टी करे और उनकी जगह नई नियुक्तियाँ करे !  

Saturday, 21 January 2017

Friday, 20 January 2017

चूना लगाने वाले नेताओं को मत चुनो उनका किया हुआ पाप तुम्हें भी भोगना पड़ेगा !

 लोकतंत्र का मतलब सबका समान अधिकार किन्तु यहाँ तो लोकतंत्रके नाम पर केवल नेता और उनके नाते रिस्तेदार !
       हे देशवासियो ! प्यारे भाई बहनों से निवेदन !आप भी  लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आएँ !और आप स्वयं विचार करें कि जो नेता लोग आपको कुछ नहीं समझते हैं उन्हें आप भी कुछ मत समझो जो आपको चुनाव लड़ने लायक नहीं समझते उन्हें आप भी वोट देने लायक मत समझो !जो आपको चुनावी टिकट नहीं देते आप भी उन्हें वोट मत दो !      
        जो नेता लोग टिकट देते हैं अपने बीबी बच्चों को !अपने घर खानदान वालों को !अपने नाते रिस्तेदारों को तथा वोट माँगते हैं आप से ! ऐसे पापी पाखंडियों को जिताने के लिए किसी भी कीमत पर आप वोट न दें लोकतंत्र की रक्षा के लिए ऐसे  प्रत्याशियों को पराजित करवाकर पुण्य कमाएँ !लोकतंत्र के सबल साधकों से निवेदन है कि ऐसे भाई भतीजा वादी लोकतंत्र द्रोही प्रत्याशियों को अवश्य सबक सिखाएँ !आपके क्षेत्र में अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ईमानदार अनुभवी चरित्रवान लोग भी होते हैं किंतु उनकी उपेक्षा करके नेता लोग या तो अपने नाते रिस्तेदारों को टिकट देते हैं या फिर टिकट बेंच लिया करते हैं ऐसे पक्ष पात का विरोध करने के लिए आप उन्हें हरवाकर अपना जन्म सफल बनाएँ और अपने जीवित होने का सबूत दें !राजनीति में भाई भतीजे वाद को जड़ से उखाड़ फेंकें !
    यदि आप चाहते हैं कि आपके विधायक सांसद  आदि भी सदनों में भाषण दे सकें तो पढ़े लिखे प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी बलात्कारियों से तंग हैं तो चरित्रवान प्रत्यशियों को ही वोट दें !यदि आप भी भ्रष्टाचार से तंग हैं तो ईमानदार प्रत्याशियों को ही वोट दें !यदि आप भी देश में लोकतांत्रिक पद्धति को जिन्दा रखना चाहते हैं तो उन पार्टियों को बिलकुल वोट न दें जिनका अध्यक्ष किसी एक फैक्ट्री मालिक की तरह केवल एक ही व्यक्ति या परिवार का सदस्य होता हो ऐसी पार्टियों के विरुद्ध मतदान कीजिए और बचा लीजिए अपने पूर्वजों के प्यारे लोकतंत्र को !जिस प्रत्याशी को टिकट इसलिए मिला हो कि वो किसी नेता की बीबी है नेता की बेटी या बेटा है या किसी नेता के घर खानदान का है या नाते रिस्तेदार है इसलिए उसे प्रत्याशी बनाया गया है ऐसे नेताओं को वोट न खुद दीजिए न किसी और को देने दीजिए संपूर्ण प्रयास करके इन्हें पराजित करके लोकतंत्र बचा लीजिए ! 
   राजनैतिक पार्टियाँ दूध देने वाली भैंसों की तरह हैं जैसे भैंसों के मालिकों को जो पैसे दे वो उसे दूध देते हैं ऐसे ही दलों के दलाल जिन्हें  दाम देते हैं वे उन्हें टिकट देते हैं किंतु आप उन्हें वोट क्यों देते हैं वे आपको क्या देते हैं ?
  • यदि आप जाति देखकर वोट देंगे तो वो जाति जनाएँगे ही यदि आप संप्रदाय देखकर वोट देंगे तो वो सांप्रदायिक दंगे करवाएँगे ही यदि आप उनका धन देखकर वोट देंगे तो वो भ्रष्टाचार करेंगे ही !
  • प्रत्याशियों की उच्च शिक्षा, अच्छे संस्कार, ईमानदारी ,सेवा भावना और चरित्र देखकर वोट दोगे तो तुम्हें पछताना नहीं पड़ेगा और वेईमानों को वोट दोगे तो वो तुम्हारे नाम पर भी घपले घोटाले ही करेंगे !
  • जैसे छोटी छोटी बच्चियाँ बड़ी होकर दादी बन जाती हैं ऐसे ही बचपन के छोटे छोटे अपराधी भी बड़े होकर आजकल नेता बनने लगे हैं किंतु अभी भी राजनीति में भी कुछ अच्छे और ज़िंदा लोग हैं उन्हें खोजिए और ऐसे प्रत्याशियों को ही वोट देकर आप भी अपने देश और समाज के निर्माण में योगदान दें !ऐसे लोग किसी भी पार्टी के क्यों न हों !
  • भ्रष्ट नेता चुनाव जीतकर यदि मंत्री भी बन जाते हैं तो वे समाज का भला नहीं करेंगे वो तो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वसूली ही करवाएँगे !उनसे अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए उन्हें पोल खोलने की धमकी देकर वही सरकारी लोग हड़ताल पर चले जाएँगे फिर वे उन्हें मनाएँगे फिर उनकी सैलरी बढ़ाएँगे !ऐसे ही रूठते मनाते बीत जाएँगे 5 साल ! इसलिए अपना वोट बर्बाद मत होने दो !
  •  भ्रष्ट नेताओं को वोट दोगे तो भ्रष्टाचार सहना ही पड़ेगा !कमाओगे तुम खाएँगे नेता और उनके परिवार !
          "राजनीति शुरू करते समय गरीब से गरीब नेता लोग चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबोंपति हो जाते हैं कैसे  आखिर उनके पास कहाँ से आता है ये पैसा !ऐसे बेईमानों को वोट देकर ईमानदारी की आशा मत करो !"
  • बलात्कारी नेताओं को वोट दोगे तो बहू बेटियों की सुरक्षा कैसे कर पाओगे ?नेताओं का बलात्कार तो प्यार और गरीबों का बलात्कार ! 
         "बलात्कारी नेता लोगों के पास काम के लिए जाने वाली या पार्टी के पद पाने के लिए जाने वाली महिलाओं के चरित्र से ही ये खेलेंगे !अपने बलात्कार को प्यार बताएँगे और गरीबों के बच्चों पर बलात्कार के आरोप लगते ही उनके लिए फाँसी की सजा माँगेंगे !अपने कुकर्मों पर तो पीड़ितों को डरा धमकाकर या कुछ लालच देकर शांत कर देते हैं आम बलात्कारियों के पास डराने धमकाने और लालच देने की हैसियत नहीं होती है इसलिए उसे फाँसी पर चढ़ाने की माँग करते हैं ये पापी !
  • भूमाफिया नेताओं को वोट दोगे तो वो बेच खाएँगे तुम्हारे पास पड़ोस की सारी सरकारी जमीनें पार्क पार्किंगें आदि !
   नेता लोग जब राजनीति शुरू करते हैं तब गरीब होते हैं चुनाव जीतते ही करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं न धंधा करते हैं न नौकरी न व्यापार !न जाने कैसे कर लेते हैं इतनी जल्दी इतना बड़ा चमत्कार ! आखिर उनके पास ये पैसा आता कहाँ से है ?ऐसे लोग सरकारी जमीनें पार्क आदि बेच कर पहले वहाँ बस्तियाँ बसाते हैं फिर  छेड़ते हैं उनके नियमितीकरण का राग !ऐसी पाप की कमाई से पालते हैं वे अपने परिवार !
  • कम पढ़े लिखे नेताओं को सांसद विधायक बनाकर संसद और विधान सभाओं में चुनकर भेजोगे तो वो सदनों में चर्चा कैसे कर पाएँगे ?ऐसे  बुद्धू नेता लोग या तो मोबाईल पर फिल्में देखेंगे या सोएंगे या घूमें टहलेंगे या हुल्लड़ मचाएँगे !अपनी नाक कटवाने के लिए ऐसे अनपढ़ों को चुनकर क्यों भेजते हैं आप लोग !जो सदनों का बहुमूल्य समय बर्बाद करने के लिए पहुँच जाते हैं वहाँ !
     सदनों की कार्यवाही में उच्चस्तरीय चर्चाएँ होती हैं किंतु जो नेता बेचारे न बोल पाते हैं और न समझ पाते हैं वो चर्चा के समय सदनों में ही अपनी कुर्सियों पर सोकर,मोबाईल पर मनोरंजन करके या घूम फिर करके अपना समय कब तक कैसे और क्यों पास करें ! जो लोग बाहर रहकर गाली गलौच लड़ाई भिड़ाई कुस्ती आदि करते रहे हैं वे अंदर मुख बंद करके हाथ पैर बाँधे आखिर कब तक और क्यों बैठे रहें !जो पढ़े लिखे हैं वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं ऐसे ही जो नहीं पढ़े लिखे हैं वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन क्यों न करें !जिसके आपस जो  योग्यता होती है उसे भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर तो मिलना ही चाहिए !जिसने जीवन भर केवल पहलवानी की हो वो वहाँ चुप करके कैसे और कितनी देर तक बैठा रहे !


Thursday, 19 January 2017

कुर्ता फड़वाए घूमने वाले कमजोर कंधों वाले लोग जब अपना कुर्ता नहीं बचा सके तो देश क्या बचाएँगे !

  फटा कुर्ता पहनने या पहनकर कुर्ता फड़वा लेने वाले नेताओं को जनता अब पहचानने लगी है  !
    कुर्ता फाड़ने वाले भी तो तंग होकर ही फाड़ते होंगे किसी का कुर्ता !पुराने समय में बड़े बूढ़े लोग इसीलिए तो कहा करते थे कि समय से शादी कर लो नहीं तो लोग कपड़े फाड़ डालेंगे !जिसे शादी न करना हो वो कुर्ता पहने ही क्यों ?प्रायः साधू संत लोग भी तो इसीलिए नहीं पहनते हैं सिले कपड़े !न जाने कब कौन फाड़ दे !
         फटे कपड़े पहनकर वोट माँगना कोई नई विधा नहीं है माँगने वालों को फटे कपड़े ही शोभा देते हैं !दिल्ली के एक मंदिर में एक पुजारी जी थे उनको कहीं थोड़ी भी चोट लग जाए तो वो अक्सर कुर्ता फाड़कर हाथ में पट्टी बँधवा लिया करते थे !जो भगत लोग आवें हालचाल पूछें तो वही अपना फटा हुआ कुर्ता दिखा दिया करते थे लोग दयावश  काफी पैसे दे जाया करते थे ऐसे अपने शरीर की छोटी मोटी चोट भी वे काफी महँगी बेच लिया करते थे !
   समय से शादी न होने पर हर किसी के कपड़े फाड़ने लगते हैं लोग !बुजुर्गों की सलाह को जो हवा में उड़ा देते हैं वो ऐसे ही कुर्ता फड़वाए घूमा करते हैं !
       जिस पार्टी में बूढ़े बूढ़े नेताओं ने भी जवानी लोन पर लेकर भी विवाह कर लिया हो !वहाँ जवान लोग कुर्ते फड़वाए घूम रहे हैं !विगत लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली पावन परजयी बसंत में कई वृद्धों ने समय का सदुपयोग किया किंतु जो समय का महत्त्व नहीं समझते वो घूमें कुर्ता फड़वाए !कोई क्या करे !
       कोई स्टेज पर खड़ा होकर भरी सभा में अचानक कहने लगे कि  हमारा कुर्ता फटा है किंतु क्यों फटा है कैसे फटा है किसने फाड़ा है या घर वालों से गुस्सा होकर खुद फाड़ लिया है अपना कुर्ता !या सरकार जाने के बाद इतनी गरीबत आ गई है कि कुर्ता भी नहीं खरीद पा रहे हैं या फिर नोट बंदी के कारण फटा कुर्ता पहनना पड़ रहा है !ऐसा तो नहीं कि कुर्ते फाड़ फाड़ कर ही पहनने की आदत हो !मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल के द्वारा पास किया गया बिल भी तो इन्होंने ही फाड़ा था ये फाड़ने फड़वाने वाली बीमारी बहुत गन्दी होती है 
      अभी कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में एक बाबा जी पहुँचे थे कपड़े फड़वाने ! पुलिस ने जैसे ही लट्ठ उठाया तो तुरंत औरतों वाले सलवार कुर्ते में आ गए थे वो !पुलिस वालों के लट्ठ के आगे बड़े बड़े पहन लेते हैं कपड़े !क्योंकि ये सबको पता है कि भारत की पुलिस में और कोई गुण हो न हो किंतु  किसी को मारते समय उसे नंगा करके मारने में उनकी तुलना किसी से नहीं है अक्सर देखे जाते हैं ऐसे केस !
      वैसे भारत वर्ष में किसी की भी बेइज्जती करते समय लोग भी आपस में ही एक दूसरे को मारने से ज्यादा  नंगा कर देना ही पसंद करते हैं !किंतु जनता को कोई नेता नंगा करे तो करता रहे और अपना जरा सा कुर्ता फट जाए तो नेता लोग स्टेज पर खड़े हो होकर मीडिया के सामने सारी दुनियाँ को दिखाने  लगते हैं ! 
        प्रायः हर क्षेत्र में माँगने की इच्छा रखने वाले ऐसा करते देखे जाते हैं किंतु आज कल लोग भरोसा कम करने लगे हैं क्योंकि लोगों को माँगने वालों की मानसिकता पता चल गई है फिर भी जनता को बुद्धू बना कर जितना माँग सकते हो माँगो !जनता खुद गरीब रहकर भी नेताओं की शौक शान पूरी करने के लिए दिन भर खून पसीना बहाती है फिर भी फटा  कुर्ता दिखा दिखा कर जनता की बेइज्जती कराते घूम रहे हैं नेता लोग !
   अरे !तुम्हें तो कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि सबको पता है कि नेता लोग और उनके परिवार गरीबों ग्रामीणों और किसानों की कमाई के बल पर ही पलते हैं ऐसे में अपना फटा कुर्ता दिखा दिखाकर क्यों गरीबों ग्रामीणों और किसानों को शर्मिंदा करते हो यार !
  अपना पता बताओ  देश के गरीब खुद फटा  पहन लेंगे किंतु तुम्हारे लिए सैकड़ों कुर्ते भेज देंगे अभी भी !गरीब केवल गरीब होता है किंतु भिखारी नहीं !किसान आत्म हत्या करते ही इसीलिए हैं कि वो अपने और अपने बच्चों का पेट राजनेताओं की तरह फ्री की कमाई से नहीं भरना चाहते !और अपनी जिम्मेदारी न निभा पाने की पीड़ा से परेशान होकर प्राण छोड़ देते हैं वे !

रंडीतिवारी (ndt)के लड़के को भी मिलेगा अब टिकट !ये राजनीति है या बदमाशों की बारात !!

कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्हें केवल अपनी ऐय्यासी से मतलब है भाड़ में जाए दुनियाँ जहान !
    लोकतंत्र तो केवल गरीबों ग्रामीणों मजदूरों और माध्यम वर्ग के लोगों का खून चूसने के लिए है नेता लोग तंग करने के अलावा देश और देशवासियों के लिए करते क्या हैं ! 
     अपराधों की जो जो बैरायटी कहीं न मिले वो राजनीति में मिल सकती है और जिस अपराधी का सुराक कहीं न मिले उन्हें खोजने के लिए ऐसे नेताओं के घरों के कैमरे एवं  उनके फोन के कॉलडिटेल खँगाले जाएँ मेरा अनुमान है कि निराश नहीं होना पड़ेगा !
   इसी लोकतंत्र की आड़ में तो ऐय्यास नेता लोग युवा अवस्था में बड़े घर बर्बाद कर चुके होते हैं बड़े लोगों की जिंदगी तवाह कर देते हैं जिसकी बीबी उसी को धमका कर छीन लेते हैं उससे और अपनी रखैल बनाकर रख लेते हैं !ऐसी ऐय्यासी की उमंग में कहाँ कहाँ किससे किससे कब कब कितने कितने बच्चे हुए गिनने की फुरसत किसे होती है!
      संबंध बनाते छोड़ते रँगरेलियाँ मनाते मनाते कब उम्र बीत गई पता ही नहीं लगता है ये नेता लोग पहले सारी जवानी ऐय्यासी में बिता लेते हैं फिर उनकी उम्र ,अकल और सूरत सब कुछ बिगड़कर गंध देने लग जाती है ! ऐसी परिस्थिति में जब उनकी ओर कोई लड़की औरत आदि थूकने को भी तैयार नहीं होती है तब उनके पुराने कर्मों की याद दिलाने के लिए न जाने कितनी औरतें अपने अपने बच्चों की अँगुलियाँ पकड़े चली आ जाती हैं महाराज !मैं आपकी पत्नी और ये आपके बच्चे हैं ऐसी याद दिलाने लगती हैं किंतु ऐसा कहने और बताने वालों की संख्या बहुत होती है नेता बेचारा किसे किसे याद रखे !आखिर  नेता लोग भी तो एक प्रकार के इंसानों की तरह ही होते हैं !इसलिए उन्हें अपनी पुरानी कोई औरत याद रहे न रहे किंतु अपने कुकर्म तो हर किसी को याद रहते ही हैं !
   ऐसे नेताओं के कुकर्मों का फैसला तो DNA से ही होना संभव होता है !जाँच कर कर के कानून बताता जाता है सीए गिनते जाते हैं कि महाराज किस वर्ष में कितने बच्चों के उत्पादन के कारण बने !
      इसीलिए तो राजनैतिक पार्टियों के ऐय्यास मुखिया लोग योग्य अनुभवी और चरित्रवान लोगों को राजनीति में आने नहीं देते हैं न उन्हें पार्टी में कोई अच्छा पद देते हैं और न ही उन्हें चुनावों में लड़ने के लिए प्रत्याशी ही बनाते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि ये गुणवान चरित्रवान सिद्धांतवादी लोग राजनैतिक दलों के मठाधीशों की ऐय्याशी का विरोध करेंगे !भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे !इसीलिए वे अपनी अपनी पार्टी के नेताओं के बीबी बच्चों नाते रिस्तेदारों या अपने खानदान  वालों को ही पार्टी के पद और टिकट देते हैं ताकि अंदर की बात अंदर ही बनी रहे !या फिर कम पढ़े लिखे लोगों को टिकट देकर प्रत्याशी इसलिए बनाते हैं ताकि कुछ बोलने सुनने और समझने लायक ही न हों जहाँ जैसे बैठा दिए जाएँ पागलों की तरह वैसे ही बैठे रहें !और जब वे अपने नेताओं की हरकतें समझने लगें तो उन्हें आसानी से किनारे लगा दिया जाए !
   ऐसी मांस प्रतिमाओं के साथ गिरोह बनाकर राजनैतिक मठाधीश उन सदनों में पहुँचते हैं जहाँ बोलना केवल मठाधीशों को होता है हुल्लड़ मचाने के लिए हुल्कार दिए जाते हैं गिरोह के पालतू उपद्रवी लोग !वो तब तक उपद्रव करके कार्यवाही नहीं चलने देते हैं जब तक मठाधीश की एक एक बात मान नहीं ली जाती है वो भले ही कितनी भी गलत क्यों न हो ! सदनों की कार्यवाही चलानी है तो उनकी गलत बात भी माननी ही पड़ेगी !
     इस प्रकार से अपराधों की जो बैरायटी कहीं न मिले वो राजनीति में मिल सकती है और जिस अपराधी का सुराक कहीं न मिले उन्हें खोजने के लिए नेताओं के घरों के कैमरे एवं  उनके फोन के कॉलडिटेल खँगाले जाएँ मेरा अनुमान है कि निराश नहीं होना पड़ेगा !
   सभी प्रकार के अपराध और अपराधी ऐसे तो जरूर पकड़े जा सकते हैं इसीलिए वास्तविक अपराधियों के पकड़ने की जगह दबाववश केस खोलने के नाम पर गरीबों ग्रामीणों मजदूरों के बच्चे उठाकर बंद कर दिए जाते हैं बाद में बरी होकर छोड़ दिए जाते हैं बड़े बड़े  केस !और अपराधियों को अपराध करने का मौका मिलता रहता है !
    राजनीति में ईमानदार योग्य चरित्रवान सिद्धांतवादी लोगों को पूछता कौन है बदमाशों का संग्रह करने में प्रायः हर पार्टी रूचि लेने लगी है इसीलिए न घटते दिखते हैं अपराध और न अपराधी !बलात्कारों की नदी निकली ही राजनीति से है बात अलग है कि नेता लोग जिससे बलात्कार करते हैं उसे डरा धमकाकर या कुछ लोभ लालच देकर उसका मुख बंद कर देते हैं पट गई तो पटा लेते हैं ज्यादा सुंदर लगी तो उसे रखैल बना कर रख लेते  हैं विवाहित  हुई तो तलाक करा कर रख लेते हैं अपने पास किन्तु  तब तक वो उसे पत्नी का दर्जा नहीं देते हैं !तब उनकी ऐय्यासी के और सारे विकल्प बंद नहीं हो जाते हैं !
     इसी फार्मूले से बूढ़े बूढ़े बूढ़े नेता भी विवाह करते देखे जा सकते हैं !शरीर जब गन्दा दिखने लगता है तब निराश हताश बिलकुल बेकार हो चुके बहुरुपिया नेता लोग जवानी बीतने के दसबीस वर्षों बाद  अपनी उसी पुरानी धुरानी के साथ ही भाँवर घूम लेते हैं !
      देश में अभी भी एक आध पार्टी ऐसी भी हैं जो लोक तांत्रिक प्रक्रिया अपनाने का प्रयास करती हैं जिनका अध्यक्ष या मालिक कोई एक व्यक्ति या एक ही परिवार नहीं होता है अभी तक तो ऐसा ही देखा गया है किंतु टिकट बॉटने और पार्टी के पदों को देने में पारदर्शिता वहाँ भी नहीं है ठेकेदारी की पृथा दिनोंदिन हावी होती जा  रही है !ऐसा न होता तो लोकतान्त्रिक पार्टी कही जा सकतो थी वो !

Wednesday, 18 January 2017

सरकारी अधिकारी कर्मचारी हों या नेतालोग लोकतंत्र का तमाशा बनाए घूम रहे हैं सब !

    सरकारी विभागों की घूस खोरी और राजनैतिक दलों के द्वारा की जाने वाली चुनावी टिकटों की बिक्री ने लोकतंत्र को निष्प्राण कर दिया है अब तो गरीबों ग्रामीणों किसानों की सहनशीलता पर ही टिका हुआ है लोकतंत्र !जिस दिन वो बौखलाए उस दिन क्या होगा ! 
   घूसखोरी सरकारी सिस्टम की सच्चाई है जैसे सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देना सरकार की मज़बूरी है वैसे ही घूस लेना कर्मचारियों की मज़बूरी है काम करवाने के लिए घूस देना जनता के लिए जरूरी है !हर किसी की अपनी अपनी दलीलें हैं !
      नंबर दो का काम करने वालों का मानना है कि यहाँ सरकारी विभागों में इतना अधिक भ्रष्टाचार है कि नंबर एक में चल ही नहीं पाएगा व्यापार !हर किसी को पैसे चाहिए । 
     घूस लेने वालों का मानना है कि नौकरी पाना  हो या प्रमोशन लेना हो इसके लिए न शिक्षा न योग्यता और न ही उसके द्वारा किए हुए अच्छे काम का ही कोई ध्यान देता है जैसी घूस वैसी नौकरी  प्रमोशन आदि सबको मिला करता है !
     घूस लेकर नौकरी और प्रमोशन आदि देने वालों का मानना होता है कि किसी कर्मचारी की अच्छी शिक्षा या उसके काम की गुणवत्ता मेरे किस काम आएगी घूस  का पैसा तो सीधे अपने घर जाएगा !घूस लेना गलत है यदि ऐसा सोचे भी तो इनकी शिक्षा और योग्यता पर कितना भरोसा किया जाए !जब घूसखोर अधिकारी कर्मचारी एक से एक अनपढों को टॉपर घोषित कर  सकते हैं तो इनकी पढ़ाई और योग्यता पर कैसे विश्वास कर लिया जाए !ऐसे अयोग्य लोग भी यदि नौकरी और प्रमोशन चाहते हैं तो ये गलत नहीं है क्या ?और इसका दंड इन्हें क्यों नहीं मिलना चाहिए !इसलिए इनसे घूस लेना अधर्म नहीं अपितु धर्म है । 
      नौकरी और प्रमोशन पाने के इच्छुक अयोग्य लोग सोचते हैं कि कुछ पैसे यदि पास करने वाले ने ले लिए कुछ नौकरी दिलाने वाले ने तो कुछ प्रमोशन दिलाने वाला भी ले लेगा ये तो उसका हक़ बनता है मैंने कुछ पढ़ा लिखा भी तो नहीं था वैसे भी पढ़ते  लिखते भी तो जब कॉपी जाँचने वाले ही नहीं पढ़े लिखे होंगे या उनके घर वाले और नौकरों आदि को ही कापियाँ जाँचनी हैं तो उनके लिए क्या  पढ़े लिखे और क्या अनपढ़ !उन्हें तो दर्जन के हिसाब से पैसे मिलते हैं वे क्यों और कैसे पढ़ने जाएँ कि बच्चे ने लिखा क्या है !
    वैसे भी अकेले हमारे घूस देकर नौकरी पाने में गलत क्या है जब नौकरी पाने का सिस्टम ही यही बन चुका है और जो सिस्टम का पालन नहीं करेगा वो आउट हो जाएगा !इसीलिए तो आज एक से एक पढ़े लिखे लोग खेती मजदूरी करते घूम रहे हैं और अयोग्य लोग भोग रहे हैं सारी सरकारी सुख सुविधाएँ ! आज भी यदि परीक्षा लेने वाले या पढ़ाने वाले शिक्षकों की भी ईमानदारी से परीक्षा ले ली जाए तो सरकारी सिस्टम में नौकरियों पर लगे आधे लोगों का भी पास होना कठिन हो जाएगा !प्रायः सभी घूस और सोर्स के बल  हैं हो सकता है कि कुछ लोग योग्यता और ईमानदारी के बल पर भी लगे हों किंतु उनकी शिक्षा कितनी होगी !
     सरकारी कर्मचारियों की अयोग्यता की कहानी कहने के लिए सरकारी सेवाएँ प्रत्यक्ष प्रमाण हैं सरकारी स्कूल अस्पताल डाक व्यवस्था फ़ोन व्यवस्था आदि सब पर भारी पड़ रही हैं इन्हीं क्षेत्रों से संबंधित प्राईवेट सेवाएँ !यहाँ तक कि प्रायः सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी सरकारी सेवाओं पर भरोसा नहीं करते हैं!सरकारी स्कूलों में कितने प्रतिशत  पढ़ाते हैं अपने बच्चे ! इसका सीधा सा कारण सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की अयोग्यता है या कामचोरी !स्कूल शिक्षकों के नाम से ,अस्पताल चिकित्सकों के नाम से और मंदिर पुजारियों के नाम से जाने जाते हैं जिस मंदिर को लोग केवल इस नाम से जानते हों कि वहाँ प्रसाद खूब बँटता है इसका मतलब वहाँ का पुजारी मूर्ख है अन्यथा पुजारी के नाम पर पहचान होनी चाहिए थी !
   जैसे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई होती है तो लोग अपने बच्चे भी पढ़ाते हैं फीस भी देते हैं और हाथ पैर भी जोड़ते हैं क्योंकि वहाँ के योग्य शिक्षक अपनी जिम्मेदारी निभाना जानते हैं वहीँ दूसरी ओर सरकारी भ्रष्ट लोगों को  कामचोर अकर्मण्य अनपढ़ आदि मानकर लोग कितनी घृणा से देखते होंगे उन्हें !इसीलिए तो अच्छे लोग सरकारी स्कूलों में भेजकर अपने बच्चों की जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहते हैं !अपने कामचोर शिक्षकों की गुडविल बनाए रखने के लिए सरकार भोजन वस्त्र कापी किताबें पैसे आदि सबकुछ बाँटते घूम रही है फिर भी अच्छे परिवारों के बच्चे बुलाए बुलाए भी नहीं आते हैं सरकारी स्कूलों में !सरकार को लीपा पोती करने के बजाए आखिर उनसे ही क्यों नहीं पूछना चाहिए कि आपके स्कूलों को लोग इतनी गिरी निगाह से क्यों देखते हैं पचासों हजार की सैलरी लेकर यदि आप अपनी और अपने स्कूल की गुडबिल भी नहीं बना पाए तो मर जाना चाहिए चिल्लू भर पानी में डूब कर !
      सरकारी नौकरियों में अक्सर देखा जाता है कि अपने दायित्व के प्रति किसी का विशेष समर्पण ही नहीं होता है और न ही कोई लक्ष्य होता है और न अपने संस्थान की इज्जत से ही कोई लगाव होता है न ही कोई उत्साह होता है मुर्दों की तरह शरीर ढोए घूम रहे हैं लक्ष्य भ्रष्ट कर्मचारी !सुबह शरीर ले जाकर आफिस में रख देते हैं और शाम को लाकर घर वालों को सौंप देते हैं । आफिस में आफिस वाले जो चाहें करवा लें और घर में घर वाले जहाँ चाहें जोत लें !ऐसे अनुत्साहित जीवन की अपेक्षा परिश्रम करके कमाने खाने वालों का कभी नहीं गिरता है उत्साह !किसानों मजदूरों में भी जो उत्साह देखा जाता है अक्सर वो भी नहीं होता है सरकारी कर्मचारियों में ! यही कारण है कि सरकारी विभागों और आफिसों की दिनोंदिन भद्द पिटती जा रही है !
     जिस अफसर के कार्यकाल में जिस विभाग से संबंधित कोई भी अपराध हुआ हो उस अपराध और अपराधी को पकड़ने से पहले उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को पकड़ कर पूछा जाना चाहिए कि आप इसे रोक क्यों नहीं पाए !आपको  जानकारी थी या नहीं यदि थी तो क्यों नहीं रोक पाए आप !आखिर जिसे सैलरी दी जाती है उसकी जिम्मेदारी क्यों नहीं सुनिश्चित की जानी चाहिए !
   इसी प्रकार से सरकारी जमीनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभालने वाले अधिकारी कर्मचारी लोग ही घूस ले ले कर कब्ज़ा करवाया करते हैं !जो रोके उससे कहते हैं एप्लिकेशन दो तो कार्यवाही करें किंतु यदि वो शिकायती पत्र दे दे तो यही लोग भूमाफियाओं को वो पत्र दिखाकर शिकायत करने वाले की वो  धुनाई करवाते हैं कि उसके बाद शिकायत करने की कोई हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है और सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करा देते हैं यही सरकारी लोग !
    ऐसे घूस खोर लोग सरकार की नाक कटाने के अलावा देश और समाज के किसी काम तो नहीं आ पा रहे हैं फिर भी सरकार न केवल उन्हें सैलरी दिए जा रही है अपितु भारी भरकम धनराशि देती है क्यों आखिर किस ख़ुशी में !जिन्होंने सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करवाया उन अधिकारियों कर्मचारियों पर कठोर कार्यवाही क्यों नहीं ?
    सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपराधियों पर इसी लिए नियंत्रण नहीं कर पाते हैं क्योंकि अपराधी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं जबकि सरकारी कामकाज की शैली को देखकर किसी को नहीं लगता कि ये अपने दायित्व के लिए गंभीर हैं !अपराधी और आतंकवादी लोग अपने लक्ष्य साधन के प्रति इतने अधिक समर्पित होते हैं कि उनका लक्ष्य प्रायः चूकता नहीं है जबकि सरकारी कर्मचारियों का पहली बात तो कोई लक्ष्य नहीं दिखता है दूसरी बात यदि कोई लक्ष्य बनावें भी तो उसे पूरा करने में भारी लापरवाही देखी  जाती है !सच्चाई तो ये है कि जैसे आतंकवादियों के रखे गए विस्फोटक उनके द्वारा निर्धारित समय और स्थान पर ही फिट किए जाते हैं और फूटते भी हैं किंतु यही काम यदि सरकार के आम कर्मचारियों का होता तो ये ये विस्फोटक समय पर नहीं फिट होता उस  स्थान पर नहीं पहुँच पाते और जहाँ कहीं रखते वहाँ वो फूटता भी या नहीं इसका किसी को भरोसा ही नहीं होता !भ्रष्टाचार का तो आलम ये है कि कहो बारूद की जगह मिट्टी ही भरी होती उनमें !
         इसलिए  घूस देकर काम करा लेना जनता की  मज़बूरी है जनता घूस देकर न काम करावे तो जनता के पास ऐसे कोई अधिकार भी तो नहीं होते हैं जिनका प्रयोग करके वो अपना काम करवा ही लेते !जनता के पास तो घूस बल का ही सहारा बचा है जिन नौकरियों को पाने और प्रमोशन में योग्यता और अच्छाइयों का कोई खास महत्त्व ही न हो केवल घूस  और सोर्स ही सब कुछ हो तो ऐसी नौकरी पाने के लिए कोई पढ़े क्यों और  प्रमोशन पाने के लिए कोई अच्छा काम क्यों करे !
   कोई अच्छा पढ़ भी ले और परीक्षा भी अच्छी दे आवे किंतु जब कापियाँ  जाँचने वालों को ही कुछ नहीं आता होगा या आता भी होगा तो वो न जाँचते हों कापियाँ अपितु उनके घर वाले या नौकर लोग जाँच देते हों कापियाँ और घूसखोर अनपढ़ अफसर लोग मूर्खों को भी टॉपर बना देते हों !उस देश की प्रतिभाओं का क्या कहना !
     नोटबंदी अभियान  में ही देखिए सरकार ने जिन कालेधन वालों के विरुद्ध अभियान छेड़ रखा था उसी समय कुछ गद्दार कर्मचारी उन्हीं काले धन वालों के गोदामों में रखे नोट बदलते चले जा रहे थे !क्योंकि वहाँ तो उन्हें घूस का लालच था जो मिलनी जरूरी थी !जबकि सरकार से केवल सैलरी लेनी होती है वो निश्चित होती है जबकि सरकार अनिश्चित होती है ऐसे में जो कर्मचारी प्रधानमंत्री जी की बातों पर कोई ख़ास ध्यान नहीं देते हैं वो आम जनता की जरूरतों और बातों पर  कितना ध्यान दे पा रहे होंगे !          
   घूस और सोर्स के बल पर नौकरी पाने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए घूस लेना जरूरी है उन्हें सैलरी देना सरकार की मज़बूरी है !नहीं देगी तो कोर्ट जाकर ले लेंगे !सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देना जनता की मजबूरी है क्योंकि जनता के पास इसके अलावा कोई अधिकार ही नहीं होते हैं !                          चुनाव लड़ने वाले कितने प्रत्याशियों का चयन राजनैतिक दल योग्यता के आधार पर करते हैं टिकट पाने वाले प्रत्याशियों की ऐसी योग्यता क्या घोषित कर सकते हैं राजनैतिक दल जो उस क्षेत्र के अन्य कार्यकर्ताओं में न हो !
    इसी प्रकार से नौकरी देते समय कितने लोग योग्यता के आधार पर हासिल कर पाते हैं नौकरी !क्या सरकार उनके नाम विश्वास पूर्वक सार्वजानिक कर सकती है !     कुल मिलाकर घूस देने को पैसा हो तो चुनावी टिकट भी मिलती है और नौकरी भी !इसी का नाम है लोकतंत्र !इस सच्चाई को जो नहीं स्वीकार करता है वो लोकतंत्र विरोधी !
    आप किसी पार्टी से पूछ लो कि प्रत्याशियों के चयन में किस योग्यता  का परीक्षण करते हैं आप !तो बोलती बंद हो जाएगी !इसी प्रकार सरकारी नौकरियाँ जिन्हें जो परीक्षा देकर  मिलीं हों उनकी आज वो परीक्षाएँ लेकर देख लो आधे से अधिक फेल हो जाएँगे भ्रष्टाचार के द्वारा नौकरी पाने वालों के चेहरे चमककर सामने आ जाएँगे !करोड़ों में वैकेंसियाँ खाली हो जाएँगी !योग्य लोगों को नौकरी मिले अयोग्य लोगों को बहार किया जाए किन्तु इस करे कौन जो ईमानदार हो वही न किंतु ईमानदार है कौन !सरकार ईमानदार और कर्मठ होती और उसे अपने कर्मचारियों से काम लेने की अकल ही होती तो उसे अपने कर्मचारियों से काम लेना आता न होता !सरकारी लोग तो सरकारी कर्मचारियों को सैलरी बाँटने और बढ़ाने के टट्टू हैं बस !इनसे काम लेना तो प्राइवेट लोगों को ही आता है ये सुनते ही उन्हीं की हैं !घूस पाते ही एक्टिवेट होने लगते हैं उनके अंग प्रत्यंग !
   इन  कर्मचारियों को सैलरी देगी नहीं तो ले कहाँ जाएगी सरकार कोर्ट में लड़कर ले लेंगे सरकार को बदलकर ले लेंगे नेताओं से जुगाड़ भिड़ाकर ले लेंगे !सैलरी  हासिल करने के सौ जुगाड़ किंतु घूस मिलने का कोई नहीं और इसमें कोई ह मदद भी नहीं करेगा इसलिए पहले घूस लो बाद में सैलरी माँगो !सरकार दे तो ठीक न दे तो हड़ताल पर चले जाओ !हड़ताल में मस्ती की मस्ती ऊपर से सैलरी भी उसके ऊपर से  माफी भी मंगवाने का मौका मिलता है बारी राजनीति और बारी सरकार !सब का भ्रष्टाचार जब तक जनता भोगे तब तक लोकतंत्र अन्यथा किस बात  का लोकतंत्र !
      राजनीति सभी प्रकार के अपराधियों का अपना आँगन है जिसका आँगन उसी को निकालना चाहते हैं कुछ ईमानदार लोग ! 
  ईमानदारों ने नोटबंद किए तो बेईमानों ने  नोट  बदल लिए आखिर क्या बिगड़ गया उनका !यही न कि सौ के सत्तर मिले तो क्या हुआ सरकार से सैलरी लेने वाले बैंक वालों को घूस का लालच देकर ठाट से करवाई अपनी नौकरी सरकार देखती रह गई !भ्रष्टाचारियों ने ठेंगा दिखा दिया सरकार को ! ईमानदारी की अपेक्षा बेईमानी वाले काम ज्यादा आसानी से होते हैं !घर चलकर दे जा रहे थे नए नए नोट जिसे जितने चाहिए उतने मिल रहे थे जो उन्हें घूस देता था उसे देते थे किंतु जिसने घूस नहीं दी उन्हें लगना पड़ा लाइनों में !किसी नेता किसी रईस व्यक्ति को बैंकों के आगे नहीं देखा गया लाइनों में लगते सब जान गए कि जो लाइनों में खड़े सो ईमानदार और जो नहीं खड़े हुए वे बेईमान !आखिर क्या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ी होगी !क्यों वो खाना नहीं खाते थे !सबको जरूरत थी किंतु उन्हें बेईमानी से मिल रहा था और ईमानदारी से पाने के लिए लोग लाइनों में डम तोड़ रहे थे !
    वेश्याएँ अपना शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं जबकि राजनीति तो वो भी छीन लेती है !     
 राजनीति बहुत कठोर एवं सबसे बड़ा पापकर्म है मूर्खों का मनोबल बढ़ाती है और ज्ञानियों को अपमानित करवाती है अपराधियों के आकाओं का कद बड़ा करती है अपराध समाप्त करने वालों को समाप्त करती है राजनीति !मेहनत करके ईमानदारी पूर्वक कमाने खाने वालों को तंग करती है राजनीति और कामचोरों बेईमानों लुच्चों लुटेरों को महिमा मंडित करती है राजनीति !हर प्रकार के अपराधियों और अत्याचारियों को जन्म देती है राजनीति !
   वस्तुतः सेवा विहीन सैलरी लेने वाले नेताओं के द्वारा की जा रही राजनीति सबसे बड़ा पाप है इसीलिए भले लोग राजनेताओं के अत्याचार सह लेते हैं इनका बोला गया हर वाक्य सौ प्रतिशत झूठ मानकर भी सुन लेते हैं इनकी हर हरकत बर्दाश्त कर लेते हैं किन्तु राजनीति में जाना पसंद नहीं करते !बड़े बड़े  पढ़े लिखे अधिकारी इन बहुसंख्य अल्पशिक्षित संस्कार भ्रष्ट सांसदों विधायकों मंत्रियों की गालियाँ सुन लेते हैं इनके द्वारा किया जाने  वाला अपमान सह लेते हैं किंतु नौकरी छोड़कर राजनीति नहीं करते हैं ।
      प्रायःअशिक्षित या अल्पशिक्षित संस्कार विहीन अच्छी बोली भाषा से हीन अच्छे कर्मों से विहीन अच्छी भावना से विहीन कठोर एवं कपटी हृदय वाले लोग  राजनीति में जाते हैं ऐसे लोगों की ड्यूटी होती है कि ये देश और समाज के हित  की विकासकारिका अपनी बातें सदनों में उठावें औरों के बिचार जानें किन्तु बुद्धि विहीन अल्प शिक्षित नेता लोग कम पढ़े लिखे होने के कारण अपनी कह नहीं सकते औरों  की समझ नहीं सकते तो सदनों में बैठकर चर्चा के समय भी मोबाईल पर मनोरंजन किया करते हैं चर्चा छोड़कर बाहर घूमने फिरने चले जाते हैं या सदनों में अपनी कुर्सियों पर ही सो जाते हैं और मौका मिलते ही शोर मचाकर बंद करवा देते हैं कार्यवाही !किंतु यदि उनके ये सारे उपद्रव किसी जिम्मेदार व्यक्ति को बुरे लग रहे होते तो ऐसे अयोग्य नेताओं को चुनावों में प्रत्याशी ही क्यों बनाया जाता क्या पढ़े लिखे शिक्षित शालीन लोगों की देश में कमी है क्या किंतु शिक्षित और शालीन लोग राजनीति के पिछले दरवाजे से भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे ये सबको डर होता है इसलिए इन लोगों की हमेंशा कोशिश रहती है कि अच्छे लोगों को राजनीति में आने ही न दिया जाए !इसलिए अपने ही उपद्रवी नाते रिस्तेदारों घर खानदान  वालों को पार्टियों में भर लिया करते हैं कुछ टिकटें बचीं तो बेच लेते हैं खर्चा पानी निकल  जाता है फिर बेशर्मी का मुख लेकर निकलते हैं जनता से वोट माँगने !अरे निर्ल्लज्ज लोगो !जिस जनता को तुम पार्टियों का पद देने लायक नहीं समझते टिकट देने लायक नहीं समझते उसके दरवाजे वोट लेने क्यों पहुँच जाते हैं आप !
   प्रायः सामान्य  परिवारों से आने वाले नेता लोग जब राजनीति में आए थे तब जिनकी जेब में किराया नहीं होता था वो आज करोड़ों अरबोंपति हैं किंतु कैसे ? फुलटाइम राजनीति करने वाले नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न धन था न समय था सैलरी इतनी थी नहीं कंजूसी से रहना ये जानते नहीं हैं फिर भी अरबों का अंबार !ये हैं भ्रष्टाचारी और यहाँ ही छिपा है भ्रष्टाचार का सारा धन !किंतु भ्रष्टाचारी नेताओं का भ्रष्टाचार न कभी पकड़ा गया है और न पकड़ा जा सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाने वाले अधिकारियों की बागडोर भ्रष्टाचारी नेताओं के हाथ में ही रहनी है इस सच्चाई को वो भी समझते हैं सारा देश जानता है यदि इस देश में कोई भी ईमानदार प्रधानमंत्री आ भी जाए तो भी वो सारे देशवासियों पर गरज बरस लेगा किंतु नेताओं के गिरेबान में हाथ डालने की हिम्मत उसकी भी नहीं पड़ेगी यदि उसने ऐसा करने की कोशिश की भी तो सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी जाएगी ऊपर से शोर मचाया जाएगा !
     सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करवाकर बस्तियाँ बसाने के बाद उन कालोनियों के नियमितीकरण के लिए आंदोलन करने वाले पापी समाज से कालाधन निकलने का नाटक करते हैं अरे पकड़ना ही है ईमानदारी की थोड़ी भी लज्जा है तो पहले नेताओं की संपत्तियों का हिसाब दो बाद में जनता का कालाधन पकड़ो !
  राजनीति सबसे गंदा  धंधा बन  गया है ये सेवा धर्म पर आश्रित थी जो आज संपत्तियाँ इकट्ठी करने का साधन बनी हुई है !राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को बार बार धिक्कार !!
    राजनैतिक भ्रष्टाचार और कामचोरी की लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ी है कि पढ़ाई चोर विद्यार्थियों ने स्कूलों में राजनीति शुरू कर दी है तथा कामचोर और हराम की कमाई खाने के शौक़ीन भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों ने ड्यूटी टाइम में यूनियनें बना बनाकर राजनैतिक पाप करना शुरू कर दिया है उन मक्कारों को ये पता नहीं है कि उनके इस समय की भी सैलरी उन्हें जनता के खून पसीने की कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसों से दी जाती है फिर भी वो हड़ताल किया करते हैं !अरे  संतुष्ट नहीं हो तो त्यागपत्र दो जगह खाली करो औरों को मौका दो हड़ताल करने की क्या जरूरत !सर्कार यदि भरष्ट न हो ईमानदार हो तो हड़तालियों को सस्पेंड करके नए लोगों को नौकरी दे किन्तु सरकारों बैठे लोग काली कमाई करवाते उन्हीं से हैं आज ये सस्पेंड कर देंगे तो कल वो इनकी पोल खोल देंगे !

     वेश्याओं को भी पता है कि राजनीति सबसे बड़ा कमाऊ धंधा है राजनीति में अपार संपत्ति एवं भारी भरकम सुख सुविधाएँ हैं सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा आदि सारे सुख हैं ,काम केवल चुनाव जीतना इसी बल पर सारे राजभोग   भोगते हैं राजनेता ! चुनाव तो वेश्याएँ भी औरों की अपेक्षा अधिक आसानी से जीत सकती हैं उनका धंधा ही लोगों को प्रभावित करना है शिक्षा की आवश्यकता चुनाव लड़ने के लिए होती नहीं है सबसे अलग अलग ढंग से आँख मार कर खुश करना नेताओं से ज्यादा उन्हें आता है नेताओं से अधिक अच्छे ढंग से वे झूठ बोल लेती हैं फिर भी वेश्याएँ वेश्यावृत्ति की सारी जलालत सहती हैं किंतु राजनीति में नहीं आती हैं उन्हें पता है कि वेश्यावृति में केवल शरीर ही दाँव पर लगाना होता है जबकि राजनीति चरित्र सिद्धांत सदाचरण आदि सबकुछ ही छीन लेती है इसीलिए वेश्याएँ शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं अपना  !वेश्याएँ इस कटु  सच्चाई को समझती हैं कि वेश्यावृत्ति में केवल शरीर का ही सौदा करना होता है जबकि  वर्तमान राजनीति तो धंधा ही चरित्र और सिद्धांतों की बोली लगवाने का है ।वेश्याएँ शरीर आर्थिक परिस्थितियों के कारण बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं ।
        राजनीति का कितना अवमूल्यन हुआ है आज ।आप स्थापित सरकारों में सम्मिलित लोगों को चोर छिनार भ्रष्टाचारी कहकर जीत लेते हैं चुनाव !आप ब्राह्मणों सवर्णों को गाली देकर जीत लेते हैं चुनाव !दलितों महिलाओं गरीबों अल्पसंख्यकों की बातें करके जीत लेते हैं चुनाव !विकार के आश्वासन देकर जीत लेते हैं चुनाव !इसीलिए सदाचारी ,योग्य और लोगों को राजनीति में घुसने कौन देता है !किस पार्टी में जगह है ऐसे लोगों के लिए !ये वर्तमान समय के हमारे लोकतंत्र का चरित्र है ।
      संसद और विधान सभा जैसे अत्यंत पवित्र सदनों की गरिमा ही चरित्र और सिद्धांतों की रक्षा करने से है किंतु कितने चरित्रवान  और सिद्धांतवादियों को प्रवेश मिल पाता है राजनीति में !इसी प्रकार से संसद और विधान सभा जैसे सदन होते ही चर्चा के लिए हैं चर्चा करने के लिए उच्च शिक्षा को  अनिवार्य क्यों न बनाया जाए !जो सदस्य अपनी अयोग्यता के कारण औरों की कही हुई बात समझेंगे ही नहीं अपनी समझा नहीं सकेंगे उनका इन सदनों में और काम ही क्या है उदास बैठने के अलावा ! या तो वे हुल्लड़ मचावें या सोवें या बाहर निकलकर कहीं गप्पें मारें आखिर ऐसे सदनों में और वो करें भी तो क्या कहाँ तक उदास बैठे रहें !
    चरित्र ,सिद्धांत शिक्षा और सदाचरण जैसे महत्त्वपूर्णमूल्यों को चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य करने के लिए बहुमत चाहिए !भले और शिक्षित लोगों का बहुमत कभी हो ही नहीं सकता भीड़ होती ही जनरल बोगी में हैं !माना कि अवसर सबको मिलना चाहिए किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अशिक्षित और अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा दिया जाए मूर्खों को कलट्टर बना दिया जाए अशिक्षितों को शिक्षक बना दिया जाए यदि ये सब होना गलत है तो इन सम्मानित सदनों के सदस्यों के लिए भी शिक्षा और योग्यता के उच्चमानदंड क्यों न बनाए जाएँ !
    संसद और विधान सभा जैसे सदनों के सदस्यों पर कम जिम्मेदारी होती है क्या ?उनमें से अयोग्य लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर सकेंगे !किंतु ऐसा सब कुछ सोचने वाले सजीव राजनेता कहाँ और कितने हैं जिनसे उमींद की जाए कि ये देश के लिए भी कुछ सोचेंगे !
     राजनीति में शिक्षित योग्य ईमानदार सदाचारी लोग आवें ऐसा बोलते तो सब हैं किंतु ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में घुसने कौन देता है जिसने एहसान व्यवहार में घुसने भी दिया तो वो उसे पहले वैचारिक बधिया (नपुंसक) बनाने की प्रतिज्ञा करवाता है बाद में घुसने देता है ताकि वो पार्टी में आकर चरित्र और सिद्धांतों का झंडा उठाए न घूमें  !
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Monday, 16 January 2017

साइकिल जीतने की नेता जी को बहुत बहुत बधाई ! अंततः नेता जी की मेहनत रंग लाई !

   जो साइकिल अभी तक पूरे परिवार की थी पार्टी फाउंडर मेंबरों की थी अब वो केवल अपनी हो गई !आगामी चुनावों में अब पार्टी यदि पराजित भी होती है तो भी परिवार और पार्टी के अंदर विजय मिल जाने के बाद चुनावों में तो अभी नहीं तो अगले बार मिलेगी विजय ! 
     जिस साइकिल पर पहले पूरा परिवार धौंस जमाया करता था वो साइकिल अब नेता जी की अपनी हो गई !पहले जो पार्टी साझे की थी उसमें सारा परिवार सम्मिलित था फाउंडर मेंबर भी थे सभी सलाहें दिया करते थे और आँखों की शर्म तो माननी ही पड़ती है इसलिए सबकी बातें भी सुननी और माननी पड़ती थीं जैसे पिछले चुनावों में मिली जीत के बाद जब पुत्र अखिलेश का राज्याभिषेक किए जाने की बात आई तो जिन कुछ लोगों को नेता जी की ये ख़ुशी बर्दाश्त नहीं हुई इन चुनावों से पहले ही उन्हें ठिकाने लगाना बहुत जरूरी था अन्यथा वो फिर पंगा करते और उनकी बात भी सुननी माननी पड़ती किंतु अब जिस रणनीति पूर्वक पार्टी अखिलेश की ओर खिसकाई गई है वो बड़ी काबिले  तारीफ है !
    अब न कोई फाउंडर मेंबर और न ही परिवार का कोई व्यक्ति सबकी दखलंदाजी एक साथ ही समाप्त हो गई !रही बात नेता जी की !पहले तो केवल साइकिल ही थी अब तो साइकिल का ड्राइवर मिल गया  नेता जी को उसकी पीठ पर सवार होकर आनंद से घूमेंगे पहलवान नेता जी !पहलवान जी के एक ही दाँव से कहीं के कहीं फेंका  गए अखिलेश की राह में रोड़े अटकाने वाले पार्टी के फाउंडर मेंबर और परिवार एवं पार्टी के बड़े बूढ़े सारे लोग !अब तो जो अखिलेश से हाँजी !हाँजी करेगा वही पार्टी में रहेगा !! नेता जी तो कह देंगे अब अपना बचा क्या है पार्टी में !
       चुनाव चिन्ह हार कर भी उन्होंने वो सबकुछ जीत लिया है जो उनके लिए जरूरी था !सपा यदि इस चुनाव में हार भी जाती है तो भी पार्टी तो अपनी हो गई पार्टी की मालिकियत की ये लड़ाई पूरी तरह जीत जाने के बाद यदि चुनावों में पार्टी को पराजय भी मिलती है तो भी पार्टी पुत्र को सौंपने का सुख तो रहेगा ही !वैसे भी ये कोई छोटी विजय तो नहीं है !वैसे भी ये कोई छोटी विजय तो नहीं है !नेता जी की मेहनत रंग लाई !इसके लिए बार बार बधाई !!
       

Sunday, 15 January 2017

अधिकारियों के रवैये से उखड़े पीएम मोदी, बीच मीटिंग से उठकर चले गए!

  वैसे भी आम जनता के किस काम आते हैं अधिकारी !
   अधिकारी गण तो अपने अपने कर्मचारियों की ही भाषा बोलते हैं क्योंकि मेरी समझ में जनता की समस्याओं पर उनकी अपनी सूचना के कोई सीधे स्रोत नहीं होते हैं और सम्बंधित समस्याओं के विषय में जनता की बातों पर वे भरोसा नहीं कर पाते हैं अंत में जनता की शिकायतों की जाँच उन्हीं कर्मचारियों से करवाते हैं अधिकारी जिनके व्यवहार से तंग होकर बड़े अधिकारियों के पास जाती है जनता !वही कर्मचारी जाँच करने जाते हैं तो पीड़ित को ही रेट लिस्ट समझाकर पूछते हैं कि बताओ कैसी लगानी है रिपोर्ट फिर दूसरे पक्ष से मिलते हैं उससे भी पूछते हैं बताओ कैसे लगा दूँ रिपोर्ट !जो जितनी ऊँची बोली लगा लेता है वैसी लग जाती है रिपोर्ट और रिपोर्ट के अनुशार हो जाती है कार्यवाही किंतु मेरा प्रश्न सरकारी कामकाज  में न्याय कहाँ है !ऐसा तो आदि काल में कबीलों में हुआ करता था अभी भी आदिवासी क्षेत्रों में ताकत के बल पर निर्णय हथिया लिए जाते हैं यदि वही प्रक्रिया लोकतंत्र में भी अपनाई जाने लगी तो ऐसे  लोकतंत्र की प्रशंसा कैसे की जाए !जो केवल सरकारों में सम्मिलित नेताओं और केवल सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को ही वरदान देता हो !
     न जाने क्यों देश के अधिकारी कर्मचारी लोग दिनों दिन अपनी भूमिका खोते जा रहे हैं देश की आम जनता में तो अधिकारियों की इमेज एक ऐसे खुंखार व्यक्ति के रूप में बना दी गई है जो सरकारी विभागों के एक कमरे में कैद होकर केवल विधायकों सांसदों मंत्रियों पैसे वाले लोगों के फोन सुनता है उन्हीं से बातें करता है और उन्हीं की बातें मानकर जैसा वो लोग कहते हैं वैसा कर या करवा  देता है !इसके अलावा आम जनता से उसका कोई लेना देना ही नहीं होता है !जूनियर कर्मचारी लोग तो उसे क्रोधी घूसखोर आदि बता बताकर उसके नाम पर ही वसूला  करते हैं घूस !इन सब बातों के कारण ही जनता भी उन्हें इन्हीं रूपों में मानने लगती है !               सच्चाई ये है कि अपराधियों से ज्यादा अधिकारियों के क्रोध को डरने लगे हैं लोग न जानें उन्हें कौन सी बात बुरी लग जाए और कब बैक गेयर मार कर शिकायत करने वाले को ही डाँटने लगें या शिकायत करने वाले के ही विरुद्ध उल्टी जाँच शुरू करा दें !               अधिकारी यदि अपने दायित्व निर्वाह के प्रति सतर्क होते और समाज को विश्वास में लेकर चलते तो घट सकते थे समाज के अस्सी प्रतिशत अपराध !क्योंकि अपराधों की योजना बनाते समय ही जनता के सहयोग से पता लगाया जा सकता है किन्तु वे अपने   कोप भवनों से बाहर निकलें तब तो !
  सरकारी विभागों में अपने अपने दायित्वों के प्रति लापरवाह लोग कमियाँ ठीक करना तो दूर अपनी जिम्मेदारियों को देखने तक नहीं जाते हैं देखने भी जाएँ तो वर्तमान परिस्थितियों में भी सरकारी काम काज में काफी सुधार लाया जा सकता है कर्मचारियों से जवाब माँगे जा सकते हैं किंतु उन अधिकारियों पर सरकारी विभागों में काम न होने का फर्क कहाँ पड़ता है जूझना तो जनता को पड़ता है सरकारी काम काज में लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारी तो सरकार से केवल सैलरी लेने पर भरोसा करते हैं बस बाकी सारी सेवाएँ वो  प्राइवेट वालों से ही लेते हैं !
   जहाँ सरकारी काम काज पर सरकारों के अपने अधिकारी कर्मचारी ही भरोसा न करते हों वहाँ जनता कैसे संतुष्ट होगी !ये है देश का घायल लोक तंत्र ! विधायक सांसद मंत्री आदि अक्सर अपने अधिकारियों से कम पढ़े लिखे होते हैं उन्हें खुद ये पता ही नहीं होता है कि अधिकारियों से काम लेना क्या है और लिया कैसे जाए !वो अधिकारों के रौब में केवल डाँटना जानते हैं वो समझदार अधिकारी लोग भी उनसे सर सर करके पास कर ले जाते हैं अपना समय ! 
    देश के सारे विभाग सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाहियों के शिकार हैं नेताओं में अकल के अकाल का बोझ ढो रहे हैं बेचारे !ये है हमारा लज्जित लोकतंत्र जिसे केवल सरकार और सरकारी कर्मचारी ही भोग पा रहे हैं जनता बेचारी सह रही है ऐसे काले अंग्रेजों के अत्याचार !
   भ्रष्टाचार का शोर बहुत है कार्यवाही कम !अरे सरकार  और सरकारी कर्मचारी घूस लेना बंद कर दें और अच्छे ढंग से अपने दायित्व का निर्वाह करने लगें तो कहाँ है भ्रष्टाचार !जनता को तो कोई घूस देता नहीं है जब सरकार और सरकारी कर्मचारी जनता का नैतिक सहयोग करने से भी मुख चुराने लगते हैं उनके जरूरी काम काज भी रोककर खड़े हो जाते हैं तब परिवार का पालन पोषण करने की मज़बूरी में जनता को इन्हें घूस देकर इनसे लेना पड़ता है काम !यदि इन लोगों में काम करने की आदत और ईमानदारी ही होती तो जनता को किसी पागल कुत्ते ने तो काटा नहीं है आखिर वो क्यों देती इन्हें घूस !see more .... http://hindi.news18.com/news/nation/pm-modi-upset-with-officers-presentation-and-walked-out-857789.html

Friday, 13 January 2017

नेतालोग यदि भ्रष्ट यदि न होते तो हो ही नहीं सकते थे इतने अपराध !

घूसलेना जरूरी है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है !                             चुनाव लड़ने वाले कितने प्रत्याशियों का चयन राजनैतिक दल योग्यता के आधार पर करते हैं टिकट पाने वाले प्रत्याशियों की ऐसी योग्यता क्या घोषित कर सकते हैं राजनैतिक दल जो उस क्षेत्र के अन्य कार्यकर्ताओं में न हो !
    इसी प्रकार से नौकरी देते समय कितने लोग योग्यता के आधार पर हासिल कर पाते हैं नौकरी !क्या सरकार उनके नाम विश्वास पूर्वक सार्वजानिक कर सकती है !     कुल मिलाकर घूस देने को पैसा हो तो चुनावी टिकट भी मिलती है और नौकरी भी !इसी का नाम है लोकतंत्र !इस सच्चाई को जो नहीं स्वीकार करता है वो लोकतंत्र विरोधी !
    आप किसी पार्टी से पूछ लो कि प्रत्याशियों के चयन में किस योग्य का परीक्षण करते हैं आप !तो बोलती बंद हो जाएगी !इसी प्रकार सरकारी नौकरियाँ जिन्हें जो परीक्षा देकर  मिलीं हों उनकी आज वो परीक्षाएँ लेकर देख लो आधे से अधिक फेल हो जाएँगे भ्रष्टाचार के द्वारा नौकरी पाने वालों के चेहरे चमककर सामने आ जाएँगे !करोड़ों में वैकेंसियाँ खाली हो जाएँगी !योग्य लोगों को नौकरी मिले अयोग्य लोगों को बहार किया जाए किन्तु इस करे कौन जो ईमानदार हो वही न किंतु ईमानदार है कौन !सरकार ईमानदार और कर्मठ होती और उसे अपने कर्मचारियों से काम लेने की अकल ही होती तो उसे अपने कर्मचारियों से काम लेना आता न होता !सरकारी लोग तो सरकारी कर्मचारियों को सैलरी बाँटने और बढ़ाने के टट्टू हैं बस !इनसे काम लेना तो प्राइवेट लोगों को ही आता है ये सुनते ही उन्हीं की हैं !घूस पाते ही एक्टिवेट होने लगते हैं उनके अंग प्रत्यंग !
   इन  कर्मचारियों को सैलरी देगी नहीं तो ले कहाँ जाएगी सरकार कोर्ट में लड़कर ले लेंगे सरकार को बदलकर ले लेंगे नेताओं से जुगाड़ भिड़ाकर ले लेंगे !सैलरी  हासिल करने के सौ जुगाड़ किंतु घूस मिलने का कोई नहीं और इसमें कोई ह मदद भी नहीं करेगा इसलिए पहले घूस लो बाद में सैलरी माँगो !सरकार दे तो ठीक न दे तो हड़ताल पर चले जाओ !हड़ताल में मस्ती की मस्ती ऊपर से सैलरी भी उसके ऊपर से  माफी भी मंगवाने का मौका मिलता है बारी राजनीति और बारी सरकार !सब का भ्रष्टाचार जब तक जनता भोगे तब तक लोकतंत्र अन्यथा किस बात  का लोकतंत्र !
      राजनीति सभी प्रकार के अपराधियों का अपना आँगन है जिसका आँगन उसी को निकालना चाहते हैं कुछ ईमानदार लोग ! 
  ईमानदारों ने नोटबंद किए तो बेईमानों ने  नोट  बदल लिए आखिर क्या बिगड़ गया उनका !यही न कि सौ के सत्तर मिले तो क्या हुआ सरकार से सैलरी लेने वाले बैंक वालों को घूस का लालच देकर ठाट से करवाई अपनी नौकरी सरकार देखती रह गई !भ्रष्टाचारियों ने ठेंगा दिखा दिया सरकार को ! ईमानदारी की अपेक्षा बेईमानी वाले काम ज्यादा आसानी से होते हैं !घर चलकर दे जा रहे थे नए नए नोट जिसे जितने चाहिए उतने मिल रहे थे जो उन्हें घूस देता था उसे देते थे किंतु जिसने घूस नहीं दी उन्हें लगना पड़ा लाइनों में !किसी नेता किसी रईस व्यक्ति को बैंकों के आगे नहीं देखा गया लाइनों में लगते सब जान गए कि जो लाइनों में खड़े सो ईमानदार और जो नहीं खड़े हुए वे बेईमान !आखिर क्या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ी होगी !क्यों वो खाना नहीं खाते थे !सबको जरूरत थी किंतु उन्हें बेईमानी से मिल रहा था और ईमानदारी से पाने के लिए लोग लाइनों में डम तोड़ रहे थे !
    वेश्याएँ अपना शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं जबकि राजनीति तो वो भी छीन लेती है !     
 राजनीति बहुत कठोर एवं सबसे बड़ा पापकर्म है मूर्खों का मनोबल बढ़ाती है और ज्ञानियों को अपमानित करवाती है अपराधियों के आकाओं का कद बड़ा करती है अपराध समाप्त करने वालों को समाप्त करती है राजनीति !मेहनत करके ईमानदारी पूर्वक कमाने खाने वालों को तंग करती है राजनीति और कामचोरों बेईमानों लुच्चों लुटेरों को महिमा मंडित करती है राजनीति !हर प्रकार के अपराधियों और अत्याचारियों को जन्म देती है राजनीति !
   वस्तुतः सेवा विहीन सैलरी लेने वाले नेताओं के द्वारा की जा रही राजनीति सबसे बड़ा पाप है इसीलिए भले लोग राजनेताओं के अत्याचार सह लेते हैं इनका बोला गया हर वाक्य सौ प्रतिशत झूठ मानकर भी सुन लेते हैं इनकी हर हरकत बर्दाश्त कर लेते हैं किन्तु राजनीति में जाना पसंद नहीं करते !बड़े बड़े  पढ़े लिखे अधिकारी इन बहुसंख्य अल्पशिक्षित संस्कार भ्रष्ट सांसदों विधायकों मंत्रियों की गालियाँ सुन लेते हैं इनके द्वारा किया जाने  वाला अपमान सह लेते हैं किंतु नौकरी छोड़कर राजनीति नहीं करते हैं ।
      प्रायःअशिक्षित या अल्पशिक्षित संस्कार विहीन अच्छी बोली भाषा से हीन अच्छे कर्मों से विहीन अच्छी भावना से विहीन कठोर एवं कपटी हृदय वाले लोग  राजनीति में जाते हैं ऐसे लोगों की ड्यूटी होती है कि ये देश और समाज के हित  की विकासकारिका अपनी बातें सदनों में उठावें औरों के बिचार जानें किन्तु बुद्धि विहीन अल्प शिक्षित नेता लोग कम पढ़े लिखे होने के कारण अपनी कह नहीं सकते औरों  की समझ नहीं सकते तो सदनों में बैठकर चर्चा के समय भी मोबाईल पर मनोरंजन किया करते हैं चर्चा छोड़कर बाहर घूमने फिरने चले जाते हैं या सदनों में अपनी कुर्सियों पर ही सो जाते हैं और मौका मिलते ही शोर मचाकर बंद करवा देते हैं कार्यवाही !किंतु यदि उनके ये सारे उपद्रव किसी जिम्मेदार व्यक्ति को बुरे लग रहे होते तो ऐसे अयोग्य नेताओं को चुनावों में प्रत्याशी ही क्यों बनाया जाता क्या पढ़े लिखे शिक्षित शालीन लोगों की देश में कमी है क्या किंतु शिक्षित और शालीन लोग राजनीति के पिछले दरवाजे से भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे ये सबको डर होता है इसलिए इन लोगों की हमेंशा कोशिश रहती है कि अच्छे लोगों को राजनीति में आने ही न दिया जाए !इसलिए अपने ही उपद्रवी नाते रिस्तेदारों घर खानदान  वालों को पार्टियों में भर लिया करते हैं कुछ टिकटें बचीं तो बेच लेते हैं खर्चा पानी निकल  जाता है फिर बेशर्मी का मुख लेकर निकलते हैं जनता से वोट माँगने !अरे निर्ल्लज्ज लोगो !जिस जनता को तुम पार्टियों का पद देने लायक नहीं समझते टिकट देने लायक नहीं समझते उसके दरवाजे वोट लेने क्यों पहुँच जाते हैं आप !
   प्रायः सामान्य  परिवारों से आने वाले नेता लोग जब राजनीति में आए थे तब जिनकी जेब में किराया नहीं होता था वो आज करोड़ों अरबोंपति हैं किंतु कैसे ? फुलटाइम राजनीति करने वाले नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न धन था न समय था सैलरी इतनी थी नहीं कंजूसी से रहना ये जानते नहीं हैं फिर भी अरबों का अंबार !ये हैं भ्रष्टाचारी और यहाँ ही छिपा है भ्रष्टाचार का सारा धन !किंतु भ्रष्टाचारी नेताओं का भ्रष्टाचार न कभी पकड़ा गया है और न पकड़ा जा सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाने वाले अधिकारियों की बागडोर भ्रष्टाचारी नेताओं के हाथ में ही रहनी है इस सच्चाई को वो भी समझते हैं सारा देश जानता है यदि इस देश में कोई भी ईमानदार प्रधानमंत्री आ भी जाए तो भी वो सारे देशवासियों पर गरज बरस लेगा किंतु नेताओं के गिरेबान में हाथ डालने की हिम्मत उसकी भी नहीं पड़ेगी यदि उसने ऐसा करने की कोशिश की भी तो सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी जाएगी ऊपर से शोर मचाया जाएगा !
     सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करवाकर बस्तियाँ बसाने के बाद उन कालोनियों के नियमितीकरण के लिए आंदोलन करने वाले पापी समाज से कालाधन निकलने का नाटक करते हैं अरे पकड़ना ही है ईमानदारी की थोड़ी भी लज्जा है तो पहले नेताओं की संपत्तियों का हिसाब दो बाद में जनता का कालाधन पकड़ो !
  राजनीति सबसे गंदा  धंधा बन  गया है ये सेवा धर्म पर आश्रित थी जो आज संपत्तियाँ इकट्ठी करने का साधन बनी हुई है !राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को बार बार धिक्कार !!
    राजनैतिक भ्रष्टाचार और कामचोरी की लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ी है कि पढ़ाई चोर विद्यार्थियों ने स्कूलों में राजनीति शुरू कर दी है तथा कामचोर और हराम की कमाई खाने के शौक़ीन भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों ने ड्यूटी टाइम में यूनियनें बना बनाकर राजनैतिक पाप करना शुरू कर दिया है उन मक्कारों को ये पता नहीं है कि उनके इस समय की भी सैलरी उन्हें जनता के खून पसीने की कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसों से दी जाती है फिर भी वो हड़ताल किया करते हैं !अरे  संतुष्ट नहीं हो तो त्यागपत्र दो जगह खाली करो औरों को मौका दो हड़ताल करने की क्या जरूरत !सर्कार यदि भरष्ट न हो ईमानदार हो तो हड़तालियों को सस्पेंड करके नए लोगों को नौकरी दे किन्तु सरकारों बैठे लोग काली कमाई करवाते उन्हीं से हैं आज ये सस्पेंड कर देंगे तो कल वो इनकी पोल खोल देंगे !

     वेश्याओं को भी पता है कि राजनीति सबसे बड़ा कमाऊ धंधा है राजनीति में अपार संपत्ति एवं भारी भरकम सुख सुविधाएँ हैं सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा आदि सारे सुख हैं ,काम केवल चुनाव जीतना इसी बल पर सारे राजभोग   भोगते हैं राजनेता ! चुनाव तो वेश्याएँ भी औरों की अपेक्षा अधिक आसानी से जीत सकती हैं उनका धंधा ही लोगों को प्रभावित करना है शिक्षा की आवश्यकता चुनाव लड़ने के लिए होती नहीं है सबसे अलग अलग ढंग से आँख मार कर खुश करना नेताओं से ज्यादा उन्हें आता है नेताओं से अधिक अच्छे ढंग से वे झूठ बोल लेती हैं फिर भी वेश्याएँ वेश्यावृत्ति की सारी जलालत सहती हैं किंतु राजनीति में नहीं आती हैं उन्हें पता है कि वेश्यावृति में केवल शरीर ही दाँव पर लगाना होता है जबकि राजनीति चरित्र सिद्धांत सदाचरण आदि सबकुछ ही छीन लेती है इसीलिए वेश्याएँ शरीर दाँव पर लगाकर चरित्र और सिद्धांत बचा लेती हैं अपना  !वेश्याएँ इस कटु  सच्चाई को समझती हैं कि वेश्यावृत्ति में केवल शरीर का ही सौदा करना होता है जबकि  वर्तमान राजनीति तो धंधा ही चरित्र और सिद्धांतों की बोली लगवाने का है ।वेश्याएँ शरीर आर्थिक परिस्थितियों के कारण बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं ।
        राजनीति का कितना अवमूल्यन हुआ है आज ।आप स्थापित सरकारों में सम्मिलित लोगों को चोर छिनार भ्रष्टाचारी कहकर जीत लेते हैं चुनाव !आप ब्राह्मणों सवर्णों को गाली देकर जीत लेते हैं चुनाव !दलितों महिलाओं गरीबों अल्पसंख्यकों की बातें करके जीत लेते हैं चुनाव !विकार के आश्वासन देकर जीत लेते हैं चुनाव !इसीलिए सदाचारी ,योग्य और लोगों को राजनीति में घुसने कौन देता है !किस पार्टी में जगह है ऐसे लोगों के लिए !ये वर्तमान समय के हमारे लोकतंत्र का चरित्र है ।
      संसद और विधान सभा जैसे अत्यंत पवित्र सदनों की गरिमा ही चरित्र और सिद्धांतों की रक्षा करने से है किंतु कितने चरित्रवान  और सिद्धांतवादियों को प्रवेश मिल पाता है राजनीति में !इसी प्रकार से संसद और विधान सभा जैसे सदन होते ही चर्चा के लिए हैं चर्चा करने के लिए उच्च शिक्षा को  अनिवार्य क्यों न बनाया जाए !जो सदस्य अपनी अयोग्यता के कारण औरों की कही हुई बात समझेंगे ही नहीं अपनी समझा नहीं सकेंगे उनका इन सदनों में और काम ही क्या है उदास बैठने के अलावा ! या तो वे हुल्लड़ मचावें या सोवें या बाहर निकलकर कहीं गप्पें मारें आखिर ऐसे सदनों में और वो करें भी तो क्या कहाँ तक उदास बैठे रहें !
    चरित्र ,सिद्धांत शिक्षा और सदाचरण जैसे महत्त्वपूर्णमूल्यों को चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य करने के लिए बहुमत चाहिए !भले और शिक्षित लोगों का बहुमत कभी हो ही नहीं सकता भीड़ होती ही जनरल बोगी में हैं !माना कि अवसर सबको मिलना चाहिए किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अशिक्षित और अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा दिया जाए मूर्खों को कलट्टर बना दिया जाए अशिक्षितों को शिक्षक बना दिया जाए यदि ये सब होना गलत है तो इन सम्मानित सदनों के सदस्यों के लिए भी शिक्षा और योग्यता के उच्चमानदंड क्यों न बनाए जाएँ !
    संसद और विधान सभा जैसे सदनों के सदस्यों पर कम जिम्मेदारी होती है क्या ?उनमें से अयोग्य लोग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे कर सकेंगे !किंतु ऐसा सब कुछ सोचने वाले सजीव राजनेता कहाँ और कितने हैं जिनसे उमींद की जाए कि ये देश के लिए भी कुछ सोचेंगे !
     राजनीति में शिक्षित योग्य ईमानदार सदाचारी लोग आवें ऐसा बोलते तो सब हैं किंतु ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में घुसने कौन देता है जिसने एहसान व्यवहार में घुसने भी दिया तो वो उसे पहले वैचारिक बधिया (नपुंसक) बनाने की प्रतिज्ञा करवाता है बाद में घुसने देता है ताकि वो पार्टी में आकर चरित्र और सिद्धांतों का झंडा उठाए न घूमें  !
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