Saturday, 23 May 2015

निर्धन और निर्दोष लोग कानून के कानों तक कैसे पहुँचावें अपने मन की बेदना ?

बिना पैसे के अच्छे वकील कहाँ मिलते हैं और  अच्छे वकीलों के बिना न्याय कैसे मिल सकता है गरीबों को ? 
   पैसों के प्रभाव से ही नेताओं और अभिनेताओं को  सोर्स एवं पुलिस का सहयोग मिलता है तथा अच्छे वकील मिल पाते हैं जो सजा पाए हुए लोगों के पक्ष में तर्क गढ़ कर निर्दोष साबित कर देते हैं बड़े बड़े अपराधियों को !और निर्दोषों को भी सिद्ध कर देते हैं अपराधी ! 
   बिना धन के अच्छे वकील नहीं मिलते  पुलिस आपके अनुकूल मुकदमा नहीं बनाती ,गवाह आपकी बात कहने के पैसे माँगता है फिर गरीबों को न्याय कैसे मिले ?ऐसे गरीबों की ब्यथा सुनने के लिए है कोई प्लेटफार्म !
    वर्तमान न्याय व्यवस्था में गरीबों के साथ वैसा न्याय हो पाना संभव है क्या जैसा रईसों के साथ होता है !कैसे हो उनके पास न धन है न सोर्स और बिना धन के अच्छे वकील कैसे मिलें !    
    बंधुओ ! क्या ये जेलें केवल गरीबों और साधन विहीनों के लिए हैं क्योंकि नेताओं और अभिनेताओं को सजा होती है तो वो यदि बड़ा अपराध नहीं तो अपनी क्षमताओं का उपयोग करके जेलों को ठेंगा दिखाते हुए चले आते हैं टाटा बॉय बॉय करके जबकि गरीब लोग वहाँ पड़े पड़े सड़ते रहते हैं महीनों वर्षों तक आखिर क्यों ? अच्छे वकीलों एवं अच्छे सोर्स सिफारिस से अच्छे धन दौलत से यदि  न्याय प्रभावित किया जा सकता है तो न्याय क्या न्याय है !
     कई पूर्व मंत्रियों मुख्यमंत्रियों नेताओं अभिनेताओं के आरोपित होने पर मीडिया चिल्ला चिल्लाकर कह रहा होता है कि अब ये जेल जाएँगे कुछ वर्षों के लिए जाएँगे बड़े बड़े कानूनविदों के पैनल बुलाकर बैठाए जाते हैं वे चर्चा कर रहे होते हैं उससे भी निकल कर यही आता है कि अब सजा जरूर होगी किंतु जब आरोपी सजधज कर सारे लाव लश्कर के साथ मीडिया का हुजूम लिए पहुँचता है तो बड़े नेता अभिनेता लोगों के साथ ऐसा क्या चमत्कार होता है कि टाटा बॉय बॉय  करते चले  आते हैं वे लोग अपने घर ! जिन्हें वर्षों की सजा हो  रही होती है वे महीनों में ठेंगा दिखाकर भाग आते हैं और फिर से बन जाते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि । एक प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके व्यक्ति को पाँच वर्ष की जेल की घोषणा हो गई हो जिसका प्रचार प्रसार मीडिया ने खूब किया हो और फिर उसी को महीना दो महीने में बेल मिल जाए और वो राजनीति के महागठबंधन बनाता घूम रहा हो ,चुनावी जन सभाएँ कर रहा हो लोगों को चुनाव लड़वा  रहा हो सब जगह जा आ रहा हो सबकुछ कर पा रहा हो उसे देखकर वह गरीब जनता क्या सोचेगी जिसे पता लग चुका है कि गंभीर आरोपों में उन्हें पाँच वर्ष की सजा हुई है फिर ये सब कैसे संभव है आम गरीब आदमी ऐसे प्रकरणों पर क्या सोचेगा !कल्पना की जा सकती है ।एक बार मैं स्वयं ऐसी पीड़ा का शिकार हुआ !
     बात 1998 कानपुर के शिवराज पुर थाने की है हमारे अत्यंत अंतरंग आत्मीय बड़े भाई साहब पर कुछ गुंडों ने दिन के दस बजे हमला कर दिया जिससे सिर पर  हॉकी मारी गई थी दिन भर खून बहता रहा था किंतु दरोगा जी दस हजार रुपयों के लिए बैठाए  रहे थे दिनभर न ड्रेसिंग न दवा ! दरोगा जी ने रिपोर्ट दर्ज करने के लिए यह समझाते हुए दस हजार रूपए माँगे थे कि जो मैं लिखूँगा मुक़दमा उसी पर चलना है जज तुम्हारा घाव तो देखने आएगा नहीं वो तो हमारी आँखों से ही देखेगा और जब तक उसे देखने का समय आएगा तब तक घाव ठीक हो जाएगा इसलिए जज तो हमारी कलम का गुलाम है अब तुम बताओ मुकदमा कैसा करना चाहते हो !फ्री वाला या कुछ खर्च करके ? मैंने घूस देने को मना कर दिया था इसलिए दरोगा जी हमसे रूठ गए उधर अपराधियों ने चौबेपुर के भाजपा नेताओं में शिरमौर ब्राह्मण परिवार से संपर्क साधा पैसे देखते ही पंडित जी पिघल गए थाने में उनकी अच्छी दलाली चलती थी उनका दरोगा जी के पास रिपोर्ट न दर्ज करने के लिए फोन आ गया दरोगा जी ने फिर आकर मुझसे कहा कि चौबेपुर से भाजपा वालों का फोन आ गया है कि फैसला न करें तो मैं दोनों पक्षों को बंद कर दूँ यह कहते हुए उसने सूर्यास्त के समय भाई साहब की चोट में 16 टांके लगवाए दर्द की दवा दिलवाई और हम दोनों भाइयों को और उनमें से एक को झगड़ा दिखाकर बंद कर दिया थाने में ! भाई साहब को रातभर दर्द रहा जिससे परेशान होकर मुझे समझौते के लिए विवश होना पड़ा !
    एक रिटायर्ड जज साहब से एक दिन मैंने पूछा कि जब आप  किसी को निर्दोष जानते हुए भी उसे सजा सुनाते हैं और किसी दोषी को आरोप मुक्त कर देते हैं उस दिन  क्या आप की आत्मा आपको धिक्कारती नहीं है!शाम को आप भोजन ठीक से कर पाते हैं उस रात नींद आ जाती है ठीक से ! आप अपने इन्हीं कर्मों के बलपर बच्चों की कुशलता की भीख माँग पाते हैं क्या परमात्मा से !आपकी चित्त शुद्धि से सुस्नात आँखें क्या अपनों का सामना कर पाती हैं ! कभी नहीं लगता है कि इतना पढ़ने के बाद करना पड़ा ऐसा काम !क्या माता सरस्वती ने यही करने के लिए कृपा करके विद्या दी थी जिसके बल पर आप वर्तमान लोकतान्त्रिक पद्धति के न्याय देवता माने गए हैं !  देवशक्तियाँ ऐसे लोगों पर दोबारा कृपा नहीं करतीं जो उनके कृपा प्रसाद का एक बार दुरुपयोग करते हैं !यह सब सुनकर जज साहब बहुत भावुक हो गए उन्होंने ढबढबाई आँखों से हमसे पूछा कि तुमने कई विषयों से एम. ए. फिर पीएच.डी. करने के बाद भी नौकरी क्यों नहीं की या मिली नहीं ? मैंने कहा कि सर्विस के फार्म पर मैंने कभी साइन ही नहीं किए मुझे लगा कि यदि मैं अपने हिस्से का न्याय न कर सका तो प्रायश्चित्त लगेगा तो किसी पद पर बैठकर उसकी जिम्मेदारी सँभालने का संकल्प लेने से स्वतन्त्र कार्य करने का निश्चय किया ! यह सुनकर उन्होंने हमारा सर सहलाते हुए स्नेह से मेरी ओर देखा और कहने लगे -"बेटा !उस सीट पर बैठकर न्यायाधीश के दायित्व का निर्वाह करना पड़ता  है जहाँ आरोपी,पुलिस,गवाह और वकील तीनों पर संशय रखकर बात करनी होती है ये चारों  सच बोलेंगे या नहीं फिर भी सच इनसे निकालना उतना कठिन होता है जैसे बालू से तेल निकालना !अंतर इतना है कि बालू से तो तेल निकलता नहीं है किंतु यहाँ कुछ निकलता है वह प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मानक न्याय होता है जबकि वास्तविक न्याय तो ईश्वर को ही पता होता है !


    

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