Sunday, 29 October 2017

प्रधानमंत्री जी ! GST और आनलाइन पेमेंट आखिर कैसे करें व्यापारी ?घूस लेने वाले तो कैस ही माँगते हैं उसे GST में कैसे दिखाया जाए ?

PM साहब ! अब पाई पाई और पल पल का हिसाब देंगे क्या ?
   व्यापारी न कह पा रहे हैं और न सह पा रहे हैं केवल घुट रहे हैं ! बड़े प्रेम से लाए थे मोदी जी को किंतु मोदी जीने सरकारी मशीनरी का शुद्धिकरण किए बिना ही तंग करना  शुरू कर दिया व्यापारियों को !
    सरकार जितने भी नियम बनाए जा रही है उनका पालन कोई न करता है और न ही किसी से करवाने की ही जरूरत समझता है किंतु जैसे किसान कभी भी घूमते फिरते अपने खेत में चला जाता है और धनियाँ की पत्ती शाक सब्जी आदि तोड़ लाता है उसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को जब पैसों की जरूरत होती है तो भिखारियों के कटोरे की तरह सरकारीनियमावली की फाइलें ले लेकर निकल पड़ते हैं और समाज को डरा धमका कर कुछ माँग लाते हैं !ऐसे लोग व्यापारियों के यहाँ जाकर किसी आपदा की तरह फट पड़ते हैं या जीवन की जरूरतों से जूझ रही जनता को ही अपना शिकार बना डालते हैं !
    ऐसे लोगों को घूस न दो तो वो व्यापार बंद करवाने की या कुछ और तरह की ऐसी जरूरी धमकी दे देते हैं जिससे लोगों को घबड़ाकर उनकी आर्थिक डिमांड पूरी करनी ही पड़ती है ! वो सब GST या आनलाइन पेमेंट पर भरोसा नहीं करते वो तो कैस माँगते हैं जनता को या व्यापारियों को देना ही पड़ता है यदि न दें तो व्यापारियों को वो तंग करना शुरू कर देते हैं इसकी शिकायत व्यापारी जिससे करेगा वो भी तो सरकारी कर्मचारी ही होगा वो व्यापारी पर कब उल्टा फट पड़े उस पर भरोसा कैसे किया जाए !काम तो करना ही होता है जो काम करेगा उससे ही गलतियाँ भी होंगी उन्हीं गलतियों के कारण पैसे माँगने चले आते हैं सरकारी निकम्मे लोग !काम करने वालों को काम नहीं करने देते और खुद काम काज करते नहीं हैं ! 
      शास्त्र में कहा गया है - "दुर्जनं प्रथमं बंदे सज्जनं  तदनन्तरं" इसका अर्थ होता है गंदे आदमी को पहले प्रणाम करो उसे खुश रखो सज्जन आदमी को बाद में करो या न भी करो तो भी वो नुक्सान नहीं करेगा !
     इसी भावना से हर व्यापारी अपना काम बिगाड़ने वाले हर गंदे अधिकारी कर्मचारी को होली दिवाली हलछठ करवाचौथ के बहाने वैसे गिफ्ट पहुँचाते रहता है जिससे वे खुश हो जाएँ !
   पोस्टमैन तक को दिवाली का आर्थिक गिफ्ट न दो तो वो चेकबुक दरवाजे पर फ़ेंक कर चला जाता है !पुलिस विभाग तो आल राउंडर होता ही है वो तो किसी के घर या दूकान में घुस गया तो कोई न कोई कमी खोज ही लाएगा और सभी विभागों से संबंधित सभी प्रकार की कमियों को कैस कर लेता है ये सजीव विभाग !
     त्योहारों में निगम  वाले अधिकारी कर्मचारियों को भी घर में समझाकर भेजा जाता है कि देख त्यौहार सैलरी के पैसों से ही मनाना होता तो प्राइवेट नौकरी क्या बुरी थी इसलिए ऊपरी कमाई लेकर आना उससे प्रसन्नता पूर्वक मनाया जाएगा त्यौहार !ऐसे लोग आफिस पहुँचते ही गाड़ियाँ ले लेकर निकल पड़ते हैं बाजारों में और इतना आतंक फैला देते हैं कि मानो सारी बाजार ही छिन्न भिन्न कर देंगे !त्योहारों में सजी बाजारें घबराए व्यापारी तुरंत पूरी करते हैं उनकी आर्थिक डिमांड और सब नकद में ही करनी होती है !
     निगम वाले तो वैसे भी घूस ले लेकर इतने नियम विरुद्ध गलत काम पहले से ही करवा चुके होते हैं कि वो जिस घर में जब भी चाहें घुस जाएँ कुछ न कुछ लेकर ही निकलेंगे !किसी का छज्जा पनारा नाली चबूतरा कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो ऐसा मिल ही जाएगा जो नियमानुसार नहीं बना होगा !और जो चीज नियमानुसार नहीं है उसी के बदले पैसे चाहिए उन्हें वो भी कैस !
     मेरा व्यक्तिगत विचार है कि सरकार नियम बनाती ही शायद इसीलिए है कि जिससे उनके अपने अधिकारी कर्मचारियों को सातवें आठवें आदि वेतन आयोगों की प्रतीक्षा ही न करनी पड़े !जब जितनी सैलरी लेने के लिए निकल पड़ें जनता से उतनी वसूल कर ही लौटें !अन्यथा जो नियम बनाए जाते हैं  उनका पालन न करवाने वाले अधिकारी कर्मचारी दण्डित क्यों नहीं किए जाते हैं क्योंकि घूस का पैसा ऊपर तक जाता है !
    सरकारी स्कूलों में पढाई नहीं  होती है तो प्राइवेट में चले जाते हैं ,सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा नहीं होती है तो प्राइवेट में चले गए ,सरकारी टेलीफोन में सुनवाई नहीं होती तो प्राइवेट ले लिया,सरकारी डाक विभाग लापरवाह है तो कोरियर पकड़ लिया किन्तु सरकारी पुलिस की जगह किसे पकड़ कर करवावें अपने कामकाज ?सरकार के अन्य घूसखोर विभागों का विकल्प कैसे चुनें !अन्यथा उन्हें घूस का ऑनलाइन पेमेंट कैसे किया जाए और उसे GST में कैसे दिखाया जाए ?
       PM साहब ! पाई पाई और पल पल का हिसाब देंगे क्या ?अधिकारी कर्मचारी यदि बिना घूस लिए काम करते ही होते तो जनता को सिफारिस के लिए पार्षदों विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ जाना क्यों पड़ता !अधिकारी कर्मचारी यदि काम ही नहीं करते हैं तो उन्हें सैलरी क्यों देती है सरकार !सैलरी में दिया जाने वाला धन जनता के खून पसीने की कमाई है !सरकार को उनसे काम लेने की अकल नहीं है तो जनता के पैसों से उन्हें सैलरी क्यों दी जाए ?ऊपर से सातवाँ वेतन आयोग लागू करने की जरूरत क्या थी ?
      PM साहब !सरकारी स्कूल अब कैसे लग रहे हैं आपको ?  आप ही बता दीजिए कि सरकारी स्कूलों में यदि पढ़ाई ही होती तो सरकारी बाबू लोग अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों न पढ़ाते !
   PM साहब !सरकारी शिक्षकों में यदि पढ़ाने की योग्यता ही होती तो वे स्कूलों से मुख क्यों चुराते !सोर्स सिफारिस के बल पर शिक्षकों की नौकरी पाए अयोग्य लोग अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में इसीलिए नहीं पढ़ाते हैं उन्हें भरोसा ही नहीं होता कि यहाँ कोई पढ़ाने वाले शिक्षक भी होते होंगे ?

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