Tuesday, 19 May 2015

केजरीवाल जी ! अधिकारी घूस लेते हैं कि नहीं इस बात का पता लगाने के लिए केवल अपनी बेटी का ही उदाहरण क्यों ?

मुख्यमंत्री जी ! क्या कर रहा है आपका निगरानी तंत्र और कहाँ हैं आपकी पार्टी के प्रति समर्पित आपके कर्मठ वालेंटियर !
    केजरीवाल जी ! एक मुख्यमंत्री के रूप में आपका निगरानी तंत्र क्या कर रहा है कहाँ हैं पार्टी के प्रति समर्पित आपके वालेंटियर ! उन पर भरोसा करके उन्हें क्यों नहीं भेजा जा रहा है सरकारी आफिसों में ?जहाँ जनता की लम्बी लाइनें लगी हैं और  बाबू मोबाईल पर बातें कर रहा होता है ।
    यदि घूस न भी ले रहा हो तो ये ठीक है क्या ?कितने लोगों के पेट में दर्द हो रहा होता है किंतु सरकारी अस्पतालों का बाबू उन्हें पर्ची काटकर नहीं देता है ,डाक्टर साहब जरूरी काम से चले जाते हैं मरीज दर्द से तड़पता रहता है, घर वाले अपने छोटे छोटे बच्चों को तैयार  करके स्कूल भेज आते हैं किन्तु वहाँ शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में झांकने नहीं जाते हैं है कोई देखने वाला !कई स्कूलों में तो शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में बैठकर छोटे छोेटे बच्चों के सामने ही समोसे चिप्स मँगवाकर खा रहे होते हैं और पी रहे होते हैं फ्रूटी जूस आदि आदि !क्या बीतती होगी उन बच्चों पर! माँ बाप ऐसा कर रहे होते तो सह जाते क्या वे !या तो बच्चे देख रहे होते माता पिता से खाया जाता क्या ?किन्तु यहाँ तो बच्चे टुकुर टुकुर देख रहे होते हैं क्या यही शिक्षकों का आदर्श है !
  कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जी !बातें बनाना छोड़िए और अधिकारियों को वातानुकूलित आफिसों से निकालिए और छिपकर खड़ा  कीजिए उन लाइनों में जहाँ जनता जूझ रही है सरकार के अकर्मण्य दुलारों से !और आप खुद निकल कर देखिए कि अधिकारी उन आफिसों में गुप्त निरीक्षण के लिए जा भी रहे हैं या नहीं !बाकी सारी  मीटिंगें बाद में अन्यथा मीटिंगों के नाम पर सरकार या सरकारी कर्मचारी कभी भी रेस्ट करने लगते हैं यदि जनता का काम ही रुक गया तो मीटिंगें किस बात की !और यदि मीटिंगें इतनी ही जरूरी होती हैं आफिस टाइम के बाद  कीजिए मीटिंगें , किसान मजदूर रात रात  भर काम करते हैं तो सरकारी कर्मचारी  क्यों नहीं कर सकते हैं और यदि नहीं ही कर सकते हैं तो सीटें खाली करें !उनसे अधिक योग्य उनसे कम पैसों में उनसे अधिक जिम्मेेदारी पूर्वक काम करने वाले अभ्यर्थियों की लाइनें लगी हैं फिर सरकार अपने कर्मचारियों से काम क्यों नहीं ले पाती है !
     बंधुओ! सच पूछो तो खोट सरकारी कर्मचारियों में नहीं है अपितु सरकारों में है अधिकारी कर्मचारी तो बदनाम हैं बाक़ी घूस तो सरकारों में सम्मिलित नेताओं को चाहिए होती है उसी में कुछ उनको भी मिल जाती है जो बेचारे मंत्रियों के लिए कमा कमा कर लाते हैं अन्यथा राजनीति में घुसते समय किराए के लिए तरस रहे नेता बिना किसी उद्योग धंधे के अरबों खरबों पति कैसे हो जाते हैं यदि घूस नहीं लेते या उनके पास भ्रष्टाचार का पैसा नहीं आता है तो !आखिर क्या होते हैं उनके आय के पवित्र स्रोत इनकी जाँच क्यों नहीं होनी चाहिए और सार्वजनिक किए जाने चाहिए उनकी आय के स्रोत किंतु ऐसा तभी संभव हैं जब देश का प्रशासक प्रधानमंत्री कोई ईमानदार चरित्रवान आदर्शवान कर्तव्यनिष्ठ जनता के प्रति जवाब देय एवं जन सेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति बने और वो राजनीति को पारदर्शी बनाने के लिए कृत संकल्प हो किंतु आजकल किसी से ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए ! राजनीति में केवल ये फार्मूला चलता है कि तुमने लूट लिया अब हमें लूटने दो यदि तुम हमारी जाँच नहीं करोगे तो हम तुम्हारी भी जाँच नहीं  कराएँगे इसी सेटिंग के साथ बनती बिगड़ती हैं सरकारें और होते हैं काम काज ! आपने चुनावों के समय विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सरकार में सम्मिलित नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते खूब सुना होगा किंतु जब वो सत्ता में आते हैं तो भ्रष्टाचारियों पर न कोई कार्यवाही होती है और न ही जाँच !दोनों एक दूसरे से गले मिलने लगते हैं उसका कारण केवल यह होता है कि अभी तक जो सप्ताह उन लोगों के पास पहुँचाते थे अब वो अपने पास आने लगता है इस प्रकार से जब अपना घर ही काँच का बना हो तो दूसरों के घरों पर कंकड़ फेंकना भी तो बुद्धिमानी नहीं होती है ।

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