नेताओं को दुश्मन क्यों लगने लगता है मीडिया ?
जनता को दिए गए बचनों और दिखाए गए सपनों के विरुद्ध आचरण करने वालों को दुश्मन लगने लगता है मीडिया और स्पष्ट वादी लोग !
जनता को दिए गए बचनों और दिखाए गए सपनों के विरुद्ध आचरण करने वालों को दुश्मन लगने लगता है मीडिया और स्पष्ट वादी लोग !
"अरविंद केजरीवाल ने फिर बोला मीडिया पर हमला -एक खबर"
किंतु अरविन्द जी ! मीडिया तो पैसे लेकर गधों को घोड़े बनाने का काम हर
क्षेत्र में कर ही रहा है वैसे भी किया ही करता है अन्यथा झूठे वरदान देने
वाले राजनैतिक निर्मल बाबाओं को कौन जनता ! सुवुधाएँ देने का झूठा लालच
देकर मतदाताओं को अपने जाल में फँसा कर सत्ता शिखरों पर बैठाता भी तो
मीडिया ही है !
ये तो सृष्टि का सिद्धांत है इसमें आपका दोष ही
कहाँ है ! संसार में जिनका चरित्र नष्ट होने लगता है वे ज्योतिषियों की
बुराई करने लगते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि अब ये हमारी भी पोल
खोलेंगे ! इसी प्रकार जिनकी आयु समाप्त हो जाती है वे चिकित्सा विज्ञान को
झूठा बताने लगते हैं उन्हें पता होता है कि अब ये हमें बचा नहीं पाएँगे ।
बंधुओ ! जिसका चरित्र और आयु दोनों नष्ट हो जाएँ वे चरित्रवान साधू संतों
एवं सज्जनों की बुराई करने लगते हैं !क्योंकि आयु समाप्त होने या भाग्य के
साथ न देने पर साधू संतों बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद भी लगने नहीं लगता है। इसी
प्रकार से राजनीति में जो नेता दल दिल और बचन बदलने और बनावटी जीवन जीने
लगे तो उसे मीडिया और वो लोग दुश्मन दिखाई पड़ने लगते हैं जो उनकी कही हुई
पुरानी बातें उन्हें याद दिलाते हैं आखिर मीडिया भी तो दर्पण दिखाने का ही
काम करता है न !see more...
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