Wednesday, 25 October 2017

संघ समस्त भारतीयों को भारत माता की संतान होने के नाते अपना भाई बहन मानता है !

राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ से भारत खुश और इंडिया खफा !आखिर क्यों ?
    देश की सबसे पुरानी पार्टी का भोंदू जब होता है मुख उठाकर संघ के विषय में मुख उठाकर कुछ भी बोल देता है ये उसकी मजबूरी है जिसके पुरखे संघ को नहीं समझ पाए तो वो बेचारा भोंदू संध की विराट साधना को कैसे समझ लेगा ! जिसे भारत के विषय में कुछ पता ही नहीं है वो तो केवल इण्डिया को जनता है !
    बंधुओ ! राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि 'एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बाधा गया है तो धर्म के नाम पर क़ानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है! संघ को कोसने वाले लोगों से ही क्यों न पूछा जाए कि वो आखिर संघ को जानते कितना हैं और संघ के किन आचरणों के कारण वो संघ की आलोचना करते हैं !
     संघ ने सेवाकार्य के बलपर कई मोर्चो पर अपने आपको स्‍थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ कभी यह नहीं देखता‍ कि आपदा मे फँसा हुआ व्‍यक्ति किस धर्म या जाति का है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा में फँसे हुए लोग भारत माता की संतान होने के कारण हमारे भाई बहन हैं !इसी भावना से संघ सेवाकार्यों के प्रति समर्पित संगठन है !गुजरात में आये भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओ के समय सबसे आगे अगर किसी ने राहत कार्य किया तो वह संघ ही तो है !  
      संघ के प्रकल्पों ने देश को नई गति दी है, जहाँ दीन दयाल शोध संस्थान ने गाँवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्‍थान ने अपनी योजना के अंतर्गत सैकड़ों गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया है दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्‍वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान में लगे है। सम्‍पूर्ण राष्‍ट्र में संघ के विभिन्‍न अनुसांगिक संगठन जन सेवा के लाखों प्रकल्प चला रहे हैं।  
       इतना सब होने के बाद भी दो दो कौड़ी के अदने से लोग संघ की आलोचना करर्ते हैं जो स्वयं इस धरती के बोझ बने हुए हैं !सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ को लगभग सौ वर्ष होने वाले हैं !दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी. वह भी बिना किसी आधार के. संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में पूरी तरह कपोल-कल्पित और झूठा  साबित हुआ है!
      1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था उस समय सरकार असहाय थी तब भी संघ राष्ट्र सेवा का काम कर रहा था !संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखनई शुरू कर दी थी  यह काम कोई सरकार नहीं कर रही थी! उसी समय जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे!
      1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी थी !सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता.संघ ने की थी !संघ के इसी समर्पण और कुशलता के कारण भारत सरकार को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा था ! परेड करने वालों को आज भी महीनों पहले से तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए !
   पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके. घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था.
     1955 में बना भारतीय मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था. कारखानों में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था. आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है अकेला सेवा भारती देश भर के दूरदराज़ के और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाखों  काम कर रहा है ! एकल विद्यालयों में लाखों छात्र अपना जीवन सँवार रहे हैं !विद्या भारती आज हजारों स्कूल चलाता है,केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त सरस्वती शिशु मंदिरों में लाखों  छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं और पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या भी लाखों में होगी सबसे बड़ी बात है कि ये संस्थाएं भारतीय संस्कारों को शिक्षा के साथ जोड़े रखती हैं.1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है!इसलिए संघ की आलोचना करने वाले लोगों को चाहिए कि वे संघ को समझें संघ के सेवा कायों में भाग लें संघ के गुण दोषों पर विचार करें इसके बाद तर्क सहित अपने विचार रखें आनंद तो तब आएगा !

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