Thursday, 26 October 2017

'बसपा' विवाह करेगी या लेगी 'संन्यास' !आखिर 'बौद्ध' बनेगी कैसे 'दलित' से ?

   'दलितदेवी' ने पाला 'बौद्धदेवी' बनने का सपना !किंतु शादी से या संन्यास से ?ये स्पष्ट नहीं किया ? वैसे भी अम्बेडकर साहब का अनुयायी होने का मतलब ही बौद्ध होता है !फिर भी ये क्लियर किया जाना चाहिए था क्योंकि शादी भी बुढ़ापे में ही लगती है और संन्यास भी बुढ़ापे में ही लगता है !
     रूचि अपनी अपनी जो बुढ़ापे के अकेलेपन को नहीं ढो पाते हैं और शरीरों में विवाह लायक ऊर्जा अवशेष होती है तब तो विवाह कर लेते हैं अन्यथा निराश हताश नेताओं के  बुढ़ापे में बौद्ध बनने के अलावा और विकल्प बचता भी क्या है !
      देश की सबसे पुरानी पार्टी में बहुत नेता ऐसे हैं जिन्होंने बुढ़ापे को पार करके ही शादी का आनंद लिया है !इसीलिए उन्होंने अपने 'भोंदू' को अभी तक कुँआरा रख छोड़ा है उसे लॉलीपाप पकड़ा रखा है कि जब तुम वो बनोगे तब तुम्हारा ये करेंगे किंतु वहाँ पर मोदी जी डटे हैं इसलिए वो 'वो' बन नहीं पा रहे हैं इसलिए उनकी पार्टी वाले उन्हें 'ये' बनने नहीं दे रहे हैं !ऐसे तो कुछ द्दिन बाद ये भी कह देंगे कि मुझे जब ये बनने ही नहीं दोगे तो मैं भी बौद्ध बन जाऊँगा !
      वैसे भी आशाराम और राम रहीम  प्रकरण के बाद न्याय पालिका की निष्पक्षन्याय प्रक्रिया से काँपने लगे हैं लुका छिपी का खेल खेलने वाले नेता और बाबा लोग !अब तो जो करना है खुल कर आना होगा सामने जिसे विवाह करना है सो विवाह करे जिसे बौद्ध बनना है सो बौद्ध बने !अन्यथा वहाँ जाना होगा जहाँ हनीप्रीत से मिलने का सपना चकनाचूर हो जाएगा ! इसलिए लुका छिपी के खेल खेलने वाले बाबाओं और नेताओं को अविलम्ब निर्णय ले लेना चाहिए !
       न्यायपालिका के कठोर निर्णयों से घबड़ाकर वैसे घपले घोटाले करके सम्पत्तिवान बने बहुत नेता लोग अब तो बौद्ध बनने को तैयार घूम रहे हैं ताकि उनके आर्थिक दुष्कर्मों की जब जाँच शुरू हो तो कह सकें कि बौद्धों पर  अत्याचार हो रहे हैं जैसे अभी तक दलितों का रोना रोया जाता रहा है ! जाँच के भय से भयभीत  बड़े बड़े नेताओं को लगने लगा है कि लुकाछिपी का खेल अब ख़त्म !इस लिए अब बौद्ध बनने में ही भलाई है !
     वैसे भी दलितदेवी जी का बुढ़ापा है न संन्यास लेने में बुराई है और न शादी करने में !नेताओं को वैसे भी बुढ़ापे में ही शादी लगती है वो भी सत्ता मिलने के बाद !सच्चाई तो ये है कि नेताओं को समाज शादी के लायक समझता ही तभी है !
     वस्तुतः राजनीति बेरोजगार अकर्मण्य निठल्ले लोगों का धंधा है इसीलिए जो कुँआरे लोग अपने नाम के साथ नेता शब्द लगा लेते हैं उनकी शादी होनी बड़ी मुश्किल हो जाती है उनके साथ अपने बच्चों का विवाह करने के लिए लोग सौ बार सोचते हैं कि आखिर ये राजनीति में गया क्यों इसमें कोई न कोई ऐब (गलतलत)जरूर होगा अन्यथा पढ़ता लिखता मेहनत मजदूरी करके  ईमानदारी से भी तो कमा खा सकता था इसे नेता बनने की जरूरत ही क्या थी !नेतागिरी का तो धंधा ही चोरी चकारी पर टिका होता है !
    नेता लोग प्रायः घर के गरीब होते हैं कभी कोई रोजी रोजगार करते देखे नहीं जाते किन्तु सुख सुविधाएँ अच्छी से अच्छी भोगते हैं अरबों की संपत्तियाँ इकट्ठी कर लेते हैं कैसे ?यदि ईमानदारी से ऐसा किया जा सकता होता तो सारा देश ही नेता बन जाता !किन्तु बेईमानी करने के लिए लोग तैयार नहीं हैं !बहुत भले लोग ऐसे भी हैं जो ईमानदारी की नमक रोटी पसंद करते हैं किन्तु बेईमानी की कमाई खाने वाला नेता नहीं बनना चाहते !
     बेईमानी करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है !इसलिए नेता लोग कभी कहीं कोई चोरी चकारी घपले घोटाले आदि करते पकड़े जाएँगे इनका क्या  भरोसा कि किसने कहीं कोई हनीप्रीत पाल रखी हो !इसलिए राजनैतिक लोगों से शादी करना ही कौन चाहेगा अपने बच्चों की !
    कुछ नेताओं ने तो घर में भी एक नहीं दो रखी होती हैं पक्ष विपक्ष घर में ही बनाकर वहीँ चुनाव चुनाव खेला करते हैं उत्तर प्रदेश में तो 'नेताजी' से अच्छे उदाहरण और कहाँ मिल सकते हैं पिछले साल तो उन्होंने घर ही घर में महाभारत का खेल खेला था !नेतालोग न काम के न काज के झूठ बोलने के बल पर सम्पत्तियाँ इकट्ठी कर लिया करते हैं !इसीलिए तो ऐसे लोगों पर घर के लोग ही भरोसा नहीं करते जब वो बोझ समझते हैं तो बाहर वाले लोग  ऐसे लोगों से विवाह कैसे कर लें ! 
     इसलिए सत्ता मिलने के बाद सिक्योरिटी मिल जाने पर ही नेताओं को समाज विवाह करने लायक समझता है !उसे पता होता है कि पिटेंगे तो बचाने वाले साथ तो हैं कम से कम घर तो उठा लाएँगे हमारे नेता दामाद को !सिक्योरिटी के बिना नेताओं के जीवन का कोई भरोसा नहीं होता न जाने कब और कहाँ मिलने लगें उनके गंदे कामों के फल उन्हें !क्योंकि पराई कमाई खानी हो या घपले घोटाले की कमाई !दोष दुर्गुण बेईमानी छिछोरापन हराम की कमाई आदि के लोभ से भरी पुरी राजनीति में ईमानदार चरित्रवान लोगों की बड़ी शार्टेज है !इस समय कोई भी पढ़ालिखा चरित्रवान ईमानदार आदि आदमी राजनीति में जाना चाहे तो राजनैतिक पार्टियों के गिरोह चलाने वाले सरदार लोग अच्छे लोगों को घुसने ही नहीं देते हैं अपने अपने दलों में !मैंने भी कई बार भेजा see http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.htmlअपना सारा लेखा जोखा तो उन लोगों ने साफ कह दिया कि तुम चंडी पाठ वाले आदमी इस रंडी पाठ के काम में क्यों हाथ आजमाना चाहते हो यहाँ तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है तो मैंने कहा मैं भी थोड़ा पढ़ा लिखा हूँ सदनों की बहस में हम भी औरों की बात समझने की योग्यता रखते हैं अपनी बात कह भी सकते हैं !बोले हमें ऐसे लोग चाहिए ही नहीं हमें तो बुद्धि के कुंद लोग चाहिए जो न बोल पावें न समझ पावें !जितना हम सिखावें उतना ही सीखें जितना हम बोलवावें उतना ही बोलें !जब हम डाँट  दें तो चुप हो जाएँ और जब हुल्लड़ मचाने का इशारा करें तब बवंडर खड़ा कर दें मुझे राजनीति के लिए ऐसे उपद्रवी लोग चाहिए !दिमागवाले तो बिल्कुल चाहिए ही नहीं !ऐसा कह सुन कर मुझे रिजेक्ट कर दिया तबसे मैं समझ गया कि राजनीति अच्छे इंसानों की चीज नहीं है !जैसा कि मुझे बताया गया !
   भ्रष्ट नेताओं को एक डर तो हमेंशा ही लगा रहता है कि न जाने कब कौन ईमानदार शासक आ जाए वो भूतपूर्व नेताओं को भी एक लाइन में खड़ा करके लट्ठ उठा ले और नेताओं से भी पूछने लगे कि जब तुम नेता बने थे तब तुम्हारे पास धेला  नहीं था और अब ये संपत्तियाँ आईं कहाँ से !तब जो नेता अपने सम्पति स्रोतों को नहीं बता सके तो वो हाथ के हाथ कार्यवाही करेगा फिर किसी को 'बौद्ध' बनने का मौका तक नहीं देगा !इसलिए जिसे बौद्ध बनना है भलाई इसी में है कि वो अभी ही बौद्ध क्यों न बन जाए !
     वैसे भी दलित देवी को भी अकेला जीवन अब बोझ लगने लगा होगा क्योंकि उनकी राजनीति में अब कुछ बचा नहीं है अब तो ब्राह्मणों को गाली देने से भी वोट नहीं मिलते हैं सच्चाई समाज को समझा दी गई है इसलिए अब निराश हताश पराजित दलित देवी को घर गृहस्थी की याद सताने लगी होगी या फिर संन्यास की !
    दलित बनने से जो नहीं मिला बौद्ध बनने से वो मिल पाएगा क्या?केवल सवर्णों का अपमान करने की योग्यता  रखने वाले को मुख्यमंत्री के पद पर बैठा चुके लोग अब बौद्ध बनने से प्रधानमंत्री बना देंगे क्या ?उसके लिए कुछ और लोगों को गालियाँ देनी सीखनी पड़ेंगी देवी जी !ब्राह्मणों सवर्णों ने तो क्षमा कर दिया किन्तु सब नहीं क्षमा कर देंगे !
नेताओं की बौद्ध बनने की नौटंकी !घपले घोटाले जो भी करेगा जाँच तो उसकी होनी ही चाहिए किंतु जाँच के डर से बौद्ध बन जाना बिल्कुल ठीक नहीं है !वैसे भी ये सच तो जनता के सामने भी आना ही चाहिए कि दलितों के हिस्से का धन लेकर ही रफूचक्कर तो नहीं हो रहे हैं बौद्ध बनने की धमकी देने वाले नेता लोग !
     वैसे भी बौद्धत्व (संन्यास) लेते ही सर्वप्रथम आपको बकवास बंद करनी होगी और यदि शादी की जाए तो बच्चों की नाक पोंछते पोंछते बड़ों बड़ों की बकवास बंद हो ही जाती है !यद्यपि ब्राह्मण या सम्पूर्ण सवर्ण समाज उस दिन बहुत सुखी होगा जिस दिन......!बड़े दिन सवर्णों ने गालियाँ  खाई हैं अक्ल अभी भी आपको आ जावे तो बुरा क्या है !फिर भी इस मंगलमय बेला पर मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई बधाई !! 



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