Saturday, 18 March 2017

जोगी जी ने खाई मुख्यमंत्री बनने की कसम ! किंतु इस कसम के द्वारा वो कसम पूरी की जाएगी क्या ?

            मेरी ओर से उन्हें बहुत बहुत बधाई !!
   "कसम राम की खाते हैं हम मंदिर वहीँ बनाएँगे !"
     क्या अभी भी उस संकल्प को पूरा किया जाएगा !
"अयोध्या मथुरा विश्वनाथ !तीनों लेंगे एक साथ !!"
 ये तो करना जरूरी है ही इसके साथ साथ प्रदेश का विकास और जनता की सेवा ये दो अत्यंत महान दायित्व सौंपे हैं प्रदेश वासियों ने उन पर भी खरा उतरना होगा ! 
           सेवाधर्मों परमगहनो योगिनामप्यगम्यः | 
सेवाधर्म सबसे कठिन है जिसे योगी भी नहीं समझ पाते  हैं !तो दूसरे लोग क्या समझेंगे किंतु अब ये बड़ा दायित्व जोगी जी पर है ईश्वर इसे निर्वाह करने की उन्हें सामर्थ्य दे ताकि वे जनता का स्नेह सँभाल कर रखसकें !
     अक्सर देखा जाता है कि जनता के साथ भिखारियों जैसा वर्ताव करने लगती हैं सरकारें और उनके अधिकारी कर्मचारी लोग ! क्या जोगी जी के शासन में जनता के साथ ऐसा वर्ताव नहीं किया जाएगा !
     हमें नहीं भूलना चाहिए कि  जनता जिन्हें युधिष्ठिर समझकर धूम धाम से गद्दी पर बिठाती है वही लोग जब जनता के काम भूल कर अपना रुतबा दिखाने में लग जाते हैं तो उन्हें ही दुर्योधन समझकर गद्दी से उतार फेंकती है वही जनता !यूपी चुनावों में दो दो राजकुमार अपनी ऐसी ही हरकतों के कारण दर दर भटकते घूम रहे हैं जबकि इन्हें भी जनता ने बड़ा दुलार पियार करके कभी गद्दी पर बैठाया था अब उतार दिया !पुरानी कहावत है कि जनता को काम पसंद है शरीर का मांस और बातें नहीं !
    नेताओं की ऐसी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार होता है उनके काम काज का अपना ढंग !जब ऐसे पदों पर पहुँचे लोग शिकायतकर्ताओं या समस्याओं के नैतिक समाधान के लिए आने वाले लोगों के साथ भिखारियों जैसा व्यवहार करने लगते हैं और सहती है वो जनता जिसके बलपर चल रहा है लोकतंत्र !तब जनता समय आने पर सिखाती है उन्हें भी सबक !
    अक्सर नेताओं के द्वारा दावे बहुत किए जाते हैं सपने बहुत दिखाए जाते हैं किंतु कोई नेता ऐसा नहीं है जो हिम्मत बाँध कर जनता की आँखों से आँखें मिलाकर यह कह सके कि  जब तुम्हारा काम कहीं न हो तो मेरे पास चले आना और मैं करूँगा तुम्हारा नैतिक और कानून सम्मत सहयोग !
    जो मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जैसे पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार के विरोध की विकास की ईमानदारी की ऐसी बड़ी बड़ी बातें तो कर जाते हैं जैसे वास्तव में रामराज्य ले आए हों !ऐसे लोग जनता से संपर्क स्थापित करने के लिए फोन नंबर मोबाईल नंबर जीमेल ट्विटर से लेकर अपने वे सारे पते दे देंगे जिससे उन तक पहुँचा जा सकता है और दावा करेंगे लोगों की समस्याओं के समाधान करने का किंतु जब आप अपनी समस्याएँ लिखकर भेजेंगे तो उस पर कोई कार्यवाही होनी तो दूर उसका जवाब तक नहीं आता है !उन्हें कोई पढ़ता भी होगा हमें तो इस पर भी संदेह है !
  ऐसे लोगों के भ्रष्टाचार विरोधी सौ प्रतिशत झूठे भाषणों पर भरोसा करके समस्याओं के समाधान के लिए जनता सरकारी विभागों में चली जाती है वहाँ या तो उनसे घूस माँगी जाती है और या फिर उनके काम में  रूचि ही नहीं ली जाती है उन्हें इधर उधर भटकाते रहा जाता है ।अंततः तंग होकर लोग मंत्रियों मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्रियों से इस आशा में मिल लेना चाहते हैं कि ये तो वास्तव में धर्मराज होंगे ही क्योंकि ये तो दिन भर भ्रष्टाचार विरोधी भाषण ही देते रहते हैं और देश में कानून व्यवस्था ठीक होने की बातें बार बार दोहराते रहतॆ हैं । 
    कुल मिलाकर सरकारों के सरदार तो भ्रष्टाचार के विरोध की बड़ी बड़ी बातें टीवी चैनलों पर बैठकर बोल जाते हैं किन्तु उन्हें ये भी नहीं पता होता है कि उनकी बातों की कीमत जनता को कैसे कैसे चुकानी पड़ती है !ऐसे सरकारी ईमानदार लोगों के पास पहली बात तो जनता पहुँच ही नहीं पाती है और यदि किसी प्रकार से पहुँच पाई तो राम लीलाओं में स्टेज पर जाने के लिए सजे सँवरे तैयार बिलकुल रावण की तरह वहाँ प्रकट किए जाते हैं सरकारी नेता लोग !उनके आते ही फर्यादियों  की भारी भीड़ आपस में धक्का मुक्की करके गुंथ जाती है एक दूसरे से तब तक वे गाड़ी पर बैठते और निकल जाते हैं मुझे आशा है कि जोगी जी के शासन में ऐसा नहीं होगा ।
    हैरान परेशान जनता सांसदों विधायकों आदि के यहाँ चक्कर लगाने लग जाती है वहाँ जनता से सांसदों विधायकों का मिलना कहाँ हो पाता है उन लोगों ने अपनी अपनी आफिसों में अपने अपने प्यादे बैठाए होते हैं जिनके पास हर प्रकार के  सिफारिसीलेटरों की अलग अलग गड्डियाँ बनी रखी होती हैं वे बेचारे दिन भर बाँटा करते हैं उन्हें !लेटर जब ख़त्म होने लगते हैं तो वो और बनाकर रख लेते हैं फिर बाँटने लगते हैं किंतु वो जो जहाँ लेकर जाता है वहाँ कोई अधिकारी कर्मचारी उन सिफारिसीलेटरों पर अमल करना तो दूर उन्हें पढ़ना तक जरूरी नहीं समझता है जनता बार बार भटकती रहती है।  मजे की बात तो ये है कि कई बार वे सांसदों विधायकों के प्यादे उन अधिकारियों कर्मचारियों को सिफारिसी फोन भी करते देखे जाते हैं किंतु वे अधिकारी कर्मचारी उन फोनों की ऐसी अनसुनी कर देते हैं जैसे उनकी कोई गुप्त सेटिंग हो उसके तहत वो ऐसा कर रहे हों क्योंकि अपनी बात न मानना सिफारिसी प्यादों को बुरा भी नहीं लगता है !संभवतः जोगी जी के शासन में ऐसा पाखण्ड पूर्ण दिखावा न हो !
   अपनी ऐसी पाखंडी मशीनरी के बल पर प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि जनता को झूठी रेवड़ियाँ बाँटते रहते हैं और बड़ी चतुराई पूर्वक आगे के आगे आश्वासन देते चले जाते हैं । जनता उनके आश्वासनों पर भरोसा करती चली जाती है !ऐसी चालों से कुछ मध्यावधि चुनाव तो आश्वासनों के सहारे जीते जा सकते हैं किंतु मूल चुनाव का हिसाब किताब करते समय जनता उनकी सारी दलीलों को ख़ारिज कर देती है और उनके विरुद्ध फैसला सुना देती है ।
     ऐसे सिफारिसी पत्र धोखा धड़ी और छलावा नहीं तो क्या हैं क्योंकि पत्र देने वाले जनप्रतिनिधियों को भी ये पता होता है कि उसके पत्र की वहाँ कोई अहमियत नहीं होगी जिनके लिए वे पत्र भेजे जा रहे हैं !उन्हें भी पता होता है कि शिकायती पत्रों को सरकारों और सरकारी विभागों में पढ़ता ही  कौन है ?

 "यूपी में बदलाव की दस्तक, अफसरों को समय से ऑफिस आने का फरमान जारी"आखिर ये सब क्या है?     कल्याणसिंह जी  ने भी एक बार मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद बड़े बीर रस में बोला था कि भ्रष्ट गैर जिम्मेदार और अकर्मण्य अधिकारियों कर्मचारियों पर कहर बनकर टूटूँगा किंतु कर क्या पाए वे बिचारे !आज तो बुढ़ापा बिताने वाले पवित्र पद को सुशोभित कर रहे हैं वे किंतु देश प्रदेश में सरकारी काम काज में किसी प्रकार का सुधार हुआ है  क्या ?इसलिए बड़ी बातों से बचते हुए बड़े काम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए !
    केजरीवाल बड़े जोर शोर से ईमानदारी का राग अलापते आए थे देश को उनसे भी बहुत बड़ी आशाएँ थीं  केजरीवाल जी को सरकार में रहते 2-3 वर्ष हो गए !
   राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहाँ केन्द्र और प्रदेश दोनों सरकारों की भूमिका है वहाँ के काम काज की ऐसी स्थिति है कि भ्रष्टाचार के बल पर कुछ दबंग लोग  सरकारी मशीनरी को अपने साथ मिलाकर कुछ भले लोगों की दैनिक जिंदगी तवाह करते रहते हैं इनके सताए हुए हैरान परेशान लोग बड़ी आशा से नैतिक सहयोग पाने के लिए सांसदों विधायकों के पास सैकड़ों चक्कर लगाते रहते हैं किंतु अंत में निराश होकर थक हार कर या तो घर बैठ जाते हैं और या फिर सरकारी कामकाज की पद्धति के अनुशार घूस देकर करवा लिया करते हैं अपने अपने काम !
   जिसकी शिकायत की सुनवाई करने वाला कोई अधिकारी कर्मचारी नहीं है क्योंकि उनका मन वहाँ लगता है जहाँ से धन मिलता है और घूस देने पर भरोसा वही रखते हैं जिनके पास गलत कामों से पैसे आते हैं इसीलिए वे घूस देने लायक होते हैं ऐसी परिस्थिति में गलत कामों को बंद करने में वे अधिकारी कर्मचारी क्यों रूचि लेंगे जिनकी कमाई ही उन्हीं गलत लोगों के गलत कामों से होती हो ऐसी परिस्थिति में किसी मुख्यमंत्री  आदि के द्वारा गलत कामों को बंद करने की बात करना सबसे बड़ा झूठ है यदि उस पर कोई कार्यवाही की ही नहीं जा सकती है तो ।
     मुख्यमंत्री  आदि बड़े पदों पर पहुँचने के बाद उनके चारों ओर सिक्योरिटी होती है इससे वो देश वासियों की सुरक्षा का अंदाजा लगा लिया करते हैं खुद को बिना कमाए खाने को मिल रहा होता है इससे वो देश वासियों की खुशहाली का  अंदाजा लगा लिया करते हैं और सरकारी मशीनरी इन्हें ऐसे रोडों  से लेकर चलती है जो साफ सुथरे और खाँचा मुक्त हों इससे वे रोडों का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि अब देखो रोड कितने अच्छे हैं ।
    ऐसे ही सरकार के जिस भी विभाग में मंत्री मुख्यमंत्री  और प्रधानमंत्री आदि ले जाए जाते हैं वहाँ वे  लोग अपने आगमनोत्सव की खातिरदारी से  देश और समाज की खुशहाली का अंदाजा  लगा लिया करते हैं !उनके आस पास वही लोग हूबहू ईमानदारों जैसे दिख रहे होते हैं जिनके भ्रष्टाचार की दिए घाव असली ईमानदार लोग वर्षों से सहला रहे होते हैं ।
      कोई  कर्मठ और ईमानदार प्रधानमंत्री और मुख्य मंत्री यदि ईमानदारी पूर्ण ढंग से काम करना भी चाहे तो कैसे करे यदि उसकी राष्ट्रीय राजधानी के सांसद और विधायक ही ऐसे अकर्मण्य और जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले हों तो !राष्ट्रीय राजधानी के हालात ही यदि ऐसे शर्मनाक हो जाएँ तो और पूरे देश की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान भी आसानी से लगा लिया जाना चाहिए ! क्योंकि हर प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि को तो प्राप्त परिस्थितियों में ही सरकार का संचालन करना होता है यदि अधिकारी कर्मचारी भ्रष्ट भी हों तो कोई  क्या बिगाड़ लेगा उनका दो चार हों तो सस्पेंड कर दिए जाएँ और ज्यादा हों तो क्या किया जाए!आखिर उनसे और उनके भ्रष्टाचार से समझौता करना ही पड़ता है यही होता चला आ रहा है । 
   मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे पदों पर तो लोग बदलते रहते हैं इसलिए इन पदों पर रहकर काम करने का उनका तो अनुभव सीमित होता है जबकि उन विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को ऐसे लोगों को जोतते जिंदगी बीत गई होती है उन्हें पता होता है कि नए बैल को जोतने में शुरू शुरू में कठिनाई होती है बाद में धीरे धीरे वो भी कढ़ जाता है और उसी ढांचे में ढल जाता है यही स्थिति भारतीय सरकारों के नेताओं की है इस सरकारी मशीनरी ने अच्छे से अच्छे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि को अपने अपने अनुसार काढ़ लिया है सिंहों के समान गर्जना करके ऐसे बड़े बड़े पदों की शपथ लेने वाले बड़े बड़े लोग म्याऊँ म्याऊँ करते हुए पद छोड़ते देखे जाते हैं जैसे नवविवाहिता बहू कौमार्य भंग होने की लज्जा से प्रथमवार हर किसी का सामना करने में संकोच करती है !इसी तरह नेता लोग भी किसी पद पर पहुँचने पर  शुरू शुरू में तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा फड़कते हैं किंतु ईमानदारी का कौमार्यभंग होते ही म्याऊँ म्याऊँ  करते हुए चले जाते हैं ! भगवान् करे योगी जी ऐसे न हों और अच्छे निकलें और जनता उन्हें अपना युधिष्ठिर का  युधिष्ठिर ही बनाए रखे !  
 

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