अपने देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले महापुरुष के विषय में कुछ तो बताया जाता ! उनके उन विशिष्ट गुणों योग्यताओं सामाजिक कार्यों जनहितकारी आंदोलनों विशिष्ट प्रतिभाओं लोकोपकारों एवं प्रसिद्धि कारणों के विषय में अधिक से अधिक जानना चाहता है देश !मीडिया घर वालों के मुख में माइक लगाकर बार बार पूछ रहा था कैसा लग रहा है कैसा लग रहा है !अरे अपने घर का कोई व्यक्ति ऊँचे उठे तो सबको अच्छा ही लगता है फिर जिसने जिस पद प्रतिष्ठा का सपना ही न देखा हो वो तो और अधिक आनंदित होगा ही !
अपनी जिन विशेषताओं के कारण लोग ऐसे सर्वोच्च पदों तक पहुँचने में सफल हो पाते हैं !अपने महापुरुषों से अनुपमेय पावन प्रेरणाएँ पाकर न जाने कितने लोग अपना जीवन बदल लेते हैं !इसलिए ऐसे गुणग्राही लोगों का भी ध्यान रखे मीडिया !
लोकतंत्र के पावन पर्वों पर पूरा देश टकटकी लगाए बैठा होता है अपने महापुरुषों के विषय में बहुत कुछ जानने समझने के लिए !युवा वर्ग उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने के लिए उत्साही रहता है !ऐसे गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है और वैसा बनने के विषय में सोचता है |
विशेष कर सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले ऐसे महापुरुषों के विषय में लोग वो विशेषताएँ खोजना चाहते हैं जो अन्य लोगों में खोजने पर भी आसानी से नहीं मिलती हैं यही विशेषताएँ उन्हें देश के सर्वोच्च पद लायक सिद्ध करती हैं और ऐसी ही उनकी योग्यता त्याग तपस्या एवं समाज के लिए किए गए संघर्षों आदि से प्रेरणा लेकर लोग उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धा पूर्वक नतमस्तक होते हैं !क्योंकि श्रद्धा किसी के प्रति बनाई नहीं जा सकती है अपितु स्वाभाविक होती है | ये तो मन की स्वाभाविक अवस्था है जो महापुरुषों के विशिष्ट आचारों व्यवहारों परोपकारों आदि से प्रभावित होने के कारण समाज के मन में स्वतः बनती है !दूसरों में दुर्लभ ऐसे गुण समाज अपने महापुरुषों में खोजता है जिन्हें अपने जीवन में उतार कर वो भी उतनी योग्यता हासिल कर सके !
इसलिए बहुत आवश्यक है कि महामाहिम की उन विशिष्ट योग्यताओं सामाजिक कार्यों दीन दुखियों गरीबों के लिए किए गए संघर्षों सामाजिक अभियानों आंदोलनों आदि के द्वारा समाज में लाए गए परिवर्तनों के विषय में ऐसा कुछ तो बताया जाता जो समाज को सर्व साधारण में देखने सुनने को नहीं मिलता है !वैसे भी अपने विशिष्ठ महापुरुषों के विषय में जानने का समाज को अधिकार होता है !तभी तो लोग अपने घरों में महापुरुषों के चित्र लगाते हैं उनके चरित्र पढ़ते समझते और उनसे प्रेरणा लेते हैं | इसी भावना से मैं भी मीडिया के व्यवहारों को देखता सुनता रहा !मीडिया इस संपूर्ण प्रकरण में पक्षपाती बना रहा !ऐसे सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले महापुरुष आम राजनेता नहीं होते जिनकी प्रतिष्ठा को बिगड़ने के बाद दोबारा नहीं बनाया जा सकता है ये तो एक बार में ही बनानी होती है वही छवि हमेंशा सहेज कर रखनी होती है |श्रीमान आडवाणी जी हाथ जोड़े खड़े हैं और PM साहब.....!बस इतनी सी विशेषता है इस चित्र में -
see more... http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/national-international-photogallery/images-of-president-ramnath-kovinds-oath-taking-ceremony/narendra-modi/photomazaashow/59757746.cms |
देश के सर्वोच्च पद के लिए विशिष्ठ गुणों का होना आवश्यक होता है |किसी का जन्म गरीब घर में होना किसी फूस की झोपड़ी या सामान्य घर में होना,मातापिता या उनमें से किसी एक की मृत्यु बचपन में ही हो जाना ,दस पाँच किलोमीटर पैदल चलकर या नदी तैर कर स्कूल जाना,विद्याध्ययन करना डिग्रियाँ हासिल करना जैसी उपलब्धियाँ यदि खोजी जाएँ तो समाज में बहुत लोग ऐसे मिल जाएँगे जिनका जीवन इससे बीसों गुणा अधिक संघर्षपूर्ण निकलेगा | खोजे जाएँ तो उनकी भी संख्या लाखों में हो सकती है जिन्होंने अपने को अत्यंत गरीबी में सभी साधनों से हीन होने के बाद भी बहुत विशिष्ट स्थित हासिल किया है |ऐसे महापुरुष अभी भी राष्ट्र निर्मात्री प्रतिभाओं का निर्माण करने में बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं|जिन्हें पद प्रतिष्ठा का कोई लालच ही नहीं है उनका तो काम बोलता है और पद न पाकर भी समाज उन्हें अपना आदर्श मानता है |
जिनका काम नहीं बोलता या उन विशिष्ट पदों के योग्य नहीं होते वो बड़े पद पाकर भी बदनाम हो जाते हैं लोग उन्हें चाटुकार चतुर एवं दंद फंद आदि से बड़े पद हासिल करने वाला मानने लगते हैं |किसी की सोच पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है|जिससे उच्च एवं सम्मानित पदों पर पहुँच कर भी उन्हें समाज की वो आस्था सुलभ नहीं हो पाती है | उनके ऊपर समाज की अँगुलियाँ उठने लगती हैं |
किसी बड़े पद पर पहुँचकर अपने को विवादित न होने देने के भी कई कारण होते हैं पहले तो वैसी परिस्थिति ही पैदा न हुई हो ,दूसरा कारण योग्यता का अभाव या नौसिखियापन हो सकता है तीसरा बड़ा कारण कुछ न करना हो सकता है !
कई राजनैतिक पार्टियों में ऐसे नेता मिल जाएँगे जो अपने मातृ संगठनों या पार्टी मालिकों को खुश रखने के लिए केवल उनके चरणों को चूमते रहते हैं बाकी कुछ करते ही नहीं हैं जब कुछ करेंगे ही नहीं तो छवि स्वच्छ पवित्र तो बनी ही रहेगी इससे वे बड़े बड़े पदों पर आजीवन आसीन रहते हैं |
ऐसे लोगों के जीवन को व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो कोई विशिष्ट व्यवहार नहीं दिखता जिसकी तुलना औरों से करके उन्हें विशेष उन्नत आदर्शों का धनी सिद्ध किया जा सके !बड़े पदों पर पहुँचने वाले ऐसे लोगों के क्षेत्र जिले आदि में उनके बारे में लोगों से पूछ दिया जाए तो वे उनके उन्नत सामाजिक कार्यों संघर्षों लोकोपकारी अभियानों के विषय में चाहकर भी कुछ बता ही न पाते हों !
ऐसी परिस्थिति में मीडिया मजबूर हो जाता हो ये दिखाने के लिए कि उन्हें खाने में क्या पसंद है पहनने में क्या पसंद है किस रिस्तेदार के साथ उनका वर्ताव कैसा रहता है फोन आता है या नहीं उनके साथ कौन खेला है कौन पढ़ा है कौन पड़ोस में रहता है कौन दूर आदि | बचपन में उनके साथ किसने क्या क्या किया है वो उन उन स्मृतियों को बताने लगते हैं जो बात व्यवहार दुर्लभ नहीं होते प्रायः हर किसी के जीवन में देखे जाते हैं किंतु ऐसी बातें तो विवाह करने के लिए जब दूल्हा देखने लोग आते हैं उन्हीं के मुख से शोभा देती हैं जो पड़े पदों पर पहुँचने वाले लोगों के विषय में दिखाने लगता है चाटुकार मीडिया !
मीडिया का ऐसा पूर्वाग्रह महापुरुषों के विषय में ठीक नहीं है जिससे चाटुकारिता झलकती हो !उसे विशिष्ट बातें खोज कर लानी चाहिए जिससे विशेष झलकती हो !वही स्थिति गुग्गल की है केवल व्यक्तिगत जीवन की बातें क्या उसे ये पता नहीं है कि सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले लोगों का व्यक्तिकम सामाजिक जीवन अधिक महत्त्व रखता है इसलिए महापुरुषों के व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ सामाजिक जीवन की विशेषताओं को अवश्य परोसा जाना चाहिए !
मीडिया में चल रहे एकाध चित्र और टिप्पणियाँ मैंने ऐसी देखीं जिससे मुझे ये लेख लिखने के लिए बाध्य होना पड़ा !जिन्हें देखकर मैं रात भर सोचता रहा कि जिस पार्टी का मातृसंगठन वैचारिक दृष्टि से इतना संपन्न हो जिस पार्टी का वजूद ही प्रतिभाओं के प्रोत्साहन के लिए जाना जाता हो खुद चाटुकारितावादी देश की सबसे पुरानी पार्टी को पीछे करके अपने को खड़ा किया हो जिसमें एक एक पदाधिकारी का चयन इतनी बारीकी से किया जाता हो कि हमारे जैसे दो चार विषयों से MA ,Ph.D टाइप की दो चार डिग्रियाँ ले लेने वाले या सौ पचास किताबें लिख चुकने वालों को मंडल अध्यक्ष पद तक के लायक भी न समझा जाता है see more....http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html
इतनी कसौटियों पर कस कर जिस पार्टी में पदाधिकारियों का चयन किया जाता हो !उस पार्टी ने अगर देश के सर्वोच्च पद के लिए किसी प्रत्याशी का चयन किया होगा तो वो विशिष्ट होगा ही इसमें कोई किन्तु परंतु की बात ही नहीं है !मीडिया को भी इस बात को ऐसा ही समझना चाहिए और साथ ही पत्रकारिता के धंधे में चाटुकारिता छोड़कर गुण ग्राही बनना चाहिए !
इतनी कसौटियों पर कस कर जिस पार्टी में पदाधिकारियों का चयन किया जाता हो !उस पार्टी ने अगर देश के सर्वोच्च पद के लिए किसी प्रत्याशी का चयन किया होगा तो वो विशिष्ट होगा ही इसमें कोई किन्तु परंतु की बात ही नहीं है !मीडिया को भी इस बात को ऐसा ही समझना चाहिए और साथ ही पत्रकारिता के धंधे में चाटुकारिता छोड़कर गुण ग्राही बनना चाहिए !
बहुत बड़े लोगों के बीच प्रसंगात मैंने चतुराई पूर्वक जो थोड़ी से चर्चा अपनी भी कर दी है उससे किसी को ठेस लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ !इस देश में ब्राह्मण होने के नाते राजनैतिक दलों और राजनेताओं की नज़रों से हम सवर्ण लोग इतने अधिक गिरे चुके हैं कि हमारी अत्यंत परिश्रम पूर्वक हासिल की गई योग्यताओं संघर्षों अनुपमेय प्रतिभाओं को भी नजअंदाज कर दिया जाता है कई बार तो ऐसा लगने लगता है कि नेता लोग सवर्णों को भारत का नागरिक मानते भी हैं या नहीं !जहाँ सर्वोच्च पदों के प्रत्याशियों के चयन के समय उनकी योग्यता प्रतिभा लोकोपकारी कार्यों आंदोलनों संघर्षों को बताने की जगह उनकी जाति बतानी जरूरी समझी जाने लगे तो ऐसा समाज कभी जाति मुक्त हो पाएगा इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए !
मेरा विचार है कि सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले लोग देश के संपूर्ण निवासियों की आस्था के केंद्र होते हैं उनकी पहचान जाति क्षेत्र संप्रदाय से बहुत ऊपर स्तर की बनाई जानी चाहिए ताकि सारा देश उन्हें अपना आदर्श पुरुष मान सके !
1 comment:
http://www.indiaa2znews.in/3273-2-brief-life-introduction-of-mr-ramnath-kovind-national-7-2017/
Post a Comment