Thursday, 23 March 2017

प्रधानमंत्री जी ! सांसद विधायक योग्य हों और स्कूली बच्चे पढ़ने में होशियार हों तो गैरहाजिर रहेंगे ही क्यों ?

       अयोग्य लोगों को चुनावी टिकट देने वाले और बुद्धू बच्चों को स्कूलों में एडमीशन देने वाले दोनों ही दोषी होते हैं इसमें सांसदों विधायकों और स्कूली बच्चों का क्या दोष !वर्तमान राजनीति में प्रतिभाओं की उपेक्षा चिंता का विषय !चुनाव तो अयोग्य लोग भी जीत लेते हैं किंतु देश और समाज को दिशा देना योग्यता और संस्कारों के बिना संभव है ही नहीं !
         प्रधानमंत्री जी !सांसद  विधायक भी स्कूली बच्चों की तरह ही होते हैं पढ़ने लिखने में कमजोर स्कूली बच्चों को एवं अयोग्य जनप्रतिनिधियों को स्कूल और सदनों में जाने में रूचि तो नहीं ही होती है किंतु जैसे डोनेशन देकर एडमीशन मिल जाता है ऐसे ही मिल जाते हैं चुनावी टिकट !रिस्तेदारों के बच्चों के एडमिशनों की तरह ही  नेताओं के बच्चों को भी घुसा दिया जाता है राजनीति में !किंतु योग्यता अनुभव संस्कार चरित्र कर्मठता  परोपकारभावना सेवाभाव सहनशीलता भाषाशैली बहुज्ञता कई विषयों का वैदुष्य भाषाशैली की आवश्यकता क्या राजनीति में होती ही नहीं है !गरिमापूर्ण जीवन जीने वालों को बार बार टोकना  ही नहीं पढ़ता है!किंतु जिनकी क्वालिटी ही कमजोर हो उन्हें अच्छा बनने का उपदेश करते रहने से उनकी योग्यता तो बढ़ नहीं सकती हाँ इससे अपनी कर्मठता का प्रचार जरूर हो जाता है !
      प्रधानमंत्री जी !मैं स्वयं उसी विचारधारा के विभिन्न आयामों से सं 1986 से जुड़ा चला आ रहा हूँ जो इस समय भारत की सत्ता के शीर्ष सोपान पर विद्यमान है । मैंने भी चार विषय से MA और काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph.D.की है लगभग 100 किताबें लिखी हैं 27 किताबें विभिन्न स्कूलों में पढ़ाई भी जाती हैं कई काव्य भी हैं प्रवचन भाषण कविता पाठ आदि का बचपन से अभ्यास है मेरी एक किताब के प्रकाशन के लिए स्वयं आपने श्रीमान प्रभात जी को फोन भी किया था !उसी से उऋण होने के प्रयास में सोशल साइटों पर समर्पित हूँ !
    सोर्स और घूस दे पाने की क्षमता के अभाव में बेरोजगारी का जीवन जीने के लिए मजबूर मैं राष्ट्रहित समाजहित एवं वैदिकवैज्ञानिक शास्त्रीय अनुसंधानों में अधिकाँश समय देकर परिश्रम पूर्वक मैंने कई बड़े  शोधकार्य किए हैं जिनके उपयोग से कई मामलों में आधुनिक विज्ञान के कार्यों में बड़ी मदद मिल सकती है !ऐसा सोचकर मैंने अपने ऐसे शोध कार्यों को सरकार के सामने प्रस्तुत करके इन्हीं शोध कार्यों के लिए सरकार से सहयोग पाने हेतु मेरे द्वारा किए गए समस्त प्रयास निष्फल सिद्ध हुए हैं और सरकार की ऊंचाइयों तक हमारे जैसे लोगों का पहुँच पाना  संभव कहाँ हो पाता है !जिन सांसदों के माध्यम से सरकार के शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचने की व्यवस्था सरकारों में होती है उन्हें यदि समझाया ही जा सकता होता तो अबतक आप तक मैं पहुँच भी गया होता !अपने विषय को समझ सकने की शक्ति उनमें विकसित कर पाना मेरे लिए आसान नहीं है बाकी दूसरे और कोई सोर्स मेरे पास नहीं है अन्यथा रीडर प्रोफेसर तो मैं भी बन सकता था !
    महोदय ! जनप्रतिनिधियों की योग्यता के अभाव में समाज के कई बड़े नुक्सान होते रहते हैं जिधर ध्यान प्रायः कम लोगों का ही जाता है । पहला उनकी अपनी अयोग्यता से होने वाला नुक्सान और दूसरा योग्य लोगों को आगे न बढ़ने देने का उनका अघोषित संकल्प और प्रयास !तीसरा योग्य लोगों की शैक्षणिक योग्यता अनुभव आदि जनहितकारी गुणों को समझपाने की क्षमता का अभाव एवं उनसे कुछ सीखने में लज्जा का अनुभव आदि ! श्रीमान जी !राजनीति की वर्तमान अयोग्य अवस्था बेरोजगार शिक्षितों का मनोबल अत्यंत तोड़ती जा रही है सरकारी भ्रष्ट तंत्र का आर्थिक पूजन करके नौकरी पाने में असफल योग्य लोगों की योग्यता का उपयोग सरकार को कहीं तो करना चाहिए क्योंकि वे देश की प्रतिभा हैं और प्रतिभाओं की उपेक्षा का दंड भोग रहा है देश और समाज ! देश में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्तियाँ एवं बढ़ता भ्रष्टाचार आदि सरकार की इसी उपेक्षा के परिणाम हैं !
       अयोग्य जनप्रतिनिधि जैसे राजनीति को डिस्टर्ब करते हैं एवं अयोग्य विद्यार्थी जैसे शिक्षा व्यवस्था में बोझ बन जाते हैं वैसे ही घूस और सोर्स के बलपर सरकारी योग्य स्थानों पर अयोग्य लोगों के फिट कर दिए जाने का सरकारी सेवाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है !योग्य लोग बेरोजगार होने से बेकार हो गए और अयोग्य लोग तो बेकार थे ही उन्हें सरकारी सेवाओं में भर लिया गया !अब योग्य लोग योग्य सेवाएँ दे नहीं सके और अयोग्य लोग अपनी सेवाएँ दें कैसे !सरकार उन पर बहुत अधिक शक्ति बरतेगी तो क्या करेंगे घर से टिपिन लेकर विभागों में सुबह से ही आ कर बैठ जाएँगे लंच करेंगे चाय पिएँगे हाय हलो करेंगे यूनियन बनाएँगे सरकार के विरुद्ध हड़ताल करने की योजना बनाएँगे मीटिंग करेंगे चाय पानी करेंगे फिर कुछ लोगों से हाथ मिलाएँगे गले मिलेंगे सरकार  का कोई नुमाइंदा पहुँचेगा तो अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ जाएँगे माउस हिलाने डुलाने लगेंगे किंतु हकीकत तो सामने तब आती है जब जनता के साथ वे जैसे पेस आते हैं वे दृश्य देखने लायक होते हैं !कर्मचारियों की अयोग्यता और आलस्य के ही कारण आज सरकारी सेवाएँ अधिक खर्चीली होने के बाद भी दिनोंदिन अनुपयोगी सिद्ध होती जा रही हैं!सरकारी स्कूल अस्पताल आदि अपनी अपनी विश्वसनीयता खोते चले जा रहे हैं !
         जैसे गन्दगी अधिक बढ़ जाए तो उस सडांध में कीड़े मकोड़े पैदा हो जाया करते हैं इसी रीति से सरकारी व्यवस्थाओं के भ्रष्टाचार से उनसे संबंधित सेवाएँ देने वाले प्राइवेट विभाग पैदा हो जाते हैं ! नर्सिंगहोम प्राइवेटस्कूल कोरियर प्राइवेट फ़ोन कंपनियाँ आदि ऐसे ही अपने सरकारी पूवजों का परिचय दे रही हैं !संभव होता तो लोग अबतक अपनी अपनी पुलिस भी प्राइवेट ही बना लेते कुछ सक्षम लोगों ने ऐसा कर भी रखा है बात  अलग हैं कि प्राइवेट होने के कारण लोग उन्हें गुंडे कहते हैं अंततः होते तो वे भी उन लोगों के अपने  एक प्रकार के प्राइवेट सुरक्षा कर्मी ही हैं !सरकारी कामकाज का दायित्व सँभालने वाले कर्मचारी यदि योग्य और ईमानदार होते तो अपने अपने विभागों की  जिम्मेदारी वे स्वयं सँभालते कहने सुनने का मौका ही नहीं देते किंतु यदि वे ऐसे नहीं हैं अपने अपने विभागों की भद्द पिटते देखकर भी सह पा रहे हैं ये उनके सामान्य साहस की बात भी नहीं है ।आप ही सोचिए कि प्राइवेट सेवाओं में ऐसे लोग कितने दिन टिक पाते !हिम्मत सरकार की ही कही जाएगी जो ऐसे होनहारों को ढोए जा रही है उसके दो कारण हैं पहला सरकारों में सम्मिलित नेताओं की अपनी जेब का कुछ लगता नहीं है और इनकी लापरवाही से अपना कुछ बिगड़ता नहीं है।  टैक्स रूप में प्राप्त जनता की कमाई से इनकी सैलरी जाती है और इनसे जूझना जनता को ही पड़ता है। 
       सरकारों में सम्मिलित जिम्मेदार नेताओं को तो मीडिया के लिए कुछ बोलना ही होता है आखिर चैनलों को रोज शाम को पैनल बैठाकर चर्चा कराने का मशाला तो सरकार या विपक्ष को ही देना होता है बाकी मीडिया के निर्मल बाबा अर्थात पत्रकार लोग तिल का ताड़ तो बना लेते हैं किंतु तिल के लिए उन्हें सरकार और विपक्षी नेताओं की ओर ही देखना ही होता है !इसीलिए मीडिया के सामने पहुँच कर नेताओं को कुछ ईमानदारी की बातें बोलनी ही होती हैं भ्रष्टाचार समाप्त करने का संकल्प दोहराना ही होता है बस !कुछ योजनाएँ भी गिनानी पड़ती  हैं और बस बाकी सारा  बीर रस !
        सरकारों के शीर्ष नेता भी करें तो  क्या !सांसद विधायक उनकी सुनते नहीं मानते नहीं कुछ कर पाने की योग्यता के अभाव में केवल शीर्ष नेताओं के नाम का जप किया करते हैं उनको पता होता है कि टिकट ये देंगे चुनावी भाषण ये देंगे और हमें जितवा लाएँगे तभी तो वो वो बने रह पाएँगे जो आज हैं अन्यथा यदि हम हम नहीं रहेंगे तो वे वे कहाँ से बन पाएँगे !इसलिए ये वो रहना चाहेंगे तो खुद ही इंतजाम करेंगे मैं क्यों सिर खपाऊँ !कुलमिलाकर कभी कभी मैं स्वयं सोचता हूँ कि लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था में योग्यता अनुभवों चरित्र और शालीनता का कोई स्थान होना ही नहीं चाहिए  क्या यदि हाँ तो समाज से वैसी अपेक्षा क्यों ?
 सरकारी व्यवस्थाओं को शुद्ध और स्वस्थ कर पाना इतना आसान भी नहीं है ये कि जन प्रतिनिधियों को इतनी आसानी से कर्तव्यबोध कराया जा सके ! 

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