प्रधानमंत्री जी !
सादर नमस्कार !
महोदय,
मैंने तीन विषय से MA और Ph.D.बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से की है करीब 50 किताबें लिखी हैं जिनमें कुछ काव्य भी हैं !विभिन्न विषयों पर कुछ हजार आर्टिकल इटंरनेट के विभिन्न माध्यमों पर पड़े भी हुए हैं जिनके पाठकों प्रशंसकों की संख्या लाखों में है!आज भी 10 घंटे प्रतिदिन लेखन पठन पाठन में समय देता हूँ जिसमें प्राचीन वेदविद्याओं के आधार पर कई महत्त्व पूर्ण रिसर्च किए हैं!अपने विषयों की सम्पूर्ण समझ है कई बड़े विद्वान लोग मुझे भी विद्वान मानने लगे हैं!लोग अपनी अपनी जरूरतों के अनुशार हमारी योग्यता का उपयोग किया करते हैं जिसे जो मन आता है वो दे देता है अन्यथा वो जो दे देता है उसमें ही अपने परिवार का भरण पोषण करना हमारी अपनी मजबूरी है !
इस महत्त्वपूर्ण विद्या के अर्जन के लिए बड़ा संघर्ष पूर्ण बचपन बिताया है बचपन में ही पिता का स्वर्गवास हो गया था !जिस विद्या के लालच में ही मैंने माँ को खोया है अग्रज का ऋण उतारना चाहता था जिन्होंने शिक्षा के कठिन संघर्ष काल में हमारी आर्थिक मदद की थी किंतु ऐसा करने लायक नहीं हो सका जिससे
प्रायः राजनेता लोग सामान्य परिवारों से आते हैं धंधा व्यापार करने लायक उनके पास पूँजी नहीं होती है और न ही इसके लिए उनके पास समय होता है और न धंधा व्यापार करते वो कभी देखे ही जाते हैं ऐसे लोगों के यहाँ चल अचल चुनाव जीतते ही अचानक बढ़ने लग जाती हैं उत्तम सुख सुविधाओं में अच्छा धन खर्च होते देखा जाता है राजनीति में इतना धन ईमानदारी से कमाया जा सकता है क्या ?यदि हाँ तो मैं भी
अतएव मुझे केवल इतना जानना है
आदि काम काज करते देखे नहीं जाते हैं!फिर भी इनके पास पैसा आता कहाँ से है चुनाव जीतने के बाद इनकी संपत्तियाँ बढ़नी शुरू हो जाती हैं कैसे ?उसमें लगने वाला अकूत धन ईमानदारी से पैदा किया जा सकता है क्या यदि हाँ तो कैसे ?
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