Friday, 5 May 2017

योग करने से कोई लाभ होता है या नहीं ये समाज को पता कैसे लगे ?

योग में दम है तो दवा की जरूरत क्यों और दवा ही बेचनी थी तो योग का उपयोग क्यों ?
    मिलावट का भय पैदा करके अपने प्रोडक्ट बेचने वालों के विज्ञापनों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए !      आज देश में वा देश के अधिकाँश प्रदेशों में ईमानदार और कर्मठ सरकार है जो शिकायतों पर न केवल ध्यान देती है अपितु कार्यवाही भी करती है इसके बाद भी मिलावटी सामानों का रोना रोते रहने वालों को चाहिए कि वे सरकार का साथ दें जानकारी उपलब्ध करवावें ताकि मिलावट खोरों पर कार्यवाही हो किंतु अपना सामान बेचने के लिए मिलावट का बहम डालकर सरकार को गैर जिम्मेदार अकर्मण्य सिद्ध करना ठीक नहीं है जिस सरकार का प्रधानमंत्री 20 घंटे काम करता हो बाथरूम के टाइलों गद्दों रजाइयों से भी नोट निकलवा लेता हो  उसके शासन में क्या बच पाएंगे मिलावटखोर !
     टीवी चैनलों पर बैठ बैठ कर जिन्हें बड़े बड़े रोगों की लंबी लंबी लिस्टें सुनाई गईं रोगी होने का मृत्यु का खौफ बैठाया गया !भय उपजाकर लोगों को अपनी और आकर्षित किया गया फिर उन्हें स्वस्थ करने के लिए उनसे कसरतें (योग) करवाई गईं !फिर उन्हीं को स्वस्थ करने के लिए दवाएँ बेची गईँ ! फिर उन्हीं को स्वस्थ रखने के लिए खाने पीने के सारे महँगे महँगे सामान बेचे गए !फिर उन्हीं के इलाज के नाम पर महंगे महंगे कमरे किराए पर दिए जाते हैं !ये भय दोहन नहीं तो क्या है योग दवा खान पान सब कुछ तुम्हारा फिर भी बीमारी क्यों ?रिसर्च होनी है तो इस पर हो कि इन सब चीजों से  कोई लाभ होता भी है या सब कुछ केवल भयदोहन मात्र है !
   गेहूं का भूरे रंग का आटा के मायने क्या ?
     गाँवों में किसानों के गेहूँ जब खलिहानों में भीग जाया करते थे तो उन्हें सुखाकर जब पिसाई की जाती थी तो वो आटा भूरे रंग का हो जाता है इसी प्रकार से सरकारी गोदामों में रख रखाव की चूक के कारण जो गेहूं भीग जाता है वो औने पौने दामों में मिल जाता है वो पीसने पर उसका आटा  भूरे रँग का हो जाता है वो अच्छा न भी लगे तो भी मेडिकेटेड समझकर लोग खा जाते हैं !सरकारों का स्टॉक निकल जाता है इसीलिए सरकारें ऐसे लोगों को पसंद करती हैं !
       धर्मशास्त्रों को   पढ़ने वाले लोग अक्सर अधार्मिक और मन गढंत बातों को भी धर्म मान बैठते हैं सरकारी सेवाओं से रिटायर्ड लोग अक्सर धार्मिक हो जाते हैं जो बहुत अच्छी बात है किंतु वो जैसा कहें धर्म के क्षेत्र में वही बात सच  मानी जाए ये धारणा ठीक नहीं है !बुढ़ापा पार करने के लिए धारण किया गया धर्म कर्म और जवानी लगाकर धर्म शास्त्रों के स्वाध्याय एवं गुरुजनों की चरण सेवा के अनुभव से अर्जित किए गए  धर्म कर्म को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता !सच्चाई सामने लाने के लिए विशेषज्ञों की महत्ता समझनी ही होगी !आस्था अंधी होती है वो किसी की किसी पर भी हो सकती हैं किंतु अपनी आस्था का गुलाम बनाकर सारे समाज को किसी पाखंड के चरणों में चढने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता !
आधुनिक योग से बढ़ते भी हैं वातरोग !
   किसान  गरीब  ग्रामीण  लोग जो शारीरिक  परिश्रम करते हैं वे अगर योग के नाम पर कसरत व्यायाम  करेंगे तो उन्हें वाट विकृति जन्य रोग हो जाएँगे किसी को  मैं आयुर्वेद से प्रमाण दे दूँगा !साहस हो तो खंडन करके दिखावे ! खून पसीने की  ईमानदारी पूर्वक कमाई करके जिम्मेदारी का जीवनजीने वाले लोगोन का ऐसे योग से क्या लेना देना !उनका दिन भर का काम काज ही ऐसे योग से कई गुणा अधिक हो जाता है !
     ये कसरती योग तो मुट्ठी भर उन लोगों के लिए होता है जिन्हें खिलाने से पचाने तक की सारी जिम्मेदारी नौकरों और डॉक्टरों की होती है !गरीब लोगों का तो पेट भर जाए पचा तो वो खुद लेते हैं !
  आयकर वालों को भी ऐसे योग शिविरों पर छापा डालना चाहिए 
       ऐसे योग शिविरों में सम्मिलित होने वाले लोगों पर डालें ब्लैकमनी  वाले लोगों की लम्बी लिस्ट तैयार हो सकती है यहाँ !जहाँ चैरिटी करने वाले भी हजारों करोड़ के असामी बन जाते हैं वहाँ जाने वाले लोगों को खँगाला जाए !
  योग में दम है तो दवा की जरूरत क्यों और दवा ही बेचैनी थी तो योग का उपयोग क्यों ?
शोध तो प्रक्रिया में ही होता रहता है आयुर्वेद के शोध की प्रक्रिया आयुर्वेद में ही विद्यमान है उसके लिए मशीनों का मोहताज नहीं है आयुर्वेद !
आस्था अंधी होती है वो किसी की किसी पर भी हो सकती हैं किंतु अपनी आस्था का गुलाम बनाकर सारे समाज को किसी पाखंड के चरणों में चढने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता !
बुढ़ापा पार करने के लिए धारण किया गया धर्म कर्म और जवानी लगाकर धर्म शास्त्रों के स्वाध्याय एवं गुरुजनों की चरण सेवा के अनुभव से अर्जित किए गए धर्म कर्म को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता !सच्चाई सामने लाने के लिए विशेषज्ञों की महत्ता समझनी ही होगी !
सरकारी सेवाओं से रिटायर्ड लोग अक्सर धार्मिक हो जाते हैं जो बहुत अच्छी बात है किंतु वो जैसा कहें धर्म के क्षेत्र में वही बात सच मानी जाए ये धारणा ठीक नहीं है ! 
पाखंडों के विरुद्ध जन जागरण के लिए जीवित लोगों को आगे आना होगा !
धर्म के क्षेत्र में मुर्दों की तरह बहना ठीक नहीं जीवित लोगों को अपनी जीवंतता का परिचय देना चाहिए !धारा में तो मुर्दे बहते हैं जीवित लोग किसी भी विषय पार अपने स्वतन्त्र विचार रख सकते हैं वो भले हमारी ही कटु आलोचना क्यों न हो !किसी के पिठलग्गू बन कर कायरों की तरह जीने से अच्छा है किसी की भी समालोचना कीजिए बशर्ते उसमें तर्क हों ! समालोचना को कुछ दास प्रवृत्ति के लोग बुराई मानते हैं वो धर्म के क्षेत्र में केवल प्रचारितों के पिठलग्गू बनकर जीना चाहते हैं कुछ भीरु लोगों की ये मानसिक नपुंसकता नामक बीमारी प्रबुद्ध लोगों की भी जीवंतता को अपमानित करती है !ऐसे लोग अपनी मूर्खता छिपाने के लिए चाहते हैं हर कोई उन्हीं की तरह गूँगा बहरा बनकर बैठा रहे किन्तु जीवित लोगों से मेरा निवेदन है कि धर्म के क्षेत्र में बढे पाखंड का प्रच्छालन किया ही जाना चाहिए !मुर्दों की तरह धारा में बहते जाने वाले निर्जीवों से वो अच्छे होते हैं जो पाखंड का खंडन करें भले उनका कोई अपना ही क्यों न हो !
'विस्कुट' और 'मैगी' जैसी बहुत सारी चीजें न स्वदेशी हैं न इनके नाम स्वदेशी हैं और न आयुर्वेद में इनके बनाने की विधि है और न खाने का समर्थन !फिर भी स्वदेशी !वारे स्वदेश प्रेम !!
विदेशी दवाएँ हैं तो ख़राब और विदेशी मशीनों से विदेशी पद्धति से वही दवाएँ बनें तो अच्छी क्यों ?
आयुर्वेद में मशीनों से दवाओं के निर्माण का वर्णन कहाँ मिलता है या तो उनके पास मशीनें नहीं थीं इसलिए या फिर मशीनों से बनाने में औषधियों की गुणवत्ता घट जाती होगी !
आयुर्वेदोक्त परंपरा से दवाएँ बनें तब तो स्वदेशी और विदेशी मशीनों से विदेशी पद्धति से बनें तो काहे की स्वदेशी !
लोग व्यापार से भी मुश्किल से परिवार चला पाते हैं बाबा लोग चैरिटी करके भी हजारों करोड़ बना लेते हैं ! व्यापारियों को भी चैरिटी ही शुरू कर देनी चाहिए !
" योग भगावे रोग " किंतु योग से ही रोग भगते हैं तो औषधि उद्योग क्यों ?या योग में भी मिलावट होने लगी है !
आयुर्वेद में स्वाध्याय और प्रयोगात्मक अनुभव ही शोध है आयुर्वेद में रिसर्च हो मशीनों से !ये आयुर्वेद की अपनी स्वाभिमानी परंपरा का अपमान नहीं तो क्या है !क्या अभी तक अधूरा था आयुर्वेद !
आयुर्वेद का अंग है ज्योतिष ! आयुर्वेद में ही इसके प्रमाण हैं किंतु जो आयुर्वेद ही न पढ़ा हो और ज्योतिष की निंदाकरता घूमता हो वो करेगा रिसर्च !
आयुर्वेद किसी रिसर्च का मोहताज नहीं है सभी प्रकार के रिसर्चों के बाद ही बना था आयुर्वेद !इसीलिए रिसर्च बहुतों ने किया किंतु नया कुछ खोज नहीं पाए !
व्यापार विश्वास पर चलता है विश्वास साधु संतों पर तो है किंतु व्यापारियों को बनाना पड़ता है वो चाहें तो विश्वास बना लें या फिर वेषभूषा !
साधुवेष पर भरोसा बना है जबकि व्यापारियों को बनाना पड़ता है !इसलिए बाबाओं के व्यापार की बराबरी व्यापारी नहीं कर सकते !
बाबाओं की दी हुई दवा क्या जहर भी खा सकते हैं लोग ! ये हैं संतों पर भरोसा !
इसी विश्वास को कैस करने के लिए तो साधू संतों जैसी वेष भूषा बना लेते हैं व्यापारी लोग !

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