Friday, 21 July 2017

दलितों और पिछड़ों को जातियों के नाम पर सब कुछ तो मिल गया !अब तो आरक्षण लौटा दो !

आरक्षण अभिशाप है वो किसी भी प्रकार का क्यों न हो !सफल लोकतंत्र की पहचान सभी के लिए संभावनाएँ समान !किसी जाति ने किसी जाति का कभी शोषण नहीं किया यदि ऐसा होता भी तो कोई सहता भी क्यों ?दलितों पिछड़ों की तो संख्या भी सवर्णों से बहुत अधिक थी !इसलिए आत्म सम्मान बनाए और बचाए  रखने के लिए अपनी योग्यता कर्मठता और परिश्रम से अधिक सुख सुविधाएँ पद प्रतिष्ठा आदि पाने का लोभ रखा जाए न कि जातियों से !
    दलितों पिछड़ों को अब तो जातियों की कमाई खानी बंद कर देनी चाहिए अथवा सरकार को समाप्त कर देना चाहिए सभी प्रकार के जातिगत आरक्षण समेत जातियों के आधार पर मिलने वाली अन्य सभी सुख सुविधाएँ !
     लोकतंत्र के लिए कितने लज्जा की बात है जब देश के बड़े बड़े पदों पर विराजमान किए जाने वाले प्रत्याशियों का चयन जातियों के आधार पर किया जाने लगा हो फिर भी आरक्षण और जातिवाद के लिए सवर्णों को दोषी ठहराया जाना कहाँ तक न्यायोचित है ! महान जाति वैज्ञानिक उन महर्षि मनु की निंदा की जाती है जिनकी लेखनी के आधार पर ही बनी जातियों की आरक्षणी कमाई खाने पर तुले हुए हैं बड़े बड़े लोग !
    महर्षि मनु और उनकी बनाई हुई जातियों से यदि इतनी ही बड़ी घृणा है तो जातियों के आधार पर पद प्रतिष्ठा पाने वाले ,शिक्षा नौकरी आदि समस्त प्रकार की सुख सुविधाएँ पाने वाले लोगों को चाहिए को वो अपने लालच परलगाम लगावें और लौटा दें सारे पद प्रतिष्ठा समेत वो सारी सुख सुविधाएँ जो उन्हें जातियों के आधार पार प्राप्त होती हों !
     दुर्भाग्य की बात है कि जातिवाद का विरोध करने वाली देश की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ जातिवाद की मानसिकता से इतनी बुरी तरह ग्रस्त हैं कि देश केउच्च पदों के लिए भी प्रत्याशियों का चयन करते समय जातियों को ही आधार बना लेती हैं ?
    देश में यदि लोकतंत्र  है तो प्रत्येक व्यक्ति को समान क्यों न माना जाए !योग्यता और अनुभव को आधार क्यों न बनाया जाए !जातियाँ क्यों ?
      देश के उच्च पदों पर बैठे लोगों के प्रति सारे देश के मन में आदर्श एवं सम्मान की भावना होनी चाहिए किंतु जब शुरुआत ही जातिवादी भावना से की जाएगी तो सम्मान भी जातियों के हिसाब से ही मिलेगा !जबकि देश के सम्मान स्वाभिमान के प्रतीक बड़े पद पर बैठा व्यक्ति जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर देशवासियों के लिए सहज आस्था पुरुष के रूप में स्वीकार कर लिया गया हो !
      जब शुरुआत ही  दलित शब्द से की गई हो न केवल इतना अपितु सारे देश में ये सन्देश पहुँचाने का प्रयास भी किया गया कि दलित होने के नाते .... !अन्यथा नाम घोषित करते समय जाति की चर्चा करनी क्यों जरूरी थी !कलाम साहब के समय तो ऐसा नहीं किया गया था उनके तो गुणों कार्यों को ही आगे रखकर उनका चयन किया गया था !श्री मुखर्जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था !होना भी यही चाहिए !क्योंकि राष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर पहुँचने वाले  किसी भी व्यक्ति ने अपनी बीते हुए सार्वजनिक जीवन में कुछ तो ऐसा किया ही होगा जिसके आधार पर उसे इस योग्य समझा गया उन गुणों आदर्शों योग्यता आदि को आधार क्यों न बनाया जाए जिससे ऐसे सर्वसम्माननीय पदों पर बैठे लोगों के प्रति सभी जातियों सम्प्रदायों के  मन में उनके प्रति सहज आस्था बन सके !
    देश की  दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से जातिवाद को ही आगे  किया जाने लगा कहा गया कि  दलित प्रत्याशियों का चयन किया गया है इस प्रकार के प्रचार से परेशान होकर सफाई में प्रत्याशियों को स्वयं बाहर आकर  जाति भावना का खंडन करना पड़ा !किंतु अपनी अपनी पार्टियों से ये पूछने का साहस किसी प्रत्याशी ने शायद ही किया हो कि दलित होने के अलावा मेरे अंदर ऐसे और कौन कौन से सद्गुण थे जो दूसरों में नहीं थे इसलिए गुण गौरव के आधार पर यदि मुझे प्रत्याशी बनाया गया है तब तो ठीक है यदि जाति के कारण मुझे इस योग्य समझा गया तो मुझे स्वीकार्य नहीं है क्योंकि हम जातिवादी नहीं हैं ऐसा कहते हुए जातिवाद के विरोध में बड़ा बलिदान किया जाना चाहिए था ! यदि योग्यता के आधार पर चयन सिद्ध हो जाता तब तो आदर्श चयन होने के कारण न केवल उस तरह का सम्मान होता अपितु दलित राग समाप्त किया जाना बहुत आवश्यक था जो नहीं हो सका !
      देश की एक नेत्री का ये कहना कि राष्ट्रपति चुनाव में विजय किसी की हो किंतु राष्ट्रपति दलित ही बनेगा !ऐसी बातों से कहीं ये लगता है क्या कि जातिवाद समाप्त करने के विषय में नेता सोच भी रहे हों !ऐसा तो नहीं चलेगा कि जहाँ कुछ मिलने लगे वहाँ दलित बनकर ले लिया जाए और वैसे जातिवाद की निंदा की जाए या जातिवाद सवर्णों और महर्षि मनु के मत्थे मढ़ दिया जाए !
    देश के राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमन्त्री जैसे बड़े पद हैं वहाँ जिस भी जाति वर्ग के लोग पहुँच जाते हैं उन्हें स्वयं चाहिए कि वे अपने जाति वर्ग के लोगों की आरक्षण समेत सभी जातिजनित सुख सुविधाएँ प्रभाव से बंद करने की घोषणा करें !
     दलितों और पिछड़ों के शोषण की झूठी कथा कहानियाँ गढ़ गढ़ कर देश के सर्वोच्च सारे पद सवर्णों से छीन लिए गए इसके बाद भी और कितनी  सवर्णों से धैर्य की अपेक्षा की जा सकती है ! भारत वर्ष को बिखरने से बचाए रखने के लिए इस देश के लोकतंत्र को जीवित बनाए रखने के लिए देश के सवर्णों से और कितनी कुर्वानी जाएगी !कितनी कठोर परीक्षाओं से गुजरना होगा !धैर्य की भी कोई तो सीमा होती ही होगी ! देश का शीर्ष नेतृत्व यदि इसी प्रकार का पक्षपाती बना रहा तो लोकतंत्र की पवित्र परिपाटी को लंबे समय तक  बचाकर रख पाना कठिन होगा !
  दलित होने के कारण लोग उन उन सुख सुविधाओं पद प्रतिष्ठाओं को हासिल कर लेते हैं जिनकी दशांश योग्यता भी नहीं होती है उनके पास !योग्य लोग जातियों के नाम पर मिलने वाले लाभ का लोभ छोड़कर नमक रोटी खाना पसंद करते हैं !ये स्वाभिमान का विषय है गरीबत का नहीं  है सम्मान माँगने से नहीं मिलता है कृपाकरके यदि कोई देने भी लगे तो ऐसा सम्मान अपमान से अधिक दुखद होता है !
      बनारस में पढ़ता था अस्सी चौक पर जब जब सब्जी खरीदता था तो वो धनियाँ की पत्ती बिना पैसा लिए थोड़ी सी डाल दिया करता था !वहाँ की भाषा में संभवतः इसे घायल देना बोलते हैं बड़े बड़े लोग बड़े ठाट से सब्जी वालों से घाल माँग लेते हैं इसी प्रकार मैं भी लेकर चला आया करता था !जब धनियाँ महॅंगी होने लगती थी तब वो फ्री वाली घायल बंद कर दिया करते थे !एक बार महँगाई का ही समय था एक दिन मैंने सब्जी खरीदी सब्जी खरीदी मैं चलने लगा तब उसने थोड़ा धनियाँ पत्ती भी डाल दिया मैं ख़ुशी ख़ुशी लेकर चलने लगा तब तक उसने कह दिया कि आप ब्राह्मण हो इसलिए दे दिया वैसे बहुत महँगी हो गई है इसलिए देते नहीं हैं मैं चौंक गया !बचपन से उस समय तक का जीवन अचानक मन में कौंध गया कि मैं 5-6 वर्ष का था तब पिता जीका निधन हो गया था बड़ी गरीबत में माता जीने हम दोनों भाइयों का पालन पोषण किया !किंतु हमें कभी किसी ने कुछ ब्राह्मण होने के नाते देने की कोशिश की तो कभी नहीं लिया !वो ब्राह्मणत्व आज चार पत्ती धनियाँ की लेकर नीलाम हो रहा था मैं काँप गया और धनियाँ वापस कर दीं !मुझे याद आ गया मेरे पिता जी ने एक बार उनके घर अपनी बानी हुई सब्जी भेजवा दी थी जिनके खेत से धनियाँ की पत्ती चुपके से लाकर हमारी दीदी ने सब्जी में डाल दी थीं !उस नाई परिवार के सदस्य उस बात को बड़े प्रेम से हमें बार बार बताया करते थे और प्रसन्न हो लिया करते थे !
     मैंने गरीबत में भी गौरव बनाए रखा औरअपना ब्राह्मणत्व कभी नीलाम नहीं होने दिया !अच्छे पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने की या अच्छा खाने पहनने की इच्छा किसकी नहीं होती है अर्थात सबकी होती है किंतु जो अपनी इच्छा पर संयम करके अपना सम्मान स्वाभिमान बचा लेता है उसके आत्म गौरव की बराबरी नहीं की जा सकती !
     1989-90 की बात है बनारस में दलितों की एक रैली थी मंच पर भाषण हो रहे थे एक नेता सवर्णों  विशेष कर ब्राह्मणों को बार बार ललकार रहे थे कि सवर्णों ने हमारा शोषण किया है हम बदला लेकर रहेंगे ! उस समय गरीबी के कारण मेरा किसी किसी दिन ही भोजन हो पता था स्वयंपाकी जीवन था !उन नेता जी का भाषण बहुत चुभा हॉस्टल गया रात भर सो नहीं पाया बारबार कसकती रही वो बात  !एक तरफ तो बचपन से तब तक का अपना गरीबीयुक्त संघर्ष पूर्ण जीवन दूसरी ओर शोषण के आरोप ! नहीं सह पाया इसी बीच आरक्षण आंदोलन में बिहार के कुछ सवर्ण लड़के पटना में पुलिस की गोलियों से मारे गए उसमें से एक शैलेन्द्र सिंह जी का बनारस हरिश्चंद घाट  पर अंतिम संस्कार किया गया !वो बड़े दुखद क्षण थे उसी समय मैंने दुखी होकर यह निश्चय किया था कि जब तक ये सिद्ध नहीं कर दूँगा कि ब्राह्मणों और सवर्णों ने दलितों का कभी शोषण नहीं किया तब तक सरकारी नौकरी के फार्म पर कभी साइन नहीं करेंगे इतनी शिक्षा लेने के बाद भी कभी कहीं किसी से नौकरी न माँगने के संकल्प पर अडिग हूँ !
     दलित पिछड़े लोग जातियों के नाम पर बहुत कुछ माँगने को तो तैयार हैं किंतु सरकार खुले मंच पर खुली बहस कराने को तैयार नहीं है जिससे पता तो लगे कब शोषण हुआ किसने शोषण किया उनके पास ऐसा था क्या जिसे सवर्णों ने छीन लिया बतावें तो सही ! दलित हमेंशा  छोटे छोटे लालच में फँस कर अपना समय बर्बाद करते रहे अन्यथा प्रतिभाएँ उनके पास भी कम नहीं थीं उन्होंने जबरदस्ती सिद्ध किया कि वे कुछ करने लायक नहीं हैं !
      मैंने किसी से न कुछ माँगा और न ही कुछ लिया बनारस में भी15 वर्ष रहा हमारे बहुत मित्र आज भी साथ जुड़े हैं कुछ लोग फेस बुक पर भी होंगे सब जानते हैं कि ब्राह्मण होने के नाते हमें कभी कुछ देना संभव नहीं था योग्यता के नाम पर कोई कुछ दे वो लेना न लेना अलग बात थी !संकोच होता था कि जो योग्यता हमारे अंदर नहीं है उस पद प्रतिष्ठा को पाने की इच्छा रखना या उस सुख सुविधा को भोगने की पापपूर्ण भावना भगवान् किसी को न दे !जातिगत आरक्षण के लोभियों के लिए सब  कुछ उचित है | किसी और की कमाई किसी दूसरे का अधिकार कैसे हो सकती है जातिगत आरक्षण यही तो है !
     दलितों का प्रतिनिधित्व  आज देश के सर्वोच्च सम्मानित पदों पर है  और देश का  दूसरा बड़ा पद भी दलितों या पिछड़ों को ही मिलना है और अन्य पद भी दलितों या पिछड़ों को ही मिलने हैं जब यह अघोषित रूप से तय किया जा चुका है तो सरकार ये भी बता ही दे कि वो सवर्णों को इस देश का नागरिक मानती भी है या नहीं !क्योंकि सवर्णों के नाम पर न कोई योजना है न आरक्षण न सुख सुविधाएँ !दलित लोग अब सवर्णों से ऊँचे पदों पर पहुँच चुके हैं इसके बाद भी जातिगत आरक्षण और सभी प्रकार की जातिगत सुख सुविधाएँ माँगना या भोगना शर्म की बात है !

No comments: