जनता के विकास के लिए सरकार खुद योजनाएँ बनाती है फिर उनकी सफलता के लिए खुद जश्न मना लेती है जनता कोअखवारों टीवी चैनलों से पता लगता है अपने विकास के लिए बनी योजनाओं के बारे में !बारे लोकतंत्र !!योजनाएँ बनती जनता के लिए हैं खा जाते हैं सरकार के अपने लोग !जनता तो उनका उद्घाटन और वार्षिकोत्सव ही टीवी पर देख लिया करती है !
योजनाओं को शुरू करने के उपलक्ष्य में होने वाले सालाना उत्सव ही देख सुन लेती है जनता वैसे भी इससे अधिक उसे और चाहिए भी क्या ?जिस जनता के लिए जो योजनाएँ बनाई जाती हैं वो कितनी सफल हुईं उनसे जनता को कितना लाभ हुआ यह आवाज जनता की ओर से सरकार की प्रशंसा में उठनी चाहिए किंतु सरकार जनता के विकास के लिए जो योजनाएँ बनती है उनकी सफलता के लिए खुद उत्सवमना लेती है योजनाएँ जनता तक पहुंचती नहीं हैं उत्सव देख लेती है टीवी पर बिलकुल इस तरह !
गधे का एक नाम है वैसाखनंदन अर्थात बैसाख का बेटा !बैसाख हिंदी महीना है गर्मी की ऋतु में आता है इस समय सिंचाई के अभाव में फसलें तो होती ही नहीं हैं साथ ही घास फूस भी सूख जाता है ऐसे मैदानों पर चरने के लिए धोबी जब अपने गधे छोड़ता है तो चरने लायक वहाँ कुछ होता नहीं है इसलिए गधे थोड़ी दूर चलकर जब पीछे की ओर देखते हैं तो उन्हें लगता है कि हमने चर चर के इतना खेत खाली कर दिया है इस ख़ुशी में वो उछलते कूदते चींपों चींपों करते उत्सव मनाने लगते हैं ऐसे ही उत्सव प्रिय सरकारें होती हैं जिनका बात बात में उत्सव बात बात में घोषणाएँ काम धेले का नहीं !
उन योजनाओं को बनाने और खा जाने वालों का लोक लुभावना भाषण बस जनता के हिस्से इससे ज्यादा कुछ नहीं आता है !सरकार में सम्मिलित नेताओं के नाते रिस्तेदार घर खानदान वाले कुछ खा जाते हैं तो कुछ सरकारी अधिकारी कर्मचारी !लोकतंत्र तो अखवार के पन्नों में दम तोड़ रहा होता है सांसदों विधायकों के यहाँ से सिफारिशी लेटर मिलते हैं आम जनता को जिन्हें कूड़े दानों में फेक देते हैं अधिकारी कर्मचारी !इससे ज्यादा आम जनता की पहुँच नहीं होती है !जन प्रतिनिधियों से अब इतनी शर्म की आशा कैसे की जा सकती है कि उन्होंने जिनकी जिस विषय में सिफारिस की है उस विभाग में उनके लेटर पर पर कार्यवाही करने की जरूरत आखिर क्यों नहीं समझी गई उन्हें इतनी लज्जा नहीं होती कि अपने क्षेत्र में आने वाले सरकारी विभागों से पूछें कि वे उन्हें समझते आखिर क्या हैं ?
सरकारी घोड़े जनता को चरे जा रहे हैं घुड़सवारी का आनंद ले रहे हैं सरकारों के शीर्षासनों पर बैठे बड़े बड़े लोग !
अफसर रूपी सरकार के घोड़े चरते जा रहा हैं जनता रूपी घास !हर पाँच साल में घोड़ों के मालिक बदल जाते हैं किंतु घोड़े जनता रूपी घास को चरते रहते हैं सरकार रूपी घोड़ों का मालिक इस पर ध्यान ही नहीं देता है कि घोड़े चार किसे उसे तो को घोड़ों की सवारी का आनंद लूटने आया है वही लूटता रहता है बस !
सरकार के शीर्षासन पर बैठा व्यक्ति नशेड़ियों की तरह जनहित की बड़ी बड़ी घोषणाएँ करते बड़े बड़ी बातें बनाते बड़ी बड़ी प्लानिंग समझाते समय बिताया करता है बड़े बड़े सपने दिखाया करता है बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाया करता है किंतु उन्हें पूरी करने की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है वो उन्हें ही चरे जा रहे हैं जिनके लिए वे योजनाएँ बनाई जा रही हैं ये देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है !आजादी के बाद आज तक यही होता चला आ रहा है जनता ऐसे लोकतंत्र को ढोए जा रही है ये उसकी मजबूरी है |
देश की सत्ता के शीर्षासन पर बैठे व्यक्ति में इतना अधिक नशा होता है कि धरती के किसी भी नशे से उसकी तुलना नहीं की जा सकती !वो व्यक्ति आम लोगों की तरह ही बात व्यवहार करता हुआ भी हँसते मुस्कुराते जहरीला हो जाता है कि उसकी आँखें आम आँखों की तरह नहीं रह जातीं उसके कान केवल प्रशंसा सुन कार पेट भर लेना चाहते हैं !इन्हें सत्ता पर पहुँचते ही लगने लगता है कि अब देश में राम राज्य गया है अपनी सुख सुविधाओं से ये खुशहाली का अंदाजा लगा लेते हैं अपनी सिक्योरिटी व्यवस्था से ये देश वासियों की सुरक्षा का अंदाजा लगा लिया करते हैं अपने आने जाने की रोड देख कर विकास का अंदाजा लगा लेते हैं !
वो जनप्रतिनिधि जिन्हें सदनों में हुल्लड़ मचाने के अलावा कुछ आता हीनहीं हैं वो सिफारिस के लिए जनता को लिख लिख कर लेटर देते हैं जिन्हें सरकारी अफसर कर्मचारी दो कौड़ी का नहीं समझते उनकी सिफारिस का मतलब जनता को परेशान करना नहीं तो क्या है | विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि जनता दरवार टाइप का कुछ न कुछ लगाते हैं अपने अपने दरवाजों पर जनता की समस्याएँ सुनने का नाटक भी करते हैं किंतु ऐसे वैसाख नंदनों को समझ में आता है कि अपने अपने क्षेत्र के सरकारी कार्यालयों में जाकर वे जनता के काम काज करवाने की व्यवस्था करवाएँ यदि वे ठीक से काम करने लगेंगे तो जनता को किसी सिफारिस की जरूरत ही नहीं रह जाएगी !
जिस देश की सरकारी मशीनरी में लाखों अधिकारी कर्मचारी सस्पेंड किए जाने की संपूर्ण योग्यता रखते हों उस देश में कुछ अधिकारी कर्मचारियों का ट्रांसफर कर देना कुछ को सस्पेंड कर देना कुछ के खिलाफ जाँच करने लगना कुछ के घर छापे डाल कर कुछ को बेनकाब कर देने से जनता का क्या हो जाएगा !मैं तो कहूँगा जैसे ये सब लूट खा रहे हैं ऐसे ही उन बेचारों को भी लूटने खाने दो उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है !एक आफिस के दस लोग घूस खोर हैं दो को पकड़ लेना आठ को न पकड़पाने में अयोग्यता पकड़ने वालों की दंड भुगतें बेचारे कुछ वो लोग जो अपने भ्रष्टाचार को पाए ये तो बेचारे सीधे साधे अधिकारियों कर्मचारियों के साथ अन्याय है !EDMC में एक अफसर हैं वो साफ कहते हैं कि कहीं भी अवैध मोबाईल टावर लगा लो लाखों करोड़ों कमा सकते हो कुछ हमें दो कुछ जज साहब को दो कुछ तुम लो !कोई तुम्हारे अवैध कार्य के विरुद्ध शिकायत करेगा तो हम तुम्हें नोटिश दे देंगे तुम कोर्ट जाकर स्टे ले लेना इसके बाद जज साहब स्टे को आगे बढ़ाते जाएँगे और हम तुम्हारे विरुद्ध पैरवी नहीं करेंगे तो जज साहब तुम्हारे विरुद्ध फैसला कैसे कर देंगे !कोर्ट और स्टे का नाम ऐसा है कि उसके बाद कोई कार्यवाही करने से डरता है !सभी अवैध काम ऐसे चलाए जा रहे हैं |
जिस देश में भ्रष्टाचार तक बढ़ा हो उस देश के प्रधानमंत्री साहब केवल झाड़ू से देश साफ कर लेना चाहते हों ये तन नहीं मन के मलों की सफाई का इंतजाम कीजिए साहब !
योग से रोग दूर भागेंगे !अरे परिश्रम करके पसीना बहकर कमाने खाने वालों को इस जरूरत क्या है और बैठ कर दूसरों के खून पसीने की कमाई खाने वालों की संख्या कितनी है जिनके लिए इस कसरती योग की जरूरत है !यदि इन्हें योग की ओर प्रेरित करने के लिए योग पर इतना भारी भरकम खर्च किया जा रहा है इससे अच्छा कामचोरों को भी मेहनत करके खाने की प्रेरणा क्यों न दी जाए इससे जनता हों सरकारी आफिसों का भ्रष्टाचार घटे शरीर भी स्वस्थ रहे सरकार की छवि भी सुधरे !अन्यथा कितना भी योग क्यों न पाप का फल भोगना ही पड़ता है गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने साफ साफ कहा है कि "अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं "उसे हाथ हिलाने और मुख मटकाने से मिटाया नहीं जा सकता है |
नेताओं में बाबाओं में अफसरों में हर जगह भ्रष्टाचार है बाबाओं में भी ऐसा ही होता है जितनों के यहाँ छापे पड़ते हैं सेक्स सामग्री से लेकर वो सब कुछ निकलता है उनके पास जो जो गलत्त बताया गया है !किंतु छापे भी तो सरकारी कर्मचारी ही होते होंगे इसलिए आराम आराम से काम करने की आदत तो होगी ही !जैसे मजदूर थोड़ा काम कर लेते हैं फिर थोड़े दिन आराम करते हैं फिर थोड़ा .... !
सुना है कि अफसर लोग न सरकार की सुनते हैं और न जनता की केवल पैसे की सुनते हैं !अन्यथा मंत्री जी की मीटिंग तक में बैठे बैठे सोते देखे जाते हैं बेचारे !
आफीसरों के आफिस में सोने का समय तो निश्चित होता ही है सोने के समय मीटिंग रख देते हैं नौसिखिया मंत्रीलोग !तो नींद तो आएगी ही !वैसे भी आफीसरों को सुलाना न होता तो सरकार इतने सुख सुविधा पूर्ण आफिस बनाती ही क्यों ?काम की जगहों पर आराम के इंतजाम अकलमंद क्यों करेगा !जहाँ आराम वहाँ कैसा काम !इन सब बातों व्यवहारों से तो सरकार की नियत पर भी शक पैदा होने लगा है !
वैसे भी सरकार को क्यों डरें अफसर और क्यों सुनें सरकार की बात !
अधिकाँश नेता शिक्षा में अफसरों के सामने कहीं ठहरते ही नहीं हैं जनता को बेवकूप बनाकर चुनाव जीत लेने का ये मतलब तो नहीं होता है कि अकल भी आ गई होगी !ये उलटी खोपड़ी प्रतिनिधि सिफारिसी चिट्ठियाँ बाँटने के लिए अपने दरवाजों पर भीड़ें इकठ्ठा करते हैं ये उनका अपना निकम्मापन है यदि ऐसा न होता तो अपने दरवाजे खड़ी भीड़ से बात करके ही अंदाजा लगा लेते कि उनके क्षेत्र के किस विभाग में कितनी काम चोरी की जा रही है उस विभाग में जाकर एक दिन साफ साफ बोल देते कि आपके विभाग से सम्बंधित कोई शिकायत यदि मेरे पास आई तो आपकी खैर नहीं होगी किंतु ऐसा बोलने के लिए भी तो अपना आचार व्यवहार चाल चरित्र आदि पवित्र होना चाहिए अन्यथा उन्हीं के यहाँ छापा डाल देंगे अधिकारी !इस लिए वे सिफारिशी चिट्ठी लिख लिख कर बाँटा करते हैं अधिकारी ले ले कर फाड़ फाड़ कर फ़ेंक दिया करते हैं नेताओं की चिट्टियाँ ले कर जनता इस विभाग से उस विभाग तक भाग दौड़ किया करती है सब एक दूसरे का पता बताया करते हैं फोन नंबर दिया करते हैं कई तो अपनी सीट के बगल में बैठे रहते हैं और कह देते हैं साहब आज आए नहीं मीटिंग में गए हैंया जाना है या कम्प्यूटर ख़राब है या जाँच करवा लेंगे जनता ले लेकर दौड़ती रहती है वो अभागी चिट्ठियाँ !
कई बार तो परिस्थिति ऐसी तक बन जाती है कि छोटे छोटे कामों के लिए अधिकारी एक दूसरे का पता बताते बताते मुख्य मंत्री तक भेजने की सलाह देने लगते हैं जिन्हें सुन कर फरयादी को तो शर्म लगने लगती है कि काम के लिए मुख्य मंत्री के यहाँ किंतु उन्हें नहीं लगती जिनका ये काम है ! चुने हुए जनप्रतिनिधियों को काम लेना आवे तब न करे सरकारी मशीनरी जिसे बैठे सैलरी मिलती हो वो क्यों करें काम ! संसद जैसे सदनों में चर्चा की जगह हुल्ल्ड मचाने वालों से क्यों डरेंगे अफसर !कितने योग्य अनुभवी और शिक्षित नेता लोग होते हैं !उन्हें चर्चा सदनों में भेजकर न जाने किस लोकतंत्र को जीवित रख लेना चाहती है सरकार !
अफसर आदि सरकारी मशीनरी क्यों काम करे ?आखिर उन्हें सैलरी तो सरकार को देनी ही पड़ेगी नहीं तो कोर्ट जाकर ले लेंगे !सरकार बहुत ज्यादा ट्रांसफर कर देगी और क्या बिगाड़ लेगी उनका ! वे जहाँ भेजे जाएँगे वहाँ सैलरी आदि और भी सारी सुख सुविधाएँ तो वही मिलेंगी वहाँ कोई एयरकंडीशंड आफिस की जगह बोरे बिछाकर कर तो लेटा नहीं दिए जाएँगे !
भ्रष्टाचार का मुख्य कारण सोर्स और घूस के बल पर नियुक्तियाँ पाए अयोग्य लोग हैं या कुछ और भी !
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