Saturday, 22 July 2017

संबंधों की संस्कृति को जिंदा रखना जरूरी ! संबंधों की त्रासदी से जूझते समाज का बेचारगी भरा जीवन जवानी और बुढ़ापा कैसे बिता रहे हैं लोग !

प्रेमी और प्रेमिका के संबंध  तो प्रेम संबंध और बाक़ी सब संबंध बिना प्रेम के चल जाएँगे क्या ?
     जहाँ मूत्रता संभव वहाँ तो मित्रता और बाक़ी सब ?चले तो चले नहीं अपनी बला से !आखिर बाकी संबंधों की जरूरत समाप्त क्यों होती जा रही है ?जहाँ मूत्रता  नहीं वहाँ की मित्रता कभी भी तोड़ने को तैयार बैठे रहते हैं हम लोग केवल थोड़ा बहाना भर मिले !
   मूत्रता के लिए तो पार्कों पार्किंगों कूड़ा दानों झाड़ियों के पास कहीं भी प्रेमी और प्रेमिकाओं पर स्नेह उड़ेलने को तैयार फिरते हम लोग !वहाँ भी जहाँ दूसरा सेक्सपॉट पहले से अच्छा मिला तो पहले वाले को छोड़ने के लिए कितनी नीचता तक उतर जाते हैं प्रेम से लबालब दिखने वाले कामी लोग !हत्या आत्महत्या जैसे क्या क्या गुल नहीं खिलाए जा रहे हैं | ये प्रेम संबंध कैसे कहे जाएँ इससे अधिक निर्वाह तो पशुओं में भी होते देखा जाता है |
     इसी उपेक्षा के शिकार होते जा रहे हैं परिवार माता पिता भाई बहन नाते रिस्तेदार आदि क्यों ?क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए पुरुषों के ससुराल की और समिटते जा रहे हैं संबंध किंतु ससुराल वालों की भी तो अपनी ससुराल होती है वे अपनी  ससुराल वालों की ओर भाग रहे हैं इस अंतहीन भाग दौड़ में छूटते जा रहे हैं सबके अपने !फ़ोकट के गिफ्ट समेटे घूम रहे होते हैं आत्म सम्मान विहीन अपनों को छोड़ आते बेचारे 'फूफा' लोग !
    ससुराल तो आर्थिक कम्पटीशन का अखाड़ा है जहाँ जितना खर्च करोगे उतना महत्त्व इसके अलावा अपनापन दिखाने के लिए किसी और प्रकार का समर्पण काम नहीं आता !उस मूल्यांकन की मंडी तुरंत लेबल लग जाता है कि आप हैं क्या ?इसीलिए तो कहा जाता है कि आदमी की औकात उसकी ससुराल से जाती है इसीलिए तो अपनी औकात बनाए और बचाए रखने की बलिवेदी पर चढ़ाए जा रहे हैं सारे स्वजन संबंध !खाली हाथ माँ के पास तो जा सकते हैं किन्तु ससुराल नहीं !फिर भी माता पिता की उपेक्षा !वृद्धाश्रमों की जरूरत  क्यों ?बासना के लिए इतना बड़ा बलिदान !!ये भूल बुढ़ापे में फाँस की तरह कसकेगी जब बासना भी साथ छोड़ देगी और संबंध हम स्वयं छोड़ चुके हैं उस समय कितना कठिन होता है यह सोच कर सहना कि अब केवल मरने की प्रतीक्षा में जीना पड़ता है किसी को जरूरत नहीं होती है हमारी !पहले जब हम संबंधों के लिए जीते थे तो संबंध भी हमारे लिए जीते थे !बुढ़ापे में पौत्र पुत्रियाँ कितना इतना आनंद दिया करते थे कि पता ही नहीं लगने पाता था कि कब बुढ़ापा बीत गया !बहुएं भी सास  ससुर की अनुपस्थिति के विषय में सोचकर सिहर उठा करती थीं उनके न रहने पर महीनों हिलकियाँ रोके नहीं रुकती थीं !वो सास बहुओं का स्नेह बनावटी नहीं था अब तो सास बहू और साजिश को पसंद कर रहे हैं लोग अन्यथा चल क्यों रहे हैं ऐसे सीरियल !हमारी मानसिकता इतनी बिगड़ चुकी है और हम इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि हम विकास कर रहे हैं !गाड़ियाँ दरवाजे जाने का मन होता है किंतु जाएँ सरे सम्बन्ध समाप्त हो चुके हैं केक काटने के लिए जिस दिन जो बुला लेता है वो दिन व्यस्त बीत जाता है केकों और पार्टियों के सहारे कब तक ढो ली जाएगी जिंदगी ऐसे  कितने दिन काट लेंगे हम लोग !मोबाईल जेब में पड़े हैं किंतु बात किससे करें! समाज इस त्रासदी से जूझ रहा है जिसकी ओर आज ध्यान नहीं दिया जा रहा है किंतु इस मानसिक आराजकता को ऐसे कब तक खींच लिया जाएगा !
     जिन्होंने जन्म दिया है पालन पोषण किया है मल मूत्र साफ किया है लोरियाँ सुनाई हैं सुखद बचपन बिताया है आपके साथ ! उन्हें व्यस्तता समझाना और उनके पीछे पीछे दुम हिलाते फिरना जो  नहीं डालते !
     इसलिए जहाँ सेक्स वहाँ संबंध बाकी सब बेकार वाली पाश्चात्य विचार धारा से बाहर निकलना होगा और अपने प्रति अपनापन उड़ेलने को तैयार अपनों की भी भावनाओं का समादर करना होगा !
 

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