Friday, 24 March 2017

महिला सुरक्षा के नाम पर 'सीता ' और 'सूर्पणखा' को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता !

    धर्म के नाम पर धोखाधड़ी का साथ देने वाले स्त्री पुरुषों पर भी कड़ी कार्यवाही की जाए !ऐसे बाबाओं के बलात्कारों में उन्हें सम्मिलित  माना जाए !
    बाबाओं को बर्बाद करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है !बाबा बनकर पहुँचे रावण का सीता ने बहिष्कार किया था तब वे आदर की पात्र बनीं किंतु आज ऐसे कालनेमि या रावणजैसे बाबाओं से मिले बिना जिन्हें चैन नहीं पड़ती उन स्त्री पुरुषों को निर्दोष कैसे मान लिया जाए और ये कैसे मान लिया जाए कि ये उनकी पाप पूर्ण रँगरैलियों के अंग  नहीं रहे होंगे और यदि नहीं रहे होते तो इन्हें वहाँ और अच्छा लगता क्या था ?धर्म कर्म साधना संयम तपस्या आदि के संस्कार तो ऐसी जगहों पर दिखाई सुनाई नहीं पड़ते हैं फिर इन्हें वहाँ आनंद कैसे आ रहा था | 
    जिनकी बीबियों बच्चियों को बाबा लोग शिकार बनाते हैं तब उन्हें बुरा क्यों लगता है जब वही बाबा दूसरे की बीबी बच्चियों से वही दुष्कर्म कर रहे होते हैं उसे सत्संग कैसे मान लेती है उनकी आत्मा ! 'तमाशाराम' ने भी तो चेले की बेटी को ही अपनी हवस का शिकार बनाया था और बाबा 'कामकरीम' ने भी अपने चेले की बीबी को ही गोद लेकर दुष्कर्म किए !
    सीता जी तो लंका में जाकर भी सुरक्षित लौटीं जबकि सूर्पणखा राम जी के पास भी सुरक्षित नहीं रह सकी !सीताओं की सुरक्षा करना तो सरकार का जरूरी कर्तव्य है किंतु सूर्पणखाओं की सुरक्षा कैसे कर सकती है सरकार !वैसे भी सुरक्षा केवल महिलाओं की ही क्यों ?सुरक्षा व्यवस्था में पक्षपात क्यों !सुरक्षा सबको क्यों न मिले ?  
       'सीताजी' बिना सुरक्षा के भी सुरक्षित रह सकीं कैसे ?और 'सूर्पणखा 'सुरक्षा के सारे संसाधनों से संपन्न  होने पर भी अपनी नाक कटा बैठी !इसमें गलती लक्ष्मण जी की थी या सूर्पणखा की ?क्या सीता जी की तरह ही शालीनता पूर्वक सूर्पणखा भी रहती तो भी उसकी नाक कट जाती क्या ?इस प्रकरण में गलती लक्ष्मण जी की कितनी थी और सूर्पणखा जी की कितनी थी ?उस युग में लंका देश की रावणसरकार की तरह ही जो भी सरकार सीता और सूर्पणखा के अंतर को समझे बिना ऐसे प्रकरणों में केवल लड़कों या पुरुषों को ही जिम्मेदार मानकर पुरुषों के विरुद्ध ही कार्यवाही करने लगती है उस सरकार की भी वही दशा होती है जो लंका सरकार की हुई थी ! 
       मज़बूरी या मनोरंजन -
सीता जी को मजबूरी में जाना पड़ा था जंगल जबकि  सूर्पणखा मनोरंजन के लिए जंगल गई थी !
       सीता जी बलपूर्वक ले जय गईं सूर्पणखा खुद आई !
         सीता जी अपरहण से लंका ले जाई गईं किंतु सूर्पणखा स्वयं गई थी लक्ष्मण जी के पास !
         बलात्कारी भी पहले रूचि परखते हैं !
       सीता जी जिस बासनात्मक समर्पण को ठुकरा देती हैं सूर्पणखा उसी के लिए लार बहा रही थी !
       जैसी करनी वैसी भरनी  -
 सीता जी ने रावण के विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया था किंतु  सूर्पणखा स्वयं लिए घूम रही थीं विवाह प्रस्ताव !
      सुरक्षा अपनी अपने हाथ -
सीता जी लंका में भी बैठकर डाँट रही थीं त्रैलोक्यविजयी रावण को और सूर्पणखा गिड़गिड़ा रही थी लक्ष्मण से !
 लंका शराबियों कबाबियों नशेड़ियों गंजेड़ियों का देश -
 सीता जी लंका से भी सुरक्षित लौटीं किंतु सूर्पणखा राम जी के भी पास जाकर नाक कटा कर ही लौटी !
  बलात्कारियों में राक्षसों से बड़े बलात्कारी आज नहीं हैं -
       सीता जी का राक्षस भी कुछ नहीं बिगाड़ सके सूर्पणखा रामादल में भी सुरक्षित नहीं थी !
          सूर्पणखा जैसी सुरक्षा किसे मिलेगी ?
      सीता जी की सुरक्षा में केवल राम लक्ष्मण और सूर्पणखा की सुरक्षा में सारी लंका की पुलिस और सारे खानदान के साथ महान पराक्रमी स्वयं रावण भी !किंतु न सम्मान बचाया जा सका न नाक !  
शरीर की सजावट से झलकता है मन की सेक्सभावना !बलात्कारी भी परख लेते हैं -
     सीता जी !राजभवनों में भी सहज श्रृंगार प्रिय थीं सूर्पणखा जंगलों  में भी ब्यूटीपार्लर की शौक़ीन थी !
        जिस सूर्पणखा का भाई इतना बड़ा पराक्रमी रहा हो उसके पास इतनी विशाल सेना रही हो और अपनी बहन के प्रति इतना समर्पित रहा हो कि उसने बहन की सुरक्षा सम्मान स्वाभिमान के लिए सारे खान दान का बलिदान कर दिया हो फिर भी पीछे न हटा हो ऐसे भाई की इतनी भाग्यशाली बहन सूर्पणखा जैसी महिला भी मनोरंजन के लिए जंगल जाकर अपनी नाक कटवा बैठी वो भी किसी बलात्कारी और ब्याभिचारी से नहीं अपितु सभी सद्संस्कारों के शिरोमणि श्री लक्ष्मण जी से !सूर्पणखा जैसी कुसंस्कारी बहन का भाई उसके सम्मान के लिए परिवार सहित जूझ गया किंतु न उसकी कटी नाक न जोड़वा सका और न ही सम्मान स्वाभिमान वापस करवा सका !
         वैसे देखा जाए तो अकेले जंगल जाने की क्या आवश्यकता थी सूर्पणखा को उसके घूमने फिरने के लिए सभी साधनों से सुरक्षित लंका में जगह कम थी क्या ? किंतु जब कोई सूर्पणखा अपने माता पिता आदि अभिभावकों के अपनी सुरक्षा संबंधी बहुमूल्य समर्पण और सुझावों को समझ पाने में और उसकी कदर करने में चूक जाती है तो नाक उसकी तो कटती ही है साथ ही रावण जैसे महान पराक्रमी अपने भाई के परिवार का भी सत्यानाश करवा डालती है !
     माना कि सूर्पणखा युवा थी बालिग थी इसलिए वो अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकती थी ऐसा करने का अधिकार भी उसे लंका के  संविधान के तहत प्राप्त था कि वो क्या पहने कहाँ जाए कैसे रहे किससे मिले क्या करे क्या न करे इसके विषय में उसे कोई सलाह दे अंकुश लगाए ये उसे पसंद नहीं था उसे अपने स्वतंत्र अधिकारों के साथ स्वच्छंदता पूर्वक ही जीना यदि पसंद था तो उसका लिया फैसला ही  यदि उस पर भारी पड़ गया तो उसे अपने फैसले के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए स्वयं सहना  था अपनी गलती के लिए भाई के परिवार को बर्बाद करना कहाँ तक न्यायायोचित था !दूसरी बात रावण जैसा भाई स्वयं महान पराक्रमी था उसके लड़के नाती पोते लाखों में थे सब एक से एक बड़े वीर बलवान थे !इसके अलावा लंका में रावण सरकार की अपनी इतनी भारी भरकम परं पराक्रमी राक्षसी सेना थी ये सब सूर्पणखा की सुरक्षा के लिए समर्पित थी किंतु नाक कटाने जाते समय इन सब सिक्योरिटी फोर्सेस को साथ ले जाती क्या ?इतनी मूर्ख वो भी नहीं थी !
     सूर्पणखावादी लोग वैसे भी एकांत ही खोजते हैं पार्कों पार्किंगों झाड़ियों जंगलों खेतों खलिहानों आदि एकांत स्थानों का चयन दोनों आपसी सहमति से करते हैं ऐसे समयों में इनकी आपसी समझ साझा हो जाती है मरने जीने की कसमें दोनों साथ साथ खाते हैं यहाँ तक कि माता पिता आदि अपने प्रति समर्पित शुभ चिंतक अपने अभिभावकों की भी परवाह नहीं करते हैं उन्हें भी बिना बताए घर से चले जाने वाले निरंकुश बच्चों की सुरक्षा सरकार कैसे कर ले !   
   

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