Tuesday, 16 May 2017

भ्रष्टनेताओं और धार्मिक पाखंडियों ने बर्बाद किया है देश !इनका भी होना चाहिए नार्को !!

  ज्योतिषियों तांत्रिकों बाबाओं एवं कथावाचकों का भी कराया जाए नार्को जैसा कोई बड़ा टेस्ट और इनसे भी उगलवाया जाए इनका अपना धार्मिक सच और पाखंड !
        चरित्रवान तपस्वी शास्त्रीय साधू संत जिस जितने संस्कार बो पार हे हैं उससे अधिक पाखंडी लोग चरते जा रहे हैं !साधू संत किसी नेता के यहाँ क्यों हाजिरी देंगे बड़े बड़े राजा महाराजा उनके यहाँ स्वयं समर्पित भावना से आया करते थे !किंतु बाबाओं ने साधुओं जैसा वेष धारण करके बिगाड़ दिया है सारा खेल !आज बढ़ते पाखण्ड के कारण शास्त्रीय धर्म कर्म लुप्त होता जा रहा है जिसका असर समाज पर दिखाई पड़ रहा है और रोके नहीं रुक रहा है अपराध !
      कथाकार केवल वक्ता  ही नहीं अपितु समाज सुधारक एवं शास्त्रीय धर्म कर्म का प्रचार प्रसार करने वाले बहु पठित विद्वान होते हैं किंतु डांसवार बंद हुए तो लोग भागवत कथाओं में घुस आए यहाँ जोर आजमाइस करने लगे !नाच कूद के आगे कहाँ लुप्त हो जाती है भागवत रामायण पता ही नहीं चलता !
   अक्सर अपराधी लोग अपराध करके धार्मिक या राजनैतिक का चोला  ओढ़  लेते हैं | धार्मिक और राजनैतिक वेष भूषा बनाकर अपराध करने वाले या राजनैतिक और धार्मिक लोगों की सुरक्षा में रहकर अपराध को संरक्षण देने वाले  गिरोह पकड़े जा सकते हैं ऐसे लोगों के पास से !
    अब आप स्वयं सोचिए कोई व्यापारी कितनी भी मेहनत करके  व्यापार प्रारंभ करे प्रायः पीढ़ियाँ लग जाती हैं व्यापार को ज़माने में वही व्यापार बाबा लोग करने लगें तो मिनटों में करोड़ों अरबों खरबोंपति बन जाते हैं कैसे !साधू संतों पर ये टिपण्णी इसलिए लागु नहीं होती क्योंकि धन इकठ्ठा करना उनका लक्ष्य नहीं होता दिनचर्या संचालन के लिए वे केवल आवश्यकताओं की पूर्ति भर के लिए संचय करते हैं बस !
   इसलिए भेदभाव पक्षपात के बिना ऐसे सभी संदिग्ध नेताओं बाबाओं ज्योतिषियों तांत्रिकों कथावाचकों का करवाया जाए नार्को टेस्ट और पता लगाया जाए कि इनके पास कैसे इकठ्ठा हो जाती हैं इतनी अकूत संपत्तियाँ जिनके लिए वे कोई विशेष प्रत्यक्ष प्रयास भी नहीं करते देखे जाते हैं !जनता से अच्छा खाते पहनते सुख सुविधाओं का जीवन जी लेते हैं जहाजों पर घूमते हैं कभी काम करते नहीं देखे जाते पैतृक संपत्तियाँ होती नहीं हैं प्रायः पैदायसी गरीब होते हैं फिरभी इतना धन !दूसरी ओर जनता दिन रात काम करती है कंजूसी का जीवन जीती है कंजूसी से परिवार पालती है फिर भी वो गरीब आखिर क्यों ?
   ऐसे अचानक अकूत संपत्तियाँ इकट्ठी कर  लेने वाले बाबाओं नेताओं की सम्पत्तियों की दृष्टि से तो जाँच की ही जाए साथ ही जाँच इस दृष्टि से भी की जाए कि इनकी सम्पत्तियों के स्रोत कहीं आपराधिक स्रोतों से जुड़े तो नहीं हैं ये सच भी जनता के सामने लाया जाए !
   ऐसे बाबाओं की राजनैतिक अच्छी पकड़ होती है इसलिए प्रशासन उनकी हनक मानता है इस रहस्य को समझने वाले अपराधी लोग ऐसी जगहों पर बना लेते हैं अपने अड्डे !अपराधियों के लिए इससे सुरक्षित एवं सुख सुविधा संपन्न स्थान और कहाँ मिल सकता है !जहाँ रहकर कमाई करेंगे उन्हें कुछ देंगे नहीं तो वो पकड़वा नहीं देंगे क्या ?  और देते रहेंगे तो ऐसे अपराधियों की रक्षा नेता और बाबा लोग स्वयं कर लिया करते हैं !
    नेताओं और बाबाओं में एक को सोर्स फुल दिखना होता है और दूसरे को धार्मिक !यद्यपि सभी लोग ऐसे नहीं होते हैं राष्ट्रसेवक नेता अभी भी हैं ऐसे ही ईश्वर भक्त साधू संत अभी भी हैं किंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होने के कारण ही पैदा होने लगी हैं समस्याएँ !अभी तक जो पकड़े गए वे तो ऐसे निकले जो नहीं पकड़े गए वे कैसे निकलें !
    ऐसी आपराधिक आमदनियों से रईस होने वाले लोग असली साधू संतों कथावाचकों राजनेताओं के नाम पर कलंक  हैं !जबकि समाज ऐसे लोगों को अपना सबकुछ समझता है इसलिए गंगा स्वच्छता अभियान की तरह ही राजनीति एवं धर्म के सभी आयामों को भ्रष्टाचार और छल प्रपंच से मुक्त बनाने की आवश्यकता है इसके बाद सामाजिक अपराधों पर ये स्वयं लगाम लगा लेंगे !!
      टीवी चैनलों अखवारों में दिन भर बकवास करने और छपने वाले ज्योतिष विक्रेताओं  से भी पूछा जाए कि जो किसी विश्व विद्यालय से ज्योतिष पढ़ा नहीं वो ज्योतिषी बने कैसे !जो ज्योतिष विद्वान् है उसे परीक्षा देकर ज्योतिष डिग्री प्रमाण पत्र लेने में क्यों आपत्ति होगी !यदि आप ज्योतिष नहीं पढ़े तो क्यों कर रहे हैं लोगों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ !साथ ही यह भी पता लगाया जाए कि ऐसे लोगों ने  कितने लोगों की जिंदगी बर्बाद की है कितने विवाहित जोड़ों का तलाक कराया है कितने लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर किया है !कितने लोगों का शारीरिक शोषण किया है कितने  गरीबों को ठगा है कितनी बच्चियों के बलात्कारों के लिए दोषी हैं ऐसे लोग !
   सच्चाई ये है कि ईश्वरभक्त संत और देशभक्त नेताओं को पाखंडियों  एवं भ्रष्टाचारियों ने पीछे धकेल दिया है या यूँ कह लें कि ऐसे आदर्श लोग पाखंडी भेड़ियों के बीच घुसना ही नहीं चाहते वे स्वयं दूरी बनाकर चलते हैं ! अब समाज  एवं देश की सेवा करे कौन ?
   पाखंड और भ्रष्टाचार के विरुद्ध धर्मवान एवं समाज सुधारकों को लड़ना होगा एक बड़ा वैचारिक  युद्ध ! अन्यथा भ्रष्टाचारी नेता और पाखंडी साधू लोग समाज को कभी भी अपने पैरों पर नहीं खड़ा होने देंगे समाज जिस दिन अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा उसी दिन दलित लोग आरक्षण लेना अपमान समझने लगेंगे और पापी लोग भी बाबाओं की दलाली छोड़कर धर्म कर्म से सीधे स्वयं जुड़ने लगेंगे !धर्म हो या राजनीति दिनों दिन भयावह होते जा रहे हैं ।आपस में मिलजुलकर इन्हें रोकना होगा शीघ्र रोना होगा !
पाखंडी साधू धर्म की बड़ी बड़ी बातें करते हैं और भ्रष्टाचारी नेता  कानून की किंतु पाखंडी साधू लोग शास्त्र नहीं पढ़ते इसलिए धर्म का ज्ञान नहीं होता और भ्रष्ट नेता संविधान नहीं पढ़ते इसीलिए कानून का ज्ञान नहीं होता !पाखंडी  साधू धर्म का भय देकर और भ्रष्ट नेता कानून का भय देकर समाज को अनाप शाप लूटते हैं पाखंडी साधू लोग पापियों के उद्धार की बातें करते हैं और भ्रष्ट नेता दलितों के उत्थान की बात करते हैं किंतु टार्गेट दोनों का ही समाज से धन लेना होता है |इस प्रकार से लूटपाट कर दोनों के दोनों समाज का हिस्सा हड़प कर स्वयं वे सब सुख भोगते हैं जिनकी निंदा करके गृहस्थों से धन लेते हैं |
   ऐसे बाबा लोग गृहस्थों से कहते हैं दान करो और ऐसे नेता लोग गृहस्थों से कहते हैं कि टैक्स दो किंतु वो दान का भोग  वे टैक्स का किन्तु जनता को क्या मिला ?ऐसे लोग खुद तो सबकुछ समेट  कर रख लेते हैं | 

   इसी प्रकार भ्रष्ट नेता दलितों की हमदर्दी दिखा दिखा कर सुख सुविधाएँ संपत्ति माँगते हैं और खुद लूट कर ले जाते हैं दलित बेचारे दलित ही बने रहते हैं जबकि नेता जी हो जाते हैं अरबोंपति !ऐसे पाखंडी साधू जब घबड़ाते हैं तो राजनीति की बातें करने लगते हैं और  भ्रष्ट नेता जब फँसने लगता है तो धार्मिक दिखने का नाटक करने लगता है !पाखंडी साधू हों या भ्रष्ट नेता ये दोनों अपनी अपनी  ताकत दिखाने के लिए करते हैं बड़ी बड़ी रैलियाँ !नेता इस लोक को ठीक करने के भाषण देता है और बाबा उस लोक को !एक लाल कपड़ों में और दूसरे सफेद में लिपेटते हैं अपने अपने शरीर !ऐसे पाखंड और भ्रष्टाचार के विरुद्ध हमारे "राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान " ने छेड़ रखा है जन जागरण अभियान ! देश और समाज की रक्षा के लिए हमें चाहिए आपका सहयोग !
    आरक्षण केवल सवर्णों के साथ ही नहीं अपितु दलितों के साथ न केवल अन्याय है अपितु घोर गद्दारी है !
    भ्रष्टनेता यदि संन्यास लेता है तो भ्रष्ट संन्यासी क्या करे ....!
   आधुनिक संतों और आधुनिक नेताओं में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए बहुत जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा दोनों को लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य  कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते  हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पाप करके  पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही कुछ भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर है कौन ?
    उसे पकड़े और सुधारे  बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों एवं धर्मशास्त्रों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।  

   नेता और बाबाओं में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं इन बाबाओं के पास ईश्वर भक्ति नहीं होती है और ऐसे नेताओं में देश  भक्ति नहीं होती है।दोनों अपने  अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों  ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही क्यों न हो । दोनों अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश  उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि  पराई संपत्ति सहित पराई सारी सुख सुविधाओं को भोगने की होती है।दोनों वेष  भूषा  का पूरा ध्यान रखते हैं एक नेताओं की तरह दिखने की  दूसरा महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश   करते हैं ! दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बकते बोलते देखे जा सकते हैं।बातों विद्या तपस्या अादि में दम हो न हो किन्तु दोनों में पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट होने के कारण पकड़े जाते हैं तो कहते हैं कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि साधुसंत भी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।इसी प्रकार कोई संन्यासी नेता बन जाता है ,क्योंकि  बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।
     कुछ साधू संत साधक भी हैं और समाज सुधारक भी ऐसे लोग बड़े से बड़े पद पाकर भी वे अपना विरक्त स्वभाव कभी नहीं छोड़ते !अशास्त्रीय आचरण कभी नहीं करते उनका लक्ष्य राजनीति करना नहीं अपितु समाज को सुधारना एवं भ्रष्ट राजनेताओं के दोष दूर करना होता है |
      इसप्रकार धार्मिक लोगों की गतिविधियों को भी शास्त्रीय संविधान की सीमाओं के दायरे में बॉंधकर रखने की भी कोई तो सीमा रेखा होनी ही चाहिए। बाबा  जी रैलियॉं कर रहे हैं, आज बाबाजी जी साड़ी बॉंट रहे हैं।बाबा जी स्वदेशी  के नाम पर सब कुछ बेच रहे हैं , बाबा जी उद्योगधंधे लगा रहे हैं, ये सब कुछ गलत  नहीं है किंतु ऐसे लोगों के पर्दे के पीछे के भी बहुत सारे अच्छे बुरे आचरण देखने सुनने को मिला करते हैं।ये सब गंभीर चिंता के बिषय हैं ।
    ऐसे लोगों की दृष्टि में  क्या सारे पापों का कारण केवल विवाहिता पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है क्या  इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव  है?
    साधुत्व के अपने अत्यंत कठोर नियम होते हैं उन्हें हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं  पर लगाम कैसे लगे?यह संतों को ही स्वयं सोचना होगा।

   जो धार्मिक व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान ? एक बाबा जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सत्संग  करने गए थे पैसे पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं जाकर सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या था कथित भोगवत कहते और प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने  समझदारी से काम लिया है।
   इस देश  की जनता धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना आता है करते चाहें जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा जी को फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा व्यक्ति धन लोभ  से बाबा बन गया ! क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन कमाना ही हो गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष  नष्ट भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सत्संगों की भीड़ें आखिर  सत्संगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ? इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ  बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।

No comments: