Monday, 3 July 2017

महिलाएँ क्या पहनें कैसे रहें ये जिम्मेदारी उन्हीं पर क्यों न छोड़ी जाए !

लड़कियाँ क्या पहनें क्या न पहनें ये उन्हें कोई नहीं सिखा सकता !-अध्यक्ष महिला आयोग 
    किंतु ऐसे तो 'पुरुषआयोग' वाले कह सकते हैं लड़के क्या करें क्या न करें उन्हें ये कोई नहीं सिखा सकता !पुलिस के लोग कह  दें कि  हम कैसे कर्तव्य का पालन  करें हमें कोई न समझावे ! ऐसे सुरक्षा हो जाएगी क्या ?
  मेरा  विनम्र निवेदन -
     महिला हों या पुरुष फैशन की धारा में कितना भी बहन किंतु उन्हें ऐसा फैशन क्यों पसंद है इसके तर्क उनके अपने पास अवश्य होने चाहिए !कोई ब्यूटीपार्लर या फ़िल्म निर्माता आदि के सहारे शरीरों को छोड़ना ठीक नहीं है क्योंकि उन्हें तो शरीराकृतियाँ उत्तेजक बनाकर बेचैनी होती हैं जबकि आम समाज के आदर्श भाई बहनों का ये उद्देश्य नहीं होता !किंतु वो वेशभूषा हमें उसी तरह का सिद्ध कर रही है इसलिए वैसे शारीरिक विज्ञापनों पर प्रभावित उन्हीं शरीरों के भूखे भेड़िए आदर्श समाज पर हाथ डालने लगे हैं इसलिए हमें अपनी पहचान शरीर विक्रेताओं से तो अलग रखनी ही चाहिए !अन्यथा उनके कस्टमर हम पर टूटेंगे उससे हमारा बचाव कोई सरकार नहीं कर सकती क्योंकि सरकार सबको सिक्योरिटी नहीं दे सकती और दे भी तो उन्हीं का क्या भरोसा !वो न बूढ़े होते हैं न बीमार न नपुंसक !
   "ज्ञात स्वादुः विवृत जघना का बिहातुं समर्थः !" 
  इसीलिए तो पुरखे कह गए हैं जिसे चाहने वाले जितने अधिक लोग हों उसे उतना अधिक छिपा कर रखना होता है सब्जी की मंडी में हीरे बेचने वाले टोकरी लिए नहीं फिरते !कोई यदि ऐसा करने लगे तो कितनी देर टिक पाएगा मंडी में !क्या उसे सुरक्षा दे पाएगी पुलिस ! जबकि हीरे का उतना महत्व नहीं हिरा छू लेने से उसकी कीमत नहीं घटती जबकि महिलाओं के शरीरों की कोई कीमत  ही नहीं हो सकती !महिला शरीरों के सामने तुच्छ हीरे की क्या औकात !किंतु हीरे की टोकरी खुली मंडी में लेकर जाए तो लूट लिया जाए !महिलाओं की सुरक्षा का बचन दे रही है सरकार !सरकार को चुनौती है सब्जी मंडियों में पहले हीरे बेचकर दिखाए !जब खुले बाजार में हीरे के ढेर  नहीं लगाए जा सकते फिर आधे चौथाई कपड़ों वाले महिलाशरीरों की सुरक्षा करना तो बहुत बड़ी बात है करेगी कैसे बता ही दे !कानून में सबसे  बड़ी सजा है फाँसी जिसके बल पर हर किसी को धमका लिया जाता है किंतु महिला शरीरों पर आशक्त पुरुषों के मन में मौत का कोई महत्त्व ही नहीं होता कितने आशक्त लोग आत्महत्या करदे देखे जाते हैं ! अपना बहुमूल्य जीवन जिन शरीरों पर सेकेंडों में न्योछावर कर देते हैं लोग उन पर कैसे लगाम लगा सकता है कानून !फिर भी कौन क्या पहने कैसे रहे किसी के लिए मेरी कोई सलाह नहीं है मैंने तो केवल समाज के जीवित सदस्यों के लिए एक विचार मात्र रखा है मुझे उनसे अभी भी उमींद है कि फैशन की उफनाती नदी में बहते जा रहे  शवों  के साथ सम्मिलित हमारे वो सजीव भाई बहन अपने जीवित होने का एहसास  इस समाज को करते रहेंगे !जिस दिन वो हिम्मत हार जाएँगे उसदिन मैं भी निर्जीव हो  जाऊँगा ! वो मेरे प्राण हैं !
      फेसबुक   को मैं फेस बुक करने का साधन नहीं ये तो विचार प्रवाह का साधन मात्र है | 
   

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