Wednesday, 24 May 2017

अफसरों के यहाँ छापे !वो भी इतने बड़े देश में मात्र 15 जगहों पर !

 जो अफसर इस योग्यता में पास हुए कि उनके यहाँ छापे डाले जा सकते थे बाकी पास नहीं हुए या उनकी परीक्षा ही नहीं ली गई जिनकी परीक्षा ही नहीं वे क्या पास क्या फेल किंतु परीक्षा न लेने वाले ने क्यों नहीं ली उनकी परीक्षा ?ये चिंता का विषय !
      संतोष ये है कि जिनकी परीक्षा ली गई वे पास निकले ! ऐसा ही नेताओं में भी होता है  बाबाओं में भी ऐसा ही होता है जितनों के यहाँ छापे पड़ते हैं सेक्स सामग्री से लेकर बहुत कुछ निकलता है उनके पास !किंतु छापे  भी तो सरकारी कर्मचारी ही होते होंगे इसलिए आराम आराम से काम करने की आदत तो होगी ही !जैसे मजदूर थोड़ा काम कर लेते हैं फिर थोड़े दिन आराम करते हैं फिर थोड़ा .... !
      सुना है कि अफसर लोग न सरकार की सुनते हैं और न जनता की केवल पैसे की सुनते हैं !अन्यथा  मंत्री जी की मीटिंग तक में बैठे बैठे सोते देखे जाते हैं बेचारे !
   आफीसरों के आफिस में सोने का समय तो निश्चित होता ही है सोने के समय मीटिंग रख देते हैं नौसिखिया मंत्रीलोग !तो नींद तो आएगी  ही !वैसे भी आफीसरों को सुलाना न होता तो सरकार इतने  सुख सुविधा पूर्ण आफिस बनाती ही क्यों ?काम की जगहों पर आराम के इंतजाम अकलमंद क्यों करेगा !जहाँ आराम वहाँ कैसा काम !इन  सब बातों व्यवहारों से तो सरकार की नियत पर भी शक पैदा होने लगा है !
    वैसे भी  सरकार को क्यों डरें अफसर और क्यों सुनें सरकार की बात !
      अधिकाँश नेता शिक्षा में अफसरों के सामने कहीं ठहरते ही नहीं हैं जनता को बेवकूप बनाकर चुनाव जीत लेने का ये मतलब तो नहीं होता है कि अकल भी आ गई होगी !ये उलटी खोपड़ी  प्रतिनिधि सिफारिसी चिट्ठियाँ बाँटने के लिए अपने दरवाजों पर भीड़ें इकठ्ठा करते हैं ये उनका अपना निकम्मापन है यदि ऐसा न होता तो अपने दरवाजे खड़ी भीड़ से  बात करके ही अंदाजा लगा लेते कि उनके क्षेत्र के किस विभाग में कितनी काम चोरी की जा रही है उस विभाग में जाकर एक दिन साफ साफ बोल देते कि आपके विभाग से सम्बंधित कोई शिकायत यदि मेरे पास आई तो आपकी खैर नहीं होगी किंतु ऐसा बोलने के लिए भी तो अपना आचार व्यवहार चाल चरित्र आदि पवित्र होना चाहिए अन्यथा उन्हीं के यहाँ छापा डाल देंगे अधिकारी !इस लिए वे सिफारिशी चिट्ठी लिख लिख कर बाँटा करते हैं अधिकारी ले ले कर फाड़ फाड़ कर फ़ेंक दिया करते हैं नेताओं की चिट्टियाँ ले कर जनता इस विभाग से उस विभाग तक भाग दौड़ किया करती है सब एक दूसरे का पता बताया करते हैं फोन नंबर दिया करते हैं कई तो अपनी सीट के  बगल में बैठे रहते हैं और कह देते हैं साहब आज आए नहीं मीटिंग में गए हैंया जाना है या कम्प्यूटर ख़राब है या जाँच करवा लेंगे जनता ले लेकर दौड़ती रहती है वो अभागी चिट्ठियाँ !
     कई बार तो परिस्थिति ऐसी तक बन जाती है कि छोटे छोटे कामों के लिए अधिकारी एक दूसरे का पता बताते बताते मुख्य मंत्री तक भेजने की सलाह देने लगते हैं जिन्हें सुन कर फरयादी को तो शर्म लगने लगती है कि  काम के लिए मुख्य मंत्री के यहाँ किंतु उन्हें नहीं लगती जिनका ये काम है ! चुने हुए जनप्रतिनिधियों को काम लेना आवे तब न करे सरकारी मशीनरी जिसे बैठे सैलरी मिलती हो वो क्यों करें काम ! संसद जैसे सदनों में चर्चा की जगह हुल्ल्ड मचाने वालों से क्यों डरेंगे अफसर !कितने योग्य अनुभवी और शिक्षित नेता लोग होते हैं !उन्हें चर्चा सदनों में भेजकर न जाने किस लोकतंत्र को जीवित रख लेना चाहती है सरकार !
     अफसर आदि सरकारी मशीनरी क्यों काम करे ?आखिर उन्हें सैलरी तो सरकार को देनी ही पड़ेगी नहीं तो कोर्ट जाकर ले लेंगे !सरकार बहुत ज्यादा ट्रांसफर कर देगी और क्या बिगाड़ लेगी उनका ! वे जहाँ भेजे जाएँगे वहाँ सैलरी आदि और भी सारी सुख सुविधाएँ तो वही मिलेंगी वहाँ कोई एयरकंडीशंड आफिस की जगह बोरे  बिछाकर कर तो लेटा  नहीं दिए जाएँगे ! 
    भ्रष्टाचार का मुख्य कारण सोर्स और घूस के बल पर नियुक्तियाँ पाए अयोग्य लोग हैं या कुछ और भी !

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