Wednesday, 1 March 2017

महिलाएँ कैसे कपड़े पहनें कैसे रहें ये उनका निर्णय वो जानें किंतु पुरुषों को बदनाम न किया जाए !

   रामायण बलात्कारियों के विरुद्ध युद्ध का उद्घोष है !इसीलिए तो प्यार के शौकीन सार्वजनिक सेक्सालुओं को बकवास लगती है रामायण !अपनी निंदा सुनना पढ़ना पसंद कौन करता है !
     ऐसे फैशनेबल स्त्री पुरुषों की रामायण पढ़ने में रूचि नहीं होती उन्हें पता है हमारी बुराई लिखी है रामायण में !कुकर्मों की निंदा का ग्रन्थ है रामायण !इसीलिए तो प्यार करने वाले या तो रामायण पढ़ते नहीं है या फिर अपनी मूत्रता की तुलना सीता राम जी या राधाकृष्ण जी के दिव्य प्रेम से करने लगते हैं ऐसे खूसट !

     जो लोग रामायण में रूचि नहीं रखते   बलात्कारी पुरुषों और बलात्कारी स्त्रियों से बचने का ढंग सिखाती है रामायण !इनसे सीताजी  और रामजी ने जैसे निपटा उससे अच्छा कोई दूसरा ढंग हो ही नहीं सकता ! 
    उस समय लंका में भी लटें बिखराकर रहने,कटे कपड़े पहनने,नशा करने,स्वतंत्रघूमने और सार्वजानिक जगहों पर पशुओं की तरह कहीं भी किसी से कितनी भी देर के लिए प्यार करने का फैशन था !निरंकुश और स्वच्छंद प्यारपीड़ितों के कारण ही लंका का विनाश हुआ थाउसी प्यार का शुरूर अब भारत पर छाया हुआ है श्री राम जिस विषैली विकृति से लड़ने लंका गए थे उसी का बहुत सवार है भारत को !उसका परिणाम हुआ लंका का बिनाश ! अब भारत की रक्षा भगवान् के ही हाथों में है !
   समाज का सारा वातावरण सूर्पणखाओं ने बिगाड़ा किन्तु कीमत चुकानी पड़ती है सीताओं को !रावणों की सजा भुगतते हैं 'राम !रावण और सूर्पणखाओं को मिले कुसंस्कारों का ही परिणाम है कि सूर्पणखाएँ अपने भाई रावण के जैसा सारे पुरुषों को अपना समझती हैं और टोकरी में लिए फिरती हैं विवाह प्रस्ताव !इसी प्रकार रावण अपनी बहन जैसा सभी स्त्रियों लड़कियों को समझ कर माता सीता से भी कह देता है कि एक बार मेरी ओर देख !किंतु ऐसे राक्षसों से सीताजी  और रामजी ने जैसे निपटा उससे अच्छा कोई दूसरा ढंग नहीं हो सकता ! 

    ऐसे अपराधों के लिए समाज के दोनों पक्ष जिम्मेदार होते हैं जिस घर का बेटा रावण पराई स्त्रियों का हरण करता था उस घर की बेटी सूर्पणखा भी वैसी ही थी !इसलिए आज ये कल्पना कैसे कर ली जाए कि रावण तो होंगे किंतु सूर्पणखाएँ नहीं होंगी !महिला सुरक्षा के नाम पर सूर्पणखाओं का बचाव हो जाता है और उनका धंधा चमका करता है वो बर्बाद करती रहती हैं समाज किसी को धक्का मारकर  माँग लेती हैं रूपए अन्यथा केस कर देती हैं छेड़ने का !
    पुरुषों के रहन सहन पर अंकुश क्यों लगाया जाए वे भी स्वतंत्र हैं या नहीं ?वे भी तो स्वतंत्रता की इच्छा रख सकते हैं या नहीं ?किंतु यदि वे भी इतने स्वतंत्र  हुए तो स्त्री पुरुषमय समाज का निर्वाह साथ साथ हो सकेगा क्या  ?  
    पुरुष कैसे कपड़े पहनें इसका निर्णय पुरुष स्वयं करें किंतु बाइचांस नंगेपन का शौक़ीन कोई अश्लील पुरुष यदि भारतीय राहों चौराहों पर पार्क पार्किंगों में मेला बाजारों में होटलों रेस्टोरेटों में बैंकों आदि सरकारी कार्यालयों में नेताओं की रैलियों में सभा सम्मेलनों में बिजली टेलीफोन दफ्तरों आदि में में अपनी मर्जी से नंगा घूमना फिरना बैठना उठना बात व्यवहार करना या ऐसे ही अमंगल वेष में सरकारी आफिसों में पहुँच कर अपनी ड्यूटी ही करना चाहे तो उसे मर्यादा में रहने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए या नहीं ?स्वतंत्रता के नाम पर  उसे ऐसे रहने की आजादी मिलनी चाहिए या नहीं ?
         "अपनी मनमर्ज़ी से क्यों न सजें-संवरें  महिलाएँ !-एक खबर"
    किंतु इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि अधिकार के नाम पर किसी भी स्त्री पुरुष को अश्लील वेष भूषा में घूमने फिरने की आजादी मिल जाए क्योंकि सभी स्वतन्त्र हैं और किसी स्वछंद स्त्री पुरुष को न जाने कब निर्वस्त्र रहने की शौक होने लगे आखिर उसे किस नियम से रोका जाएगा !यदि उसकी इच्छा के विरुद्ध दबाव डाला जाएगा तो इसका मायने परतंत्रता होगी !किंतु
परतंत्र कोई क्यों रहे !
    हमारी निजी समझ से हमारे जैसी वेष  भूषा रहन सहन आदि बात व्यवहार आदि से देखने वालों के मानों में सेक्स भावना को जगाने का प्रयास किया जा रहा हो समाज सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे सभी व्यवहारों को रोक जाना चाहिए !अन्यथा प्रसंगात एक बात याद आती है एक महिला एक ब्यूटी पार्लर से कई वर्ष तक सजने सँवरने जाती रहीं !एक दिन उन्हें  में जाना था लेकिन वो ब्यूटी पार्लर बंद था तो वो पड़ोस वाले दूसरे पार्लर में चली गईं और जज कर पार्टी जाकर ज्वाइन की !इसके बाद इसमें ही जाने लगीं किसी ने पूछा इसमें क्या अच्छा लगा आपको !तो उन्होंने शरमाते हुए बताया कि पुराने वाले से इतने वर्षों तक सजने जाते रहे बड़ी पार्टियाँ ज्वाइन कीं किन्तु मुझे कभी न किसी ने तक न झाँका न किसी को अपने ओर घूरते ही देखा !किंतु इस वाले ब्यूटी पार्लर वाले ने तो कमाल ही कर दिया इस उम्र में भी ताकने झाँकने घूरने की तो क्या कहें लोगों ने युवा अवस्था की याद फिर से ताजा करवा दी !बारे ब्यूटीपार्लर !वास्तव में गजब का है !
   ऐसी परिस्थिति में जिन शरीरों की साज सज्जा के ढंग से लोगों के मनों पर ऐसा मादक असर पड़ता हो ऐसे शरीरों की अमर्यादित श्रृंगार समाज के हित में होगी क्या " 

   एक बात और है कि ऐसे स्वतंत्र एवं कानून के द्वारा मिलाने वाले संभावित दंड भुगतने की हिम्मत रखने वाले लोग क्या अपराध करने के लिए स्वतन्त्र हो सकते हैं !क्योंकि अपराधियों का प्रायः मानना होता है कि यदि हम अपने अपराध के बदले दंड भुगतने को तैयार हैं तो गलत कहाँ हैं !ऐसी परिस्थिति में अपनी अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित लोग औरों पर लगाम कैसे लगा सकेंगे !इसलिए 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अर्थात यदि अपनी मर्यादाओं की रक्षा आप करेंगे तभी औरों से भी मर्यादा में रहने की आशा करनी चाहिए अन्यथा खुली जगह में गुड़ रखने वाले को भी पता होता है कि यहाँ मक्खियाँ भिनभिनाएँगी ही और चीटियाँ लगेंगी ही इसलिए जो गुड़ रखता है वो इसके लिए तैयार होता है यही स्थिति शरीरों के विषय में भी समझनी चाहिए ! see more....
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