शास्त्रीय सात्विक साधक योगी आयुर्वेदज्ञ आदि ईमानदार धार्मिक लोगों से क्षमा याचना के साथ विनम्र निवेदन !
शास्त्र जिसको समझ में न आवें वो शास्त्रों की निंदा करने लगे ये कहाँ का न्याय है किसी अंधे को दुनियां न दिखाई दे तो क्या मान लेना चाहिए कि दुनियाँ समाप्त हो गई है !हम हम उठाएंगे प्रश्न और आप दीजिए जवाब !योग और आयुर्वेद की निन्दकारना मेरा उद्देश्य नहीं है शास्त्रों पर मेरी असीम आस्था है किंतु शास्त्र निंदा सुनकर उपजा आक्रोश प्रश्न करने के लिए विवश करता है !
मेरा उद्देश्य किसी की निंदा करना कतई नहीं है किंतु शास्त्र के सभी पक्षों का सम्मान किया जाए मेरा उद्देश्य ये जरूर है !आपके पास धन है विज्ञापन के साधन हैं सरकार में घुस पैठ कर लेने की चतुराई है इसका मतलब क्या आप किसी शास्त्र की निंदा करने लगेंगे !और ये देश सह जाएगा !अनंत काल से ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा जाता रहा है!राजा रजवाड़ों की सभाओं में सम्मान प्राप्त था !आज भी बहुत विद्यार्थी काशी हिन्दू विश्व विद्यालय जैसी बड़ी संस्थाओं में अन्य विषयों की तरह ही दस बारह वर्ष लगाकर ज्योतिष का अध्ययन करते हैं डिग्रियाँ लेते हैं उसी योग्यता के बल पर उन्हें सारा जीवन यापन करना होता है !ऐसे विषय की कोई सरकारी योगमंच से निंदा करने लगे वो भी संतों जैसी वेष भूषा बनाकर ! समाज के मन में इससे भ्रम पैदा होता है कि वे ज्योतिष को सही मानें या गलत !और ज्योतिष विद्वत समाज इसे सह जाए आखिर क्यों ?
साहस है तो शास्त्रार्थ करके ये सिद्ध किया जाए कि ज्योतिष कैसे गलत है और यदि ज्योतिष ही गलत है तो योग और आयुर्वेद सही कैसे हैं !हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि सभी शास्त्र आपस में एक दूसरे से सम्बद्ध हैं बिलकुल गुंथे हुए हैं एक को गलत बताने पर दूसरे को सही नहीं सिद्ध किया जा सकता !इसलिए जो कहता है कि ज्योतिष पाखंड है वो ज्योतिष के बिना आयुर्वेद और योग के आस्तित्व को सिद्ध करके दिखावे !मैं खंडन करूँगा वो भी ऐसे तर्कों से जिन्हें विद्द्वाद समाज स्वीकार करेगा तार्किक समाज स्वीकार करेगा और वैज्ञानिक समाज स्वीकार करेगा !बशर्ते आयोजक ईमानदार और विश्वसनीय हो !
ऐसे मंचों पर ज्योतिष की निंदा करने वाले किसी भी व्यक्ति को जवाब देने के लिए बाध्य किया जाएगा !उससे पूछा जाएगा कि किस आधार पर उसने ज्योतिष जैसे पवित्र शास्त्र पर ऐसे घिनौने आरोप लगाए उसकी निंदा की उसकी मजाक उड़ाई ज्योतिष के क्षेत्र में उसकी अपनी हैसियत क्या है !
सरकार का मंच था सरकारी धन खर्च करके उसकी रचना हुई थी !योग के प्रचार प्रसार के लिए प्रधानमन्त्री जी का प्रशंसनीय प्रयास था !वहाँ से योग का प्रचार प्रसार होता सारा देश सरकार के साथ खड़ा था विश्व देख रहा था भारत की ओर किन्तु ऐसे मंच का उपयोग ज्योतिषशास्त्र की निंदा करने के लिए करके क्या प्रदर्शित करना चाहते थे लोग !शास्त्र विरोधी ऐसी हरकतों को क्यों सहती रही सरकार इसका तुरंत विरोध किया जाना चाहिए था अन्यथा ऐसे बचन बलशालियों से खुले मंच पर ज्योतिष को पाखंड सिद्ध करने को कहा जाना चाहिए था !इसके लिए खुली बहस आयोजित की जानी चाहिए थी !सरकार के लिए योग और ज्योतिष दोनों बराबर हैं दोनों की शिक्षा में धन खर्च करती है सरकार किन्तु अपने को योगी कहने वाला कोई व्यक्ति ज्योतिष की निंदा करता रहे और सरकार मूक दर्शक बनी रहे ये सहने योग्य नहीं था !
इस पाप का प्रच्छालन करने के लिए प्रायश्चित्त करना ही होगा !ईश्वर शास्त्र द्रोहियों को कभी संरक्षण नहीं देता है !
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