Wednesday, 11 October 2017

शिक्षामंत्री जी !दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने पढ़ाने का वातावरण भी बनवाइए !

   शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने वाले लोग चिन्हित किए जाएँ और पहले उनकी छुट्टी की जाए !अन्यथा घूस और सोर्स के बल पर नौकरी पाने वाले शिक्षकों से सरकार कैसे पढ़वा लेगी ?निगरानी तंत्र विकसित कीजिए और शिक्षा व्यवस्था को सुधारिए !
    प्राइमरी कक्षाओं में शिक्षक फुल टाइम मोबाईल पर बात करते रहते हैं छोटे छोटे बच्चे होते हैं वो बेचारे कुछ कह सकते नहीं हैं दो चार लाइनें बोर्ड पर लिख दी जाती हैं बस बहुत !अभी भावक यदि प्रिंसिपल से शिकायत करना चाहें तो वो स्टॉप की कमी संसाधनों की कमी का रोना रोने लगते हैं अधिकारी स्कूलों में जाते नहीं हैं अभिभावकों की कोई सुनता नहीं है !
      बड़े स्कूलों में बच्चों से कह दिया जाता है कि प्रश्नों के उत्तर कुंजी से देख कर लिख कर लाओ !वो लिखकर ले जाते हैं बेचारे !बच्चे थोड़ा भी कोई कठिनवर्ड पूछ देते हैं तो उसका उत्तर मोबाईल पर सर्च करके दिया जाता है !दिल्ली के प्रतिभा स्कूल भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं !शिक्षा में मामले में सरकार का निगरानी  तंत्र या तो बिल्कुल फेल हो गया है या फिर सरकार लचार है !कुछ लोग तो ऐसे पढ़ाते हैं कि केवल वही समझते हैं बच्चों तक कुछ पहुँचता ही नहीं है !बच्चों की ऐसी सभी पीड़ाओं को सुनता कौन है अभिभावकों की कभी भी बेइज्जती कर देते हैं ऐसे शिक्षक !उनका कहना होता है कि पढ़ाना ही था तो प्राइवेट में पढ़ा लेते !ऐसी सभी विपरीत परिस्थितियाँ होते हुए भी दिल्ली सरकार क्यों कहती है कि शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ है !
   प्रबंधन की कमी अदूरदर्शिता अनुभवहीनता जिम्मेदारी का अभाव कर्तव्य परायणता का अभाव शिक्षा अधिकारियों की लापरवाही !निगरानीतंत्र की कर्त्तव्यशून्यता आदि दुर्गुण सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सफल बनाने में बड़ी बाधा हैं !सरकारी स्कूलों की शिक्षा संबंधी लापरवाही के विषय में कोई कुछ कहना भी चाहे तो उनके पास दो जवाब तैयार मिलते हैं स्टॉप की कमी है कुछ शिक्षक छुट्टी पर हैं कुछ शिक्षक जरूरी काम से गए हैं भले ही वो गोलगप्पे खाने गए हों !कई बार कुछ स्कूलों में तो  बच्चे भेजे जाते हैं शिक्षकों के लिए छोला भटूरा लाने के लिए !कुछ लोग जरूरी काम के नाम पर शॉपिंग करने चले जाते हैं लोग जरूरी काम का बहाना बनाकर मोबाइलों में चिपके रहते हैं उन्हें होश ही नहीं होता है कि उनकी कक्षा से कितने बच्चे भाग रहे हैं !ये सारा कुछ शिक्षा व्यवस्था में लापरवाही के कारण ही तो हो पा रहा है !
    दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ऐसा प्रायः हर जगह चलते देखा जा रहा है पूर्वी दिल्ली की राजगढ़ कालोनी में एक स्कूल में अभी हाल में ही कई बार जाना पड़ा तो जो तस्वीर देखी गई वो शिक्षा से संबंधित व्यवस्थाओं की पोल खोल देने वाली थी !इसीलिए आपसे निवेदन करता हूँ कि शिक्षा व्यवस्था और अनुशासन पर भी आप थोड़ा ध्यान दें !स्कूलों में शिक्षा के वातावरण को सुधारा जाए !
    सरकार के ऐसे स्कूल जहाँ प्राइमरी स्कूल एवं बड़े बच्चों की संयुक्त व्यवस्था एक साथ एक स्कूल में ही रखी गई है दोनों के आने जाने का एक ही गेट है और एक ही ग्राउंड है !ऐसे स्कूलों में दोनों के आपसी तालमेल में प्रबंधन संबंधी बुद्धिमत्ता का नितांत अभाव है !ऐसे अननुशासित सभी स्कूलों को देखकर लगता है कि जानवर चराने वाले कर्तव्य परायण लोग भी जानवरों पर भी खुले मैदानों में अपना नियंत्रण आसानी से रख लेते हैं किंतु  सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में उतनी भी बुद्धिमत्ता का अभाव है कि बच्चे स्कूली बाउंड्री के अंदर घेरे रहने के लिए गेट में ताला लगा  कर रखना पड़ता है क्यों ?
   छोटे बच्चे और बड़े बच्चों के स्कूल आने जाने का समय यदि अलग अलग रहेगा तो ये समस्या रहेगी ही या तो दोनों एक साथ नहीं होते !ऐसे में एक बाउंड्री वाल के अंदर एक साथ चलने वाले प्राइमरी और बड़े बच्चों के स्कूलों को एक साथ प्रारम्भ किया जाए एक साथ छुट्टी कर दी जाए ये बात शिक्षाधिकारियों की समझ में क्यों नहीं आती है इसमें न बच्चों को समस्या न अभिभावकों को इससे स्कूल में शिक्षा का वातावरण बन भी सकता है अन्यथा उचित प्रबंधन के अभाव में सारी  शिक्षा व्यवस्था ही मजाक बनती जा रही है !  
    ऐसे स्कूलों  में कक्षा 1 से 12 तक के लड़कों की पढ़ाई होती है जिसमें प्राइमरी के बच्चों और बड़े बच्चों की पढ़ाई एक ही स्कूल में होती है !छोटे बच्चों का स्कूल 7. 30 बजे शुरू होता है एवं 12.40 पर छुट्टी  हो जाती है और बड़े बच्चों का स्कूल 8 बजे से 2 बजे तक होता है !
     दोनों प्रकार के बच्चों की प्रार्थना अलग अलग समयों पर होती है चूँकि ग्राउंड एक ही है इसलिए जब बड़े बच्चों की प्रार्थना होती है तो छोटे बच्चों की पढ़ाई में बाधा होनी स्वाभाविक है !इसी प्रकार से 12.40 पर छोटे बच्चों की छुट्टी हो जाती है उसके बाद बड़े बच्चों का मन पढ़ने में नहीं लगता है बचे तो बच्चे हैं !गेट खुला होता ही है बड़े बच्चे भी भागने लगते हैं गेट न भी खुला हो तो वो गेट या बाउंडरी वाल लाँघ कर उस तरफ कूद जाते हैं और अपने अपने घर जाते देखे जाते हैं !इसके अलावा भी गेट खोलने के लिए गार्ड से लड़ाई लड़ते देखे जा सकते हैं !गार्ड को तरह तरह से धमकियाँ भी देते हैं गार्ड उन्हें मार सकता नहीं है समझाने से वे मानते नहीं हैं          ऐसी समस्या से निपटने के लिए स्कूल के शिक्षकों ने 12 . 40 पर छोटे बच्चों की छुट्टी के तुरंत बाद गेट बंद करना शुरू कर दिया है !ऐसी परिस्थिति में जिन छोटे बच्चों के अभिभावकों को किसी कारण से लेने आने में देरी हो जाती है उनकी सुरक्षा के लिए स्कूल की कोई जिम्मेदारी नहीं है उनका मानना है कि छुट्टी के बाद वो बच्चों को रखाकर नहीं बैठ सकते !उन्हें 12 . 40 बजे तक की ही सैलरी मिलती है उसके बाद वो स्वतन्त्र हैं !
 ऐसे स्कूलों में अभिभावकों की समस्या ये है कि जिनके दो बच्चे पढ़ते हैं एक छोटे स्कूल में एक बड़े स्कूल में अलग अलग समय होने के कारण उनका अधिकाँश समय बच्चे लाने और छुट्टी में घर ले जाने में ही बीत जाता है आखिर वे अपनी रोजी रोटी का निर्वाह कैसे और कब  करें !
     कभी छोटे बच्चे कभी बड़े बच्चे आना जाना भोजन छुट्टी पढाई आदि सबकुछ मैनेज कर पाना स्कूलों के भी प्रबंधन के लिए कठिन होता जा रहा है !छात्रों की शिक्षा में इससे बड़ा ब्यवधान होता है जिससे न शिक्षक पढ़ा पाते हैं और न छात्र पढ़ पाते हैं दिन भर उत्सव जैसा माहौल बना रहता है !छात्रों के घर भागने से तंग अकेला गार्ड उन इतने सारे बच्चों से कैसे जूझे और छोटे बच्चों की सुरक्षा वो बेचारा अकेले कैसे करे !वो बड़े बच्चों से लड़ता है तो छोटे भाग जाते हैं और छोटों को रखाता है तो बड़े बच्चे निकल जाते हैं !इस प्रकार से जानवरों की तरह बच्चों को स्कूल के गेट के अंदर घेरे रहने को ही पढ़ाई समझता है स्कूल !ऐसे आराजक वातावरण को देखने सुनने वाले लोग इसी लिए सरकारी स्कूलों को बहुत गिरी दृष्टि से देखते हैं !
     शिक्षा मंत्री जी !बड़े बच्चों की कक्षाओं में यदि शिक्षक अपनी कक्षाएँ जिम्मेदारी से लें और पढ़ावें तो वो बच्चे कक्षाओं से निकलकर कैसे भाग आएँगे !जिस भी बच्चे से पूछो वो यही कहता है पीरियड खाली है इसीलिए लड़के या तो ग्राउंड में खेलते हैं या भागते हैं शिक्षक बताते हैं कि ये उनके खेलने का पीरियड है छुट्टी के समय खेलने का पीरियड होगा तो लड़के भागेंगे ही !अपने अपने घर खेलेंगे जाकर !
    वैसे भी ऐसे स्कूलों के अध्यापक अपनी हर लापरवाही को बड़ी चतुराई पूर्वक सरकार की शिक्षा व्यवस्था पर डालकर शिक्षाधिकारियों को बुद्दू सिद्ध कर देते हैं !और अपने को बहुत बड़ा जिम्मेदार साबित कर देते हैं जबकि इसी दिल्ली सरकार के प्रतिभा स्कूल भी तो हैं जहाँ अनुशासन दिखाई पड़ता है वहाँ शिक्षक समय से अपने पीरियड लेते हैं बच्चे खाली ही नहीं रहते वो घर भागें कैसे और कब !वहाँ के शिक्षक पढ़ाने को अपना कर्तव्य समझते हैं शिक्षा को बोझ नहीं समझते हैं परिश्रम करते हैं उसका फल बच्चों के जीवन पर दिखाई भी पड़ता है !बच्चे भी उनका अनुशासन मानते हैं अन्यथा जब शिक्षकों में कर्तव्य परायणता हो तब तो बच्चे भी उनसे कुछ सीखें !शिक्षक ही अगर दिन दिन भर मोबाईल में लगे रहेंगे कामचोर होंगे तो बच्चे दीवारें फाँदेंगे ही !
       वैसे भी सरकारी स्कूलों में गार्ड होता ही है गेट हमेंशा गार्ड के आधीन खुला ही रहना चाहिए और जिस बच्चे को बीच में अचानक जाना हो उसे अपने शिक्षक से लिखित अनुमति लेकर गार्ड को देने का प्रावधान हो एवं किसी अभिभावक को किसी विशेष समस्याके कारण यदि बीच में अपने बच्चे को घर ले जाना पड़े तो वो अपनी बात बच्चे के शिक्षक तक पहुँचा सके किन्तु जिन स्कूलों में गेट में ताला लगा कर शिक्षक स्वतंत्र हो जाते हैं वहां के बच्चे शिक्षा के प्रति कितने जिम्मेदार हो सकते हैं इसकी कल्पना की जानी चाहिए !

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