Thursday, 12 October 2017

7.5 लाख शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग का तोहफा और किसानों को दिए जाते हैं 7 ,5,9रूपए के चेक !बेचारे आत्महत्या न करें तो क्या करें ?

हमारा देश यदि लोकतान्त्रिक पद्धति से चलाया जाता तो किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर न कर पाती सरकार !इस आजादी में गरीबों ग्रामीणों किसानों का भी कुछ तो हक़ होता !
सरकार -शिक्षक और किसान !अपने कर्मचारियों को सबकुछ और गरीबों ग्रामीणों किसानों के लिए कुछ नहीं इतना अप्रिय व्यवहार इतना सौतेलापन !किसान कैसे सहे और ऐसी आजादी के गए जो केवल सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सकरी कर्मचारियों के भोगने के लिए ही मिली हो !
सरकार अपने कर्मचारियों को हजारों लाखों रूपए सैलरी देती है इसके बाद भी उनकी दीवाली में इतना तोहफा उन्हें दे देती है जितने पैसे यदि किसान के पास होते तो किसान आत्महत्या न करता !यदि उसे सरकार केवल जिंदा रहने भर के लिए पैसे दे दे तो गरीबत ही सही उसके भी बच्चे नमक रोटी खाकर भी अपने पिता के साथ त्यौहार तो मना ही सकते हैं किंतु उन किसानों के लिए तो 7 ,5,9और13 रूपए के चेक और अपने कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते समय बेतन आयोग की सिफारिशें !
कोई भी आयोग बने उसमें होंगे सब सरकारी थैली के ही चट्टे बट्टे वो अपने सहयोगियों का वेतन कम करने की बात तो करेंगे नहीं आयोग बनता ही बढ़ाने के लिए है क्योंकि डायरेक्ट बढ़ा देने में सरकार को शर्म लगती है कि कोई पूछेगा तो क्या जवाब देंगे कि जिससे तुम काम नहीं ले पाते उनकी सैलरियाँ क्यों बढ़ाते जा रहे हैं आप !ऐसे तो आयोग की आड़ ले ली जाएगी और बढ़ा दी जाएगी सैलरी !उसका फल युवा पीढ़ी में जितने भी प्रकार के दुर्गुण दिखाई पड़ते हैं वो उन्हें शिक्षकों से ही तो मिले हैं जैसे गुरू वैसे चेला !जो शिक्षक अच्छे हैं उनके पढ़ाई बच्चे अच्छे भी निकलते हैं किंतु वे हैं कितने !आखिर क्या पढ़ा रहे हैं वे क्यों गैर जिम्मेदार होते जा रहे हैं बच्चे न माता पिता की चिंता न परिवार के किसी अन्य सदस्य के विषय में कोई सोच न समय बात बात में तलाक हत्या बलात्कार जैसे दुर्घटनाओं के लिए यदि को जिम्मेदार है तो शिक्षक आखिर वो समाज को संस्कारी क्यों नहीं बना पाए कुछ तो जिम्मेदारी उनकी भी बनती ही है किंतु सरकार यदि जिम्मेदारी का ही पालन करने पर ध्यान देती होती तो देश के आधे से अधिक सरकार विभागों में ताले लग गए होते !इसलिए काम की क्वालिटी पर ध्यान दिए बिना सरकार सैलरी बाँटे जा रही है दूसरी ओर किसान देश वासियों के पेट भरने की जिम्मेदारी उठाता है उसकी ऐसी उपेक्षा !
वास्तव में जिम्मेदार लोग ही जिम्मेदार लोगों की परिस्थितियाँ समझ सकते हैं जो नेता अपने घरों की जिम्मेदारी नहीं निभा पाते रहे वे सरकार में आकर अचानक कैसे जिम्मेदार हो जाएंगे !जिस दिन देश की राजनीति में जिम्मेदार और ईमानदार लोगों का बाहुल्य होगा उसदिन किसानों मजदूरों गरीबों ग्रामीणों के भी दिन बहुरेंगे !
अपने कर्मचारियों से काम लेने की अकल तो सरकार को हो या न हो किंतु उन्हें सैलरी बढ़ाने और बाँटने में बड़ी माहिर होती है सरकार !किसानों के लिए सरकार करती क्या है तभी तो किसान करते हैं आत्महत्या !
विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के 7.5 लाख शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग का तोहफा - एक खबर

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