Tuesday, 18 July 2017

'दलित' होने के कारण राष्ट्रपति !तो फिर जो दलित नहीं हैं उनका राष्ट्रपति कौन ?

      " दलित राष्ट्रपति बनने से हूं खुश: मायावती" x                                                                 


 किंतु मायावती जी ! यदि आपकी ख़ुशी का कारण राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का दलित होना है तो आप अकेले खुश हो लीजिए आपका साथ देने वाले जातिवादी मुट्ठीभर आपके चमचे खुश हो लें !ये आपकी गिरी हुई तुच्छ सोच का परिचय मात्र है ये आपका जातिवाद है जिसके लिए सवर्णों को दोषी ठहराती रही हैं आप ! आप जैसे झूठे लोगों ने ग़रीबों को हमेंशा से अपमानित करवाया है गरीब हमेंशा से स्वाभिमानी रहा है जिसे भिखारी सिद्ध करने के लिए आपने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है !ग़रीबों के हाथों में आरक्षण का कटोरा पकड़ाकर अरबों की संपत्ति इकठ्ठा करने वाले आप जैसे दलित नेताओं ने हड़पे हैं दलितों के हक़ और कंगाल कर दिया है दलितों को !जब आप राजनीति में आई थीं कितना धन था आपके पास और आज अथाह सम्पत्तियों की मालकिन हैं आप !कहाँ कमाने गईं कब कमाया  किस काम से कमाया और वो काम किया कब !हमें नहीं सही आप दलितों को ही हिसाब दीजिए कि कहाँ से आया ये धन !अन्यथा स्वीकार कीजिए कि दलितों के लिए बनाई गई योजनाओं के धन से आपने अपना घर भरा है !
       रामनाथ कोविद जी हों या मीराकुमार जी जैसे सक्षम और प्रतिभा के धनी लोगों पर दलित शब्द कभी नहीं चिपकाया जाना चाहिए !क्योंकि ये जाति की कमाई खाने वाले लोग नहीं हैं जाति  के नाम पर इन्होंने न कुछ माँगा है और न ही उन्हें मिला है !ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँचने का अवसर जो इन्हें  मिला है ये उनकी अपनी प्रतिभा है जिससे दोनों लोग उच्च पदों तक पहुँचे !लोकसभा में अध्यक्षपद से विदाई का भाषण मीरा जी का  भूल पाना मेरे लिए संभव नहीं होगा क्या गौरव पूर्ण भाषण था क्या शब्द विन्यास था !अद्भुत !!ऐसे लोगों ने अपने आदर्शों वक्तव्यों एवं प्रतिभाओं से जिस जातीय संकीर्णता को हमेंशा दुदकारा है इन्हें उसी में कैद करने की कोशिश करके उनका अपमान कर रही हैं मायावती जी !ऐसे संकीर्ण नेताओं को रोका जाना चाहिए | 
      वैसे भी  मेरे  विचार से तो 'दलित' शब्द पुनः परिभाषित किया जाए  क्योंकि इस शब्द का अर्थ गरीबों की परिस्थितियों को प्रकट करने में न केवल अक्षम है अपितु अपमान जनक भी है हर किसी के साथ चिपका देना बिल्कुल ठीक नहीं है !सभी जातियों में कुछ लोग जीवंत भी होते हैं वो कैसे सहा लेंगे अपने लिए ऐसे निर्जीव शब्दों का प्रयोग !आज ग़रीबों में भी बहुत प्रतिभा संपन्न ऐसे लोग हैं जो दलित कहलाना पसंद नहीं करते !सम्पूर्ण देश का राष्ट्रपति बनने की जगह केवल किसी वर्ग विशेष का राष्ट्रपति बनना कोई क्यों स्वीकार कर लेगा ! 
        वैसे भी  गरीब होने का मतलब ये तो नहीं होता कि उनका कोई स्वाभिमान नहीं होता और उनमें कोई प्रतिभा नहीं है ग़रीबों में भी बहुत बच्चे आरक्षण जैसी भिक्षावृत्ति को पसंद नहीं करते वो स्वाभिमानी प्रवृत्ति के लोग इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं कि जाति और आरक्षण के द्वारा जो कुछ भी पाया जा सकता है उससे सम्मान स्वाभिमान की रक्षा नहीं हो सकती उससे तो केवल पेट भरा जा सकता है और पेट तो पशु भी भर लेते हैं आजादी से आजतक इसी श्रेणी में रखा गया है उन्हें वोट लेने के लिए उनका पेट भरने का आश्वासन दिया जाता रहा है अंडे देने वाली मुर्गी की तरह ही इसे वोट देने वाला वर्ग मानते हैं जातिवादी नेता लोग ! जैसे  दाना चारा देना जरुरी होता है वैसे ही गरीबों को !इतनी तुच्छ सोच है इनकी !
        हमारा बहुमूल्य मानव जीवन हमें पशुओं मुर्गियों की तरह नहीं अपितु मनुष्यों को तरह जीना चाहिए ये हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है हम किसी भी जाति के क्यों न हों !वैसे भी प्रतिभा में  सवर्ण जातियों से अपने को कम क्यों समझना !ऐसा क्यों मानना कि बिना आरक्षण के सवर्ण लोग तो तरक्की कर सकते हैं किन्तु हम नहीं  !क्यों क्या सवर्णों के दिमाग में बुद्धि की कोई अलग थैली लगी होती है क्या ?उन्होंने ने भी त्याग तपस्या संघर्ष और परिश्रम पूर्वक सबकुछ अर्जित किया है जो इसमें पीछे रहा वो पिछड़ता ही चला गया जो सवर्ण भी गरीब हैं उसके भी यही कारण हैं इसलिए सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि किसी जाति ने किसी जाति का शोषण नहीं किया अपितु जो सतर्क और संघर्ष शील परिश्रमी रहा वो आगे बढ़ गया !आलसी लोग औरों को कोसते रहे और कर्मठ लोग तरक्की करते रहे इसमें जाति की क्या भूमिका ?वैसे भी यदि किसी के यहाँ बच्चा न हो रहा हो तो  दोष पडोसी के मत्थे मढ़ दिया जाएगा क्या ?यदि नहीं तो ग़रीबों के गरीब बने रहने के लिए केवल गरीब ही जिम्मेदार हैं कोई और नहीं !इसके लिए किसी भी खुले मंच पर मैं खुली चर्चा करने को तैयार हूँ और ये  सच्चाई स्वीकार किए बिना नहीं हो सकता है गरीबों का कल्याण |
      आखिर सवर्ण भी तो गरीब होते हैं उनके बच्चों को आरक्षण जैसी कोई सुविधा नहीं मिलती फिर भी उनमें जो प्रतिभा संपन्न लोग होते हैं वो जैसे संघर्ष पूर्ण ढंग से परिश्रम पूर्वक अपना विकास कर लेते हैं वैसे ही सभी को करना चाहिए !ऐसा करने से अपने मन में हीन भावना नहीं रहेगी !ऐसी पवित्र सोच के धनी लोगों को दलित कहना उनका अपमान है क्योंकि दलित शब्द का अर्थ किसी भी सजीव के लिए प्रयोग करने लायक ही नहीं है पता नहीं क्या सोचकर मनुष्यों के किसी वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता ही ऐसा शब्द !
इस विषय में देखें हमारा ये लेख -    

 दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ? फिर पहचानो दलितों को !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html  

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