राजनीति केवल एक गेम है क्या ?जितने चाहो उतने झूठे वायदे कर दो ?जनता के साथ इतना मजाक !
राजनीति में बोले वो जो जनता को सुनने में अच्छा लगे और करे वो जो अपने फायदे का सौदा हो इसे यदि राजनीति कहा जाए तो फिर धोखाघड़ी किसे कहा जाए ! अब राजनेताओं की नियत में खोट तो बहुत तेजी से आती जा रही है बहुत कमलोग हैं जो राजनीति जैसी रपटीली जगह पर जाकर भी अपने चरित्र और सिद्धांतों पर अडिग रह पाते हैं।आज देश की हर पार्टी अपनी मूल प्रकृति से हिली हुई है किंतु क्यों ये किसी को नहीं पता है श्री राम मंदिर मुद्दा हो या धारा 370 या गोरक्षा या और भी जो कुछ पुराने मुद्दे हों या नेता धीरे धीरे सब अदृश्य होते जा रहे हैं आखिर क्यों क्या केवल सत्ता तक पहुँचने के लिए ही सारी सैद्धांतिक बातें बघारी जाती हैं मोदी जी बहुत अच्छा काम कर रहे होंगे मैं इनकार नहीं करता किंतु मात्र कुछ लोगों की कंपनी सी बन चुकी भाजपा अब भाजपा सी लग नहीं रही है पता नहीं क्यों ?ये स्थिति केवल भाजपा की ही नहीं है अपितु हर पार्टी इसीप्रकार की राजनैतिक वेश्यावृत्ति की शिकार है मुद्दे हों या नेता या पार्टी या सिद्धांत किसी का कुछ भी स्थिर नहीं है हरपार्टी की स्थिति ये है कि चुनावी भूकम्प के समय मुद्दों और सिद्धांतों की प्लेटें तो खिसक ही जाती हैं ।आम आदमी की बात करने वाले केजरीवाल अब अपने साथियों को ही लात आने की बातें कर रहे हैं ।
राजनैतिक खानदान का एक उत्तराधिकारी चुनाव जीतकर सरकार अधियाँ बटाई पर उठा देता है इसके बाद आराम फिर पाँच वर्ष बाद वही पाँच बातें -
गरीबों को चावल गेहूँ देकर भोजन सुरक्षादेने की बात ,मजदूरों को मनरेगा देने की बात ,दलितों का उत्थान करने की बात ,महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की चिकनी चुपड़ी बातें तथा जवानों को रोजगार आदि इन्हीं पाँच बातों को बोलते हुए दशकों से चुनाव लड़े और जीते जा रहे हैं किंतु गरीब अभी भी गरीब हैं ,मजदूर अभी भी मजदूर हैं दलित न जाने कब तक दलित रहेंगे !महिलाओं की सुरक्षा कभी न संतोष जनक रही है न रहेगी और हर जवान पहले तो बेरोजगार ही होता है बाद में भूखों तो कोई नहीं मरता है भोजन तो ईश्वर हर किसी को देता ही है ।
जनता बहुत गुस्सा होती है तो पाँच दस वर्षों के लिए चुनाव हरा देती है जनता आखिर जाएगी कहाँ पाँच नहीं तो दस वर्षों में दोबारा सत्ता सौंपेगी तब कमा लिया जाएगा भूखों तो वैसे भी नहीं मारना होता है ।
अनट्रेंड , अशिक्षित और नौसिखिया लोग भी आजकल ये ही जुमले दोहराते हुए चुनाव तो जीत जाते हैं किन्तु करना धरना कुछ आता नहीं है इसीलिए या तो आपस में लड़ते रहते हैं या अप्सरों को धमकाते रहते हैं फिर घूम टहल कर बिता लेते हैं पाँच वर्ष का अपना समय ! या फिर मौनी बाबा बन कर काट लेते हैं हाँ हुजूरी पूर्वक अपना गौरवहीन जीवन किन्तु राजनीति में शिक्षित समझदार ईमानदार लोगों को आगे बढ़ाने में हर पार्टी न जाने क्यों आज हिचक सी रही है !विरोधी पक्ष के नेता लोग सत्ता पक्ष के लोगों को जब तक भ्रष्ट न कहें तब तक वो नेता कैसे !भ्रष्ट और भ्रष्टाचार ये दो शब्द राजनीति एवं राजनेताओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं चुनावों से पहले सरकार के पक्ष के सभी लोगों को भ्रष्टाचारी कहा जा रहा होता है किंतु चुनाव जीतने के बाद वही नेता इतना शिष्टाचारी और संस्कारी हो जाता है उन्हीं नेताओं से गले मिलेगा हाथ मिलाएगा उन्हीं के बेटा बेटियों के शादी विवाह में जाएगा !कोई कह दे पहले तो आप उन्हें भ्रष्टाचारी बता रहे थे और कह रहे थे कि सरकार में आने के बाद इन सबको जेल भिजवाएँगे अब क्या कह रहे हैं ?तो नेता जी ने हँसते हुए कहा बदले की कार्यवाही किसी पर नहीं की जाएगी !और चुनावों के समय कही हुई बातों पर भरोसा मत कीजिए !फिर पत्रकार ने पूछा चुनावों के समय तो आप बहुत कुछ फ्री देने की बातें कर रहे थे सो ?बोले बिरासत में खजाना खाली मिला है ।बोले आप सुरक्षा की बात कर रहे थे बोले कहाँ नहीं है सुरक्षा देखो हम जहाँ जहाँ जाते हैं वहाँ वहाँ ही सुरक्षा होती है पहले हम गली कूचों में भटका करते थे तब कहाँ होती थी इतनी सुरक्षा !फिर पूछा विकास कार्य कब प्रारम्भ होंगे !बोले विकास तो हो गया बस ये विकासवाली बात जनता तक पहुँचाना बाकी है पूछा अभी कहाँ विकास हो गया अभी तो शुरू ही नहीं हुआ है तो बोले यही तो प्रेस मीडिया वालों की बातें हैं ये लोग विपक्ष से मिले हुए हैं अन्यथा इतना बड़ा विकास इन्हें दिखता नहीं है हम जहाँ जहाँ जाते हैं हमें तो कोई रोड टूटा दिखता नहीं है तो पूछने वाले ने कहा कि टूटे वाले रोड़ों से अधिकारी तुम्हें ले ही कहाँ जाते हैं आदि आदि !
जिन नेताओं को काम करना नहीं आता वे चुनाव जिताऊ होने के कारण पार्टी के मालिक होते हैं चुनाव जिताऊ होने का मतलब खुद खाली हाथ होने के बाद भी सबको सबकुछ देने की बात करे और जब चुनाव जीत जाए तो अपना घर भरे !
राजनीति में बोले वो जो जनता को सुनने में अच्छा लगे और करे वो जो अपने फायदे का सौदा हो इसे यदि राजनीति कहा जाए तो फिर धोखाघड़ी किसे कहा जाए ! अब राजनेताओं की नियत में खोट तो बहुत तेजी से आती जा रही है बहुत कमलोग हैं जो राजनीति जैसी रपटीली जगह पर जाकर भी अपने चरित्र और सिद्धांतों पर अडिग रह पाते हैं।आज देश की हर पार्टी अपनी मूल प्रकृति से हिली हुई है किंतु क्यों ये किसी को नहीं पता है श्री राम मंदिर मुद्दा हो या धारा 370 या गोरक्षा या और भी जो कुछ पुराने मुद्दे हों या नेता धीरे धीरे सब अदृश्य होते जा रहे हैं आखिर क्यों क्या केवल सत्ता तक पहुँचने के लिए ही सारी सैद्धांतिक बातें बघारी जाती हैं मोदी जी बहुत अच्छा काम कर रहे होंगे मैं इनकार नहीं करता किंतु मात्र कुछ लोगों की कंपनी सी बन चुकी भाजपा अब भाजपा सी लग नहीं रही है पता नहीं क्यों ?ये स्थिति केवल भाजपा की ही नहीं है अपितु हर पार्टी इसीप्रकार की राजनैतिक वेश्यावृत्ति की शिकार है मुद्दे हों या नेता या पार्टी या सिद्धांत किसी का कुछ भी स्थिर नहीं है हरपार्टी की स्थिति ये है कि चुनावी भूकम्प के समय मुद्दों और सिद्धांतों की प्लेटें तो खिसक ही जाती हैं ।आम आदमी की बात करने वाले केजरीवाल अब अपने साथियों को ही लात आने की बातें कर रहे हैं ।
राजनैतिक खानदान का एक उत्तराधिकारी चुनाव जीतकर सरकार अधियाँ बटाई पर उठा देता है इसके बाद आराम फिर पाँच वर्ष बाद वही पाँच बातें -
गरीबों को चावल गेहूँ देकर भोजन सुरक्षादेने की बात ,मजदूरों को मनरेगा देने की बात ,दलितों का उत्थान करने की बात ,महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की चिकनी चुपड़ी बातें तथा जवानों को रोजगार आदि इन्हीं पाँच बातों को बोलते हुए दशकों से चुनाव लड़े और जीते जा रहे हैं किंतु गरीब अभी भी गरीब हैं ,मजदूर अभी भी मजदूर हैं दलित न जाने कब तक दलित रहेंगे !महिलाओं की सुरक्षा कभी न संतोष जनक रही है न रहेगी और हर जवान पहले तो बेरोजगार ही होता है बाद में भूखों तो कोई नहीं मरता है भोजन तो ईश्वर हर किसी को देता ही है ।
जनता बहुत गुस्सा होती है तो पाँच दस वर्षों के लिए चुनाव हरा देती है जनता आखिर जाएगी कहाँ पाँच नहीं तो दस वर्षों में दोबारा सत्ता सौंपेगी तब कमा लिया जाएगा भूखों तो वैसे भी नहीं मारना होता है ।
अनट्रेंड , अशिक्षित और नौसिखिया लोग भी आजकल ये ही जुमले दोहराते हुए चुनाव तो जीत जाते हैं किन्तु करना धरना कुछ आता नहीं है इसीलिए या तो आपस में लड़ते रहते हैं या अप्सरों को धमकाते रहते हैं फिर घूम टहल कर बिता लेते हैं पाँच वर्ष का अपना समय ! या फिर मौनी बाबा बन कर काट लेते हैं हाँ हुजूरी पूर्वक अपना गौरवहीन जीवन किन्तु राजनीति में शिक्षित समझदार ईमानदार लोगों को आगे बढ़ाने में हर पार्टी न जाने क्यों आज हिचक सी रही है !विरोधी पक्ष के नेता लोग सत्ता पक्ष के लोगों को जब तक भ्रष्ट न कहें तब तक वो नेता कैसे !भ्रष्ट और भ्रष्टाचार ये दो शब्द राजनीति एवं राजनेताओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं चुनावों से पहले सरकार के पक्ष के सभी लोगों को भ्रष्टाचारी कहा जा रहा होता है किंतु चुनाव जीतने के बाद वही नेता इतना शिष्टाचारी और संस्कारी हो जाता है उन्हीं नेताओं से गले मिलेगा हाथ मिलाएगा उन्हीं के बेटा बेटियों के शादी विवाह में जाएगा !कोई कह दे पहले तो आप उन्हें भ्रष्टाचारी बता रहे थे और कह रहे थे कि सरकार में आने के बाद इन सबको जेल भिजवाएँगे अब क्या कह रहे हैं ?तो नेता जी ने हँसते हुए कहा बदले की कार्यवाही किसी पर नहीं की जाएगी !और चुनावों के समय कही हुई बातों पर भरोसा मत कीजिए !फिर पत्रकार ने पूछा चुनावों के समय तो आप बहुत कुछ फ्री देने की बातें कर रहे थे सो ?बोले बिरासत में खजाना खाली मिला है ।बोले आप सुरक्षा की बात कर रहे थे बोले कहाँ नहीं है सुरक्षा देखो हम जहाँ जहाँ जाते हैं वहाँ वहाँ ही सुरक्षा होती है पहले हम गली कूचों में भटका करते थे तब कहाँ होती थी इतनी सुरक्षा !फिर पूछा विकास कार्य कब प्रारम्भ होंगे !बोले विकास तो हो गया बस ये विकासवाली बात जनता तक पहुँचाना बाकी है पूछा अभी कहाँ विकास हो गया अभी तो शुरू ही नहीं हुआ है तो बोले यही तो प्रेस मीडिया वालों की बातें हैं ये लोग विपक्ष से मिले हुए हैं अन्यथा इतना बड़ा विकास इन्हें दिखता नहीं है हम जहाँ जहाँ जाते हैं हमें तो कोई रोड टूटा दिखता नहीं है तो पूछने वाले ने कहा कि टूटे वाले रोड़ों से अधिकारी तुम्हें ले ही कहाँ जाते हैं आदि आदि !
जिन नेताओं को काम करना नहीं आता वे चुनाव जिताऊ होने के कारण पार्टी के मालिक होते हैं चुनाव जिताऊ होने का मतलब खुद खाली हाथ होने के बाद भी सबको सबकुछ देने की बात करे और जब चुनाव जीत जाए तो अपना घर भरे !
चुनाव जीतने की कला सब में नहीं होती !
इसके लिए पहले सबकी जरूरतें जाननी होती हैं फिर उन्हें पूरा करने के लिये निडरता पूर्वक झूठा बचन देना होता है और जिनमें काम करने की समझ और योग्यता होती है उनमें चुनाव जीतने की योग्यता नहीं होती है क्योंकि आदर्श जीवन जीने के प्रेमी वे लोग अपने सिद्धांतों से समझौता कैसे कर सकते हैं !
मैंने स्वयं कुछ राजनैतिक पार्टी के लोगों से संपर्क साधा कि अपनी पार्टी में मुझे भी जोड़ लीजिए मैं भी राजनीति के माध्यम से समाज सेवा करना चाहता हूँ मैंने विभिन्न विषयों पर अपनी लिखी किताबें उन मठाधीश नेताओं को दिखाईं उन्हें भेंट कीं किसी को कोरियर से भेजीं विभिन्न विश्व विद्यालयों से प्राप्त अपनी डिग्री प्रमाणपत्र दिखाए उनकी प्रतियाँ भेंट कीं किन्तु उन्होंने हमारे निवेदन को स्वीकार नहीं किया ! एक धर्म की ठेकेदार पार्टी के जिम्मेदार नेता से मैं मिलने गया तो उन्होंने हमारी दी हुई पुस्तकें कहीं रखीं नहीं अपितु रखने के नाम पर जैसे फेंकी वो ढंग ठीक नहीं था ! इसी पार्टी के एक नेता ने हमारी लिखी हुई दुर्गा सप्तशती देखते हुए कहा-- ओह! तो आप चंडी पाठ करते हैं मैंने सोचा कि सुनकर इन्हें अच्छा लगेगा तो मैंने खुश होकर हाँ कर दिया तो उन्होंने कहा कि फिर आप राजनीति में काम कैसे कर पाएँगे क्योंकि आप चंडी पाठ वाले आदमी राजनीति का रंडीपाठ कैसे कर पाएँगे ! मैंने कहा कि सारे लोग रंडी पाठ वाले ही तो नहीं होंगे बहुत लोग अच्छे भी होंगे उनके साथ ही जुड़ लेंगे तो उन्होंने अपना नाम न बताने की शर्त पर समझाया कि जो अच्छा होगा वो राजनीति में आएगा ही क्यों ? राजनीति में अच्छा होना जरूरी नहीं होता अपितु अच्छा दिखना आवश्यक होता है मन से बुरा हो तो भी चलेगा !यह सब सुनकर मैं अपने घर वापस आ गया !
किसी को काम करना आता हो तब न काम करें विरोधी पार्टी के अनुभवी नेता चुनाव हारने के कारण बेकार लगने लगे और अपने अनुभवी साथी चुनाव जीतने के कारण बेकार लगने लगे !इसलिए उनकी तो छटनी हो गई जो रह गए उन्हें काम का अनुभव नहीं होने से नौसिखिया होने के कारण कोई आपस में लड़ रहे हैं तो कोई विदेश भ्रमण कर रहे हैं राज काज करना कुछ समझ में आवे तो काम करना शुरू करें तब तक आ जाएँगे चुनाव !फिर कुछ नौसिखियों के हाथ चली जाएगी देश की वागडोर !यही देश का दुर्भाग्य है ।
राजनेताओं से सवाल क्यों वो किसी को कुछ भी बोल दें उनकी बातों पर बवाल क्यों ?
भारत में सारे कानूनी संकट केवल उनके लिए हैं जो इंसानियत से जीना चाहते हैं उन्हें तो कानून के अनुशार चलना होता है किंतु नेता लोग जो कानून की परवाह ही नहीं करते कहीं भी धज्जियाँ उड़ा देते हैं कानून की ऐसी जगह कानून स्वयं ही उनका अनुगमन करने लगता है अर्थात नेताओं के पीछे पीछे चलने लगता है !क्योंकि हर नेता में एक मंत्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तो छिपा ही रहता है न जाने कब कहाँ किसकी कैसी लाटरी लग जाए !
लोकतंत्र बहुमत से चलता है आज विधानसभाओं से लेकर लोकसभा तक में बढ़ती आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले नेताओं की संख्या चिंताप्रद है स्थिति यदि यही रही तो धीरे धीरे चुनावों में विजयी होने वाले नेताओं में आपराधिक पृष्ठ भूमि वाले नेताओं की संख्या अधिक होगी तब सरकार उनकी बनेगी मंत्री मुख्यमंत्री प्रधान मंत्री वो लोग बनेंगे कानून उनके हिसाब से बनेंगे हर अपराधी को यह कह कर बेगुनाह सिद्ध करने का प्रयास किया जाएगा कि जातिवाद संप्रदायवाद के भेदभाव से आहत होकर ये अपराधों की और प्रवृत्त हुए थे इसलिए इन्होंने अपराध नहीं किया है अपितु अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी है !इस प्रकार की विरुदावली गाते हुए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा जाएगा !इस प्रकार से विश्वगुरु भारत की पहचान आपराधिक भारत के रूप में हो बलात्कारी भारत के रूप में हो हत्यारों के भारत के रूप में हो लुटेरों के भारत के रूप में हो या शिक्षित भारत के रूप में हो सच्चरित्र भारत के रूप में हो आदर्श भारत के रूप में हो ईमानदार भारत के रूप में हो उससे अच्छा है
लोकतंत्र में चुनाव जीतने मात्र से नरपशु भी देवताओं की तरह पुजने लगते हैं इसीलिए शिक्षा और समझदारी की बातें सुनते ही अशिक्षित नेता लोग शोर मचाने लगते हैं कि लोकतंत्र खतरे में पड़ा जा रहा है क्योंकि उन्हें पता होता है कि आज लोकतंत्र की ही देन है कि सभी दोष दुर्गुणों से भरे पुरे लोग भी इंसानों की तरह ही नहीं अपितु देवताओं की तरह पूजे जा रहे हैं !
जब राजनीति में शिक्षा का कोई महत्त्व ही नहीं है तब मंत्री या मुख्यमंत्री बनने के लिए भी ट्रेनिंग होनी चाहिए !
एक शिक्षक को स्कूल चलाना होता है उसकी तो ट्रेनिंग,पुलिस और होम गार्ड तक की ट्रेनिंग किंतु विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई ट्रेनिंग क्यों नहीं ! विशेष रूप से पूर्व मंत्रियों मुख्यमंत्रियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को अपने अनुभव अपने उत्तराधिकारियों को सीखने चाहिए और सेवा की ट्रेनिंग होती है तो क्यों नहीं ?
एक शिक्षक को स्कूल चलाना होता है उसकी तो ट्रेनिंग,पुलिस और होम गार्ड तक की ट्रेनिंग किंतु विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई ट्रेनिंग क्यों नहीं ! विशेष रूप से पूर्व मंत्रियों मुख्यमंत्रियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को अपने अनुभव अपने उत्तराधिकारियों को सीखने चाहिए और सेवा की ट्रेनिंग होती है तो क्यों नहीं ?
सरकारी आफिसों में ?जहाँ जनता की लम्बी लाइनें लगी हैं और
बाबू मोबाईल पर बातें कर रहा होता है ।
यदि घूस न भी ले रहा हो तो ये ठीक है क्या
?कितने लोगों के पेट में दर्द हो रहा होता है किंतु सरकारी अस्पतालों का
बाबू उन्हें पर्ची काटकर नहीं देता है ,डाक्टर साहब जरूरी काम से चले जाते
हैं मरीज दर्द से तड़पता रहता है, घर वाले अपने छोटे छोटे बच्चों को तैयार
करके स्कूल भेज आते हैं किन्तु वहाँ शिक्षक शिक्षिकाएँ कक्षाओं में झांकने
नहीं जाते हैं है कोई देखने वाला !कई स्कूलों में तो शिक्षक शिक्षिकाएँ
कक्षाओं में बैठकर छोटे छोेटे बच्चों के सामने ही समोसे चिप्स मँगवाकर खा
रहे
होते हैं और पी रहे होते हैं फ्रूटी जूस आदि आदि !क्या बीतती होगी उन
बच्चों पर! माँ बाप ऐसा कर रहे होते तो सह जाते क्या वे !या तो बच्चे देख
रहे होते माता पिता से खाया जाता क्या ?किन्तु यहाँ तो बच्चे टुकुर टुकुर
देख रहे होते हैं
क्या यही शिक्षकों का आदर्श है !
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री जी !बातें बनाना छोड़िए
और अधिकारियों को वातानुकूलित आफिसों से निकालिए और छिपकर खड़ा कीजिए उन लाइनों में
जहाँ जनता जूझ रही है सरकार के अकर्मण्य दुलारों से !और आप खुद निकल कर
देखिए कि अधिकारी उन आफिसों में गुप्त निरीक्षण के लिए जा भी रहे हैं या
नहीं !बाकी सारी मीटिंगें बाद में अन्यथा मीटिंगों के नाम पर सरकार या
सरकारी कर्मचारी कभी भी रेस्ट करने लगते हैं यदि जनता का काम ही रुक गया तो
मीटिंगें किस बात की !और यदि मीटिंगें इतनी ही जरूरी होती हैं आफिस टाइम
के बाद कीजिए मीटिंगें , किसान मजदूर रात रात भर काम करते हैं तो सरकारी
कर्मचारी क्यों नहीं कर सकते हैं और यदि नहीं ही कर सकते हैं तो सीटें खाली करें !उनसे अधिक
योग्य उनसे कम पैसों में उनसे अधिक जिम्मेेदारी पूर्वक काम करने वाले
अभ्यर्थियों की लाइनें लगी हैं फिर सरकार अपने कर्मचारियों से काम क्यों
नहीं ले पाती है !
बंधुओ! सच पूछो तो खोट सरकारी कर्मचारियों में नहीं है अपितु
सरकारों में है अधिकारी कर्मचारी तो बदनाम हैं बाक़ी घूस तो सरकारों में
सम्मिलित नेताओं को चाहिए होती है उसी में कुछ उनको भी मिल जाती है जो
बेचारे मंत्रियों के लिए कमा कमा कर लाते हैं अन्यथा राजनीति में घुसते समय
किराए के लिए तरस रहे नेता बिना किसी उद्योग धंधे के अरबों खरबों पति कैसे
हो जाते हैं यदि घूस नहीं लेते या उनके पास भ्रष्टाचार का पैसा नहीं आता है
तो !आखिर क्या होते हैं उनके आय के पवित्र स्रोत इनकी जाँच क्यों नहीं
होनी चाहिए और
सार्वजनिक किए जाने चाहिए उनकी आय के स्रोत किंतु ऐसा तभी संभव हैं जब देश
का प्रशासक प्रधानमंत्री कोई ईमानदार चरित्रवान आदर्शवान कर्तव्यनिष्ठ जनता
के प्रति जवाब
देय एवं जन सेवा के प्रति समर्पित व्यक्ति बने और वो राजनीति को पारदर्शी
बनाने के लिए कृत संकल्प हो किंतु आजकल किसी से ऐसी उम्मीद नहीं
की जानी चाहिए ! राजनीति में केवल ये फार्मूला चलता है कि तुमने लूट लिया
अब हमें लूटने दो यदि तुम हमारी जाँच नहीं करोगे तो हम तुम्हारी भी जाँच
नहीं कराएँगे इसी सेटिंग के साथ बनती बिगड़ती हैं सरकारें और होते हैं काम
काज ! आपने
चुनावों के समय विपक्षी पार्टियों के नेताओं को सरकार में सम्मिलित नेताओं
पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते खूब सुना होगा किंतु जब वो सत्ता में आते हैं
तो भ्रष्टाचारियों पर न कोई कार्यवाही होती है और न ही जाँच !दोनों एक
दूसरे से गले मिलने लगते हैं उसका कारण केवल यह होता है कि अभी तक जो
सप्ताह उन लोगों के पास पहुँचाते थे अब वो अपने पास आने लगता है इस प्रकार
से जब अपना घर ही काँच का बना हो तो दूसरों के घरों पर कंकड़ फेंकना भी तो
बुद्धिमानी नहीं होती है ।
No comments:
Post a Comment